June 2023 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Thursday, June 29, 2023

Session of RAIN 🌧 is fully happiness of the nature...!!
June 29, 20230 Comments

 आषाढ की शुरुआत, बारिश की मौसम और भीगने की बातें...! बरसात में बरसाती आशाएं !!

प्रकृति का उत्सव वर्षाऋतु!

आज आषाढ की बात रखने का मन हो गया। वैसे तो ये आषाढ की ही चेष्ठा होगी। क्योंकि आषाढ तो खुलेपन का प्रकट उत्सव हैं। यहाँ बरसना हैं, मन भरके भिगोना भी हैं। सारी सृष्टि का नखशीख स्पर्श करने की प्रकृतिगत हरकत आषाढ की हर्षलीला हैं। आषाढ से सहज प्रकृति में चैतन्य प्रकट होता हैं। आषाढ उल्लास का माहोल ले कर आनेवाला मौसम हैं।

Monsoon

चलें, कुछ बातें आषाढ की करते हैं। आषाढ कैसा हैं ? बादलों से छाया हुआ, हवाओं में पानी की बूँदें भरा,धरती के कण-कण को स्पर्श करता ओर उजाश को थोड़ी थकान महसूस करानेवाला आषाढ! रंगो से भरा आसमान सजाने वाला समग्र सृष्टि का आषाढ। कुदरत की हरेक निशानी में नितांत स्पर्श करें खडा हैं...आषाढ! नदी और पर्वतों के साथ तो आषाढ का निजीपन बहुत ही गहरा हैं। ममत्व कहीं  अत्याधिक भी होता हैं। ये प्रकृति का ही सिद्धांत हैं।

आषाढ बरसने की ऋतु हैं। कारण बीना बस कुदरत की सनातन  मर्जी के लिए अपनी भूमिका निभाई जा रही हैं। प्रकृति का ये शाश्वत मूलतत्व सभी झड-चेतन के लिए हैं। आषाढ उसका श्रेष्ठतम उदाहरण हैं। बस बरसना मेरा काम !! गर्जन भी हैं, वर्षंन भी कभी-कभार डरावनेपन का माहौल भी हैं। मगर सबको पता हैं, ये सब हैं तो कल की आबाद हरियाली हैं। सूखेपन की लडाई के सामने हमारी जीत हैं। आषाढ तो ऊघने-ऊघाने की ऋतु हैं। प्राकृतिक तत्त्वों के मिलन से उपर उठकर आषाढ तो तरबतर अवसर प्रदायका हैं..! एकदूसरे में समाहित होने की ऋतु हैं। ये बीज के नवजीवन की बेला हैं। सही जा रहा हूँ ? मुझे पता नहीं! आषाढ मुझे खींचे जा रहा हैं। आज जो कुछ लिखा जा रहा हैं, आषाढ लिखवा रहा हैं !!

आनंदविश्व सहेलगाह के वैचारिक कदम में आज  जलबिंदुओं से भरी भीगी विचार यात्रा आपके लिए..! मनुष्य के रूप में हम मौसम में जीते हैं, हमें मौसम जीना हैं। तभी तो आषाढ की आगोश में जीने का आनंद महसूस कर पाएग़ें। वसंत मिलन की तडप हैं, आषाढ मिलित्व का उत्सव हैं। ये परस्पर जीने की बात ही सहज और स्वाभाविक हैं। आषाढ मुझे अदृश्य ईश्वर का प्रकट रूप लगता हैं। आषाढ नयापन हैं, तृप्ति हैं। आषाढ मेघधनुषी रंगो का अवतरण हैं। इसतरह जीवन के मूल रंग का ध्यान करना हमें आषाढ ही सिखाता हैं। विश्व में जो प्राकृतिक बदलाव आते हैं वो कुछ न कुछ मानवमन का मार्गदर्शन करने आते हैं, ये सहज मान्यता मेरी वैयक्तिक सोच को आकार देती हैं। मेरी पसंदीदा आषाढ ने मुझसे एक नाॅवल भी लिखवाई हैं। 
उसका नाम "इलेवन डेज मॉनसून" हैं। ईश्वर का आभार प्रकट करते हुए आषाढ की शुभकामनाएँ !!

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav 
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Saturday, June 24, 2023

Voice of heart. ❤️
June 24, 20231 Comments

 A flute is small instrument.

Voice of air but...KRISHNA'S opinion is Different...!!
It's a voice of heart...!

Voice of heart

मनुष्य ने अपने आनंद की प्राप्ति के लिए कईं मार्ग अपनाएं। उनको सफलताएं भी मिलती रही हैं। मनुष्य जीवन में संगीत का बडा महत्व हैं। झड़-चेतन, पशु-पंखी-मनुष्य सबकी पसंद...संगीत !! सूर-ताल से बनी मन को मोहित करनेवाली क्षण जहां निर्मित हुई वहीं से संगीत का जन्म हुआ। प्रथम संगीत के तत्व को किसने महसूस किया होगा ?मुझे तो लगता हैं...हवा की सरसराहट ही संगीत की माँ हैं। बहती हवा में उनकी आवाज में संगीत की हरेक धून सजी हैं। हवा के साथ बारीकी से जीना शायद कृष्णा ने शुरू किया होगा। हवा की  धडकन को किसने सूना हैं ? कृष्ण ही पहले होंगे जिसने हवा को बांस में भरकर सूर को एकसूत्र में स्थापित किया। इसतरह बंसी हमारे बीच जीने लगी... उनके साथ हम भी !!

आए... कुछ बातें कृष्णा और बंसी की...नहीं महाराज कृष्ण और सूर की महारानी बंसी की..! कृष्ण बंसी बजाने वाले हैं लेकिन बजना तो बंसी को हैं। हां कृष्ण बजाते हैं इससे बंसी भी मूल्यवान बन जाती हैं।
यहां तक ठीक हैं। हम बजने-बजाने वाली बात समझ गए। लेकिन जो दिखाई न पडती फिर भी अहम हैं। बहनें की अपनी पहचान को छोड़कर बजानेवालें की मर्ज़ी को धारण करना सहज नहीं हैं...तभी तो कुछ नया आकारित होता हैं।

विज्ञान के प्रयोग में हवा हैं ? नहीं हैं ? साबित करके हरपल की महसूसी को हम सब भूल जाते हैं। दोस्तों,अपने-आप बहनें में, चलने में आनंद हैं मगर दूसरें की मर्ज़ी में बहनें में प्रेम हैं। अपने अस्तित्व को भूलकर चलना संभव हैं जब प्रेम हैं तो..! हवा बंसी में से पसार होती हैं, तब सुरीली आवाज बन जाती हैं, इनमें कुछ प्रेम की हरकत नहीं हैं? मुझे तो ये असहज लगता हैं। जब सहजताएं असहज बन जाए तब प्रेम संबंध स्थापित होता हैं। और यहाँ तो स्वयं प्रेमपुरूष कृष्ण की अप्रतिम अलौकिक उपस्थिती हैं। स्वयं कृष्ण हैं वहां अनायास ही एकत्व प्रकट होगा। बंसी और हवा का एकत्व, दृश्य बंसी और अदृश्य हवा का मिलनोत्सव..! हवाओं में छिपी मधुरप को बंसी ने बहाया हैं, उस बहाव के निमित्त को में प्रणाम करता हूँ।

इन सारी बातों में हमें सहजता महसूस हो रही हैं ? हां बंसी के बजने में कुछ येसा ही हो रहा हैं...तो हम  ईश्वर के अस्तित्व का बेशुमार झुडाव महसूस कर सकेंगे। बस झुडाव वाली बात में कमी न हो इसका ध्यान रखना हैं।

कृष्ण ने अपने भीतरी संवेदन को प्रकट करने हेतु मदहोश होकर बंसी बजाई हैं। पागलपन से कृष्ण जब बंसी बजाते तब मानो प्रकृति की गति थम जाती। कृष्णा भी एकतंत होकर चोधार आंसुओ की धारा में बहतें चलें जाते। ह्रदय की गहराई संगीत के जरिए सहज स्पंदित होती हैं। विश्व को प्रेममय बनाने का कर्तृत्व निभाने वाले कृष्ण की बंसी भी उनसे कम थोड़ी रहें...!

अनादिकाल से मनुष्य सूकून को लेकर अस्वस्थ हैं। कृष्ण बंसी से भी स्वस्थ थे। सामान्य बांस से बनें ईन्ट्रुमेन्ट से भी अपनी भीतरी आवाज को बृहद समुदाय में कृष्ण ही स्थापित कर सकते हैं। क्योंकि वो संगीत के संवेदन को समझकर चलते हैं। ईश्वर शायद हमें यहीं अंदाज में जीने को कहते हैं। विचार सही हैं तो मेरा नहीं हैं...! मैं तो बस वाहक हूं...आनंद विश्व सहेलगाह का विचारपंछी !!

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Monday, June 19, 2023

THE JAGANNATH.
June 19, 20230 Comments

 The Jagannath Yatra..LIVELY and LOVELY Incidence of Spiritual Hearts..!

जीवंत और मनोरम्य घटना है जगन्नाथ यात्रा !!

सारें विश्व में ऐसी अद्वितीय घटना कहीं नहीं। भगवान जगन्नाथ की यात्रा। अलौकिक उत्सव के रुप में रथयात्रा मनाई जाती हैं। ईश्वर की अनन्य अनुभूति का अवसर रथोत्सव..! भारतवर्ष के सभी उत्सव मानवमन के उत्कर्ष के लिए हैं। जगन्नाथ...Supreme power of universe. उनकी  यात्रा हैं। भारत की आत्मा ही आध्यात्म हैं। मूर्तिमंत भगवान की उपस्थिति का अनहद आनंद ये भारतवर्ष का प्राण हैं। अनन्य अवसर पर ईश्वर से विश्व के कल्याण के लिए कुछ मांगे..!

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते।
अहो दीनानाथं निहितमचलं पातुमनिशं
जगन्नाथ: स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ।।
हे देवाधिपति !
आप हमारे असार संसार का सत्वर नाश करें। हे यादवपति! मेरे पापों के समूह का विनाश करें। दीन और अनाथ मनुष्यों की रक्षा में आप दृढ है येसे सर्व के स्वामी जगन्नाथ मुझे दृष्टिगोचर हो।

Jay jaganath.

विश्व अनेकानेक परंपराओं से मान्यताओं से धर्म की विभिन्नताओं से संवृत हैं। सबकी भूमि एक हैं, सबकी अपनी अपनी मान्यताएँ हैं फिर भी इसका स्वीकार  करना भी बडी बात हैं। जहाँ स्वीकार हैं वहीं शाश्वत परंपराएं टिकती हैं, और जहाँ अस्वीकार हैं वहीं से अराजकता आकारित होती हैं। सबको अपनी मान्यता में जीने का अधिकार तो ईश्वर की प्रकृतिगत सिद्धांत की अवधारणा में समाहित हैं। ओर प्रकृतिगत कार्य में अड़चन करने के नतीजे हम भलीभाँति जानते हैं। 

भगवान जगन्नाथ की यात्रा.. मैं हूँ की यात्रा हैं। ये यात्रा ईश्वर के अदृश्य अस्तित्व का सहज स्वीकार हैं। ये यात्रा दुनिया चलाने वाली शक्ति का सामर्थ्यगान हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र और बहन सुभद्रा भी हैं। बंधुत्व का इससे बेहतर उदाहरण हैं क्या ? ये संबंध का भी उत्सव हैं। साथ चलने का भी उत्सव हैं। हमारे लिए अनुभूति का अवसर हैं। मानवता के एकत्व का संदेश भी भगवान जगन्नाथ की यात्रा से झुडा हैं। इस यात्रा को  समष्टि के कल्याणक भाव से देखें तो बडा अचरज होगा। ये धार्मिक-सांस्कृतिक-अध्यात्मिक-वैचारिक-स्वास्थ्य-संयोगिक व आनंद की अद्भुत सहलगाह ही हैं। यात्रा में सबकी समानता का भाव हैं। सबके अपने-अपने नृत्य हैं, कलाकरतब हैं। सबको निमित्त का अचरज हैं...इसलिए यहाँ ही जहाँ हैं। जगन्नाथ के संग संग..!

ईश्वर को भी हमारे बीच घूमना हैं। उनको भी मनुष्य की तरह मनुष्य में जीना हैं। निजी संबंध का गौरव उनको भी जरूर अच्छा लगता हैं। प्रभु की इस यात्रा में वैयक्तिक लालसा से परे केवल आनंद की अनुभूति का दृश्य हरसाल खडा होता हैं। भारत के उडीसा राज्य के पूरी की तो बात ही अलग हैं। कईं जगह जगन्नाथ की यात्राएं निकलती हैं। इसके साथ मॉनसून के आगमन की बधाई का आनंदपर्व हैं। नये साल की उर्जा अर्जित करने का उल्लास भी इस यात्रा से जुड़ा हैं। भगवान नईं शक्ति के संचार से हमें भर दें। फिर एक नये साल का आगमन...आनंद से भरा हो।
इसी उम्मीद के साथ...!

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Friday, June 16, 2023

Marriage like a play of  RANGALO & RANGALI
June 16, 2023 7 Comments

 Rangalo and Rangali is a married Couple.

Live with Fully Understanding.. funny Character of Indian Drama.


विश्व में कला के आविष्कार में प्रथम महाकाव्य और नाटक का अवतरण हुआ था। भारतीय संस्कृत साहित्य में से कईं उत्तमोत्तम कलाकृतियां हमें प्राप्त हुई है। ग्रीक साहित्य-रोमन साहित्य मैं भी नाट्यकृतियां का दमदार प्रवाह उद्भवित हुआ था। ड्रामा-नाटक-एकांकी-प्रहसन-भवाई ईन शब्दों के साथ रीयल कैरेक्टर्स से लाइव प्रसारण अवतरित होता रहा। इससे लोगों का मनोरंजन खूब हुआ। बादमें नाटक ने उत्क्रमित होते हुए फिल्मांकन का रुप धारण किया। आज थियेटर और मल्टीप्लेक्स से आगे वेबसिरिझ का समय आया हैं।


आज के ब्लोग में भवाई या फिल्म की बात नहीं करनी। साथ नाटक की भी बात नहीं करनी। मुझे तो बात करनी है, भारतीय ड्रामा मनोरंजन के सिरताज व अमर चरित्र रंगला और रंगली की...! भारतीय रंगमंच की दुनिया के ओपनिंग बैट्समैन रंगला और रंगली की !! मनोरंजन के कोई संशाधन नहीं थे तब, मानव रंजन की परंपरा भवाई के द्वारा संभावित हुई। इसमें रंगला और रंगली का चरित्र आता हैं। दोनों शादीशुदा हैं। भवाई वेश की शुरुआत में रंगला और रंगली का ड्रामा खूब चलता था। वे लोगो को हसाते भरपूर मनोरंजन करते और प्रस्तुत होने वाले कथानक की बात छेडते..! इन दोनों चरित्रों को विचित्र पोषाक के कारण व हंसी-खुशी के अंग-अभिनय के कारण हम सब ज्यादातर हल्के में लेते रहे हैं।
गुजराती भाषा का भवाई संदर्भ में एक मशहूर गीत हैं।
लांबो डगलो मूछो वांकरी शिरे पागरी राती,
बोल बोलतो तोळी तोळी, छेलछबीलो गुजराती,
तन खोटुं पण मन मोटुं..!
छे खमीरवंती जाती...!!

रंगलो और रंगली तो साइड कैरेक्टर्स हैं, ऐसा हम सहज मानते हें। मजाक वालें चरित्र, इसके आलावा कुछ भी नहीं। मूर्खतापूर्ण व्यवहार मगर आज कोई कारणवश इन दोनों चरित्रो के बारें में सहज ही सोचना हुआ। आज मैंने जो कुछ सोचा, जो मेरी समज में आया वो आपको सुनाता हूँ...कहता हूँ। मन की विशालता की बात बडी सुहानी हैं। मासूमियत से कही दमवाली बात को सेल्युट। " ता थैया थैया ता थैई "

रंगलो और रंगली पूरे विश्व के दाम्पत्य जीवन के प्रतीक हैं, Marriage life  लग्न जीवन क्या हैं ? क्यों हमें दो व्यक्तिओं को जीवनभर साथ चलना हैं ? नाटक में पात्र रियलिस्टिक बने रहे तो अच्छा लगता हैं, जीवन में कब ?!  हंसी-खुशी का आधार लग्न हैं। कभी-कभी मूर्खतापूर्ण आपसी व्यवहार के अवसर का आनंद ही लग्न हैं। लग्न यानि एकोत्सव, लग्न यानी जीवन का मंगल प्रवेश...नये अनुभवो का मेला हैं लग्न..! अनजान व्यक्ति के साथ जीवनभर का नाता बनाकर जीना हैं। युगों से मानवसृष्टि में ये परंपरा रही हैं। इसे सामाजिक ढांचे में ढालकर एक व्यवस्था कायम हो गई...marriage life. दो विजातीय व्यक्तिओं के मेल का जीवंत ड्रामा, इसे हर कोई अपने ढंग से, अपने रंग से, अपनी अपनी सोच के मुताबिक जीता हैं। ये संसार का बडा वैविध्य हैं। ईश्वर की कठपुतलियों का अपना अलग ड्रामा। मनुष्य के रुप में ईस भूमिका में हम रंगला-रंगली हैं क्या ? बेशक, मुझे तो लगता हैं। आनंद विश्व की रंगभूमि में इन "कपलचरित्र" का अनुसरण लाजवाब रहेगा। सही हैं न ? "ता थैया थैया ता थैई "

ईश्वर का अद्भुत सृजन स्त्री-पुरुष हैं। बायोलॉजिकली इन में कुछ न कुछ असमानता हैं। फिर भी पारस्परिक अवलंबन का आनंद इनमें ही समाहित हैं। जन्म से मृत्यु तक की सफर में ये दोनों का मिलन प्राय: ही केन्द्रभूत हैं। शायद मैं लग्न की फिलसूफी पेश कर रहा हूँ...so sorry ! लग्न जीने का दूसरा नाम हैं। यहां रंगमंच दिखाई नहीं पडता फिर भी हैं !! ईसीलिए हम रंगला रंगली भी हैं... सोचो तो, मानो तो ! "ता थैया थैया ता थैई "

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Dr. Brijeshkumar Chandrarav.✍️
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Sunday, June 11, 2023

The sun and sunflower 🌻
June 11, 2023 2 Comments

 सूरज और सूरजमुखी के बिच कोई संवाद होता होगा क्या ?

न जाने क्यों इसतरह के सवाल मेरे मन में पैदा होते हैं ?
महान ईश्वर ही जाने...अपना सोचना,बोलना,लिखना-अभिव्यक्त होना !!

The sun


चलों,ध्यान पूर्वक कुछ इमेजिन को पढ़ें..! अच्छा जरूर लगेगा..विश्वास हैं।

सूरज: ये पौधा..नहीं फूल सुन तो जरा ?
सूरजमुखी: बडे उत्साह से...बोलिए न, कब से ईन्तजार था इस क्षण का !!

सूरज: मैं देखता हूँ, तुम्हारी पूरी कायनात मेरे सामने क्यों देखती रहती हैं ?
सूरजमुखी: "हे मेरे किरदार के मूल..! हे मेरे अस्तित्व के कारण..! मैं तो  आपकी पडछाई हूँ। आपकी विस्तीर्णता,आपकी तेजोमयता के अंश के रूप में मेरे छोटे-से किरदार को निभाए जा रहा हूँ।" इसीलिए हम आपको न देखें तो किसे देखें ?

सूरज: तुमको मेरे सामने देखते ही रहने में थकान महसूस नहीं होती क्या ?
सूरजमुखी: अपने में ही देखने के पागलपन में थकान कैसी ? इस अद्भुत पागलपन को हम सृष्टिवासी प्रेम कहते हैं।

सूरज: कब तक मुझे ऐसे ही देखेंगे ?
सूरजमुखी:"जब तक है जान-आप दिखाई पाओगे तब तक"

आज कुछ हटके लिखने का मन था। थोडे बहुत संवाद को पढ़कर आपके  मन का रंजन हुआ तो...आनंद !! सूरजमुखी का जवाब शायद थोडा-बहुत ठीक तो हैं ही ऐसा आपको लगा होगा। फूलों को महेंक ने के लिए तपना भी पडता हैं। अपनी कोमलता की परवाह किए बिना। रंगभरे अस्तित्व को सजाना हैं। फूलों को अपनी क्षणजिवीता की परवाह हैं क्या ?! सूरजमुखी का तो महेंकते रहने के साथ तपते सूरज को एकटक देखते रहना, उसकी गति के साथ, हरपल ताल मिलाना कोई नाहक कर्म तो नहीं होगा ! ये पारस्परिक स्वीकार-अस्वीकार की बातें, एक-दूजे के संसर्ग में बहते रहने की बातें, विशालता को धारण किए बिना अपने अंशत्व के साथ पूरे ममत्व से जीना कोई सामान्य घटना नहीं हैं।

यकीनन यही प्रेम की अवधारणा हैं, हम इसे प्राकृतिक अनुसंधान भी कह सकते हैं। कुदरत की विशुद्ध प्रेम संपदा को सूरजमुखी की भाँति महसूस करना होगा। सूरजमुखी के एक छोटे से फूल को सूरज बनने का ख्वाब हैं। अपने में तेजोमय तत्व का आनंद समाहित हैं...ऐसा कुछ सूरजमुखी की  हरकतों से दिखाई पडता हैं..!

प्रेम की हरकत संभावनाए पैदा करती हैं। अपने छोटे से किरदार को मोहकता से संवृत करने की कोशिश ही प्रेम हैं। सूरजमुखी जीवंतता से सूरज की ओर देखकर दिन की दौड पूरी करता हैं। न थके, न हारे, न निराश हुए। अपने किरदार को निभाए...!! अपने जीवन का भरपूर आनंद पाए। महान ईश्वर के  सामजंस्य के प्रेम सम्बंध को समझते चलें...!

ईश्वर की अवर्णनीय सृजनशीलता पर मैं तो कल्पना के कुछ शब्दश्वास से आनंदित हूँ। एक कोमल घटना को मैं शब्द के साज-श्रृंगार से सजाता हूँ। विचार मनमोहक बनता जाता हैं। थोड़ी-बहुत कल्पना की सहेलगाह से आनंद महसूस करता हूँ। मेरी आनंद क्षण को ब्लोग के जरिए आपके लिए सजाकर मन बडा प्रसन्न होता हैं।

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Wednesday, June 7, 2023

MORE CURIOSITY more ideas.
June 07, 20230 Comments

 Be less curious about people and more curious about IDEAS - Marie curie.


Ideas


मॅरी क्युरी पाॅलिश और फ्रेंच भौतिकशास्त्री,रसायणशास्त्री और नारीवादी महिला थी। उन्होंने किरनोत्सर्ग पर संशोधन किए थे। वो नाॅबल  पुरस्कार जीतनेवाली प्रथम महिला थी। साथ ही दो बार नाॅबल पाने वाली भी वो प्रथम हैं। पॅरिस युनिवर्सिटी की वो प्रथम महिला के रूप में काम करनेवाली प्रोफेसर थी। ७ नवम्बर १८६७ में पाॅलेन्ड में उनका जन्म हुआ था।

कईं शब्द अनायास ही हमारी नजरों के सामने पडते है। लेकिन कुछ शब्द-विचार सोचने के लिए जरूर मजबूर करते हैं।  जिज्ञासावश ही जिज्ञासा-उत्सुकता के बारें में सहज ब्लॉग लिखना प्रारंभ हो गया..!
Thanks marie Curie for ideas...!!

क्युरी ने जीवनभर अपनी कुतूहलता को पोषित करते हुए विश्व का मार्गदर्शन किया हैं। आपकी जिज्ञासा विश्व के लिए उन्नति के मार्ग ले कर आई। उनका बेहतरीन क्वाॅट " लोगों के लिए कम और विचार के लिए ज्यादा उत्सुक बनें।" मॅरी क्युरी ने विज्ञान की कईं शक्यताओं का विचार किया, कईं अदृश्य संशोधन उनकी उत्सुकता के नतीजे हैं। दुनिया में सैद्धांतिक रूप से स्थापित होना है, तो जरा हटके चलने की आदत डालनी होगी। सृष्टि महसूसी का आलम हैं। हम क्या महसूस करते हैं ? हम क्या अनुभूत करते हैं ? हमें कौनसी चीज जिज्ञासावश अवस्था में खींचे जाती हैं ? इन प्रश्नो के उत्तर हमारे आनेवाले जीवन का मार्ग चुनते हैं। लोगों को सुनते रहेंगे तो हमारी भीतरी उत्सुकता मृतप्राय हो जायेगी। 

ईश्वर ने मनुष्य जीवन ऐसी असमर्थता में व्यतित करने नहीं दिया। नूतन संकल्पनाएँ, नूतन संभावनाएँ, मनुष्य जीवन की उत्कर्षता के लिए, विश्व की श्रेष्ठतम परिकल्पना के लिए, शांति एवं अमन की स्थापना के लिए मनुष्य कर्म की अद्भुत मिसाल खडी हो... इसीलिए मॅरी क्युरी का संदेश सत्यापन स्थापित करता हैं।

हम जैसे भी हैं। कुछ करने की उम्मीद लिए प्रतिबद्ध हैं तो सही मार्ग पर चल रहे हैं। में उसको ही आनंदमार्ग कहता हूं। जीवन ऐसी कोई सहेलगाह पर बीते...अपनी पसंद के रास्ते पर... जो काम मुझमें थकान न लाने दे। जो काम मुझमें भीतरी आनंद का संचार करें। वो काम हमारी उत्सुकता का समाधान हैं। वो काम हमारी क़ाबिलियत को आकार देने सक्षम हैं। ईश्वर की मर्जी का शायद यही मुकाम होगा। हमें अपनी जिज्ञासा को अपनी उत्सुकता को खुद ही ढूंढकर स्वाभाविक मार्ग को चुनना हैं।

विश्व के कईं चरित्रों ने हमें एनकेन प्रकारेण मार्गदर्शित किया हैं। उनके विचार के अनुसरण में कल्याण का स्थापन होता रहा हैं। सृष्टि का हरेक बालक जन्म से ही जिज्ञासा के बंधन से बंधा हुआ हैं। हमारी ये मूलभूत विरासत कहां खो जाती हैं ?? सबकी अलग ओर सबकी अपनी अंदरुनी ताकत...सबका अपना ईश्वरीय वरदान कहीं खो जाता क्यों हैं ? अपनी आंखे बंध करके एक बार जरुर इसपर विचार करना। शायद उत्सुकता उछलकर बहार निकलने की कोशिश करें !!

अपनो में जीना हैं, साथ खुद में भी जीना हैं। अपने ही कानों से अपनी ही आवाज सुनना कठिन कैसे हो सकता है !?
चलें....कुछ ऐसी आवाज को ढूँढने...!!

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Thursday, June 1, 2023

The journey of bombay  life.
June 01, 20230 Comments

 मुसाफ़िर की कहानी...!

कदम कदम पे कठिनाई हैं।
ज़िन्दगी का बोझ लिए वही रफ्तार ! फिर भी !
"कदम कदम उठाए जा"की दमदार सफर बरकरार हैं।
हर कदम में दम हैं...का उत्साह भरें !
मुसाफ़िर की कहानी...!



भारत की बेहतरीन नगरी मुंबई। यहाँ पूरा भारत बसता हैं। रंगबिरंगी सपनों की दुनिया सजाने भागते रहना यहाँ का दस्तूर हैं। मुंबई बड़ी लाजवाब हैं। यहाँ थमना मना हैं थकना मना हैं। बस चलते जाना हैं, दौड़ते जाना है। जिंदगी के बोझ को थामकर अपने वज़ूद को अपनी सांसों में भरकर...कहीं अपने लिए तो कहीं अपनों के लिए बस चलते जाना हैं।

आज अनुभव की बात रखने का मन हुआ। बंबई कईं बार आना-जाना हुआ हैं। लेकिन इस बार खार की चाल में जाने का अवसर मिला। बान्द्रा में रुकना था। दो दिन ही यहाँ रहना था। एक मित्र के कारण बारीकी से चाल देखना संभव हुआ था। एक छोटे से कमरे में बैठकर कुछ पल बिताने का मौका मिला। संघर्ष की कहानी को मैंने अपनी आंखों के सामने बडी करीबी से देखा। मन ही मन मैं ईश्वर का आभार व्यक्त कर रहा था। इन लोगों के सामने मेरा संघर्ष तो कुछ भी  नहीं। मुझे तो ईश्वर ने फुर्सत और खुलेपन की आजादी से संवृत किया हैं। मेरे साथ तो शांति का करीबी नाता हैं। मेरे हृदय में ईश्वर से  माफी चल रही थी...! शायद ईश्वर ने जो कुछ दिया हैं उसका शुक्रिया भी..! मैं संघर्ष का समर्थन करता हूँ लेकिन हमारे पास थोड़ा-बहुत संघर्ष हैं। हम सब थोड़े-बहुत आलसी भी हैं। थोडे संतोषी भी...!!

घर चलाने और काम के लिए की भागदौड के बारें में सुना। यहाँ जीना रफ्तार की तरह है, यहां जीवन का मतलब ही काम हैं। सुबह से ले कर शाम तक यहां हरपल धबकते रहना हैं। मैं यहां हृदय की धडकनों के साथ जिंदगियों का धडकना भी देखा रहा था। बंबई में बेशुमार धन हैं, पसीने से उसे रिझाना पडता हैं। धन की देवी को शायद यहीं अंदाज पसंद होगा...! लोग काम करते हैं साथ दिल खोलकर खर्चा भी करते हैं। यहाँ दूसरें के जीवन में अकारण दखल-अंदाजी नहीं हैं।  यहां बस काम हैं, काम के सही दाम मिलें ईसमें आनंद हैं। अपनी मेहनत का आनंद। 

यहां काम करने वालों के लिए काम हैं, दिल से काम करने वालों के लिए कामयाबी हैं। जीने के अंदाज ढूँढना और अपने कल को अपने अंदाज से संवारने की झिझक को पैदा करना यहीं मायामय नगरी मुंबई का कमाल हैं। पूरे भारत से लोग इस धरती पर अपना भाग्य आजमाने जीवन में कुछ करने के सपनों को साकार करने यहाँ की संघर्षशीलता को गले लगाते हैं। अभावों में से एक दिन वो सफलता ढूँढ लेते हैं। हमारे पास किसी की सफलता की बात जल्द आ जाती हैं, लेकिन संघर्ष की कहानी कौन सुनता हैं ? सफलता के बाद तो  संघर्ष की थकान ही महसूस नहीं होती।

"आनंदविश्व सहेलगाह" में आज थोड़ा-बहुत चटपटा विषय युवाओं को जरूर प्रभावित करेगा। संसार संघर्ष से भरा हैं, जीतना बडा संघर्ष इतनी बड़ी जीत...! अनादिकाल से मानवीय प्रतिबद्घता में जब जब संघर्ष बढा है तब ही नयेपन का अवतरण हुआ हैं। मनुष्य ने संघर्ष से ही सुनहरे ईतिहास को रचा हैं। ये हम कैसे भूलें ?? यहाँ जिंदगियों के नित्य नए अध्याय शुरू होते हैं। कदम कदम में दम भरने वालें मुसाफिरों को सलाम-नमस्ते....साथ ही
सलामे मुंबई...!!

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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

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