August 2023 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, August 23, 2023

Art of Life..a real luxury of Life.
August 23, 20231 Comments

 

Contentment is natural wealth luxury is artificial poverty.
Socrates.

जीवन से संसार और संसार में जीवन !! व्यक्ति और समष्टि..! हमसब की गति बस, इन्हीं दो शब्दों के अनुसरण में ही हैं। वैयक्तिक सुंदरता, श्रेष्ठता को स्थापित करने की दौड हैं। इस खूबसूरत खेल (जीवन) का मैदान सारी सृष्टि हैं। सारे संसार में हमारें करतब कैसे हैं? हम किससे बेहतर हैं ? हम ही सबसे ऊपर हैं, ओर पीछे हैं तो इन दिशाओं की खोज में निकलें की वो हमें सबसे बेहतर बनाएं।


The art of luxury

महान फिलसूफ सोक्रेटिस ने बडी लाजवाब बात बताई हैं। "संतोष ही हमारा प्राकृतिक धन हैं, विलासिता कृत्रिम गरीबी हैं।" जीवन जीने के मूलभूत सिद्धांत को पकड पाना सबसे बडी सफलता हैं। मनुष्यत्व उलझकर पिडित हो रहा है। विश्व में समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ रही हैं। सुझाव बहुत है लेकिन सुलझाया नहीं जा रहा हैं। खाने-पीने से लेकर रहन-सहन, शिक्षा-अशिक्षा, शोध-संशोधन, मेरा-तेरा, अपना पराया सब में असमंजसता संवृत हैं, व्याप्त हैं। इससे बचने के उपाय कईं हैं,लेकिन उस उपाय को बताने वालों के उपर भी सवाल हैं। बस, इन्हीं सोच से जीवन का गुजारा ही संभव हैं। आनंदपूर्वक के जीवन को लेकर प्रश्ननार्थ ही रहेंग़े !!

बात संतोष की हैं लेकिन संतोष होगा तो नई उम्मीदों का क्या ?
"असंतोषा: श्रीयं मूलं।" महाभारत के सभापर्व का एक श्लोक ये कहता हैं। असंतोष होगा तो ही लक्ष्मी प्राप्त होगी। अब करना क्या ? कौन सही भला ? वैचारिक मतभेदों की उलझनें हैं लेकिन मुझे मेरी आवाज, मेरी भीतरी आवाज को सुनना होगा। या तो प्रकृतिगत सिद्धांत को मानना होगा। मैं जो समझता हूं ,थोडा प्रयास करता हूं। इस बात को लेकर....जिसकी प्राप्ति से अन्य का कुछ भला है क्या ? या फिर समष्टि का हित उसमें है क्या ? उन सभी चीजों की प्राप्ति में मेरा असंतोष होना चाहिए। मेरी वैयक्तिक मेहनत से मुझ से ज्यादा अन्य का भी लाभ हैं तो मेरा रास्ता सही हैं। ब्लोग सही जा रहा हैं ? मेरी वैयक्तिक मांग में संतुष्टि आवश्यक हैं। "मैं" की कल्पना तो हमारी हैं ही नहीं। हमारें प्राचीन वेदों की भाषा "हम" हैं। हमारा कल्याण, समष्टि का हित ओर मनुष्य मात्र के उत्कर्ष की बात वेदों में हैं। हमें पुरुषार्थ की बातों में श्रद्धा हैं। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति हमारी सांस्कृतिक सोच रही हैं। इसीलिए भारतवर्ष की " वसुधैवकुटुंबकम् " की बात सर्व स्वीकार्य हैं। स्वीकार्यता की बात को लेकर हम कितने सही गलत ये हमें तय करना हैं। क्योंकि हम भारतवर्ष की संतान हैं।

मुझे अब विलासिता की कृत्रिम गरीबी के बारे में कुछ लिखना पडेगा क्या ? शायद बिल्कुल नहीं..आपको संतोष की बेशुमार धन्यता समज में आ ही गई होगी। प्राकृतिक धन संतोष हैं, तो असंतोष की अद्भुत तत्परता भी समझ में आ ही जाती हैं। हमारी उम्मीदों की उडान इन्हीं रास्तों से गुजरें तो "आनंदविश्व सहेलगाह " बडी खुबसूरत बनी रहें। चलों-चलें, ईश्वरीय अमीरी की खोज में...उस डगर पे चलने को, दौड ने को...! चलों, शुरु करें...असंतोष की आनंदयात्रा...!

आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
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Monday, August 14, 2023

The nation is only nation.
August 14, 20231 Comments

 

चिति का चैतन्य एवं विराट की शक्ति...!

विश्व में सबसे सुंदर राष्ट्र की परिकल्पना भारतवर्ष के पास ही हैं।

मानवसमाज की एक विराट स्वरूप में कल्पना एवं चिति यानि राष्ट्रमय चित्त की कल्पना...हमारे प्राचीन वेद ऋग्वेद में हैं। पंडित दीनदयालजी ने "एकात्म मानवदर्शन" की मानवीय परिकल्पना राष्ट्र के सामने रखी। राष्ट्र के प्रति एक नया अध्याय जुड गया। राष्ट के लिए भावनात्मकता एवं संवेदन से झुडाव महसूस होने लगा। राष्ट्र के प्रति चैतन्य का भाव पैदा हुआ। पंडित दीनदयाल के इस क्रांत विचार के बीज वेदों में हैं। 

"सहस्रशीर्षा पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा, त्यतिष्ठद्शांगुलम्।।" (ऋग्वेद १०/९०/१,१२)

विराट पुरुष के हजार सिर हैं, हजार आँखें हैं, हजार पैर हैं। संपूर्ण पृथ्वी को चारों और से व्याप्त कर वह पुरुष दशांगुल भाग पर स्थित हो गया। विराट पुरुष कैसा हैं ? ज्ञानवान पुरुष, शूरवीर पुरुष, उद्यमी पुरुष एवं सेवापरायण पुरुष...ये हमारे राष्ट्र के प्रमुख अंग हैं। इन्हीं चार अंगो से राष्ट्र में चैतन्य का पादुर्भाव हुआ हैं। मानव समाजरूपी विराट पुरुष समाज में ज्ञान-विज्ञान का विस्तार करने वाला हैं। दुर्जनों से राष्ट्र की रक्षा करने वाला शूरवीर हैं। समाज का उत्पादों से भरण-पोषण करने वाला उद्यमीपुरुष हैं। समाज में सेवा एवं सहयोग करने वाला सेवापरायण पुरुष हैं।
(संदर्भ एकात्म मानवदर्शन पं. दीनदयाल उपाध्याय)

व्यक्ति या राष्ट्र जब अपने चित्त में विराटता की अनुभूति करता है, तब उसे अपनी अपरिमित शक्ति का साक्षात्कार होता हैं। चिति की अद्भुत परिकल्पना इस विचार में हैं। चिति को न तोडा जाता  हैं, न विराट को बांटा जा सकता हैं। समाज की चिति राष्ट्र की चिति उसकी संस्कृति में व्यक्त हैं, तथा एकात्मता विराट में...! भारत विराट हैं एवं भारत सांस्कृतिक हैं। भारत सत्य हैं, भारत सत्व हैं। हमारे भारत का चैतन्य अमरजीवि हैं। हमारी चिरकालिन वेद परंपरा सम्यक दृष्टी से हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। भारतभूमि में जन्म मनुष्य के लिए इसी कारण गौरव रुप हैं।



आज भारत का स्वातंत्र्य पर्व हैं। स्वीकार और सहयोग की हमारी संस्कृति का दुरुपयोग होता गया। परतंत्रता का ये मूलभूत कारण हैं। हम समावेशी हैं। हमारी स्वीकृति की संस्कृति हैं। इससे दूर हटे तो व्यक्ति और राष्ट्र के लिए बडी विपदा खडी हो सकती हैं। शतकों की परतंत्रता को झेल कर बार-बार आजाद हुए। इतिहास के दृष्टांत नहीं देता क्योंकि हमसब इन तवारीखों से भलीभांति वाकिफ हैं। किन सालों में किसके द्वारा स्वतंत्रता के आंदोलन चलाए गए। बलिदानों की परंपरा से हम अवगत हैं। तरुणाई की शहादतें हमारें रोंगटे खडे करने पर्याप्त हैं। मेरा राष्ट्र ओर मेरा सबकुछ राष्ट्र के लिए हैं...इस चैतन्य का इस धरा पर प्रकट होना सहज हैं। इस राष्ट्र के मनुष्य के रूप में ये संस्कार हरकोई की रगो में व्याप्त हैं। इसे जगाने वालों को शत शत नमन हैं।

"आनंदविश्व सहेलगाह" में आज हमारे महान भारत, प्राचीन भारत की बात रखकर कर्तृत्व के आनंद से मस्त...! शब्द विचार थोड़े भारी हो गये हैं, 
क्यों भारी हुए पता हैं ? भारत की सोच बहुत भारी हैं, भारत की सोच कतई हल्की नहीं हैं। हल्केपन की तुच्छता वैयक्तिक होगी। राष्ट्र में भेद-भाव या स्वीकार-अस्वीकार की विचित्रता इसी हल्केपन की सोच से पैदा हुई हैं। भारत कल्याण का उद्भव हैं, भारत सन्मार्ग का आधार हैं। मानवमन का श्रद्धेय प्रकटीकरण भारत हैं। हमसब ईस महान भारत का चैतन्य पूर्ण हिस्सा हैं। हमें ईस देवभूमि को किस नजरिए से देखना है...हमें ही तय करना होगा !!

नमोस्तु भारतदेवभ्यो !!
स्वातंत्र्य पर्व की शुभकामना के साथ 🫡

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Tuesday, August 8, 2023

A man is formed by RELATIONSHIP.
August 08, 2023 4 Comments

 Until Heart to Heart.

मन से मन का बंधन सबसे उपर...!

आखिर एक दौड बाकी हैं। सफर बडी सुहानी हैं। रास्ते गुमनाम भी हैं, सुनसान भी हैं। कहीं लगता हैं जाना है, कहीं नहीं जाने का मन..! मनुष्य के हृदय तक पहुंचना भी एक सफर तो हैं। सारें रास्ते खुले हैं, और बंध भी सभी हैं। उलझन सी मति हैं, लडखडाती गति हैं...फिर भी सफर सुहानी तो हैं ही !!


बहुत बडे संसार में हमशक्ल तो कईं मिल जायेंगे, मगर एक हमसफर का मिलना थोडा कठिन सा हैं। नामुमकिन नहीं लेकिन मुमकिन का रास्ता भी बड़ा लंबा हैं। जन्म से हम सब प्राप्ति से जुड़े हैं। देखना- जानना- समझना फिर अपने आप को प्रकट करना। सब्र की सारी कसौटियों को पार करना। क्या प्राप्त करना हैं, ये बार-बार भूलते रहना। फिर न झुकते हुए भीड में घुसने का प्रयास करना। क्या हैं ये सब...? दौड है भाई दौड...! अनादिकाल से प्रतिबद्धता की ये सफर न थमी हैं न बंध हुई हैं। निरंतरता से मजबूत नाता बनाए हुए...सफर कभी रुकती ही नहीं।

क्या महंगा क्या किफ़ायत ? प्राप्ति की हमारी-आपकी दौड किस दिशा की रफ्तार पकड़ पाएगी...पता ही नहीं। लेकिन शांति व आनंद का मार्ग तो "रिश्ते-संबंध" की खुबसूरती पर निर्भर करते हैं। कईं शब्दों का झमेला लिए समझने का प्रयास करते हैं, यहाँ शब्दों की बात नहीं करनी चाहिए। मन तो शब्दों से ऊपर हैं। मन की गति को शब्द क्या पकड पाएग़े। मनुष्यत्व की सबसे बेहतरीन रचना संबंधों से होती हैं। क्योंकि संबंध शब्दों के मोहताज नहीं होते। उन संबंधों की दौड हम लगाना ही चूक जाते हैं। वस्तु और वैयक्तिकता के बीच की हमारी दौडे हैं। संबंध की दौड सबसे बेहतरिन होती हैं। संबंध का घटना ही मन की जीत से हैं। 

मन को जीतना का मतलब ही अपने खुद पर पाबंदी...! दूसरें का दिल से स्वीकार करना, या अपनेपन को इतनी हद तक सँवारना, तब एक संबंध निर्माण होता हैं। यहाँ नहीं शब्दों की चमक...यहॉं तो मौन की परिभाषा ही काफी हैं। विश्वास की विरासत ही काफी हैं। संवेदन की दौलत ही काफी हैं। हृदय से हृदय तक पहुंचने की दौड ही सबसे बडी हैं। यहाँ मन का हारना तय हैं। फिर भी जीत का ही माहौल हैं। यहां जीतने की नहीं हारने की कवायतें हैं। आज के होड भरे माहोल में संबंध की अनुभूति का वक्त कहाँ से लाए ? इसलिए ईस बहतरीन दौड से दूर ही रहना पडता हैं।

सबसे बडा बंधन मन का बंधन हैं। दिलों को अतूट तरीके से झोडने वाला बंधन !! मुझे लगता हैं ये दिलों को झोडने वाली दौड ही जीवन का मूलमंत्र हैं। ईश्वर इस दौड के खिलाडीओं को निंदा से दूर हटाकर निर्भीकता- समर्पिता और प्रेममयता से संवृत कर देते हैं। मनुष्य के  जीवनोत्कर्ष की बाधाएं ऐसे ही टल जाती हैं। ये जादुई शक्ति हैं, संबंध निभाने की दौड में...! आ रही हैं न समझमें...एक अनूठी दौड !!

आनंदविश्व सहेलगाह में आज बस इतनी ही दौड...क्योंकि शब्दविश्व के आगे भी एक ओर जहां हैं। उस जहां की बात ही अनूठी हैं। चलों चलें उस बहतरीन डगर पे...जहां मन का विजय हैं !!

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Wednesday, August 2, 2023

Creative life looking gentle.
August 02, 20230 Comments

 रचनात्मक जीवन की सौम्यता लाजवाब ही होगी।

कैसे बनाएं ऐसा चरित्र ? किसके पास से सिखे ?
Creative बनते कैसे हैं ?


विश्व में कईं फिलसूफों ने अपनी अपनी बात रखने का प्रयास किया हैं। जीवन-दृष्टि से जो कुछ सिखा, अपने अनुभव में जो कुछ ठीक लगा। व्यक्ति और समाज के लिए जो कुछ फायदेमंद लगा। उनको लगा की मेरी कहीं बातों से मानवीय मूल्यों का अवतरण हो सकता हैं। वैयक्तिक जीवनोत्कर्ष हो सकता हैं। ऐसी कईं बातों का, विचारों का संचरण कईं मानव निमित्तों से हुआ हैं। ये हमारी सुसंस्कृत होने की पक्रिया हैं। हमारे बौद्धिक कदमों की दमदार चाल हैं। हमारी नई सोच की उडान हैं ये !! सही हैं न !?

The George Barnard shaw

आज मैने "ज्योर्ज बर्नाड शो" की अद्भुत बात रख रहा हूं। स्वयं की खोज से उपर हमारी भीतरी रचनात्मकता को प्रकट करना हैं। जीवन में से स्वयं की खोज सामान्य घटना थोडी हैं ? लेकिन इससे उपर व्यक्ति की पराक्रमित कार्यक्षमता का प्रकट होना हैं। जिंदगी से यहीं तात्पर्य हैं..अपने आप की अनोखी छवि पेश हो। जैसी भी हो, पर छवि अपनी खुद की हो !! उस छवि से मुझे आनंद मिले !! 

अपनी खुद की भी एक सोच होती हैं। सबमें एक सच्चा फिलोसोफर छिपा हुआ है। उसको हम मन- मस्तिष्क-हृदय या आत्मा भी कहते हैं। वो आप पर छोडता हूं कि आप उसे क्या कहते हैं। मैं नम्रतापूर्वक उसे "भीतरी आवाज" कहकर आगे चलता हूं। कोई विचार या वर्तन पर तटस्थतापूर्ण, कोई बाहरी दबाव के बिना सोचना और तथ्यात्मक सत्य को पाना..યतत्पश्चात जो आवाज सुनाई देती हैं, उसके कहें शब्दोच्चार पर चल पडना। अपनी जिंदगी को उस राह पर चलाना आनंददायक जरुर होगा। उसके कितने बेनिफिट हैं? उसे गिनना मेरे बस में नहीं हैं। मैं तो इतना ही कहूंगा..."जीना अच्छा जरूर लगेगा..!" साथ अपने जीवन से खुशी पाने वालों की संख्या बहुत अधिक होगी।

समष्टि के कईं किरदारों की अद्भुत महेंक होती हैं। वो जहाँ जाते हैं, उनकी समदृष्टि का सहज प्रकटीकरण हो ही जाता हैं। उनकी बातों में, उनकी आवाज में जादू सा आकर्षण होता हैं। कोई प्रयासरत न देखना चाहे, न सुनना चाहे फिर भी...नजर तो वहाँ जाती ही हैं। ये किरदार की सुगंध हैं। कुछ नया किये बिना या मानवीय सभ्यता के गौरव रुप वर्तन के बिना गुनगुनाहट नहीं होती। लेकिन उसके लिए प्रशिक्षण शिविर काम नहीं लग सकती। ईश्वरीय सृजन का आनंद 
और दूसरों की खुशी व पीड़ा को महसूस करना होगा। इसमें ड्रामा हरगिज नहीं चलेगा। भाईसाहब, एक फिल्म तो खुद ड्रामा होने के  बावजूद दम नहीं तो नहीं चलती !! ये तो जिंदगी हैं !!
Definitely friends, We are looking gentle !!

मैं तो इतना सीखा हूँ... अपने भीतरी मनुष्य को प्रकट होने देना चाहिए। बस, ओर क्या ? उस किरदार का नाम तो लोग देंगे! "बस हमारी  process of creating by GOD'S hands...होनी चाहिए।" इस वाक्य को दो बार पढना अच्छा जरूर लगेगा। ईश्वर के हाथ से संवरना...! 

"आनंदविश्व सहेलगाह" ब्लोग में आज थोड़ा-बहुत सोच-विचार comment के रूप में आपके द्वारा हो...तो कैसा रहेगा !?

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Dr.Brajeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar, Gujarat.
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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

@Mox Infotech


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