दो लम्हों का मिलना....एक दास्तान का जन्म हैं !!
क्षणों का चलते रहना मतलब मनुष्य जिंदा हैं !!अभी एक जिंदगी के श्वास ख़ुशनुमा हैं...!
वाह! धडकनों के स्वर बज रहे हैं...!
ईश्वर की दुनिया में बडा अजीब होता ही रहता हैं। उनकी विविधता से परे हमारे पास केवल आनंद ही बचता हैं। खुशी के क्षणों का बहाव ही जिंदगी हैं। ईश्वर की मर्जी का स्वीकार करते हुए...कुछ लम्हों को अपने खुद के लिए सजाकर जीना ही दमदार जिंदगी हैं। बाकी इनके अलावा जो कुछ मिलता हैं, शायद वो हमारा प्रयत्न पूर्वक का थोड़ा-बहुत जीवन-यापन हैं। दुनिया के दस्तूर में बंधी, खोखले बंधन और बुद्धि के विजय के हर्षनाद में सिमटी हुई जिंदगी...ये क्या हैं ? कैसा जीवन हैं ? हमें स्वाभाविक रूप से इससे कोई आनंद नहीं होता। बस बहता है समय, बडी होती रहती है जिंदगी..!
मनुष्य जीवन के कई पहलू हैं। इनमें से ये खूबसूरत लम्हों को संजोए हुए जीना सबसे बेहतर हैं। लम्हों का दो होना मतलब दो व्यक्तिओं के परिपेक्ष में लिखता हूँ। अपने लम्हें अपने हैं, लेकिन कोई दुसरा अपने लम्हों को किसी के साथ जोड़ता हैं, जब अपेक्षाएं एक हो जाए तब एक दास्ताँ कायम होती हैं। एक ही बीज दो स्मृतिओं में अंकुरित होते हैं। साथ उन लम्हों के रंग भी एक से हो जाते हैं। येसी कोई धटना आकार धारण करती हैं। सपनों का एक होना, यादों की खुबसूरत क्षणों को सजाकर कोई मस्त जीवन की अद्भुत अनुभूतिओं में हरदम खोये रहता हैं। मानो अद्भुत दास्तान लिखी जा रही हो !!
रिश्ते-संबंध की इस करामाती में मुझे प्रकृति की हरकतें काफी कुछ सिखाती रही हैं। एक छोटा-सा पौधा धरती के कुछ लम्हों से अपना संबंध बनाए अपने अस्तित्व को सजाता हैं। धरती अपने सौंदर्य के लम्हों को सजाती हैं। कभी न दिखाई पडने वाली कहानी शुरू होती हैं। पौधा बढता हैं ,फैलता हैं। धरती और पौधों के लम्हें एक हो जाते हैं। हरेरंग की दास्तान यूहीं आकारित नहीं होती। पौधा धरती के जल से संवर्धित होता हैं। शायद कुदरत ने वनस्पति की रगों में पानी का रंग भरा हैं। इसीलिए शायद उसका लहू बिना रंग का होता हैं...पानी ही !! एक ही रंग !!
ये खूबसूरत कहानी है धरती और पौधे की...दो लम्हों के एक हो जाने की...कुछ तो जिंदा भी हैं इसकी अनुभूति से !! मन बुद्धि से परें एक भाषा हैं। कभी न सुनाई देनेवाली भाषा। कुछ मांगे बिना सबकुछ समर्पित करने वाली हरकतें, अपने अस्तित्व को भूलकर दूसरें का अतूट आधार बन जाना...ये हैं लम्हें मिलन की दास्तान..!
कई कहानीओं के दस्तावेज न होने के बावजूद ये दास्ताएं दमदार होती हैं। सत्य जीवित हैं, वास्तव हमारे इर्द-गिर्द घूमता हैं। लम्हों का आकारित होना भी संभव शक्यता ही हैं। ईश्वर हमें लम्हें सजाने के अनगिनत अवसर दें...इसी शुभकामना के साथ।
आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234.
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