March 2024 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Monday, March 25, 2024

Bloom more..!
March 25, 20240 Comments

 Bloom where You are planted.

आपने स्थान पर रहकर अपनी योग्यता दिखाएं।

रंगोत्सवस्य शुभाशया:
रंगो का एक अलग विश्व हैं। इन रंगों ने सारें संसार को खूबसूरती दी हैं। हमारें भीतर भी जो खुबसूरत लम्हों का उमडना रंगों का ही एक प्रकार हैं। जीवन के भी रंग होते हैं। एक बात तय हैं, रंग बडे प्यारे होते हैं। हरेक रंग का अपना निजी सौंदर्य हैं। गुल मिल जाना, बिखर जाना रंगों का स्वभाव हैं। एक रंग दूसरें रंग में मिलकर एक ओर रंग बनाता हैं। संसार की इस रंगभूमि को शत शत वंदन !!


भारत वर्ष में मनायें जाने वाला ये होली का उत्सव कई सत्यापन को प्रेषित करता हैं। जीवन के रंगों की बात को भी स्पर्श करता हैं। होली उत्सव के साथ जीवनदृष्टि भी हैं। समस्त मानव समाज के लिए एक उत्साह का माहौल हैं ये बात ठीक हैं। मगर इसके साथ होली जीवन को बडी प्रबुद्धता से समझने का उत्सव भी हैं। उत्सव से उल्लास उमंग झुडा है, ये सही बात हैं। मैं समझता हूं उत्सव से जीवन झुडा है। उत्सव से मानवीय संवेदना जुडी हैं। इस उत्सवों से हम अपनी योग्यता समझ सकते हैं। समाज जीवन में उत्सव शायद इसी कारण मनाएं जाते है।
हमें किस स्थान पर अंकुरित होना हैं ?
हमें जीवन कौन से रंग से सजाना हैं ?
या रंगो की लाजवाब परख कैसे करनी हैं ?

रंगों का तादृश्य मेल जहाँ उत्कृष्ट दिखाई पडे, ऐसा कोई चरित्र इस संसार में हैं ? हां राधाकृष्ण। कृष्ण राधा का चरित्र रंगों का तादृश्य सौंदर्य प्रकट करने वाला हैं। यहां प्रेम के सुनहरे रंग भी हैं। जैसे पानी सभी रंगों को सहज ही धारण करता हैं। अपने खुद का रंग न होने के बावजूद पानी सबरंग बन जाता हैं। कृष्ण ऐसा सबरंग हैं। कृष्ण प्रेम हैं और प्रेम का रंग ही सबसे उपर हैं। रंगोत्सव की बात हो और कृष्ण और राधा की बात न हो, ये हो ही नहीं सकता।

रंग की बात हैं, तो हमें अपने जीवनरंग को पहचानना हैं। अपने भीतर के उत्कृष्ट रंग को पहचानकर संसार में बिखेरना हैं। ईश्वर इस रंगभरी दुनिया के राजा हैं। उनको चेहरे पर कौन-से रंग से हम मुस्कान ला सकते हैं। ये हमें ही सोचना हैं। where we will want to grow ?

फिर एक बार ओर रंगोत्सव के साथ जीवन की सर्वोतम फिलसूफी को अपने भीतर प्रकट करने हेतु...मंगलमय प्रार्थना !!

आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
9428312234.
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Tuesday, March 19, 2024

Wonderful Relationships.
March 19, 20240 Comments

 IF you become a source of joy,

you will have wonderful Relationships.
SADHGURU.


एक विचार जीवन उन्नति का कारण बन सकता हैं। एक शब्द जीवन की गति तय कर सकता हैं। आज सद्गुरु द्वारा कि गई आनंद और संबंध की बात को थोडी विचार प्रक्रिया के हवाले करता हूँ। यदि आप आनंद का स्रोत बनाते हैं, तब आपके अद्भुत रिश्ते होंगे।


जीवन रिश्तों से बनता हैं। मनुष्य के रुप में जब हम झुंड या समूह में रहने लगें तब सामाजिक बनते चले गए। इस पूरे ढांचे में रिश्ते केन्द्रभूत हैं। जैसे कोई पदार्थ का निर्माण अणुओं से होता हैं। वैसे ही समाज अच्छे रिश्तों से स्वस्थ होता हैं। एक परिवार भी अच्छे रिश्तों से ही अच्छी परंपरा निर्माण कर सकता हैं। इसका मतलब मनुष्य जीवन की स्वस्थता में रिश्तों का बडा योगदान हैं।

व्यक्ति जीवन में रिश्तों को बडा महत्व हैं, ये तो हम समझ पा रहे हैं। लेकिन रिश्तों का शानदार होना भी एक बात हैं। जन्म के कारण रिश्तें ज्यादा मिलते हैं। उससे एक परिवार, एक समाज बनता हैं। साथ ही रिश्तों के कारण कईं बंधन भी निर्मित होते हैं। फिर अपेक्षाएं पैदा होती हैं। और ये रिश्तेदारियों में कभी मन-मुटाव प्रवेश कर जाता हैं। कोई व्यक्ति का निजी स्वभाव उनके व्यवहार के जरिए बाहर दिखाई पडता है। वर्तन अच्छे के लिए हैं तो संबंध बडे अच्छे तरीकों से बने रहते हैं। लेकिन जब स्वार्थ का विचार सर्वोपरी बनें, तब मुश्किलें ओर बढ जाएगी। संसार में जो कुछ परेशानियाँ है, वो इसी तरह पैदा हुई हैं। तब अच्छे रिश्तों का टिकना नामुमकिन हैं।

मैं एक मजबूत रिश्ता उन्हें करता हूं कि जिसमें आनंद समाहित हो। इस जहाँ में आनंद के बग़ैर जो निर्मित होगा वो एक व्यवहार से बढकर कुछ नहीं हैं। सबको अच्छे से जीना है, सबको आनंदपूर्वक का जीवन पसंद हैं। मगर सबकी वास्तविक सोच बदल गई हैं। सब सीखाते हैं, अपना कुछ सोचकर व्यवहार करना, दुनिया बहुरंगी हैं। हमें दुनिया को समझते देर नहीं लगती। समय की विचित्र धारा में कोई सहज ही स्वार्थे सीख लेता है किसीको जबरन सीखना पडता हैं।

कईं लोग आनंद का स्रोत बन जाते हैं। उनकी मस्ती,काम के प्रति समर्पण रिश्तों के प्रति वफादारी बेहतरीन होती है। जीवन को प्रकृति के साथ जोड़कर एक अच्छा मुकाम बनाते हैं। उनकी रिश्तें निभाने की रीत बड़ी लाज़वाब होती हैं। वो कोई संतोषी जीव भजन में मस्त हैं या अपने काम को भजन बना देता हैं। ये सब आनंद के कारण संभव हैं। ईश्वर को आनंद पसंद हैं, ईश्वर ऐेसे आनंदी व्यक्ति को जरुर पसंद करते हैं। सारा संसार उनके साथ संबंध निर्माण करने का प्रयास करता हैं। लेकिन वो उनकी मस्ती में पागल रहते हैं। प्रकृति के साथ उनका एक ताल होता हैं। उनके साथ रिश्ता कायम करना पागलों का काम जैसा होगा। इस तरह ये आनंदी पागल अकेले ही पाए जाते हैं।

आनंद वहीं टिकता हैं जहां पागलपन हैं। दो व्यक्तिओं के बीच संबंध निभाने का पागलपन होना चाहिए। जीवन तभी खूबसूरत रिश्तों से भरा होगा। उन व्यक्तिओं के कारण ही समाज में अच्छे रिश्तों का स्थापित होना संभव हैं। "आनंदविश्व सहेलगाह" का ये एक छोटा-सा प्रयास हैं। हम विचार रखतें हैं..! ओर कुछ नहीं..! ये हमारा आनंद कर्म हैं..!

With great emotions..!
This blog is dedicate to all my dearest friends. 

आपका ThoughtBird
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Brightness is not payable
March 19, 20240 Comments

 यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।

यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥
श्रीमदभगवद्गीता, श्लोक१२ ॥ पुरुषोत्तम योग १५॥

जो तेज सूर्य में स्थित होकर सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशमान करता है तथा जो तेज चन्द्रमा में है और अग्नि में है, उस तेज को तुम मेरा ही जानो। आज तेज की ही बात करते हैं। तेज के कितने समानार्थी शब्द हैं, दीप्ति, ज्योति, प्रकाश और चैतन्य। मनुष्य में जो तेज है उसे हम चैतन्य कहते हैं। मतलब चेतना-जागरुकता..! जो प्रगट होता हैं वो तेज है, प्रकाश हैं। साथ ही मनुष्य के भीतर जो प्रकाशित हो उठता है उसे हम चेतना या ज्ञान भी कर सकते हैं। उससे ही तो मनुष्य की दैदीप्यमान आकृति बनती हैं।

Brightness

संस्कृत भाषा शब्दों की जननी हैं। एक-एक शब्द की अपनी पहचान हैं। गीता में भगवान के वचन हैं, ईश्वर क्या हैं ? उसकी विशद बातें गीता में हैं,भगवानने उपर्युक्त श्लोक में कहा: सूर्य-चंद-अग्नि में स्थित तेज मैं ही हूं। भगवान हमें व सर्व जीवको अपना अंश भी बताते हैं। मतलब हमारें भीतर जो ज्ञानरुप तेज हैं वो ईश्वर ने ही प्रदीप्त कीया हैं। जो हमारी दीप्ति प्रकट होगी वो भी ईश्वर की कृपा से हैं। ईश्वर ही तेज के उद्गम है और अंत भी..!

अब हम बात करते हैं हमारे तेज की। मनुष्य के रुप में हम जो ज्ञान या अनुभव प्राप्त करते हैं उससे हमारी पहचान बनती हैं। मतलब हम एक छोटा-सा तेज व प्रकाश से भरा दिपक हैं। मैं बाह्य प्रकाश की बात नहीं करता। अपने रंग-ढंग और खूबसूरती के बारें में इसमें कुछ नहीं लिखता। इसमें अपने भीतर के तेज के बारें में कुछ लिखता हूँ।
संसार में हरेक व्यक्ति को अपना खुद का तेज पूंज हैं।
सबके भीतर एक आग हैं,
कुछ करना है, कुछ बनना हैं..!
अपने लिए अपनों के लिए,
कुछ सिखना हैं, कुछ सिखाना हैं।
मेरे द्वारा भीतर से कुछ बहना चाहिए..!
कुछ आवाज बनकर या सृजन बन कर..!
अपने लिए..अपनो के लिए।
अपने खुद के आनंद के लिए !!

फिर किसी ओर के लिए भी कुछ बहता हैं, प्रकट होता हैं। संवेदना बनकर या प्रेम की अप्रतिम सुवास बनकर। कुछ तो प्रगट होना चाहिए। मेरे भीतर का तेज स्वयं ईश्वर का अंश हैं। ये थोडे-बहुत तो पराक्रम दिखा सकता हैं। मेरे लिए या सबके लिए। जन्म की पहेली क्षण से हम बाह्य प्रकाश के संपर्क में आते हैं। जन्म को हम प्रकाश में आना भी कह सकते हैं। जब हम विध्यमान बोलते हैं, तब सहज ही तेज की मौजूदगी होगी। मतलब हम तेज से संवृत हैं। माँ के पेट में भी हम उसकी चेतना से संवृत थे। तेज से ही हमारा नाता हैं। हमारें भीतर उठती धडकनें भी तेज से ही सम्बद्ध हैं। सोंसो का आवागमन भी ईश्वर की अलौकिक तेज संरचना ही तो हैं। 

हमारे शरीर में हरदम दौडता रहता है..तेज !! हमारी प्रेरणा और गति भी तेज से ही संभव हैं। रुधिर के कणों में फैला तेज हजारों नाडीओं से बहता हैं। कब तक हैं तेज ? जबतक है जान तब तक। जीवन पर्यंत हम इस तेज के साथ जी रहें हैं। इस मृत्युपर्यंत के संबंध से ईश्वर कुछ करवाना चाहता हैं। शायद जीवन को तेजोमय बनाना चाहता होगा ! तेज का मूलभूत गुणधर्म बांटना हैं। जो खुद प्रकाशित हैं वो जरूर फैलेगा। तेज का स्वभाव ही फैलना है। शायद ईश्वर हमें फैलना या कुछ बांटना सिखाना चाहते हैं! छोटे से तेजपूंजबनकर..कर्तव्य का निर्वहन करते-करते हमें भी दीप्तिमान स्थापित होना हैं। ईश्वर की ये लाज़वाब परंपरा के वाहक बनें हम..!

हमें किसीके तेज को बूझा नहीं सकते..कम भी नहीं कर सकते। इस हरकत से बचना ही तेजोद्भव हैं। तेज उधार नहीं मिलता, तेज खरीदा भी नहीं जा सकता। चैतन्य की कोई दुकान होती है भला !!
Innerly think of your brightness 🔅
I'm only questioner ? I'm not conclusioner.

Your ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
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Thursday, March 7, 2024

The Spiritual night.
March 07, 20241 Comments

शिवसंकल्प और कल्याण की रात्री !

शुभतत्व की प्राप्ति के लिए मन का ताल...training of mind.

शिवरात्री...मन और तन की उर्जा का संचार करनेवाली रात हैं !!

"महाशिवरात्रि शिव की एक महान रात है। अगर आप इस पवित्र रात में जगे रहते हैं और थोड़ी-बहुत जागरूकता बनाए रखते हैं, तो यह आपके जीवन में जबरदस्त खुशहाली ले आएगी।" 

जीवन में हरपल जागरूकता बनाएँ रखे तो जीवन सही रास्ते पर हैं। 
ये जागरुकता क्या हैं ?
हमें जीवन की कौन-सी गति को चयनित करना हैं ?
थोडी बहुत शांति और समदर्शीता हमें इस रास्ते पर ले जाने सक्षम हैं।
ईस श्लोक को पढ़े;

आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
धर्मों हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीना: पशुभि: समाना: ।।

आहार,निद्रा,भय और मैथुन ये तो इन्सान और पशु में समान है। इन्सान में विशेष केवल धर्म हैं, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य हैं। अब धर्म क्या हैं ? मैं कोई धर्माचार्य नहीं हूं लेकिन एक जीवनदृष्टा के रुप में कुछ बातें रखता हूँ। इस संसार के प्रति, समष्टि के प्रति मेरे द्वारा शुभत्व का संसार हों। एक जीवन दूसरें जीवन में समदर्शी क्रांति का निर्माण करें। जीव जगत में सुचारु ढंग सा जीवन-यापन धर्माचरण ही हैं। भारतीय जीवन प्रणाली में ऐसे कई पहलू हैं जो इस मान्यता को दृढ कर सके। शिवरात्री मानव-जीवन के लिए जीवन-संकल्प की प्रतिबद्धता हैं। शुभत्व- समत्व- कल्याणत्व का भाव निर्माण करनेवाली संकल्परात्री शिवरात्री हैं।

What is Spirituality ? आध्यात्मिकता क्या हैं ?
मनुष्य को पशु से अलग बताने वाली और पशु का भी कल्याण समाहित हो ऐसी जीवनदृष्टी आध्यात्म हैं। अपने भीतर का मनुष्य आनंद व एश्वर्यसंपन्न तभी बन सकता है जब उनमें समदर्शिता निर्माण हो। इसके विपरीत धर्म का आचरण कदापि नहीं। और जो सहज स्वीकार्य नहीं ऐसे पहलू को धर्म बनाकर चलते है, वो समष्टि का प्रदुषण हैं। धर्म व आध्यात्म के विचार में सहज स्वीकार्यता होती हैं। समष्टि के कल्याण का भाव होता हैं। इसके बगैर जो धर्म के नाम पर अध्यात्म के नाम पर विचित्रताओं का फैलाव हो रहा है, उससे शिव की खुशी होंगी क्या ? याद रखना चाहिए रुद्रस्वरुप शिव संहारक भी हैं। समस्त ब्रह्मांड को स्वाहा करने की विराट क्षमता शिव में हैं। इसीलिए शिवसंकल्प क्या होना चाहिए वो मनुष्य के रुप में समझमें आना चाहिए।

शिव का प्राकट्य इसी रात्री को हुआ था। इसलिए शिवत्व का विचार ही शुभत्व मार्ग हैं। इस रात्री को हम मन की क्षमता का विस्तार करने हेतु शिव उपासना में प्रवृत्त हो जाए। शिव शक्ति प्रदाता हैं, वे अमाप-असीम शक्ति के अमोघ स्रोत हैं। शिव असीमित समत्व हैं, शिव शाश्वत है, शिव ही संसार के मूलतत्व है। शिव भूलोक के आधार हैं। उनकी कृपादृष्टि प्राप्त करने का अवसर शिवरात्री हैं।

मनमस्त शिव अपने ही भीतर के आनंद को प्रेरित करते हैं। मिलन और वैराग्य के बीच भी सामंजस्य निर्माण करना शिवत्व हैं। सृष्टि के सभी जीवों में सामानुभूति शिव हैं। जीव मात्र के प्रति शिव सहानुभूति के सागर हैं। उनके प्राकट्योत्सव के अवसर पर उनकी असिमित शक्ति के आशिष हम पर बने इसके लिए प्रवृत होना हैं। ध्यानाकर्षित शिव का ध्यान करके हमारें भीतर के मनुष्य को आनंदित करें। समष्टि के शुभत्व के लिये प्रार्थना करें।
ब्रह्मांड की पवित्र आवाज ऊँ कार से अनुस्यूत होकर जीवन का अद्भुत आनंद प्राप्त करें।
पूणमिदं की वंदना में...!

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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

@Mox Infotech


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