February 2024 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, February 28, 2024

The journey of love..Story of Narcissis..!
February 28, 2024 3 Comments

 अजायब दुनिया की बहतरीन...सफर !

'स्व' से 'स्वाहा' तक की सफर प्रेम हैं..!

Love is a journey of discovering ourselves in another
person and creating a beautiful story together.

प्रेम एक सफर है...खुद को दूसरें व्यक्ति में खोजना और दोनों की एक सुंदर कहानी का आकारित होना। बहुत ही सुंदर शब्दों ने यहां स्थान लिया हैं। उससे एक हमारे हृदय में अदृश्य-अतुलित भावसंपदा आकारित होती हैं। शब्द जब अच्छे विचारों का प्रवाह बन जाए...तब एक शक्ति का संचरण निर्माण होता हैं। और सबसे अच्छा शब्द संचरण, विचार संचरण प्रेम परिभाषा से होता हैं। सबसे उँची प्रेम सगाई ही हैं। जैसे सबसे बडा बंधन भी प्रेम से ही अतूट हैं। वैसे ही प्रेमशब्द-प्रेमविचार की भी अपनी अलौकिक असर हैं।

The Narcissism

संसार एक अजायबी की तरह हैं। मनुष्यके रुप में तो हम रिएक्ट- अभिव्यक्त होने वाले प्राणी हैं। साथ बुद्धि से भाषा का माध्यम बनानेवाले भी हैं। प्रेम के कितने अच्छे शब्द है..! प्रेम की सफर में एक दुसरें में अपने आपको देखना हैं। "मैं" तभी तो स्वाहा हो सकेगा। एक दूसरों के जीवन एकत्व को धारण करके एक सुंदर कहानी बन जाए.. जीवन का एक सुंदर मुकाम आकारित हो जहाँ कटुता और ग्लानि का दोष और नफरत की हवा भी न चलें।

मैं एक ग्रीक कथा का जिक्र करते हुए प्रेम की बेहतरीन कथा कहता हूँ। "नारिसिसस नदी-देवता और अप्सरा का पुत्र था, और दुनिया में सबसे सुंदर व्यक्ति माना जाता था। वे इतने सुंदर थे कोई पहली बार उसे देखे तो पागल सा हो जाता..भला,ऐसी भी सुंदरता होती हैं क्या !? नारिसिसस वनलता और तरुवर के साथ अपना जीवन बिताते थे। उस वन में जब नारिसिसस चलते तो वनदेवता उनका स्वागत करते। वनलताएँ उसे गले मिलती। खुशबों के फव्वारों से फूल उनका अभिवादन करते थे। वन में एक उत्सव सा माहोल बन जाता था। वन के पास एक तालाब था। रोज नारिसिसस चलते-चलते उस तालाब के किनारें पहुंचते। और तालाब के पानी में ही देखा करते। बहार क्या कुछ हो रहा हैं, उसकी कोई असर उन्हें नहीं थी। एक दिन अचानक नारिसिसस वन में नहीं आए। सब एक दूसरें को पूछ रहें थे;
नारिसिसस कहां हैं ? कईं दिनों तक वो नहीं आए। पूरा वन उनकी चिंता करता था। क्या हुआ होगा नारिसिसस को ?
वनदेवता-वनलताएँ उस तालाब को पूछते हैं;
तुमने नारिसिसस को देखा हैं ?
तालाब सहज उत्तर देता हैं; कौन नारिसिसस ? मैंने कभी उसे नहीं देखा। 
वन देवता अचंभित हो जाते हैं !!
'अरे! वो खुबसूरत बच्चा रोज तेरे पास तो आता था। पूरा दिन वो तुझे तो देखता रहता था। हम उसके दिवाने थे मगर वो तो तेरा दिवाना था।'
तालाब कहता हैं; "मैं ने उसे नहीं देखा वो कौन था, लेकिन जो मेरे किनारे बैठता उसकी आँखें बहुत सुंदर थी। उनकी आँखों में मैं बहुत ही खूबसूरत दिखता था। बस मुझे कुछ ओर पता नहीं।" हुआ कुछ ऐसा था की पानी में पैर फिसलने से उनकी मृत्यु हो गई थी।

ग्रीक पौराणिक कथाओं के कुछ संस्करणों का कहना है कि नारिसिसस पानी में अपने स्वयं के प्रतिबिंब के साथ प्यार में पड़ गए थे। सरोवर उनकी आंखों में अपने प्रतिबिंब के प्रेम में पड गया था। खूबसूरत कहानी पूरी हुई..! कहते है कुछ दिनों के बाद उस तालाब में एक फूल खिलता हैं, उसे नारिसिसस का नाम दिया जाता हैं।

ईस प्रेम की,आत्म-जुनून की कहानी यह हैं की हम Narcissist शब्द को प्राप्त कर बैठे। इसका समान अर्थ selflessness भी हैं, उसे निःस्वार्थता कहते हैं। प्रेम की सुंदर परिभाषा इससे बेहतर समझाने की मेरी औकात नहीं हैं। एक दूसरें में अपना अस्तित्व खोजना सरल नहीं हैं। दो नाम एक ही बन जाए.. राधाकृष्ण ये भी सहज नहीं हैं। संसार की खुबसूरत सफर प्रेम की अलौकिक अनुभूति में...!

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Sunday, February 18, 2024

Dedication for the nation.
February 18, 20240 Comments

परम पूज्य गुरुजी यानी....राष्ट्राय स्वाहा !

माधव सदाशिव गोलवलकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के यज्ञपुरुष!

संघ स्थापक पू. डॉक्टर साहब और पू.गुरुजी की पहेली मुलाकात लिख रहा हूँ। संवाद में छीपे संवेदन को देखे।

डॉ हेडगेवारज़ी ने गुरुजी से पूछा; क्या कर रहे हैं ?
उत्तर मिला- साधना !
काहे के लिए ?
मोक्ष के लिए !
"बड़ा अच्छा विचार है, पर एक बात बताइए कि आप मोक्ष का सुख प्राप्त करने की तैयारी में हैं, यदि तुरंत आपके सामने हजारों लोग नर्क के कुंड में गिर रहे हो तब आप क्या करेंग़े ?"
श्रीगुरुजी ने उतर दिया, " पहेले मैं नर्क में जाने वाले को निकालूँगा, बाद में मोक्ष की बात करूंगा।"
डॉ. हेडगेवारजी ने कहा कि ठीक यही स्थिति भारतवर्ष की हो रही हैं, सैकड़ों लोग स्वार्थ के नर्क कुंड में गिर रहे हैं, और भारतमाता की चिंता के लिए कोई तैयार नहीं हैं ! ऐेसे में मुझे लगता है कि आप मोक्ष को छोड़ दीजिए !"उसके बाद उनकी अखंड साधना चली ! तैंतीस वर्ष में तैंतीस बार भारतवर्ष की परिक्रमा कर उस महापुरुष ने आदि शंकराचार्यजी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।


१९ फरवरी १९०६ को नागपुर के पास रामटेक में उनका जन्म हुआ था। ५ जून १९७३ को उन्होंने इस संसार से विदा ली। ६७ बरस की आयु में समग्र भारत को एक चेतना से संवृत किया। एम.एससी, एल.एल.बी तक की पढाई साथ ही बनारस हिन्दु यूनिवर्सिटी का प्राध्यापक का दायित्व। जूलॉजी में उनकी ज्यादा दिलचस्पी थी। शायद इसलिए वो मनुष्य के भीतर की संवेदना को स्पर्श करते रहें हैं। प्राणीमात्र के प्रति संवेदनशील होना देवत्व का प्रतिक हैं। "मैं नहीं तू ही" का मंत्र जीने वाले हमारे गुरुजी।

पूज्य डाक्टरजी की श्रद्धा के मूर्त स्वरुप हैं गुरुजी। ओर ये कर्म दायित्व तो राष्ट्र का था। आनेवाली पीढ़ी की बेहतर के लिए था। आर.एस.एस -संघ का विस्तार बढ़ा गुरुजी के निरंतर प्रवास से, संघ की दृष्टीवान व्यापकता बढ़ी, संघ का स्वीकार होने लगा। संगठन एक सुग्रथित स्वरूप को प्राप्त करता हैं...राष्ट्र-हिन्दुत्व की अद्भुत परिकल्पनाएं आकारित होने लगती हैं। संगठन को पू.गुरुजी की आत्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि मिलती रही। साथ ही पू.डॉक्टरजी का पथदर्शक आशीर्वाद भी..!

एक जीवन को कितना व्यस्त बनाकर ओर राष्ट्रोन्नोति की सोच में हरदम लगा देना। अपने शरीर की परवाह किए बिना कर्क रोग की पीडा तक का सफर..! क्या मिलने वाला था ? एकमात्र सत्कर्म और भारत मां की आबादी !! मनुष्य जीवन को योग्य दिशा देने का परितोष ! एक विश्वास की पूर्ति का अहसास! तेरा तुझको अर्पण.. आखिर इस देश की मिट्टी में ही गुलमिल जाना है, इस प्राणतत्व रुप सोच को जीवनभर निभाते पू.गुरुजी और समर्पण की राह पर चलने वाले लाखों हेडगेवार तैयार करने का 'कर्तव्यधर्म' पू. गुरुजी ने बजाया है।

ईश्वर का महान कालक्रम हैं। संसार की उन्नति के लिए वे कोई न कोई समर्पण की मिसाल खडी करते हैं। उन्हीं की मर्जी पू.डॉक्टरजी और पू.गुरुजी...साथ आज भी उस क्रम को आगे बढ़ाने वाले राष्ट्रसमर्पित निर्मिति के वाहको को शत शत वंदना !

"त्येन त्यक्तेन भूंजिथा" की वेद वाणी के अनुसरण में सदा-सदा प्रवृत्त रहने वाले लाखों स्वयंसेवको को नमन। समयदान से एक संगठन की ताकत के लिए प्रवृत्त सभी राष्ट्रजीवि लोगों को भी वंदन !

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Friday, February 16, 2024

Only the spring..?
February 16, 20241 Comments

जीवन में ठहरे हर पतझड़ का बस अंत हो..!

केवल वसंत हो !!
Life finds a way and nature helps always.


एक पडाव से दूसरें पडाव की और जाना, एक स्थिति से दूसरी स्थिति में प्रवेश करना, एक अनुभव से दूसरें अनुभव तक पहुँचना ये सब एक ही बातें हैं। पतझड के बाद बसंत..! प्रकृति का एक अनमोल बदलाव हैं। जैसे प्रकृति की अनवरत गति हैं वैसे हमारे जीवन की भी गति हैं। प्रकृति और जीवन का संबंध हैं की वो हमें हमेशा मददरूप रहती हैं।
कैसे मदद करती है प्रकृति ?
प्रकृति हमें कुछ दिखाती हैं, सिखाती हैं। कुछ अनुभूत करवाती हैं। उनकी अदृश्य चेतनाएँ हमारें भीतर गतिमान हैं। ईश्वर के इस स्पर्श को हम प्रेम कह सकते हैं। हम सब ईश्वर की प्रेम वस्तु हैं। एक हैं पतझड़ जो छोडना सिखाती हैं, एक तरफ वसंत है वो अंकुरित होना सिखाती हैं। ये युगों के अनवरत बदलाव को में ईश्वर की "प्रेमपरंपरा" कहते आनंदित हूँ। इस विचार मात्र से मैं वसंत का स्पर्श अनुभूत कर रहा हूँ।
thanks nature and love you god.


हमारें प्यारे ईश्वरकी प्रेमदुनिया की मशहूर ऋतु वसंत की बधाई-बधाई।
पतझड़ और वसंत प्रकृति की दो अलग-अलग स्थितियां हैं। एक में काफी कुछ छूटता हैं और दूसरी तरफ सब पाना ही पाना हैं। नयेपन को धारण करने का अद्भुत आनंद हैं। छूटता है तो कुछ झुडता भी हैं। शायद ये प्रकृति हमें भी जीवन सिखाती हैं। पतझड़ का भी एक आनंद होता हैं उसे हम एतबार भी कह सकते हैं, आशा व श्रध्दा भी..! 
क्या-क्या सिखाते है, ऋतुओं के ऋतबें !?
एकमात्र प्रेमका निर्वहन करने वाली प्रेमऋतु वसंत के बारे में क्या लिखना ?
क्या पढना ? केवल महसूस करना ही मुनासिब लगता हैं। मैं लिख रहा हूँ वो मेरा आनंद हैं। मेरे महसूस अनुभव को शब्दरुप दे रहा हूं। आप शायद वसंत की प्रेमदोर से खिंचे हैं इसलिए पढ रहें हैं। आखिर हम सब प्रेमरंग को पिए जा रहे हैं। वसंत तो वसंत हैं। सहज-असहज का अनोखा रंग हैं। यहाँ प्रकृति ने रंग बिखेरे हैं साथ ही कईं दिलों में भी रंग छाये हैं !! सबके अपने रंग !! सबकी अपनी वसंत !! 
पतझड़ और वसंत का प्राकृतिक मेल प्रेम हैं। इस प्रकृति प्रेम की घटना के साथ सद्गुरु की अद्भुत प्रेम कविता रखता हूं।

प्रेम-नहीं होता केवल मधुर शब्दों,
या कोमल स्पर्श और रसीले भावों के लिए।
प्रेम एक आधार है
जिस पर टिकी हैं निष्ठा, साहस और बलिदान।
सिवाय उनके जिनके हृदय
प्रेममें डूबे होते हैं
कौन रख सकता है ?
दूसरों के कल्याण को अपने से ऊपर ?
कौन हो पाया है खड़ा भय और विपदाओं के सामने ?
केवल वही जो लुटा चुके हैं सबकुछ - प्रेम में..!
कौन हुआ है तत्पर, प्रेमियों से बढ़कर ?
कर देने न्योछावर, प्रेम की वेदी पर
अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को और स्वयं को भी।
समस्त मानवीय गुणों में,
प्रेम ही हैं
सबसे कोमल और सबसे अविचल।

मेरी नजर में इससे अच्छे प्रेमशब्द शायद नहीं पड़े। इसीलिए आपको भी प्रेषित करता हूं।आनंदविश्व सहेलगाह की कुछ अच्छे विचार बाँटने की छोटी-सी हरक़त ! कुदरत हमें यही सिखाने की कोशिश में है। हरएक ऋतु परिवर्तन सिखाती हैं। जीवन के घटनाक्रम की बात सहज सिखाती हैं। कोई कविता या ब्लोग वसंत नहीं हैं। मगर वसंत को देखने-महसूस करने के नजरिए को बदल देती हैं। शायद ये कईं प्रकार की व्यस्तताओं में एक कोयल की मधुर आवाज हैं या वसंत की टीक-टीक !?!

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Tuesday, February 13, 2024

वसंत पंचमी ! The spring time.
February 13, 20240 Comments

आज बधाई हैं..!

खुशबू की रानी आई हैं, वन उपवन में बहार लाई है।

हरएक पन्नों में हरियाली छाई हैं। फिर एक बार पलाश के वृक्षों ने रंग सजाएँ हैं। मिलने-मिलाने की ऋतु, प्रकृतिक एकरूपता की अद्भुत बेला..!

वसंत आई हैं..हां बेशुमार आनंद के साथ !!

वसंत के बारें में काफी कुछ लिखा गया हैं। वसंत की प्राकृतिक असरों से लेकर, वसंत की मादकता पर भी काफी कुछ लिखा गया हैं। कविता- कथा से लेकर नाटक और उपन्यास भी लिखें गए हैं। भारत के संस्कृत कविओंने ऋतुकाव्य का एक साहित्य का प्रकार भी खोज निकाला था। भारतवर्ष की लगभग सभी भाषाओं में वसंत का महिमा वर्णन मिलेगा।

The spring

मैं वसंत एक नयें विचार से लिख रहा हूँ। वसंत के साथ माँ सरस्वती की पूजा अर्चना व साधना भी जुडी हैं। माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को "वसंत पंचमी" मनाई जाती हैं। इसे श्री पंचमी, माघ पंचमी भी कहते हैं। ये  कला-संगीत व साहित्य-शिक्षा संबंधित विद्याओं के क्षेत्र से जुडे लोग के पूजा-अर्जन का पर्व हैं। माँ सरस्वती ज्ञान और चेतना का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे वेद जननी हैं, मंत्र-श्लोक में बसी ज्ञानदेवी हैं। मन-बुद्धि का प्रकटरूप विद्या हैं। वाणी व वर्तनी विद्या की क्रियाएं हैं। इसी पवित्र दिन को माँ सरस्वती का अवतरण हुआ था।

मनुष्य जीवन की उन्नति का मार्ग बुद्धि और चेतना के मार्ग से ही गुजरता हैं। सृष्टि के सभी प्राणीओं में से मनुष्य ने अपनी चेतना को विकसित किया साथ ही बुद्धि पूर्वक के आचरण से नए आयाम खडे किए हैं। पारस्परिक संवाद से आगे, संवेगात्मक अनुसरण के लिए वाचिक संकेत का प्रयोग किया। जिसे हम बोली या भाषा कहते हैं। भाषा से मनुष्य की प्रतिभा को निखरने का अवसर मिला। इसे हम ज्ञान का प्रादुर्भाव कहेंगे। योग्यतम दिशा एवं गतिशीलता के कारण ज्ञान प्रकाश का फैलाव हुआ। विश्व में आज अनेक भाषाएँ हैं। उनके जरिए ज्ञान-विज्ञान के बेशुमार द्वार खुल गए। आज मनुष्य चांद तक व मंगल तक पहुंच गए हैं। ब्रह्मांड की असीमित शक्तिओं का ज्ञान प्राप्त करने लगा।

भारतवर्ष की सांस्कृतिक विरासत कोई अलौकिक के निमित्त कारण से बाँधी हुई हैं। इसीलिए हम ज्ञान साधना से तपश्चर्या से प्राप्त करते है ऐसा मानते हैं। युगों से ये परंपरा चली आ रही हैं। और इस परंपरा की देवी हैं, माँ सरस्वती..!

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदंडमंडित करा या श्वेतपद्मासना ।।

जो विद्या की देवी कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशी, मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। जिनके हाथ में वीणा- दंड शोभायमान हैं, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया हैं। ये हमारी ज्ञानदेवी का थोड़ा सा वर्णन हैं। हम इस प्रार्थना से संतृप्त हुए हैं। हमारी ज्ञान साधना इन्हीं शब्दों से शुरु होती थी। आज हम कितने भी बडे हो गए हैं। फिर भी या कुन्दे...सुनते ही मां सरस्वती के बच्चें बन जाते हैं। भारत के लगभग सभी शैक्षिक संस्थानों मे ये प्रार्थना अवश्य रही हैं। आज कोई भी बच्चा मां सरस्वती का अनादर करने वाला नहीं मिल सकता। क्योंकि ये ज्ञान अर्जन की बात ही माँ सरस्वती का पर्याय बन चूकी हैं।

भारत ज्ञान का देश हैं। और ज्ञान कभी अराजकता नहीं फैलाता। ज्ञान से मनुष्य को मुक्ति मिलती हैं। " सा विद्या या विमुक्त ये " भारत इसी कारण सबसे गौरवशाली हैं, सांस्कृतिक हैं, मानवीय है। हमारे देश में ज्ञान प्राप्ति आशीर्वादात्मक हैं, कृपा हैं, माँ शारदा का प्रसाद हैं। मनुष्य इस कृपा से अकल्पनीय बुलंदी हांसिल कर सकता हैं। भारत असीमित ज्ञान का भंडार हैं। विश्व का ज्ञानगुरु भारत देश हैं। और हमारी ज्ञानदेवी माँ सरस्वती !! आज माँ वाग्देवी, शब्ददेवी व विचारदेवी के चरणों में लाख-लाख वंदन करते हुए विश्व के सभी ज्ञान आराधकों को बधाई-बधाई। साथ ईश्वर की दृश्यमान अवस्था...वसंत की भी बधाई !!

ज्ञानदेवी की कृपा का अनादर मतलब विनाश भी हैं। भारतवर्ष ज्ञान-पूजक है ईसीलिए अमरत्व धारण करें हुए खडा हैं। हमारे "ज्ञानराष्ट्र" के प्रति गरिमापूर्ण व्यवहार हमारें संस्कार हैं।

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Wednesday, February 7, 2024

THE EPICTETUS.
February 07, 20240 Comments

 No great thing is Created Suddenly...!

कोई भी महान चीज अचानक नहीं बनती...!

एपिक्टेटस हेलेनी काल के एक युनानी दार्शनिक थे। वह हिरापोलिस फ्रिगिया में सन् 50 ईस्वी में पैदा हुए थे। अपने निर्वासन तक रोम में रहे बादमें उत्तर पश्चिमी युनान के निकोपोलिस में रहने चले गए।

ग्रीक में एपिक्टेटस शब्द का सीधा सा अर्थ हैं 'प्राप्त' या 'अर्जित'। एपिक्टेटस स्टोइजिज्म में अपने काम के लिए जाने जाते थे। स्टोइजिज्म निष्ठुरता और सहनशीलता के बीच एक समायोजन हैं। ये दर्शन की एक शाखा जो लोंगों को भावना दिखाए बिना सभी चीजों को सहना सिखाती थी। एपिक्टेटस का जन्म गुलामी में हुआ था। बादमें अपने जीवन में, वह एक महत्वपूर्ण दार्शनिक आवाज बन गए। जिसका प्रभाव पीढ़ियों को प्रेरित करेगा। एपिक्टेटस सिखाते हैं कि "अच्छे और बुरे की पूर्वधारणाएं (प्रोलेप्सिस) सभी के लिए समान हैं।"

The epictetus

एपिक्टेटस के कुछ शानदार विचारों पर एक नजर...!
"भलाई को बाहरी वस्तुओं में न ढूंढो, इस अपने आप में खोजो।"
"या तो भगवान बुराई को खत्म करना चाहता हैं और नहीं कर सकता।
या वह कर सकता हैं, लेकिन नहीं करना चाहता।"
"छोटी छोटी बातों से विचलित होना, दुनिया का सबसे आसान काम हैं, अपने मुख्य कर्तव्य पर ध्यान दो।"
मैं तो एक विचार मात्र के दीवानेपन में बहता जा रहा हूँ। एक नियमित लेखन प्रवृति के कारण कुछ छान-बीन करता हूँ। और मिलते हैं नये-नये किरदार..! विश्व को आदर्श सिद्धांत भेट करने वाले जिसमें शायद ईश्वर की बानी का रणकार उठता हैं। उनके शब्दों में जादुई असर होती है, जो विचार हमें अपने आप सोचने प्रेरित करता हैं। हम इसी सामान्य प्रक्रिया के तहत कुछ सोचते हैं फिर लिखते हैं। थेन्क यु वेरीमच..एपिक्टेटस सर !!
विश्व में कोई भी महान चीज अचानक नहीं होती। प्रकृति में तो कईं उदारण हैं। लेकिन एक छोटी-सी घटना.जैसे द्रव्य का निर्माण ! धरती के भीतर एक पत्थर का हीरा बनना। कईं रसायनों का आविर्भाव ऐसे नहीं हुआ। हजारों सालों की अदृश्य प्रक्रियाएं घटती हैं। ईश्वर के प्रकृतिगत सिद्धांत का अद्भुत परीणाम हमें अचंभित करता रहा हैं। विश्व में आज भी कईं घटनाओं का ताग मिलना संभव नहीं हुआ। जो भी हैं कुदरत का हैं। ये सब ऐसे ही घटित नहीं हो रहा हैं। इसमें हजारों सालों की तपन हैं, समय के बडे हिस्सों ने कुछ आकार बनाया हैं। शायद मनुष्य के रुप में हम भी अचानक नहीं पैदा हुए। समय की अवधि के बंधन से हम भी कहां अलग हैं। Its not happen Suddenly !!

तपना पडता हैं, कठिन मार्गो से गुजरना पडता हैं। कभी कोई हँसता हैं,
हँसना भी सहना पडे ये कैसी घटना हैं ? हँसना तो आनंदमूलक होना चाहिए। समय का बडा काफिला गुजर जाता हैं, उम्र एक पडाव पर आकर रुक जाती हैं। कोई सफलता-विफलता के साथ झुडा हैं। कभी-कभार श्रद्धा भी डगमगाने लगती हैं। और कुछ सहज ही घटित होता हैं। ईश्वर की ही अदृश्य मर्जी कोई अचंभित आकार सजती हैं। कौन-किसको-कब-क्यों मिला...इन सब प्रश्न के उत्तर में कोई नहीं पडता। जैसी महान घटना आकारीत होती हैं, तब सबका आनंद एक हो उठता हैं। कोई सामंजस्य स्थापित होते देर नहीं लगती।

ईश्वर महान हैं, महान ईश्वर हैं भी..! ईश्वर डर नहीं प्रेम हैं। ईश्वर के नाम पर डराने से सृष्टि के विभूति नारायण खुश होंगे क्या ? अपने भीतर जवाब हैं ही..! विभूतिअंश अंकुरित होते ही रहेंगे...यहॉं वहाँ और सारे जहाँ में..! नियमित व निरंतर रुप से...!
Thank you very much EPICTETUS Sir,
Salute for your real thought.


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Monday, February 5, 2024

WIN AND EXPERIENCE.
February 05, 2024 2 Comments

You stopped by success..!

but your journey never stopped by failure..!
जीत एक नशा हैं, जीत आनंद हैं।
हार भी जीत बन जाय उसे अनुभव कहते हैं
और ये सफर कभी रुकती नहीं।


"जोखिम लेने से मत घबराएं क्योंकि जीत होगी तो आप दूसरों का नेतृत्व करेंगे और हार हुई तो मार्गदर्शन..!" भारत की आत्म जागृति के उद्घाता स्वामी विवेकानंद जी का ये दमदार क्वाॅट हैं। स्वामीजी जो कुछ बोले दहाड कर बोले हैं। भाषा में दम तभी आता है जब ह्रदय की आवाज में दम होता हैं। और जब दमवाली बात हमेशा नये आयाम को जन्म देती हैं। जीत के पीछे दौडना बिलकुल जरुरी हैं।


जीत के लिए योजना, कडी महेनत,लगन,उत्साह और समर्पण वाला समय देना पडता हैं। जब तक व्यक्ति कोई लक्ष्य तक नहीं पहुँचता तब तक ये कडी तपस्या चलती ही रहती हैं। नित्य की कर्म साधना हैं। जब प्राप्ति हो जाती है, आखिरकार तय किये गए सफलता के मानांक तक व्यक्ति पहुंच ही जाता हैं। तब खूशीओं की बौछार...परम आनंदकी अनुभूति !! जिसे हम success कहते हैं, achievement कहते हैं। ये अथक प्रयास की जीत हैं। स्वाभाविक ही इससे आनंद होगा ही,साथ एक सफर का अंत भी..! व्यक्ति एक ही प्रकार की मेहनत से थक जाता हैं। अब उसे रिलेक्स मुड में जीना हैं। जीत का बेहतरीन जश्न मनाना हैं। इस सफर की थकान को दूर करना हैं। जीवन एक नए मुकाम पर अब चलने वाला हैं। लोगों की तारीफें- प्रशंसा- वाह-वाही एक नशा बन जाती हैं। उस नशे का आनंद ही व्यक्ति को एक ही जगह पर स्थिर कर देता हैं।

लेकिन उससे विपरीत कोई व्यक्ति बार-बार असफल होता रहता हैं। उनके प्रयास में भी कोई कसर नहीं थी। वो ही जज्बा वो ही रफ़्तार और कार्य के
प्रति सभानता भी। फिर भी कोई कारणवश व्यक्ति उस मुकाम पर नहीं पहुँचता जहाँ उसे पहुँचना था। उनके प्रयास भी उत्साह से भरें थे। शायद ईश्वर कुछ अपनी योजना के कारण उस व्यक्ति को अपनी पसंद से मिलवाता नहीं है। तब उसके पास एक मात्र अनुभव ही बचता हैं। और मानसिक सभानता वश वो व्यक्ति कोई दूसरें कार्यो में लग जाता है। मगर उसकी ये यात्रा कभी रुकती नहीं। उनकी एक भूमिका तय हो जाती हैं, वो एक अच्छा मार्गदर्शक बन जाता हैं।

एक जीता हुआ नेतृत्व करेगा। मगर एक सफर की दौड में पीछे रह गया वो नेतृत्व करने वालों की फौज खडी करेगा। क्योंकि उस व्यक्ति की सफर अभी रुकी नहीं हैं। वो चलता रहता हैं, साथ चलने वालें उनकी दिशानिर्देश व मार्गदर्शन से एक सफलता की परंपरा को कायम करती हैं। चाहत एक सफर बन गई ऐसा भी हम कह सकेंगे। उम्मीद हमारी वैयक्तिक भी होती हैं लेकिन कभी-कभार जब ये सार्वजनिक हो जाएगी, समस्त के लिए एक सपना बडा हो जाता हैं। परम की अद्भुत मिसालें खडी होती हैं। कुछ बनने का प्राप्ति करने का हौंसला अब सब का हो गया..!

इसका मतलब कुछ यु हुआ की "जीत" की बात में ही दम हैं। जीतने का जज़्बा ही एक से अधिक होने तक की यात्रा हैं। जोखिम लेकर कोई कोई लक्ष्य के पीछे पड जाता है, वहां जीतका माहौल तैयार ही हो जाएगा। ये युगों की परंपरा हैं। कोई जीत के ख्वाब सजाता हैं...किसीकी ख्वाहिश पूरी होती है किसी की ख्वाहिशें आसमान के तारों की तरह बिखर जाती हैं। और एक ख्वाब कई औरों का भी बन जाता हैं।

मुझे लगता हैं सपनों के पीछे दौडने वाला जोखिम लेनेवाला कभी नहीं हारता। हारता कौन है ? अब ये कहने की जरूरत नहीं लगती !! हैं ना !?

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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

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