September 2023 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Tuesday, September 19, 2023

Gratitude gives us inner glad 😊
September 19, 20231 Comments

 कृतज्ञता सुंदर शब्द हैं..!

इससे ज्यादा उस शब्द का आचरण सबसे बडी प्रसन्नता देने वाला हैं।

वहाँ क्या है के बजाए वहाँ क्या नहीं हैं ? का ज्ञान जीवन को कृतज्ञता के मार्ग पर चलाएगा। शब्द की अपनी ताकत होती हैं, साथ शब्द की खुबसूरती भी..! मेरे वैयक्तिक ज्ञान में जब ये "कृतज्ञता" शब्द आया तब से उनसे प्रेम हो गया। मुझे ज्ञात हैं परम पूज्य पांडुरंग शास्त्रीजी के द्वारा ईस शब्द के संपर्क में आना हुआ। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की बात को बडे लाजवाब तरीके से पू.दादा समझाते थे। रक्त संबंध से मनुष्य को जोडने की बात हो या खाना कैसे पचता हैं? कौन उसका रक्त बनाता है की सहज बातें करते-करते हमें कृतज्ञता सिखाते गए। मुझे याद हैं एक छोटे-से दिमाग में ये बात सहज ही  बैठती गई...विश्व के लोंग के झहन में भी ये बात स्थापित हो गई हैं।

Gratitude

आज दुनिया बडी हो गई हैं। वस्ती बढ़कर खचाखच हो रही हैं। जमीं बढीं नहीं, जीव बढें हैं। व्यक्ति-व्यक्ति बीच के संबंध के बारें में साथ ही राष्ट्र-राष्ट्र के संबंध के बारें में कई प्रश्ननार्थ खडे हो रहे हैं। अच्छे वर्ताव के प्रति भी अच्छे बर्ताव की अपेक्षा करना संभव नहीं। इस अचंभित दौर में कृतज्ञता को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं। फिर भी स्वीकार तो करना ही होगा..रिश्ते-संबंध की कामयाबी का एक मात्र मार्ग कृतज्ञता ही हैं।

कृतज्ञता क्या हैं ? कृतज्ञता एक मानवीय वर्तन हैं। एक संवेदनशील वर्तन हैं। किसी के उपकार को न भूलने की और उनके उपकार का अच्छा बदला क्या हो सकता है ये सोचकर जो बर्ताव किया जाए वो कृतज्ञता हैं। वैसे तो ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करने की चेष्टा हमें इन्सान के प्रति भी एक शानदार बर्ताव सिखा सकती हैं। ईश्वर की हरेक हरक़त से हम कृतज्ञ हैं। प्राकृतिक रूप से जो कुछ ईश्वर ने दिया है हम उसके प्रति हरदम कृतज्ञ ही हैं। सूरज मेरे लिए उगता हैं, हवाएं मेरे लिए सरसराहट करती हैं। नदी-पर्वतों का सौंदर्य मेरे लिए हैं...इन सब बातों से मेरा एकांतिक नाता बंध जाता हैं तो वर्तन भी अनन्य होगा। आनंद भी अनन्य !!

जीवन में प्रसन्नता चाहिए ? भीतरी खुशी का अहसास करते करते गणमान्य- गणप्रिय बनें रहना है तो कृतज्ञता से नाता झोडना चाहिए। ये अखंड-अविरत-अविश्रान्त आनन्द की घटना का बीज मंत्र हैं !!

समाज की सहस्र आँखे हैं, वो सब देखती हैं। जहाँ ये परस्पर का तादात्म्य प्रकट होता है, जब व्यक्ति ब्यक्ति के बीच संबंधो की गहराई स्थापित होती हैं। जब ऐसा कुछ दृश्यमान होता हैं वहाँ अनायास ही शांति व प्रेम की जीवंतता पुलकित हो उठती हैं। विश्व के लिए सारी सृष्टि के जीव-जगत के लिए "आनंद-जीवन" की अद्भुत क्षणों का उद्भवित होना संभव होता हैं।

"आनंदविश्व सहेलगाह" एक विचार प्रस्तुति से अधिक कुछ नहीं हैं। छोटा-सा किरदार हूँ छोटी-सी बात रखता हूँ। ओर ये मेरा भी नहीं हैं। हजारों सालों से भारतवर्ष में जो घटित होता रहा हैं। हमारी सनातन संस्कृति का ये पुरातन संस्कार हैं। इसमें मेरा कुछ नहीं...जो सत्व हैं वो सनातन सत्य हैं। मैं तो एक वाहक के रूप में कृतज्ञता की बात मेरी समज के आधार पर रखता हूँ। ये मेरा आनंद हैं, ये मेरी गति हैं, ये मेरा जन्मदत्त कर्म हैं। ये मेरी समाजबंधुओं के प्रति सत्वशील  विचारबिदुं रखने की कृतज्ञता..!

अनादिकाल से सभी जीव अपनी भूमिका अदा करते आ रहे हैं। कोई सहज, कोई प्रयत्नपूर्वक कोई कर्मनिष्ठा से अपने दायित्व का निर्वहन कर रहा हैं। मैं उसे आनंदविश्व की सहेलगाह कहता हूं।

आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar,Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Reading Time:

Wednesday, September 13, 2023

Moments  also create the great story.
September 13, 20230 Comments

 दो लम्हों का मिलना....एक दास्तान का जन्म हैं !!

क्षणों का चलते रहना मतलब मनुष्य जिंदा हैं !!
अभी एक जिंदगी के श्वास ख़ुशनुमा हैं...!
वाह! धडकनों के स्वर बज रहे हैं...!

ईश्वर की दुनिया में बडा अजीब होता ही रहता हैं। उनकी विविधता से परे हमारे पास केवल आनंद ही बचता हैं। खुशी के क्षणों का बहाव ही जिंदगी हैं। ईश्वर की मर्जी का स्वीकार करते हुए...कुछ लम्हों को अपने खुद के लिए सजाकर जीना ही दमदार जिंदगी हैं। बाकी इनके अलावा जो कुछ मिलता हैं, शायद वो हमारा प्रयत्न पूर्वक का थोड़ा-बहुत जीवन-यापन हैं। दुनिया के दस्तूर में बंधी, खोखले बंधन और बुद्धि के विजय के हर्षनाद में सिमटी हुई जिंदगी...ये क्या हैं ? कैसा जीवन हैं ? हमें स्वाभाविक रूप से इससे कोई आनंद नहीं होता। बस बहता है समय, बडी होती रहती है जिंदगी..!



मनुष्य जीवन के कई पहलू हैं। इनमें से ये खूबसूरत लम्हों को संजोए हुए जीना सबसे बेहतर हैं। लम्हों का दो होना मतलब दो व्यक्तिओं के परिपेक्ष में लिखता हूँ। अपने लम्हें अपने हैं, लेकिन कोई दुसरा अपने लम्हों को किसी के साथ जोड़ता हैं, जब अपेक्षाएं एक हो जाए तब एक दास्ताँ कायम होती हैं। एक ही बीज दो स्मृतिओं में अंकुरित होते हैं। साथ उन लम्हों के रंग भी एक से हो जाते हैं। येसी कोई धटना आकार धारण करती हैं। सपनों का एक होना, यादों की खुबसूरत क्षणों को सजाकर कोई मस्त जीवन की अद्भुत अनुभूतिओं में हरदम खोये रहता हैं। मानो अद्भुत दास्तान लिखी जा रही हो !!

रिश्ते-संबंध की इस करामाती में मुझे प्रकृति की हरकतें काफी कुछ सिखाती रही हैं। एक छोटा-सा पौधा धरती के कुछ लम्हों से अपना संबंध बनाए अपने अस्तित्व को सजाता हैं। धरती अपने सौंदर्य के लम्हों को सजाती हैं। कभी न दिखाई पडने वाली कहानी शुरू होती हैं। पौधा बढता हैं ,फैलता हैं। धरती और पौधों के लम्हें एक हो जाते हैं। हरेरंग की दास्तान यूहीं आकारित नहीं होती। पौधा धरती के जल से संवर्धित होता हैं। शायद कुदरत ने वनस्पति की रगों में पानी का रंग भरा हैं।  इसीलिए शायद उसका लहू बिना रंग का होता हैं...पानी ही !! एक ही रंग !!

ये खूबसूरत कहानी है धरती और पौधे की...दो लम्हों के एक हो जाने की...कुछ तो जिंदा भी हैं इसकी अनुभूति से !! मन बुद्धि से परें एक भाषा हैं। कभी न सुनाई देनेवाली भाषा। कुछ मांगे बिना सबकुछ समर्पित करने वाली हरकतें, अपने अस्तित्व को भूलकर दूसरें का अतूट आधार बन जाना...ये हैं लम्हें मिलन की दास्तान..!

कई कहानीओं के दस्तावेज न होने के बावजूद ये दास्ताएं दमदार होती हैं। सत्य जीवित हैं, वास्तव हमारे इर्द-गिर्द घूमता हैं। लम्हों का आकारित होना भी संभव शक्यता ही हैं। ईश्वर हमें लम्हें सजाने के अनगिनत अवसर दें...इसी शुभकामना के साथ।

आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234.
Reading Time:

Thursday, September 7, 2023

The KRISHNA is safeguard of the world.
September 07, 2023 3 Comments

 What is krishna ?

Care and Love.
Who is Krishna ?
Friend, philosopher and guide.


कृष्ण जन्मोत्सव की ढेर सारी बधाई...!
विश्व का एकमात्र चरित्र जो युगों से मानवमन के साथ अनुस्यूत हैं। सभी विपरितों का समाधान, गतिसत्वं का आधार कृष्ण हैं। आनंद और प्रेम की दुनिया का राजकुमार...अमर युवराज !!


सारें संसार में कृष्ण इतने व्याप्त हैं कि उनके बारें में कौन-सी बात नई होगी ? रिश्ते-नातें, प्रेम-संबंध, नीति-राजनीति, युद्ध-संधि, जीवन मृत्यु और नृत्य-संगीत कृष्ण सभी जगह उपस्थित हैं। विश्व की सभी कलाओं में कृष्ण हैं, फिलसूफी में कृष्ण हैं। आनंद और शोक में कृष्ण
हैं। जीवन के आनंद में कृष्ण हैं।

आज कृष्ण के बाल्यकाल की एक ही बात रखकर कृष्ण की विराटता
की थोडी-सी बात रखता हूं। "यमुना के किनारें गोकुल के छोटे ग्वाला
गेडी-दडें का खेल खेल रहे हैं। बाल अपने खेल में मग्न हैं। इतने में गेंद यानि दडा यमुना के जल में जा गिरा। नदी के गहरें जल में जाना मना था। और पानी की गहराई में एक बडा कालिनाग हैं, इसका डर भी था। फिर भी जिसके कारण गेंद नदी में गिरी हो उसका जाना भी तय था। अब क्या ? कृष्ण को यमुना के जल में से गेंद निकालनी होंगी। इसके बाद क्या हुआ ? नरसिंह का काव्य "जल कमल छोडी जा ने बाला" पढ लेना.. !!
कृष्ण कुमार हैं, समस्या से ज्ञात हैं। लेकिन दायित्व का अनुसरण और
विपदा से भिडने का सामर्थ्य कृष्ण में हैं। मैने कहीं पढा था, कृष्ण ने जानबूझ कर गेंद यमुना में फेंकी थी। शायद ये बात सच थी तो..कृष्ण का बाल्यावस्था को निडरता देने का ये प्रयास था। खुद समर्थ तब है, जब वो दूसरों के डर को भगाएं। वैयक्तिक शक्ति तो पहलवान में भी होती हैं। कृष्ण अद्भुत इसी कारण हैं। दूसरों की फिकर भी इसमें हैं। कृष्ण स्वयं पराक्रमित थे, उनको ये पता था। लेकिन दूसरें ग्वालों को अपने-अपने पराक्रम का ज्ञान नहीं था, डर उसका था। उस डर को भगाना था। कृष्ण स्वयं स्थापित होते हैं, दूसरों को स्थापित करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। इसीलिए कृष्ण का अमरत्व अक्षुण्ण हैं। आज भी भारतवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव मना रहा हैं। विश्व भी...हरे राम हरे कृष्णा..!

इसी यमुना के किनारे सामर्थ्यवान कृष्ण नृत्य भी करते हैं। पूरा गोकुल
उनकी बंसी का दिवाना था। गोप के साथ गोपिका भी उनके"रास" की
दिवानी थी। पराक्रम भी प्रेममय बन जाता था कृष्ण के नृत्य संगीत में...राधा के साथ का एकत्व प्रकट हो जाता था...प्रेममय कृष्ण के द्वारा !! दूसरों की चिंता करने वाला नखशिख, बाह्यरूप और भीतरी प्रेममय ही होता हैं। सारें संसार में कृष्ण ही एकमात्र चमत्कार हैं कि, जिसके पास "पराक्रम और प्रेम" की अद्भुत एकरुपता हैं। और अपने लिए नहीं सबके लिए... सबको समर्थ बनाना, सभी को प्रेममय जीना  सिखाना हैं...यही कृष्ण की सहज भावनात्मकता हैं।

राधा-कृष्ण के प्रेममय एकत्व का संदेश हैं...समर्पण !! समर्पण में अपना कुछ बचता ही नहीं। मेरा गीत, मेरा संगीत, मेरा नृत्य, मेरा आनंद औेर पराक्रम अन्य के लिए हैं। इसी कारण कृष्ण अनन्य बन जाते हैं। समस्त का सामंजस्य स्थापित करने की जीवनचर्या का नाम  "राधाकृष्ण" हैं। मनुष्य जीवन का उर्ध्वगामी गतिस्त्वं राधाकृष्ण के प्रेम सम्बंध को महसूस करने में ही हैं।

बस करता हूं...मेरे भीतर का "ममैवंशों जीवलोके" कहने वाला कृष्ण जागृत न हो जाए...!!

आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234

Reading Time:

Friday, September 1, 2023

The TRUTH is natural.
September 01, 2023 2 Comments

 Some time hurt with the truth,

but never Comfort with lies.


कुछ समय के लिए सच से दुख होता हैं, लेकिन झूठ से कभी आराम नहीं मिलता।

कभी-कभी ऐसे कुछ वाक्य पढने में आते हैं फिर पूरा दिन सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं। प्रयत्न पूर्वक कुछ नहीं होता ये सहज होता हैं। हम इस विचारों को प्रकृतिगत सत्य कहते हैं। The truth is natural. सत्य सहज हैं, सत्य स्वाभाविक हैं। ईश्वर के प्रति प्रेम और प्रकृतिवाद हमें स्वाभाविक मत के लिए सक्षम बनाते हैं। इन बातों का स्वीकार हो या न हो, लेकिन सत्य स्थापित हैं। Leonardo Vinci- का एक मशहूर क्वाॅट हैं " Nature is the source of all true knowledge." कुदरत का स्रोत सत्य के ज्ञान के लिए ही हैं।

The truth

हमारी भीतरी आवाज को हम ही सुन सकते हैं। यह आवाज सत्यम- शिवम-सुंदरम हैं। सत्य की आवाज सब के भीतर हैं, सबको सही तरीक़े से ये सुनाई पडती हैं। उसमें थोड़ी-सी भी मिलावट नहीं होती, क्योंकि ये सत्यापन हैं। सत्य कटु होता हैं। सत्य को साबित करना कठिन हैं। सत्य की जीत होती हैं लेकिन समयावधि बड़ी लंबी होती हैं। सत्य की स्थापना से न्याय की गरिमा बढ जाती हैं। सत्य से धर्म संस्थापना का आधार अतूट बनता हैं। ऐसी कईं बातों से हम-सब अवगत हैं। सत्य स्वार्थ से परे हैं। जहां स्वार्थ का आचरण आएगा, मात्र स्वार्थ का विचार भी आएगा वहां सत्य की अनुपस्थिति की शक्यता बढ़ जाएगी।

महात्मा गांधी का सत्य हमारे सामने हैं। उस महात्मा ने अपना जीवन प्रयोगात्मक ढंग से जीया हैं। खाने-पीने से लेकर रहन-सहन वर्तन सब पर नियंत्रित काबू का प्रयास हैं। निजी व्यवहार से परे उन्होंने राष्ट्र का विचार किया है। जीवन का विचार किया हैं। "स्व" की उन्नति का विचार क्या हैं। बापू येसे ही नहीं बनें वो..! पूरे विश्व में सत्य की बात आती हैं तो उनको सविनय याद करना पडता हैं। सत्य स्थापन के बापू के प्रयास से उनके वैयक्तिक जीवन की साधना भीतर सुन्दरता के प्रति बढ गई। आज बापू का मार्ग प्रशस्त हैं। उनका जीवन एक संदेश बन गया। दुनिया को उन्होंने "सत्य और अहिंसा" के मंत्र दिए। झूठ की बात रखने से प्रयास पूर्वक दूर रहता हूं...विषय प्रस्तुति को गलत न समझना। 

सत्य अनादिकाल से ही हैं। सृष्टिकाल का एक अनमोल सत्व सत्य ही हैं। प्रकृति तो वैसे भी सत्वशील हैं। धीरे धीरे समझ में आता हैं, जो सत्य हैं वही सत्वशील हैं। इससे आगे मुझे ये भी समझ में आता है कि प्रेम हैं वहां सत्य होगा। प्रेम है तो स्वार्थ गायब ही होगा। जहां स्वार्थ नहीं वहां सत्य तो होगा ही...! हैं ना बडी अजीब बातें...ये अजीब ही जीवन का आनंद हैं।

मनुष्य जन्म वैचारिक-बौद्धिक कर्मकता का संचरण हैं। कई लोग अपने हिसाब से जीवन की सार्थकता क्या हैं ? इसके बारे में ज्ञान बांटते हैं। शब्द-विचार को वर्तन में परिवर्तित करना थोडा कठिन हैं। तो हम करें क्या ? मार्ग एक ही बचता हैं भीतर को सुनने का..! Inner voice is melodious. सत्य की रणक और प्रेम की खनक को ध्यान से सूनने का प्रयास करें। अपने मार्ग अपने-आप प्रशस्त बनेंगे। लोग उसे नया मार्ग कहेंगे, लेकिन सत्य और प्रेम की परीभाषा चिरकालिन हैं। इसे कभी समय के बंधनो में नहीं बांधा जा सकता...!
इति सिद्धम् ।

आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Reading Time:

Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

@Mox Infotech


Copyright © | Dr.Brieshkumar Chandrarav
Disclaimer | Privacy Policy | Terms and conditions | About us | Contact us