कृतज्ञता सुंदर शब्द हैं..!
इससे ज्यादा उस शब्द का आचरण सबसे बडी प्रसन्नता देने वाला हैं।
वहाँ क्या है के बजाए वहाँ क्या नहीं हैं ? का ज्ञान जीवन को कृतज्ञता के मार्ग पर चलाएगा। शब्द की अपनी ताकत होती हैं, साथ शब्द की खुबसूरती भी..! मेरे वैयक्तिक ज्ञान में जब ये "कृतज्ञता" शब्द आया तब से उनसे प्रेम हो गया। मुझे ज्ञात हैं परम पूज्य पांडुरंग शास्त्रीजी के द्वारा ईस शब्द के संपर्क में आना हुआ। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की बात को बडे लाजवाब तरीके से पू.दादा समझाते थे। रक्त संबंध से मनुष्य को जोडने की बात हो या खाना कैसे पचता हैं? कौन उसका रक्त बनाता है की सहज बातें करते-करते हमें कृतज्ञता सिखाते गए। मुझे याद हैं एक छोटे-से दिमाग में ये बात सहज ही बैठती गई...विश्व के लोंग के झहन में भी ये बात स्थापित हो गई हैं।
आज दुनिया बडी हो गई हैं। वस्ती बढ़कर खचाखच हो रही हैं। जमीं बढीं नहीं, जीव बढें हैं। व्यक्ति-व्यक्ति बीच के संबंध के बारें में साथ ही राष्ट्र-राष्ट्र के संबंध के बारें में कई प्रश्ननार्थ खडे हो रहे हैं। अच्छे वर्ताव के प्रति भी अच्छे बर्ताव की अपेक्षा करना संभव नहीं। इस अचंभित दौर में कृतज्ञता को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं। फिर भी स्वीकार तो करना ही होगा..रिश्ते-संबंध की कामयाबी का एक मात्र मार्ग कृतज्ञता ही हैं।
कृतज्ञता क्या हैं ? कृतज्ञता एक मानवीय वर्तन हैं। एक संवेदनशील वर्तन हैं। किसी के उपकार को न भूलने की और उनके उपकार का अच्छा बदला क्या हो सकता है ये सोचकर जो बर्ताव किया जाए वो कृतज्ञता हैं। वैसे तो ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करने की चेष्टा हमें इन्सान के प्रति भी एक शानदार बर्ताव सिखा सकती हैं। ईश्वर की हरेक हरक़त से हम कृतज्ञ हैं। प्राकृतिक रूप से जो कुछ ईश्वर ने दिया है हम उसके प्रति हरदम कृतज्ञ ही हैं। सूरज मेरे लिए उगता हैं, हवाएं मेरे लिए सरसराहट करती हैं। नदी-पर्वतों का सौंदर्य मेरे लिए हैं...इन सब बातों से मेरा एकांतिक नाता बंध जाता हैं तो वर्तन भी अनन्य होगा। आनंद भी अनन्य !!
जीवन में प्रसन्नता चाहिए ? भीतरी खुशी का अहसास करते करते गणमान्य- गणप्रिय बनें रहना है तो कृतज्ञता से नाता झोडना चाहिए। ये अखंड-अविरत-अविश्रान्त आनन्द की घटना का बीज मंत्र हैं !!
समाज की सहस्र आँखे हैं, वो सब देखती हैं। जहाँ ये परस्पर का तादात्म्य प्रकट होता है, जब व्यक्ति ब्यक्ति के बीच संबंधो की गहराई स्थापित होती हैं। जब ऐसा कुछ दृश्यमान होता हैं वहाँ अनायास ही शांति व प्रेम की जीवंतता पुलकित हो उठती हैं। विश्व के लिए सारी सृष्टि के जीव-जगत के लिए "आनंद-जीवन" की अद्भुत क्षणों का उद्भवित होना संभव होता हैं।
"आनंदविश्व सहेलगाह" एक विचार प्रस्तुति से अधिक कुछ नहीं हैं। छोटा-सा किरदार हूँ छोटी-सी बात रखता हूँ। ओर ये मेरा भी नहीं हैं। हजारों सालों से भारतवर्ष में जो घटित होता रहा हैं। हमारी सनातन संस्कृति का ये पुरातन संस्कार हैं। इसमें मेरा कुछ नहीं...जो सत्व हैं वो सनातन सत्य हैं। मैं तो एक वाहक के रूप में कृतज्ञता की बात मेरी समज के आधार पर रखता हूँ। ये मेरा आनंद हैं, ये मेरी गति हैं, ये मेरा जन्मदत्त कर्म हैं। ये मेरी समाजबंधुओं के प्रति सत्वशील विचारबिदुं रखने की कृतज्ञता..!
अनादिकाल से सभी जीव अपनी भूमिका अदा करते आ रहे हैं। कोई सहज, कोई प्रयत्नपूर्वक कोई कर्मनिष्ठा से अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा हैं। मैं उसे आनंदविश्व की सहेलगाह कहता हूं।
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar,Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Nice 👌
ReplyDeletevery good
ReplyDeleteSvabhav j safalta che....maja avi
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