Rivers Never Go Reverse...So try to live like a river.
Forget your past and
FOCUS ON YOUR FUTURE..!
A.P.J. Abdul Kalam.
नदियाँ कभी उल्टी दिशा में नहीं बहती इसलिए नदी की तरह जीने की कोशिश करें। अपने अतीत को भूल जाएँ और अपने भविष्य पर ध्यान दें।
कभी कभार शब्द भी विचलित करते हैं, विचारभी..! महान वैज्ञानिक और दार्शनिक डाॅ.अब्दुल कलाम जी की दमदार बात सुनकर अच्छा लगा। साथ ही थोडा अचंभित हूं कि कहीं पढा था; इतिहास हमारी धरोहर हैं। जो व्यक्ति अपना इतिहास नहीं जानता वो अपनी प्रगति से दूर रहता हैं। अब यहाँ तो पास्ट को भी भूल जाने की बात हैं..! फर्गेट यॉर पास्ट..!
विचार कभी गलत नहीं होता। वो अनुचित हो या उचित। विचार की अपनी ताक़त होती हैं। उसे किस तरीके से समझना है वो हमारी सोच पर निर्भर करता है। मैंनें पहले कहीं लिखा था। महाभारत के सभापर्व में दुर्योधन द्वारा एक उक्ति कही गई हैं, 'असंतोषा: श्रीयंमूलं' असंतोष ही लक्ष्मी का मूल हैं। एक तरफ ये एकदम सही हैं। हमें धन प्राप्ति श्रीलक्ष्मी की प्रावि करनी है तो असंतोष पूर्वक महेनत करनी होगी। कुछ भी प्राप्त करना हैं तो असंतोष को पालना होगा। लेकिन ये बात तब गलत होती है जब प्राप्ति के मार्ग बडे विचित्र और अमानुषिक होते हैं। कदापि विचार गलत नहीं हो सकता वर्तन गलत हो सकता हैं।
अब समझ में क्लियारीटी हो गई होगी। हमें विचार की गहराई को पकडना होगा। उसकी ताक़त को महसूस करना होगा। दूसरें विचार से तुलना नहीं करनी हैं। अब्दुल कलामजी सोच प्रतिशत सही हैं। उनका निरीक्षक सटीक हैं। नदी हमें हरदम सिखाती रहती हैं। वैसे तो प्रकृति में देखने की हमारी नज़र से ज्ञान प्राप्ति की क्रिया को निस्बत हैं। हम कैसा सोचते हैं वो हम पर ही निर्भर करता हैं।
'रिवर्स फाईंड अ वे' नदी अपना रास्ता खुद ही ढूंढ लेती हैं। ये वाक्य मैं जोड़कर आगे बढता हूँ। कलाम जी कहते हैं: नदी कभी उल्टी नहीं बहती और वापिस भी नहीं आती। चल पडी फिर चल ही पडती हैं। हमें अपने रास्तें खुद चुनना हैं। फिर उस पर चल पड़ना, दौड पडना हैं। आने वाले समय की ओर..! भूतकाल के अच्छे बुरे वक्त को भूलकर क्या हांसिल करना हैं, कहां तक पहुंचना हैं ? उसका ही विचार करना होगा। मंजिले को पा लेना ऐसे ही संभव नहीं होता। एक नज़र वहीं लगी रहनी चाहिए। कदम वहीं दिशा में चलते रहने चाहिए।
नदी को रोकने के प्रयास हुए हैं। बंध बांधकर बहते पानी को रोकने के प्रयास कारगत हुए लेकिन नदी बहती ही रही हैं। उसका मुकाम सागर हैं। वहां तक की सफर जारी रहती हैं। हम तो नदी को बांधने से खुशहाल हैं। लेकिन उसे रोक नहीं सकते..! नदी बहती हैं वापस नहीं लौटती..! मंज़िल को पा ने की इससे बड़ी हैरत भरी घटना कहां देखने मिलेगी ? ये प्रकृति का संदेश हैं। ये अदृश्य ईश्वर की लीला हैं।
नदी या प्रकृति के कईं पहलुओं से हमें यहीं सीखना होगा...रुकना नहीं हैं। ये भी सीखना होगा किसी को रोकना भी नहीं हैं। इस हरकत से प्रकृति का प्रकोप झेलना पड़ेगा वो निश्चित हैं। सबको अपने-अपने मुकाम तक पहुंचने का अधिकार हैं। वो याद रखें तो प्रकृति की बेशुमार कृपा हम पर बनी रहेगी। और हमारी वैयक्तिक प्राप्ति भी सरलतम होगी।
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat.
India
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+ 91 9428312234
Nice article Sir.
ReplyDeleteInspiring Blog...🎉
ReplyDeleteप्रकृति की आड़ में हम सब जी रहे हैं प्रकृति हमें जीवन जीने की राह बताती है प्रकृति के बिना हमारा जीना मुमकिन भी नहीं है और जब मनुष्य प्रकृति के विरुद्ध जाता है तो प्रकृति का प्रकोप मनुष्य की रहन-सहन प्रक्रिया को गिरा देता है
ReplyDeleteName please...!
DeleteThanks for big comment..please Name ?
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