January 2024 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Monday, January 29, 2024

Where why and How ? !
January 29, 20240 Comments

 There is a big difference between dreams and determination.

सपनें अनुभूति है, संकल्प एक यात्रा है।

भगवद्गीता के उद्घाता श्रीकृष्ण कहते हैं; परिवर्तन संसार का नियम हैं। प्रकृति इसका बेहतरीन उदारहण हैं। जल-वायु-पृथ्वी में भी बदलाव सहज हैं। जल-स्थल के सिद्धांत भी प्राकृतिक बदलाव से संपूर्ण झुडे हैं। ऋतुओं का ज़बरदस्त परिवर्तन तो हम सब अनुभूत करते हैं। प्रकृति हमें अनुभूति सिखाती हैं। सपनें अनुभूति का व्यापार हैं। हमारें सपने हमारी अनुभूति को संवेदना से भर देते हैं। ये भी एक प्रकृति का अदृश्य सिद्धांत हैं। जो सबके भीतर पलता हैं। जिसके बंधन में हम सब बंधे हैं युग-युगान्तर से...!

Dreams


ये प्रकृति का एक मार्ग हैं। दूसरा मार्ग हैं..संकल्प !! अनुभूति के जरिए एक मुकाम तय होना चाहिए। ईश्वर मनुष्य जीवन को दिशा देना चाहते हैं। सबको अपनी गति तय करवाना चाहते हैं। सृष्टि के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का कोई करतब करवाना चाहते हैं। इसीलिए हरेक मनुष्य को अपनी विचार यात्रा को हकीकत बनना हैं। सपनें इस यात्रा के बीज हैं। सपनें कुछ करनें की तलब देते हैं। इससे एक यात्रा शुरू होती हैं। व्यक्ति की यात्रा समष्टि के लिए...!

विश्व ऐसी कईं यात्राओं से संवृत हैं। इस संसार में कई लोग जन्म लेते हैं, अपने सपनें पालते हैं और निकल जाते हैं कोई अनंत यात्रा पर..! मगर उस यात्रा के सभी आयाम हमें दिखते हैं। सपनों को सोपान नहीं मगर संकल्प को निश्चित सोपान हैं।
कहाँ जाना है ?
कैसे जाना हैं ?
क्यों जाना हैं ?
ये कहाँ-कैसे और क्यों की समझदारी से भरी यात्रा हैं। जीवन अभाव और संवेदना की कुछ घड़ी पे सपनें संजोए लेता हैं, तब एक यात्रा तय हो जाती हैं। अपने मस्तिष्क पर पागलपन को सवार करते हुए...एक यात्रा निश्चित हो जाती हैं। कोई निकल पडता हैं, अपने भीतर संकल्प शक्ति का तेज भरकर..!
या एक ऐसी ज्योति को धारण करते हुए जो विश्व के एक कोनें में तेजोमय क्रांति को धारण करती हैं। संकल्प से क्या कुछ नहीं होता। एक बार किसी व्यक्ति ने अपने भीतर संकल्प को धारण कर लिया उसका मार्ग प्रशस्त हैंं ही। उस मार्ग में कोई अड़चनें पैदा करता है तो समष्टि का प्रकोप उसको निगल लेता हैं। संकल्पयात्रा में निकलने वालों के इतिहास लिखे जाते हैं अड़चने पैदा करनेवाले तो अगले सालतक भी नहीं चल पाते हैं।

"आनंदविश्व सहेलगाह" कुछ सपनों की बात थोडे संकल्प की बात रखकर खुश हैं। सत्वशील विचार, सर्वमान्य विचार या अपने भीतर सत्य की रणकार पैदा करने वालें विचार पर किसीका अधिकार नहीं होता। ये प्रकृति की आवाज बन जाती हैं। किसी के जरीए प्रकट होती हैं। शायद कोई विचार को एक निमित्त चाहिए होगा..!

अनादिकाल से ईश्वर का क्रम अक्षुण्ण रहा हैं। उनकी मर्ज़ी कब-कहां चले कहना नामुमकिन हैं। यहां कोई कैसा निमित बनें वो भी कहना मुनासिब नहीं हैं। ये मेरी शक्ति से बाहर की बातें हैं। मैं तो बस स्वीकार करना जानता हूँ...अलौकिक ईश्वर की दृश्यरूप आकृति ओर प्रवृत्ति बनकर !! एक वस्तुत: आकार बनें रहने का आनंद !!

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Saturday, January 20, 2024

THE RAMA.
January 20, 2024 3 Comments

The Ram is an ideal principle of India.

विश्व को आदर्श व सिद्धांत भेट करनेवाले...राम !
जीवन की सर्वोतम मर्यादा का शिखर हैं..राम !


आज भारत राममय हैं। भारत का आध्यात्मिक आत्मा जाग उठा हैं। आज हमारी चौखट पे राम आए हैं, हमारे सरकार आए हैं। भारतभूमि भावनाओं का भंडार हैं। मैं नहीं तुं ही ! मेरा मात्र कर्म, फल देने का काम ईश्वर का..! मैं निमित्त मात्र हूं ये भाव ही भारत वर्ष का प्राणतत्व हैं।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।।
हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान राम ! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम! आप मुझे शरण दीजिए।


रघुनन्दन श्री राम व्यक्ति जीवन, परिवार, प्रजा और आत्मा का समांतरण हैं। एक क्षितिज पर सारी भूमिकाएं सिमटकर आ जाती हैं, संसार का कल्याण मात्र उनका जीवन उद्देश्य हैं... वो हमारें रामजी हैं। वो हमारा आनंदधन हैं। वो हमारा आत्मिक सुख हैं। श्रीराम हमारे भीतर बजती रहती धडकन का संगीत हैं। एक युग के निर्माता राम हैं। आदर्श पालन की मिसाल हैं..हमारे राम। माता कैकेयी के हठाग्रह से राम को वनवास मिला था। फिर भी श्रीराम को लगता हैं। वनवासी लोगों को शायद मेरी आवश्यकता ज्यादा होगी। इसी कारण निर्मिति ने माँ के पास ऐसा व्यवहार करवाया हैं। जीवनभर रामजी ने माता कैकेयी का तलभार भी कटु नहीं सोचा। अपने भाईओं के साथ का व्यवहार तो अप्रतिम हैं। सभी के प्रति श्रीराम श्रद्धेय रहे हैं। संदेह से परे का जीवन जीने वाले हमारें राम प्रभु..! 

पूरे विश्व को आदर्श की परिभाषा श्रीराम ने दी हैं। मनुष्य जीवन और एक राजा की भूमिका का आदर्श व्यवहार रामजी ने सिखाया हैं। रामजी के बारें में कितना कहें ? हमारे पास उनको समझने की मर्यादा हैं। बस,उनकी जीवन लीला में श्रद्धेय बनें रहना हैं। आज के माहोल में हमारे वडाप्रधान श्री. मोदीजी की अप्रतिम श्रद्धा-भक्ति को भी याद करता हूं। राम लल्ला की मूर्ति प्रतिष्ठान की अवधी पर उन्होंने भी व्रत रखे हैं। सुना है, वो सात दिन धरती पर लगाए एक बिछाने पर ही सोएगें। ये हमारे भारत का महान सांप्रत हैं।

रामरक्षास्तोत्र का एक ओर श्लोक से श्रीराम की वंदना करता हूं।
श्रीरामचन्द्रचरणौं मनसा स्मरारामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौं वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौं शिरसा नमामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौं शरणं प्रपद्ये ।।
मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्र जी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं। वाणी द्वारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान रामचन्द्र के चरणों को प्रणाम करता हुआ,मैं उनके चरणों की शरण लेता हूं।

आज २२ जनवरी २०२४ का दिन बडा पवित्र हैं। भारतवर्ष की सनातन परंपरा का विजयोत्सव हैं। और उस पवित्र दिन पर "आनंदविश्व सहेलगाह" का एक छोटा-सा निमित्त यानि मैं ब्लोग लिखकर रामजी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करता हूं।
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Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
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Tuesday, January 16, 2024

What a love..! ❤️
January 16, 20240 Comments

Love is an endless mystery..!

for it has nothing else to explain it....Rabindranath Tagore.

प्रेम एक अनंत रहस्य हैं, उसे समझाने के लिए और कुछ नहीं !!


एक सदी के महानायक रवीन्द्रनाथ टैगोर। कला- साहित्य-शिक्षा के क्रांति पुरुष रवीन्द्रनाथ हैं। "शांतिनिकेतन उनकी प्रयोग भूमि हैं। जहाँ शिक्षा के बारें में कई प्रयोग हुए और उस समय के भारत को प्रबुद्ध बनाने का स्तुत्य प्रयास भी हुआ। ऐसी महान शख्सीयत को मन हो या न हो आदर देना ही पड़ेगा। अंग्रेज गवर्नमेंट को भी उन्हें 'सर' के खिताब से नवाजना पड़ा था। भारत के लिए प्रथम नोॅबल पारितोषिक के दमदार हकदार! पहेले गैर युरोपीय व्यक्ति !  "गीतांजलि" के काव्यों की चमक-दमक ही ऐसी थी। रहस्य और समर्पण की भाषा से  प्रकृति का आराधन हैं गीतांजलि..!
थोडी-सी पंक्तियाँ...

( विपोदे मोरे रक्षा क'रो, ए न'हे मोर प्रार्थना...बंगाली भाषा)
मेरी रक्षा करो विपत्ति में, यह मेरी प्रार्थना नहीं हैं;
मुझे नहीं हो भय विपत्ति में, मेरी चाह यही हैं।
दुःख-ताप में व्यथित चित्त को
यदि आश्वासन दे न सको तो,
विजय प्रयास कर सकूँ दु:ख में मेरी चाह यही हैं।
मुझे सहारा मिले न कोई तो मेरा बल टूट न जाए,
यदि दुनिया में क्षति ही क्षति हो,
(और) वंचना आए आगे,
मन मेरा रह पाये अक्षय, मेरी चाह यही हैं।


ये कहने की ताकत कोई सामान्य व्यक्ति में नहीं होती। ईश्वर के साथ प्रकृति के साथ का एकत्व संबंध इन शब्दों को प्रेरित कर सके। कविता का कोई विवरण नहीं करता क्योंकी आपको सहज ही समज में आ जाएगा। एक बार नहीं दो बार पढ़िए...भीतर ताजगी से भर जाएगा।

रविन्द्रनाथ मात्र कवि नहीं थे। एक शुद्ध ह्रदय के धनी थे। प्रकृति की संवेदना को समझने वाले अनुभावक थे। ईश्वर की प्रेम दुनिया में डूबकी लगाए अपना जीवन प्रफुल्लितता से जीने वाले "जीवनराम" थे। ओर इसी कारण रवीन्द्रनाथ जी जो कहते हैं, वो दमवाला लगता हैं। उनकी बातें हमें सैद्धांतिक लगती हैं। ईश्वर और प्रकृति की लीलामय कल्पना जब एक मुकाम पर पहुंच जाए...तब जो कुछ बातें कहीं जायेगी वो सिद्धांत या सिद्धांत से करीबी हो सकती हैं।

प्रेम एक अनंत रहस्य हैं, उसके बारें में कुछ कहने के लिए सचमुच कोई समर्थ नहीं हैं। प्रेम अनुभूति हैं, प्रेम अद्वैत हैं। प्रेम जीवन के अमूलख श्वास की तरह है। प्रेम आनन्द है, प्रेम करीबी की मर्यादा हैं। प्रेम आसमान को छू लेने वाला उत्तुंग शिखर हैं। दोस्तों, ये सब प्रेम शब्दावलियां कैसी लगी !? मुझे पता हैं...बहुत ही सुंदर..! हमारे भीतर में छीपे हुए प्रेम को स्पर्श करने वाली लाजवाब बातें...! मगर ये रहस्य प्रेम करने वालों का अपना होता हैं। उसमें कोई बनावट नहीं होती। थोडे से शब्द ठीक हैं, लेकिन प्रेम सबका अपना होता हैं। उसकी अनुभूति अपनी, उसकी भाषा भी अपनी खुद की होती हैं। मैं भला प्रेम कैसे लिख सकता हूँ।

प्रेम के रहस्य को अपने भीतर पालते हुए..!
जीवन की खुबसूरती अपने-अपने रंग से ढंग से,
अनुभूत करें।
शुभकामनाएँ for प्राकृतिक संबंध के गहराई की Understanding.

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Thursday, January 11, 2024

LITTLE STEP 🚶‍♀️🚶‍♂️
January 11, 2024 4 Comments

 ONE DAY...we will find the right direction.

जिंदगी की डगर पे बस चलते रहना हैं !
न रुकना हैं न थमना हैं !


आनंदविश्व सहेलगाह आज अपनी वैचारिक सफर के १०० ब्लोग पूर्ण कर रही हैं। कुछ सोचें बीना एक काम शुरु हो गया। थोड़े शब्द थोड़े विचार से एक गति कायम हुई। दोस्तों की होनहार नजरें उस पर पडने लगी। विचार अच्छा लगा तो दूसरों से बांटा भी गया। इसके जरिए ही लाखों नजरें मेरे ब्लोग पर पडी। जाने-अनजाने सभी का दिल से धन्यवाद !!


वंदनीय अटलबिहारी बाजपेई जी की ये मशहूर कविता आज के दिन पेश करता हूं। सबमें दम हैं.. दम सबमें हैं।  इश्वर की दम बांटने की करामात में कभी गलती नहीं होती। शायद हम सोच को अपनी बना बैठे हैं। सोच में सब और सबका कल्याण ही होता हैं। उस दमदार के कदमों की आहट सुनाई पडती हैं...तब जाकर दुनिया उस कदमों का हिसाब रखती हैं।
चलों पढ़ें...दमदार अटलजी को,
बाधाएं आती है, आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ
निज हाथों में हँसते-हँसते..!
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।

इतनी दमदार बात सुनकर-पढकर अब मुझे पढनें की आवश्यकता होगी क्या ? मुझे पता है नहीं होगी मगर में अपने कदम चल रहा हूँ...ठीक लगे तो पढें। हजारों सालों से सत्वशीलता कोई एकल निमित्त के जरिए अपना बहाव कायम करती हैं। River finds a way...जैसे नदी अपना रास्ता खूद ही बना लेती हैं। रोक सकें तो रोक लो। जब ईश्वर की मर्ज़ी होगी तब नदी रुकेगी या सूखेगी !! बाकी नदी के बहाव का कभी मजाक नहीं हुआ। उसके बनाएं मैदानों में कई सभ्यताएं पली हैं, बढीं हैं। उनके बहाव से ही  धरती भी पली हैं। समग्र जीवसृष्टी का अंदरूनी चालक बल नदी मैया ही हैं। क्योंकि माता चलती रही हैं। रुकना उनका काम नहीं।

"आनंदविश्व सहेलगाह" का ThoughtBird थोड़ी-सी संवेदना बाँटता चला जा रहा हैं। कुछ अच्छाईयों को महसूस करके उसका वैचारिक बंटवारा करता जा रहा हैं। एक बात स्वीकार करता हूं..."मुझे सोचने-लिखने में बड़ा आनंद मिलता हैं !" बस कुछ छोटी-सी उम्मीदें पाल रखी हैं, रुकना नहीं हैं। कुछ करते ही रहना हैं। मान न मिले सम्मान न मिले,न मिले ईनाम अकराम..लेकिन मेरा आनंद बरकरार रहें। इसी उम्मीद में चलते जाना हैं। कोई हाथ पकडकर चलना चाहें..! कोई साथ एक दिशा में चलें ! कोई साथ कोई ऐसी डगर पे ले जाए...जहां पर सबका जहाँ हो। वहां सुकुन की अद्भुत दुनिया हो !

जहां एक बात सबको सही लगे ! कौन-सी बात पता हैं...प्रेम और अनुराग की...समता और स्वीकार की !
चलते रहेंग़े तो एक दिन दिशा भी दमदार होगी।

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Thursday, January 4, 2024

THE YEAR.
January 04, 20240 Comments

 New year...run towards new dreams and new Destination.

नयेपन का माहोल और उत्साह को प्रेरित करता सर्दी का मौसम!

"आनंदविश्व सहेलगाह" की पाठक शक्ति को वंदन एवं शुभ कामनाएँ। दो हजार चौबीस के प्रथम ब्लोग से आपके साथ विचारसाक्ष्य से उपस्थित हूं। फिर याद दिलाते हुए की मैं एक छोटा-सा निमित्त कर्म बजा रहा हूं।

The year

परोक्ष उपस्थिति भी संवेदन को बढावा दे सकती हैं। जब आप रवैए से संवेगात्मक हैं। वैसे तो सभी जीव संवेग से झुडे हैं। हम और आप भी..! ईश्वर ने सबको अपना-अपना सांवेगिक मनोजगत दिया हैं। खान-पान-रहन-सहन के साथ सबका अपना एक मनोजगत होता हैं। उनके आनंद क्षेत्र भी अलग-अलग होते हैं। इसलिए हरेक के आनंदमन में अपने-अपने सपनें आकारीत होते हैं। संवेदना की तर्ज पर सब का बसेरा हैं। संसार में सबका गंतव्य स्थान भी अलग हैं। उस स्थान तक पहुंचने की सबकी उडान भी अपनी खुद की होती हैं।

युगों से ब्रह्मांड का अस्तित्व कुछ सिद्धांत पर ही टीका हुआ हैं। ईश्वर की अदृश्य नियंत्रितता के बंधन में सब हैं। सभी जीवों का नया साल हैं। समय का बदलाव सबके लिए होता हैं। तरुवर से लेकर नदी-पर्वत तक और पंछी से लेकर प्राणी। किटकों की अद्भुत दुनिया में भी ऋतु का परिवर्तन दिखाई पड़ेगा। एक नन्हीं चींटी भी सर्दी के मौसम में अपने कल का खुराक संग्रह करने में लग जाती हैं। सर्दी के बाद आने वाली धूप का अंदाज लगाकर कहीं पंछी अपने घोंसले भी बनाते हैं। ये सर्दी की मौसम भी बडी लाजवाब हैं। सर्दी में थकान कम उत्साह ज्यादा महसूस होता हैं। नये बरस के प्रारंभ में हमें अपने जीवन को उत्साह-उमंग से भर देना हैं। इनके बारें में जो ज्ञान मिलेगा सब व्यर्थ हैं। क्योंकी दिशा अपनी पसंद की... रास्ते अपनी पसंद के, कोई साथ हैं तो ठीक...मगर चलना तो अपने खुद के दम पर ही हैं।

ईश्वर के जगत में सभी लोग सपने पालते हैं। उस दिशा में सबके प्रयास भी होते हैं। प्रयास सक्षम और दमदार भी, लेकिन कहीं कुछ छोटी-सी बात डेस्टीनेशन तक पहुंचने की गति को कम करती हैं। एक बात हमेशा याद रखना वार और प्रयास कभी खाली नहीं जाते !! जब आपको लगता हैं थोडा समय ज्यादा बह रहा हैं तो चिंता मत करना..."अनसुलझे कोयडों के सुलझने का कर्म आपसे होगा।  प्रकृति का ये भी सिद्धांत हैं, प्रयास कभी विफल नहीं होते और प्रयास जब बढ जाए तो अचंभित आकारित होना तय हैं। इतिहास के पन्नों में से प्रयास की विफलता ढूँढ निकालिए ! आप मुझसे सहमत मत होना। मेरे साथ की सहमती का कोई मूल्य नहीं हैं। हां ये सही है कि...शायद इससे मुझे वैयक्तिक प्रशंसा मिल सकती हैं। मगर मेरी आनंद सहेलगाह कुछ मिनिटों के लिए ही खुशी अनुभूत करेगी। आपकी खुद की सहमती आपसे हो, इस बात में दम हैं। मैं एसा कुछ निमित्त बनना चहता हूं। ये मेरी छोटी-सी दुनिया हैं। है कुछ काम की बात ? नहीं भी तो भी आनंद...!

हरेक पर्ल, हरेक दिन, हरेक महिना, हरेक साल कुछ नई उम्मीदों से हमें भर देते हैं। हम कुछ भूल जाते हैं, कुछ नहीं भूल पाते। कभी-कभार याद याद ही बनी रहती हैं। कभी यादों से कुछ रंगीन सपनें...! कभी कडवाहट के घूंट भी उडान की मशीन में ईंधन का काम करते हैं। जीना इसी का नाम हैं..!
तो चलों, चलें..!
एक नई दिशा की ओर,
चलों शुरु करें...!
नई मंज़िल तक पहुचने की आनंद सहेलगाह !!

आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

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