December 2022 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Thursday, December 29, 2022

 📸  PHOTO GALLERY.
December 29, 20220 Comments



                                                                                                        


            

                       

                                           

Reading Time:
The GOD'S Imagination.
December 29, 20220 Comments


ईश्वर के अलौकिक सत्य की हम कल्पना ही कर सकते हैं।
विश्व में यही संदेश कायम हैं।

अद्भूत, अदृश्य ईश्वर की रंगत !! संभव संयोग की ईश्वर निर्मित सृष्टि हैं। आधारभूत कुछ भी न होने के बावजूद मानवमन श्रद्धेय रहा हैं। और इसी श्रद्धा के बल से काफी कुछ प्राप्त भी होता हैं। जीवन को आशावंत और शक्यताओं से भरा देखने वाले मानवों ने दुनिया को बेहतरीन बनाने मे काफी योगदान दीया हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी दृश्य सपने साकार करवाता हैं। इसे हम सफलताएँ और प्राप्ति के नाम से जानते हैं।


दुनिया में अच्छा हो रहा हैं। इसका मतलब ही ईश्वर बेहतरीन को मानव के जरीए धरातल पर मूर्त रूप से स्थापित करता हैं। हमारे मन को अचंभित करने वाली घटनाओं का असंभव को संभव बनाने वाली घटनाओं का घटित होना भी ईश्वरीय संकेत हीं हैं। या तो ये ईश्वर की अदृश्य करामाती हैं। वो अदृश्य हो कर भी दृश्य सृष्टि का नियमन बखूबी कर रहे हैं, निमित्त हम बन रहें हैं। इसका हमें आनंद लेना होगा।  ईश्वर की अमाप-असीम शक्ति को धारण करने हेतु उनकी ही ओर मुड़कर येसी कृपा के लिए आशावंत बनना पड़ेगा। आनंदविश्व की सहेलगाह के लिए ये अदृश्य श्रद्धाभाव को दृढ करना चाहिए।


हजारों सालों से दुनिया में वैचारिक-वैज्ञानिक-सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव को लेकर मनुष्य के रूप में कोई न कोई निमित्त बना हैं। उनकी बहतरीन उडान से हम लाभान्वित हुए है। लेकिन ये सब ईश्वर की ही उम्मीदों का साकार रूप हैं। प्रेम आनन्द-समर्पण-सहज-सरल जीवन रीति से असामान्य सात्त्विकता प्रकट होती है।विश्व ऐसी असंभव प्रकटता से भरा हुआ है। हमें संभावनाए बनना हैं..!! आनंदविश्व के लिए कुछ न कुछ निर्मिति का छोटा उपकरण बनना हैं...!!
हमें कुछ पता नहीं की हम कहाँ काम आएगें ? कौन सी उडान हमारें नाम लिखी हैं ?


आनंदविश्व के लिए मेरा भी कोई कर्तव्य तय हो। ओर ये तय करने की बात ईश्वर के हाथ में हैं। हमारे पास साक्षी भाव हैं। मैं जीवित हूं। मेरे श्वास चल रहे हैं। मैं बोल रहा हूं। सोच रहा हूं। हे ईश्वर...!  मेरे द्वारा आप जो कुछ करवाना चाहते हो वो कृपादृष्टि बनाए रखें।

आनंदविश्व सहेलगाह को ईश्वरीय स्पर्श शक्ति से बहतर करना हैं। हे ईश्वर मैं आपकी योजना का  छोटा-सा मूर्त रुप धारण कर कृतज्ञता व्यक्त करने की पात्रता हासिल करू। इसी कृतार्थ मार्ग पर चलने आपके साथ आपका डॉ.ब्रजेशकुमार 9428312234
Dr.brij59@gmail.com 













Reading Time:

Monday, December 26, 2022

परम पूज्य प्रमुख स्वामी  बापा का जन्म शतानंद उत्सव।💐
December 26, 2022 2 Comments

 अद्भूत- अद्वितीय-अकल्पनीय- अविस्मरणीय ..!!

परम पूज्य प्रमुख स्वामीबापा का जन्म शताब्दी महोत्सव।

ईश्वर की निर्मिति १९२१ में प्रमुख स्वामी के रुप में एक अद्भुत महामानव का निर्माण करती हैं। अकल्पनीय सेवाभाव से भरें स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रमुख संत के रुप में कार्य करने वाले अलौकिक शक्ति पुरुष का अवतरण हुआ। ईश्वर की मर्जी से अपना कार्य बखूबी निभाने वाले प्रमुखस्वामीजी ने अकल्पनीय नेतृत्व स्थापित किया। पूरे विश्व में एक हजार से ज्यादा मंदिरों का निर्माण उनकी ही दृढ इच्छाशक्ति से पूर्ण हुआ। सामान्य व्यक्तित्व असामान्य सात्त्विक संतत्व प्रकट करता हैं। भारतवर्ष को नया मार्गदर्शन करता हैं। विश्व में नया अध्याय जोडता हैं, एक नई राह का निर्माण होता हैं, जीवन को सहजता से जीने का एक नया अंदाज प्रमुख स्वामी के रुप में हमें मिला हैं। विश्व को मिला हैं..!!

आनंदविश्व की ओर जाने के लिए वैचारिक कर्मठता की भी आवश्यकता हैं। आज पूज्यनीय स्वामीबापा की जन्म शताब्दी अकल्पनीय व्यवस्थापन और लाखों लोगों की उपस्थिति में मनाई जा रही है। अहमदाबाद में प्रमुखनगर बनाया गया हैं। बरसों के आयोजन के पश्चात, लाखों स्वयंसेवकों व संतो की कडी मेहनत अनोखापन स्थापित कर रही हैं। विश्व में आयोजना के रूप में स्वामीनारायण संप्रदाय का कोई पर्याय नहीं हो सकता। आज दैनिक पचास हजार स्वयंसेवको का सेवाभाव लाखों लोगों का व्यवस्थापन अद्भुत दृश्य भाव निर्माण करता हैं। व्यवस्थापन में स्वामीनारायण धर्म का मोल नहीं हो सकता। Truely the great achievement. 

अध्यात्मिक धरोहर की झड़े इतनी गहरी हैं इसी लिए तो समर्पण भाव की श्रेष्ठता विशेष हैं। मानवशक्ति के संयोजन में शुद्धि और सात्विकता कारणभूत हैं। प्रमुख स्वामीजी ने ये संस्कार स्थापित करने में पूरा जीवन समर्पित कर दिया। आज शिष्य समुदाय उनके शताब्दी जन्मोत्सव के अवसर भाव समर्पण- ऋणात्मक भाव से कर रहे हैं।


महान ईश्वर ये ऋणानुबंध के अकल्पनीय विचार बीज से ही सराहनीय कार्य के प्रति हमारें कदम उठवा रहें हैं...!! आनंदविश्व की सहलगाह ईश्वर के ही अकल्पनीय अनुबंध पर कार्यरत हो। इस आनन्दमय साक्षीभाव का निर्वहन करके हमारी कल्याणक कल्पनाएँ एक नई उडान भरें।
आपका विचारमित्र...डॉ.ब्रजेशकुमार 9428312234.

                                                                            

Reading Time:

Saturday, December 24, 2022

MY CHARACTERISM.
December 24, 20220 Comments
👦 मेरे जीवन पर एक पुस्तक !

मान. डॉ दिपकभाई काशीपूरिया जी ने बडे स्नेह से मेरा कैरेक्टर लिखा हैं। उनका सदैव ऋणानुबंध मेरे जीवन की अमूल्य संपदा हैं। 

   "खिण से शिखर तरफ का प्रवासी" डॉ. ब्रिजेशकुमार बडे आनंद से मैं उनका ॠण स्वीकार करता हूं।

आनंदविश्व की सहलगाह में मुझे बडा आनंद देने वाली घटना...!! 



Reading Time:

Thursday, December 22, 2022

December 22, 2022 2 Comments

आनंदविश्व की सहलगाह को बहतरीन मोड देने के लिए चलों आसमान से बातें करे !!


आनंद होता हैं। सबके मन को हृदय को स्पर्श करने वालें शब्दों को जोडने का कार्य करते करते..!! आनंदविश्व की वैचारिक परिकल्पना के लिए कुछ विचार जोडने का कार्य करते करते..!! ईश्वरीय संभावनाए निहित है एवं निश्चित भी हैं। उसकी थोडी बहुत अनुभूति करके शायद ईश्वर को पसंद आए येसे विचार का निर्वहन कर्तव्य बजा रहा हूं।

ईश्वर के अलौकिक स्पर्श को अनुभूत करने का सबसे सरल और बेहतरीन उपाय प्रकृति के साथ अनुस्यूत होकर उससे बातें करना हैं। हमारे भीतर कुछ पागलपन को भी पालना होगा। आनंदविश्व की सहेलगाह के लिए पर्याप्त समय पर कोई संवेदन को अकेलेपन में महसूस करना चाहिए। भीड में भी अपने विचारों के साथ थोड़ी बहुत मस्ती कर लेनी चाहिए। ईश्वर शायद यही चाहते हैं की तूं अपने जीवन का भरपूर आनंद ले..! अपने काम की  सतत भागदौड के बीच थोड़ी आनंद वाली सांस तो ले..! अपने आसपास फैली हुई प्रकृति को देख तो लें। शक्ति का प्रयोग करते करते इश्वर की शक्ति के बारें में थोड़ा बहुत सोच तो सही। हम किस प्रकार के पागल है हमें पता हैं।

मैनें आसमान से बातें करने वाली बात कहीं सूनी थी। शायद ईशा फाउन्डेशन वाले सद्गुरुजी के पास..! आज हमें थामने को शुक्रिया आकाश..!! मेरे जीवन को एक ओर  अवसर देने के लिए शुक्रिया..!!   इस बात में मुझे काफी दम लगा हैं। विश्व नियंता कुछ येसी बात सुनने को बेताब होगा क्या ?? 

इस अद्भुत सृष्टि में सहजता से समझ विकसित करने व आनंद की प्राप्ति के लिए हमें उनसे बातें तो करनी होंगी। ईश्वर कहां है ? इस सवाल से दूर बस जहां आनंद की अनुभूति हो वहां उससे कुछ बातें करें बस !!  इतना ही !!

आनंदविश्व की सहेलगाह में कोई संवेदन-विचार-विमर्श या कुछ भी जो हमें आनंद दे उनके साथ चलना होगा। आपके साथ मैं तो बस तैयार ही हूं।
एक ओर विचार के साथ आपका सहेलगाही...!!
Your ThoughtBird 
डॉ.ब्रजेशकुमार ☺ 
Gandhinagar.
Gujarat INDIA 
09428312234 
dr.brij59@gmail.com 











Reading Time:

Wednesday, December 21, 2022

👨‍🎓 ACHIEVEMENTS.
December 21, 2022 5 Comments

 

👨‍🎓 P.T.C. For Teacher eligibility since 1998.


👨‍🎓 B.A. (Bachelor of Arts) Since 2000


👨‍🎓 M.A.( Master of Arts) Since 2002


👨‍🎓 B.Ed (Bachelor of Education) Since 2004


👨‍🎓 M.Ed (Master of Education) Since 2013


👨‍🎓 N.E.T (National Eligibility Test for Professor) Since 2004


👨‍🎓 PH.D (Doctor of Philosophy in Litterateur) Since 2006


👨‍🎓 GPSC 


1. Educational Director Class1 Written.           Exam Clear 2015


2. Reporter Class 2 for reporter Gujarat           Legislative Assembl Written Exam.              Clear 2016


3. Assistant Professor Class 2. Written             Exam Clear 2018


SEE 👇

https://drive.google.com/file/d/1PSGq0MwHQyH-FKHXMgKVXE4NRHD0muI9/view?usp=drivesdk 


Dr.Brijeshkumar Chandrarav Gujarati RESUME.

Reading Time:

Tuesday, December 20, 2022

December 20, 20220 Comments
           प्रेमशक्ति ही विकसित होने का एक मात्र मार्ग हैं।
        ईश्वर स्वयं प्रेम स्वरुपा हैं। ईश्वर प्रेम के बीज का सृजन कर्ता हैं।

         
 जन्म का आधार ईश्वर हैं। जीवन का आधार ईश्वर हैं। झड़- चेतन का आधार ईश्वर हैं। विश्व की सारी शक्तियों का नियमन इश्वर तत्व के  आधिन हैं। निमित्त रूप हम सब उसकी निर्वहन कला की वस्तुओं के रुप में हैं। जीवित हैं, बुद्धि से भरें हैं, सोच सकते हैं, बोल सकते हैं, अपने विचार से दूसरों का आनंद क्षेत्र बन सकते हैं। विश्वमें किसी व्यक्ति जीवन को  आनंदित करने का कार्य सबसे बेहतरीन हैं। मनुष्य के चेहरें की खुशी से आगे ईश्वर तो सभी जीवों का आनंदक्षेत्र बननें की ख्वाहिश रखते होंगे...!! क्या ख्याल हैं आपका ? बस इस वैचारिक एकत्व की बात से ईश्वर खुश होंगे।
         ईश्वर ने इसी के कारण प्रेम के उत्कृष्ट भाव को पैदा किया हैं। ईश्वर प्रेम स्वरुपा हैं। प्रेम की शक्ति ही ईश्वर की शक्ति हैं। ये बात सबको पता हैं। मैं कुछ नया विचार नहीं कह रहा। प्रेम तो शाश्वत हैं ..! अनादिकाल से चली आ रही प्रेमशक्ति के बारें में हमसब ने बहुत कुछ पढा हैं। लेकिन प्रेम की परिभाषा को समज ने के बजाय उसकी अनुभूति में जीना होगा। हम सब उसके हकदार हैं। प्रभु ने इसी शक्ति से हमारा निर्माण कार्य कीया हैं। तो ये जन्मदत्त अधिकार से हम दूर क्यों हैं ??
 कुछ परेशानियाँ, सबसे आगे निकल जाने का पागलपन, वस्तु में सुकुन खोज ने की हमारी आदतें, किसी दूसरें व्यक्ति का स्वीकार ही न कर पाने की बुजदिली, खुलें मन से सब को स्वीकार करने की आवश्यकता हैं  क्या ?!
            आनंदविश्व की सफर में ईश्वर की उम्मीद समजने की कोशिश करना हैं। उनके साथ खुलें मन से की हुई बातों से हमारे भीतर कुछ न कुछ नयापन अवतरित होगा। श्रद्धापूर्वक कहता हूं। हजारों लाखों सालों से उसकी  ब्रह्माण्डीय शक्तियों कार्य कर रहीं हैं। वो इन्सान को समय समय पर शक्तिमान बनाते जा रही हैं। नये आविष्कार नित्य नए आयामों के झुडने से सृष्टिकाल कितना गौरवशाली बन रहा हैं....!!
            ईश्वरीय  पारस्परिक प्रेमशक्ति से ये घटित हो रहा हैं। हमें इश्वर की पारस्परिक संवेदनाएं और अवलंबन की प्राकृतिक परिभाषा के बारें में विचार करना होगा। प्रेमबीज को संवारना होगा। सच है ना !?

आनंदविश्व की सहलगाह को प्रेममय बनानें का प्रयास करें। सब साथ मिलकर अपनी जीवन यात्रा को नयेपन के अवसर प्रदान करें। आपके साथ कुछ शब्द- विचार से आपका डॉ.ब्रजेशकुमार...!!   9428312234
Reading Time:

Sunday, December 18, 2022

ईश्वर की सृष्टि में सहज कर्म ही सराहनीय हैं ...!!
December 18, 20220 Comments
ईश्वर की सृष्टि में सहज कर्म ही सराहनीय हैं।
बच्चे सहजता के सर्वोच्च शिखर हैं। 🧚‍♂️🧚‍♀️🧚

हम बच्चों को ईश्वर का रुप मानते हैं। जब वो ही बच्चा बडा होता हैं तो दुनिया की सारी बुराई झेलने वाला बन जाता हैं। बच्चों की सहज हरकतों  से हम खुश हो जाते हैं। क्योंकि बच्चों का वर्तन सहज हैं। उनकी आंखो में, उनके चहरें पे मासूमियत छलकती हैं। दुनिया में कोई भी व्यक्ति येसा नहीं होगा जिनको बच्चें पसंद नहीं होते। अगर ऐसा होता हैं तो वो इन्सान नहीं होगा।

   आनंदविश्व की परिकल्पना में हम पर भी सहज़ रूप से ईश्वर की अमीदृष्टी बनीं रहें इस प्रकार की जीवनरीति प्राप्त करने की चाहत रखनी हैं। और ये हमारी कल्याणक चाहत ईश्वर ही पूरी करेंगे  ऐसा दृढ़संकल्प पूरी श्रद्धापूर्वक हैं।

ईश्वर के सामने बुद्धि का प्रदर्शन नहीं आत्मा का मन का शुद्ध भाव रखना हैं। ईश्वर की दी हुर्ई बुद्धि से  मानव-पशु-पक्षी एवं समग्र जीवसृष्टि का कुछ न कुछ अच्छी निर्मिति में प्रयोग करना होगा। बालक सहजता से इस सृष्टि को समजने का प्रयत्न करता हैं। अपनी जिज्ञासा को सहज प्रगट करता हैं। वो फल-फूल,नदी-पत्थर,सूरज-चांद, सजीव-निर्जीव सब को एकात्मता से आत्मसात करने का प्रयत्न करता है। ओर उसकी ये अद्भुत चेष्ठा उसको बुद्धिमान बनाती हैं।

 हम बुद्धि की श्रेष्ठता का स्विकार करते हैं। लेकिन बुद्धिमानी की श्रेष्ठता के उपर आत्मा की शुद्धता की बात भी अनादिकाल से होती रही हैं। हमें अपने कर्म से श्रेष्ठत्व को स्थापित करने का प्रयत्न करना हैं। आज पूरा विश्व आनंद ओर शांति की खोज कर रहा हैं।

आनंदविश्व की आश में हम सब को निकलना हैं। हमारी ये सहलगाह आनंदमार्ग से भरी हो ऐसा हम सब मानते हैं। आइए कुछ शब्दों को पढकर और एकांत में इस बात पर विचार करके...!! निकल पडे हमारी आनंद विश्व की सहेलगाह पे....!! आपके साथ आपका डॉ.ब्रजेशकुमार 😁 💕
9428312234







Reading Time:

Friday, December 16, 2022

प्रेममय ईश्वरीय संभावनाए !!
December 16, 20221 Comments

 प्रेमशक्ति का महान स्रोत ईश्वर ही हैं  !! 💕

युवाशक्ति को शब्दशक्ति- विचारशक्ति और प्रेमशक्ति से कैसे भर सकते हैं ?!!

आनंदविश्व की वैचारिक परंपरा में हम चलते जा रहे हैं। अच्छे विचारों  की कुछ न कुछ असर होती हैं । विचार शब्द का प्रगट स्वरूप हैं। शब्द की भी आराधना व साधना होती हैं। विश्व की कई भाषा सिखने के बाद उसके साथ प्रकटीकरण - प्रस्तुतीकरण का काम लेना पडता हैं। ईश्वर ने दी हुई बुद्धि से उसका आकलन करना पडता हैं। मनुष्य के रूप में हम इस भाषाविज्ञान से मानवमन को बौद्धिक रूप से प्रतिबद्ध करने का कार्य करते हैं। मनुष्य के रुप में अच्छें विचार स्थापित करना भी उत्तमता कहलाएगी।

आज हम युवाओं को ध्यान में रखकर दो शब्दों के बारें में बात करते हैं। लक्ष्य और ध्येय। लक्ष्य प्राप्ति करना और ध्येय प्राप्ति करना उसमें तार्किक व तात्विक भेद हैं। लक्ष्य भौतिकता एवं व्यक्ति केन्द्री विचार हैं। मैं कुछ बनने का लक्ष्य रखता हूँ तो सफलता निःसंदेह मिलेगी, ये निर्विवाद बात हैं। लेकिन मैं कुछ प्राप्त करने का ध्येय रखता हूँ तो सफलता मिलने की शक्यता दो गुनी बढ़ जाएगी। क्योंकि ध्येय समष्टि के कल्याण भाव को और मानवजीवन के सेवाभाव को दर्शाता हैं।

           ध्येयवादीता ईश्वर प्रेरित होती हैं। दोनों शब्दों में ज्यादा अर्थ भेद नजर नहीं आता फिर भी उसमें काफी अंतर हैं। लक्ष्य हांसिल करने में बुद्धि की प्रधानता होती हैं। उसमें मैं-मेरा का मालिकी भाव प्रकट होता हैं। लेकिन ध्येय प्राप्ति में ह्रदय की उदारता हैं। जीवन की आत्मिक उडान ध्येय के साथ झुडाव रखती हैं। उसमें हम सब-हमारा का भाव निर्माण होता हैं। इसलिए ध्येय अर्थ की वैचारिक गहराई ज्यादा हैं। राष्ट्र व समष्टि को प्रतिबद्धता से समर्पित रहना होगा तभी तो संभव है आनंद विश्व की परिकल्पना !! महान ईश्वर हमारें जरिए यही ध्येयवादीता स्थापित करवाना चाहते हैं। सृष्टि के सभी जीवों के प्रति समदृष्टि पैदा हो, समन्वयता निर्माण हो येसी कर्तव्य परायणता का अनुसरण ईश्वर चाहते होंगे !!

आनंदविश्व के लिए युवाशक्ति की सोच हमसब को एक नई पहचान दे सकती हैं। विश्व को नई वैचारिक ऊंचाई पर ला सकती हैं। ईश्वर की महान सृष्टि में आनंद की सहलगाह के लिए सदा साथ आपका डॉ.ब्रजेशकुमार  😀  💞


Reading Time:

Tuesday, December 13, 2022

God is Bigger...!! ☺️
December 13, 2022 2 Comments
ईश्वर महान हैं ।

ईश्वरीय शक्ति के अमोघ शास्त्र को समझना मुश्किल हैं, लेकिन महसूस करना संभव हैं। ईश्वर की रंगत उसकी अद्भुत प्राकृतिक पूर्णता का हरदम स्विकार ही आनन्द हैं।


विचार-कल्पना-समस्या-पीडाओं से उपर उठकर ईश्वर की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए। मैं अभी जो कर्म कर रहा हूं, थोड़ी देर बाद  आपकी आंखो के सामने ओर आपकी मन-मस्तिष्क में आनंद कल्पना बन जायेगी। ये विचार व्यापार की घटना घटित हुई उसके नियमन में भी लिखाई-पढाई और विचार संक्रमण प्रक्रिया  में भी ईश्वर ही कारण भूत हैं। विश्व कई घटनाओं के बारें में यही ईश्वरीय संभावनाए निहित हैं।  मनुष्य के रूप में साक्षी भाव ही हमारी वर्तनी हैं। इस साक्षीभाव का ईश्वर के साथ सख्य भाव निर्माण हो इसलिए हमें तैयार होना होगा। मुझे व्यक्तिगत रूप में ईश्वर अनुभूति का अदृश्य हो कर भी अद्भुत दृश्य भाव लगता हैं।

मूर्ति के दर्शन से हमारा ईश्वरीय दृश्य भाव संतुष्ट होता हैं। साथ अदृश्य भाव से हमारा शरीर-मन-बुद्धी एवं ह्रदय भी आनंद की अनुभूति करता हैं। एकांत से एकात्मकता की समझ  विकसित होती हैं।  विश्व के धरातल पर कई मनीषीओं ने जीवन के बहुमुल्य  आयामों को हांसिल किया  हैं।  इसके बारें में कई उदाहरण प्रस्तुत हैं। इतिहास आज भी उन महान मनुष्य के रूप में हमारें सामने जीवित हैं। ज्ञान- घ्यान, विचार-वर्तन, आजकल, जीवन-मत्यु, आनंद-शोक, करूणा-प्रेम सब अनुबंध अनुभूति और पारस्परिक व्यवहार में संमिलित हैं।  ईश्वर इन सब का सृजन कर उसकी अद्भुत महानता स्थापित करता हैं।  मनुष्य के रूप में उनकी ये आनन्द विश्व की सहेलगाह को एकात्मता से निभाते चलते जाना हैं !! हमारी पीड़ा- खूशी और जीवंतता के साथ। 

आनन्द विश्व की सहलगाह में आपका एक छोटासा साथी डॉ.ब्रजेशकुमार 👏 9428312234 
Reading Time:

Sunday, December 11, 2022

वैश्विक युवाकाल की प्रेमशक्ति ईश्वरीय वरदान !!
December 11, 20220 Comments
      

वैश्विक युवाकाल की प्रेमशक्ति ईश्वरीय वरदान !!

          
           हम ईश्वरीय शक्ति व नितांत आनन्द की बात करते कुछ वैचारिक कदम चल रहे हैं। में लिख रहा हूं आप पढ़कर एकात्म विचार कल्पना के साक्षी बन रहे हैं। ईश्वर ही विचार का जन्मदाता हैं। वैश्विक स्तर पर युवाओं को विजातीय आकर्षण केंद्र के रूप में सब देखते हैं। इस आकर्षण को ईश्वरीय स्पर्श है क्या ? उम्मीद-साथ-पागलपन कुछ रोमांचक पल से भरी जीवंतता गलत तो नहीं। लेकिन जब स्वार्थ वृत्ति का ही अनुसरण बढ़कर उभर आए तो ये गलत हैं। ईश्वर स्वयं निस्संदेह नितांत और समर्पण भाव प्रकट करने वालें प्रेम का पुरस्कर्ता हैं। ईश्वर ने स्वयं पारस्परिक प्रेम बंधन में खिलने प्रकृति का निर्माण कार्य किया है। ईश्वरीय स्पर्श से ह्रदय के पूर्ण भाव से जो संबंध स्थापित होता है वह ईश्वर को भी शामिल करेगा। ईश्वर की यह सख्यानुभूति कहलायेगा। 

         वैश्विक स्तर पर कृष्ण की स्वीकृति-कृष्ण की बौद्धिक क्षमता- मानव मन को मार्गदर्शित कर रही है। इसका  एकमात्र कारण कृष्ण का प्रेम आनन्द है !! कृष्ण का हर संबंध दिव्य रूप है !! कृष्ण का आचरण समावेशी है !! कृष्ण का जीवन ही समर्पण है। योजनाकार ईश्वर कृष्ण के रूप में हमारा मार्गदर्शन करते है। युवाकाल में आकर्षण दैहिक रूप से सहज भाव से प्रकट होता है। लेकिन इससे निर्माण होने वालें संबंध की गरिमा स्थापित हो सकती है क्या ?! मानव संबंध ही अनुभूतियों के अनुसरण का जिवनानुभूत आनन्द प्राप्त करने हेतु स्थापित होता हैं। हमें ऐसे आनन्द की प्राप्ति के लिए ओर ईश्वरीय स्पर्श से भरें संबंध के बारें में एक विचार करना चाहिए।

         मानव के रूप में हमारी उम्मीद हो की वैश्विक समाज कल खुशहाल बनकर ईश्वरीय स्पर्श से भरा असीम आनन्दमय बनें !! आनन्द विश्व की परिकल्पना में मानव संबंध का भी महत्तम योगदान है। योजनाकार ईश्वर की अनुभूत सृष्टी 🌎 के अनुसरण से ह्रदय की विशालता प्रकट करते करते आनन्दमय विश्व की सहेलगाह को बेहतर बनाए !!! आपके कदमों से कदम मिलाने आपका डॉ•ब्रजेश 😊💕

Reading Time:

Friday, December 9, 2022

ईश्वरीय ब्रम्हाण्ड में पहले से ही सब मोजूद हैं।
December 09, 20220 Comments
 सारा ब्रह्माण्ड ईश्वर की ही निर्मिति हैं - वो हर कण में पहले से ही मोजूद होगा  !!
 
श्वर की सृष्टि में जन्म देने की प्राकृतिक व नैसर्गिक प्रक्रिया के हम निमित्त मात्र हैं। ईश्वर की बनाई  ब्रह्माण्डिय गतिविधि निरंतर व निश्चित है। उसमें पहले से ही तय हुई नियमन ओर व्यवस्था हैं। नया आविष्कार करने की मात्र संभावनाएं हमें खोजनी होंगी। ईश्वर की ओर से सब मोजूद हैं। मनुष्य के रूप में हमारा प्रयास ही बहतरीन मार्ग के लिए पर्याप्त हैं। इसीलिए केवल survive जीवित होने से परे live जीवंत होना आवश्यक हैं। so I want to live. मुझे जीवंतता से भरी ईश्वरीय ज्ञान शक्ति की आवश्यकता है। 

मनुष्य के रूप में हमारा यही कर्तव्य बनता है कि इस संसार को शब्द से, विचार से, मानव संसाधन के आविष्कार से ओर सुलभ सुरक्षित बनाए। ईश्वर की मोजूदगी शब्द और कृति मैं भी हैं। प्रकाश एवं पवन मेंं भी वो हैं। जल-स्थल में भी वो हैं। वनस्थली-सागर और आसमान में भी वो ही समाया हुआ है। आरंभ ओर अंत में, सृष्टि के अंश में भी कण कंकर मेंं भी प्रस्तुत हैं। 

हमें अपनी जीवंतता से उसे महसूस करते करते कुछ नया मोड़ देकर अपनी ही जिंदगी को सजाये जाना है। साक्षी भाव एवं निमित्त भाव से कर्मकता को अंजाम देने का प्रयास करना है। इसके लिए ईश्वर हमें अच्छा मन ओर बुद्धि प्रदान करें यहीं हमारी प्रार्थना रहो। हजारों सालों से सृष्टि में कई आविष्कार हुये है। कोई न कोई व्यक्ति इसके लिए निमित्त हुआ है। हम सब भी इस दिशा में अपने आनंद विश्व की संकल्पना आकारित करने हेतु समावेशी विचारों से भर जायें। 
समष्टि के स्वस्ति मेंं आपका सहपंथ सहेलगाही.. 😊.डॉ.ब्रजेश 😊💐       
9428312234- 7016171996



Reading Time:

Tuesday, December 6, 2022

ईश्वरीय शक्ति वास्तविक व पूर्ण होती हैं।
December 06, 20220 Comments

ईश्वरीय शक्ति वास्तविक व पूर्ण होती हैं !!



ईश्वर पूर्ण भी हैं। ईश्वर वास्तविक भी हैं। हमारी दुनिया में ये स्थिति समय के आधार पर अलग महसूस होती हैं। कभी वास्तविकता से हमें खूशी मिलती हैं। कभी पूर्णता से आनंद मिलता हैं। मनुष्य के रूप में हमें इन दोनों में स्थितप्रज्ञा से ही जीवन जीना होगा। वैसे तो हम Perfection ओर Reality में सबसे बहतर क्या ??
 इसकी उलझन में ही अपना जीवन पसार कर देते हैं। जो ईश्वर का सृजन हैं उसका पूर्णतः स्विकार करना, इसमें हम दोनों स्थिति में आनंद प्राप्त कर सकते हैं। पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास हमारे मनुष्यत्व को एक उच्चतम मोड एक अनोखा आकार देगा। परंतु सामने आई हर स्थिति का स्विकार हमें वास्तव से भी अनुबंध में रखेगा। जीवन की समयरेखा के आधार पर कोई भी स्थिति नियंता के द्वारा या अपने पूर्व कर्म के कारण घटित होती हैं तो उसका स्विकार आनंद पूर्वक करना है।
 ईश्वर हमें यह सब सिखाना के लिए ही सुख-दुःख, आधि-व्याधि जैसी कई स्थितियों से हमारी भेंट करवाता हैं। शून्यता के प्रति गति करनेवाला ये सहजता से समझ जायेगा। मैं कौन हूँ ? मेरा जन्म मनुष्य के रुप में क्यों हुआ है ? मेरी कल्पनाओं को कौन उडान देता हैं ? मुझे सफलता से प्रशंसा ओर विफलता से निंदा कौन दिलाता हैं ? इस प्रश्नों के उत्तर हमें खुद सोचें। थोड़ा एकांत...!! थोड़ी हमारे स्वयं से बात...!! थोड़ी खूले मन से सत्य को स्विकार करने की चेष्टा हमें शाता देगी। 

ईश्वर हमें आनंद विश्व में ईसी निर्लेप ओर निर्दोषता से सहलगाह करवाना चाहते होंगे...!! इस बात से न मेरा नूकसान है न कीसी और का... इससे मेरा और हमारा फायदा ही निहित है। आइए ईश्वर के निर्दोष प्रेमपंथ पर अपने दमदार कदमों से चलें... आपके साथ आपका डॉ.ब्रजेश 😊 💐

Reading Time:

Sunday, December 4, 2022

विचार ईश्वर का ही करीश्मा हैं ...!!
December 04, 20220 Comments

विचार ईश्वर का ही करिश्मा हैं  !!

सारे संसार में ईश्वर ने मनुष्य को विचार करने की क्षमता दी है। इस विचार प्रक्रिया के कारण मनुष्य ने उसका प्रकटीकरण भाषा के जरिए किया है। विश्व में इसी सिध्दांत से अनेकों भाषाओं का संवर्धन व प्रसरण हुआ। ओर इस माध्यम से मानव संस्कृति की विकासमान बौद्धिक परंपरा अस्तित्व में आई। विश्व में फैली हुई मानव जीवन की ये क्षमता़ओं ने उत्क्रमित हो कर अनेकों संसाधनों के आविष्कार कीये। फिर से मैं याद दिलाता हूँ कि विचार ही महत्वपूर्ण पहलू है। ईश्वर की ये मानवता पर कि गई केंद्रवर्ति कृपा हैं। ईसी कृपा के माध्यम से हमें भी अपना मनुष्यत्व प्रकट करना होगा। ईश्वर की ही सामजंस्य और पारस्परिक करूणा-प्रेम की विचारवर्यति से हमें अपने आप को एक मोड देना होगा।  

विचार से हमारी कर्मकता गतिमान बनती हैं। ईसी सिद्धांत को लेकर मनुष्य अपनी श्रेष्ठता को विश्व कल्याणक मार्ग में जोडता हैं। विश्व में व्यक्ति ओर संघठनों के विचारों की श्रेष्ठता उनकें आचरण से तय होगी। एक व्यक्ति के रूप में कई मानवों ने विश्व को मार्गदर्शन किया है। कई संघठनो ने भी कुदरत की उत्तमता स्विकारित करकें विश्व में सर्वश्रेष्ठ प्रदान किया है। विचारों की वर्यता गणमान्य हो तभी हमारें लिए कारगत होगी। 

ईश्वर ही ये करिश्मा किसी न किसी व्यक्ति के रूप में करवा रहा हैं। यही प्रकृति की निर्मिति हैं। यही ईश्वर की करामाती....!! आनंद विश्व की इस कुदरती करामाती का हम सब छोटा हिस्सा कैसे बनेंगे ?? ये विचार प्रश्न आप सबके बीच रखता हूँ। हम सब की आनंदविश्व की सहलगाह  परिकल्पना में आपका छोटासा विचारबंधु डॉ.ब्रजेश 💐 
drworldpeace.blogspot.com

Reading Time:

Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

@Mox Infotech


Copyright © | Dr.Brieshkumar Chandrarav
Disclaimer | Privacy Policy | Terms and conditions | About us | Contact us