March 2023 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, March 29, 2023

The RAMA for world
March 29, 2023 3 Comments

 ।। रामो राजमणि: सदा विजयते  ।।

Commitment and Responsibly is equal to RAMA.
RAMA is Ragulation and RAMA is consciousness.


सभी को रामजन्म दिन की शुभकामनाएँ। जहाँ राम हैं वहाँ विजय हैं। राम हैं वहाँ चैन हैं, सूकून हैं। और जहाँ राम है वहीं मर्यादा हैं। राम हैं वहाँ सुराज्य और सौभाग्य हैं। भारत वर्ष की आत्मा राम हैं। इसीलिए घट-घट में राम व्याप्त हैं। भारतवर्ष की धडकन में राम धडक रहे हैं। युगों से राम हृदयस्थ हैं। सनातन धर्म की दृश्य पहचान राम हैं।

मनुष्य के रूप में अपना अस्तित्व क्या है ?
अपना दायित्व क्या हैं ?
इन दो प्रश्नों के जीवनानुभूत उत्तर राम हैं। जीवन मूल्यता की मर्यादा राम हैं। इसलिए ही शायद हम उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहते हैं। सनातन संस्कृति में श्रीराम यानि उत्तरदायित्व की प्रमाणभूतता के शिखर हैं। राजा का धर्म अपने पारिवारिक संबंध बनाए रखकर कैसे निभाया जाय उसका  एकमात्र उदाहरणीय चरित्र राम ही हैं। सारी सृष्टि में ऐसा चरित्र कहीं नहीं हैं। भारतवर्ष की सिमास्तंभीय परंपरा में श्रीराम शिरमोर हैं।

श्रीराम ही नियमन और सजगता हैं। मनुष्य के रूप में हम भी अपने कर्म के प्रति कर्तव्यबद्ध हैं तो Regulations and consciousness सहज ही हमारे भीतर भी प्रकट हो सकते हैं। श्रीराम समर्थ ही इसलिए है कि वो सम्यक दृष्टि के उच्चतम शिखर थे। नियमन और सजगता से मर्यादा जन्म लेती हैं। और मर्यादा ही सम्यक जीवन का आधार हैं। रामजी का जीवन हमारे भीतर सख्य को संवर्धित करता हैं। विश्व सख्यता से ही शांतिपूर्ण रहेगा। मनुष्यत्व की कीमत शांति से ही संभृत हैं। peacefulness is the one of the fundamental right. 

रामजी के जीवन में आए सभी चरित्रों के साथ उनकी सम्यक प्रेम दृष्टि रही हैं। मनुष्य के रूप में हमें भी सबका प्रेम, सबका आदर चाहिए। इसके लिए सख्य बांटने की भी आवश्यकता होगी। रामजी का पूरा जीवन मनुष्यत्व प्रकट करने का जीवन ग्रंथ हैं। इसे धर्मग्रंथ कहने से भी में पीछे नहीं हटता। क्योंकि धारण किया हुआ धर्म ही मानवीय वर्तनी हैं। हृदय की आवाज ही धर्म की भाषा हैं। इसे वैयक्तिक रुप से धर्म को धारण करने वाला ही सून सकता है। रामजी उस हृदय की भाषा के दृश्यमान दस्तावेज हैं। हमें रामजी के जीवन से यहीं आवाज सुनाई पडती हैं।

रामजी भौगोलिक सीमाओं से परे, वैचारिक धर्म बंधनों से परे का जीवन का समत्व संगीत हैं, इसे में रामत्व संगीत कहता हूँ। रामत्व ही समत्व है। ईसीलिए इस संगीत पर मनुष्य मात्र का अधिकार हैं। मर्यादा का पालन करते-करते आनंद विश्व की सहेलगाह को रामं शरणं गच्छामि के साथ दमदार बनाए यही उम्मीद के साथ...!
श्री रामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि।

Your Thought Bird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav 
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Friday, March 24, 2023

The Goddess
March 24, 20231 Comments

 The women has Covered internal strength.

शक्ति पर्व की बधाई के साथ विभूता वैभव की बात... !!

भारतवर्ष अनादिकाल से ही शक्ति पूजक रहा हैं। युगों से दैवीय गुणसंपदा का आराधक रहा हैं। स्त्री को सम्मानित दृष्टिकोण से स्वीकारना भारत वर्ष के मूल संस्कारों में से एक हैं। एक की समर्पिता से दूसरें का संरक्षणी भाव सहज ही प्रकट होता हैं। स्त्री का मूल स्वभाव ही समर्पिता हैं। इसलिए सहज ही पुरुष में संरक्षण भाव प्रकट होने की शक्यता बढ़ जाएगी। ये स्वाभाविक मत हैं। इसे प्रकृतिगत सिद्धांत भी कहे तो भी गलत न होगा।


भारतवर्ष का सबसे बडा पर्व नवरात्र हैं। नौ दिन तक चलने वाला विश्व का ये सबसे लंबा पर्व हैं। ये उपासना पर्व भी हैं। स्त्री का सन्मान पर्व हैं। ओर गुणपूजा का भी पर्व हैं। साथ-साथ जीवसृजना मातृत्व के प्रति अहोभाव प्रकट करने का उत्सव हैं। ईश्वरीय सृजन परंपरा के दृश्य अस्तित्व के रूप में स्त्रीशक्ति आधार की स्वीकारोक्ति का उत्सव हैं। भारतवर्ष येसी महान परंपरा का वाहक हैं,उसका गौरव महसूस करने का भी ये उत्सव हैं।

आज विश्व में women equality, women empowerment जैसी बातें बडी जोरों से हो रही हैं। समानता और सशक्तिकरण के नाम पर स्त्री की आंतरिक सक्षमता को हम नकार रहें हैं। स्त्री स्त्री हैं। वो अपने आप एक शक्ति हैं। उसको मुकाबले में घसीटने से क्या लाभ ? पुरुष की सक्षमता से जोडकर हम क्या साबित करना चाहते हैं ? मात्र आर्थिक भौतिक क्षमता पर ही स्त्री की सक्षमता होगी क्या ? येसा बिलकुल नहीं हो सकता। ईश्वर की निर्मिति के बारें में विचार करें तो सभी की एहमियत अपनी अपनी जगह योग्यतम लगेगी। बौद्धिक रूप से हमने कई ख़यालात को अकारण ही विकसित किये हैं। और उसके कारण समस्याएँ भी सहज खडी हो जाती हैं। ईस हल्लाबोल में सुकुन की सांसे गुम हो जाती हैं। अद्भुत जीवन कहीं खो जाता हैं। फिर उत्सव की तो बात ही कहां ?

                  माँ जगत जननी के आराधन से ये पूज्यभाव सहज प्रकट होगा। Goddess is goodness.आनंदविश्व सहेलगाह के साथ हम महसूस करते चलें...! दैवीय दैदीप्य के आकार में सजी हुई हरेक स्त्री के सन्मान की अद्भुत प्राकृतिक अनुभूति में आनंद सहेलगाह करें। कुदरत की अनराधार खुशी इसमें होगी क्या ? मुझे तो पता नहीं...मैनें तो बस छेड दी बात...शायद आप बहतर जानते होगें।

Wishing 🤞 Goddess blessings. 🙌
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Dr.Brijeshkumar Chandrarav 
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Wednesday, March 22, 2023

The Time is  Power ⏲️
March 22, 20231 Comments

मैं समय हूँ...मैं ही जीवन की गति हूँ। मैं ही कल आज ओर कल हूँ।

Time has a never ending...Time is always going and growing...!!


आज मैं भी समय की बात छेडता हूँ। हिन्दु नववर्ष का ये पवित्रतम दिन हैं। आज चैत्र सुद एकम हैं। काल के घटनाक्रम से पूर्ण रुप से हम आज भी अवगत नहीं हैं। ये सृष्टि के नियंता की सक्षमता हैं। अदृश्य होकर भी सारे ब्रह्मांड को नियंत्रित-संवर्धित व अचंभित करते रहना ही महान ईश्वर की अकालान्तक कर्मकता या वर्तनी हैं।

" मैं समय हूँ। मेरा जन्म सृष्टि के निर्माण के साथ हुआ था। मैं पिछले युगों में था, इस युग में हूँ और आनेवाले सभी युगों में भी रहूंगा। अनंतकाल से पृथ्वी पर राज करने की लडाई जारी हैं। लाखों वर्ष पहले संसार में भीमशरत यानि डायनोसोर जैसे अद्भुत जीवों का राज था। पर काल चक्र के साथ वो न चल पाए और उनका अन्त हुआ। फिर धीरे धीरे ईश्वर के पुत्र मानव ने धरती को अपने वश में किया। और शुरु हुई मुकाबले की एक येसी आंधी जिसने कई सभ्यताओं का उदय और अंत देखा। रोम की शान, तो कहीं युनान की विशाल शक्ति, कभी मुगल सल्तनत बुलंदियों तक पहुंची तो कभी ब्रिटीश साम्राज्य ने अपने ही सूरज को अपने सामने डूबते देखा।" ये समय की करवटें हैं। महाभारत के कालचक्र वाले शब्दों की बात याद आई ना ??

समय इन सारी घटनाओं का साक्षी रहा। समय पक्षपात नहीं करता। इन सभी सभ्यताओं- राजवंशों और साम्राज्यों ने जीतना तो सीखा। लेकिन उस जीत को कायम रखने के लिए वो समय के साथ बदले नहीं। जो समय के साथ बदलते नहीं समय उन्हें ही बदल देता हैं। करवट बदलते समय के साथ खुद को बदलने की हिम्मत हमें ही करनी होंगी। इसके लिए हम तैयार हैं तो...?? आज की जीत और कल की कामयाबी हमारी होंगी। परिवर्तन की इस रणनीति के साथ जुडने की शुभकामनाएं।

कई इतिहासिक हकीकतों का दौर इस नववर्ष की घटनाओं के साथ झुडा हैं। सभी के बारें में लिखना संभव हैं लेकिन आर्टिकल की मर्यादा समझकर थोडी विचारबात रखता हूँ। आज युगाब्द की कालगणना का दिन हैं। युधिष्ठिरजी के राज्याभिषेक का भारतवर्ष का सबसे गौरवशाली दिन हैं। युग परिवर्तन के इस दिवस को 5125 बरस हुए। सनातन हिन्दु सभ्यता के उत्तमोत्तम दिन की आनंदविश्व सहेलगाह की ओर से ढ़ेर सारी बधाई।

आपका ThoughtBird Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Friday, March 17, 2023

The King of ourselves.
March 17, 20230 Comments

 Can not Comparable power of

 THE LION.🦁

।। स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।




             प्रकृति सत्वशीलता से भरी हैं। प्रकृति पौरुष से भरी हैं। क्योंकि ये सभी अपौरुषेय ईश्वर की दृश्यमान हरकतें हैं। मनुष्य से ज्यादा इश्वर ने पशु-प्राणीओं को बलशाली बनाया हैं। उदाहरणों में नहीं पडता क्योंकि मुझे ये लिखकर कोई पढें इसमें दिलचस्पी हैं ही नहीं। मगर अपनी खुद की सोच से कोई विचार को महसूस करें इस कर्म में दिलचस्पी हैं। आज बात भी पौरुष की हैं, शौर्य की हैं, पराक्रम की हैं और स्वयं को साधारण न समझने की भी हैं। "स्व" की सत्वशीलता को एक विचार के माध्यम से स्पर्श करने की बात भी हैं।

             महान ईश्वर ने सृष्टि को शक्यताओं से संतृप्त कर दिया हैं। यहाँ के हरेक जीव की अपनी पहचान हैं। अपना खुद का दम हैं। सभी जीव अपना अस्तित्व संजोए दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। किसी के साथ तुलना करना ये बात में दम ही नहीं और हमसब इसी बात पे अटक गए हैं। हमें कुदरत की तत्व-सत्व गुणात्मकता को धारण करना हैं। औचित्य से अडिग  को पाना संभव हैं। मृगेन्द्र औचित्य और उसका पौरुष संभव हैं। मनुष्य के रुप में इस सृष्टि में दमदार तरीके से स्थापित होने हमारी प्रयत्नशीलता को मैं "स्वयमेव मृगेन्द्रता" कहता हूँ।

आनंदविश्व सहेलगाह की विचार शृंखला के माध्यम से मैं औचित्य से आगे संभावनाओं की बात रखकर अपना कर्तृत्व निभा रहा हूं। ईस धरातल पर मैं आनंद के स्वयमेव विचार को सहजता से आपके सामने रखता हूँ। मेरा मृगेन्द्र का औचित्य शायद वैचारिक गति की संभावनाए बन गया हैं। हमें अपने औचित्य को भंग नहीं होने देना। उसकी गति को गीति का रूप धारण करने हेतु पराक्रमित "स्व" को जाग्रत करना हैं। स्वयं को पराक्रमित रूप में स्थापित करना ही मृगेन्द्रता हैं।

सहेलगाह अकेलेपन से कैसी होगी ?
और सत्यापन के साथ झुडाव से कैसी होगी !! हमें ही सोचना होगा।
हमारी आनंदविश्व सहेलगाह पराक्रम से भी अनुस्यूत होकर सक्षम बने...!

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Sunday, March 12, 2023

Me and my world 🌎
March 12, 20230 Comments

 We are for world and world for us.

Because this  thought is same for whole universe.
focus on this inner voice...!!


Me and my world

महान ईश्वर की सुंदर दुनिया और इस सुंदरता के हम अहम भाग हैं। संसार की अंगिनत विविधताओं में हम मनुष्य सबसे उपर हैं। जीव सृष्टि की दृश्य अदृश्य अपरंपार कर्मशीलता में हमारी बौद्धिक कर्मकता सबसे उपर हैं। मैं सहजता से ये बात रख रहा हूँ। क्योंकि मुझे आज भी सृष्टि अचंभित कर रही हैं। जब हम बालक थे तब कितनी जिज्ञासा से भरे थे ?? आज जो कुछ ज्ञान हमारे भीतर संवर्धित हुआ। इसका मुख्य कारण ही हमारी अचंभितता के समाधान से हुआ है !! 

हम सब एक हैं। ये एकत्व का भाव हमारे भीतर के महान इन्सान को सृष्टि में दमदार तरीके से स्थापित करता हैं। विश्व में हमारे भारतवर्ष की मानवीय चेतना का स्वीकार सहज ही होता रहा है। इसके मूल में भी हमारा एकत्व- समत्व और ब्रह्माण्डीय कल्याणत्व का भाव हैं। जब समष्टि के कल्याण की बात आती हैं तो परमेष्टि सहज ही हमारे छोटे विचार या कर्म को दमदार तरीके से स्थापित करने लग ही जायेगी। ये पारस्परिक समष्टि-परमेष्टि का प्राकृतिक अनुराग हैं। महान ईश्वर का ये अद्भुत सहचर्य ही आनन्द विश्व सहेलगाह के लिए आनंदमार्ग समान हैं।

मनुष्य के रूप में हम खुद एक छोटे से विश्व को धारण किये हैं। हमारे वैयक्तिक कल्याणी भाव को समष्टि के कल्याण के साथ जोड देना हैं। तभी तो हम विश्वानंद अनुभूता के स्वर में झुड पायेंगे..! एकत्व की अद्भुत संगिती का स्वर बन पाएंगे..! इस संसार में बेहतरीन हिस्सेदारी कायम करने हेतु हमें प्रयत्न करना हैं। और उसकी सहलगाह का लुफ्त उठाना हैं।
हमारा सृजन सहेतुक हैं, सबका अस्तित्व महत्त्वपूर्ण हैं, सबकी उम्मीदें सबकी आशाएं एक बने इसके लिए हमारे अपने भितरी विश्व की आवाज को सुनना ही होगा। उस एकत्वी संगीत को महसूस करना हैं। उसी आवाज में जीवन की बहतरीन खनक हैं,थनक भी और मस्ती भी..!! एकबार सुन भी लो यारों...!!
Your ThoughtBird Dr.Brijeshkumar.
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Monday, March 6, 2023

THE HOLY.
March 06, 20231 Comments

 The Holi is not only festival, Holi is colorable Happify....!!

शब्दरंग-विचाररंग के साथ रंगोत्सवी होली की बधाई...!!

The holy

संवेदन से भरे संसार की खुबसूरत पल आनंद ही हैं, खुशी-उल्लास-उमंग जो भी कहो, जहाँ ह्रदय की प्रसन्नता वहाँ आनंद और वहाँ उत्सव। जीवन के नए अंदाज का सृजन यहीं से आकारित होता हैं। आनंदविश्व सहेलगाह की विचार क्रमिकता यही श्रद्धाभाव प्रकट ने हेतु प्रयत्नवंत हैं। शब्द-विचार  के साथ..!!

महान ईश्वर की सृष्टि में उत्सव का बहुमूल्यन हैं। जीवन की दौड़ से थके-हारे मनुष्य को निरांत के कुछ श्वास, खुशीभरें पल की आवश्यकता सहज होती हैं। इसीलिए मानवीय जीवन प्रणाली में उत्सव ने दमदार स्थान बना लिया है। विश्व का एक भी कोना एसा नहीं होगा जहाँ उत्सव नहीं होगा। निर्मिति का ये शाश्वत शास्त्र हैं, इनमें उत्सव के रंगो की अद्भुत प्रस्तुति हैं। उत्सव आनंद के नियमों का अलिखित कर्तव्यग्रंथ हैं। अपनी-अपनी मस्ती का, साथ-साथ वाली खूशीओं की अमीरात का उत्सव होली हैं। जीवन सफर में रंगोत्सवी पडाव होली हैं। उमंग की शिखरी अवस्था होली हैं। Worlds 🌎 Feeling is same.

भारतवर्ष के कई उत्सवों में होली का त्योहार सबसे अलग रंग-ढंग से मनाया जाता हैं। कुदरत के रंगों में से जीवन का एक रंग होली के रुप में हमारे पास हैं। होली रंगत का प्रतिक हैं, होली आनंद की वृत्ति-प्रवृति हैं। होली मिलन हैं, मनुष्यत्व का आधार प्रेम हैं वो प्रेमरंग होली हैं। होली रंगो की वैविध्यता में छुपे हुए प्रेमरंग का भी नेतृत्व करती हैं। सबसे न्यारी प्रेम सगाई,आनंद महसूस हो वो घड़ी सबसे अहम हैं। ईसी कारन होली आनन्दमयी हैं।

ईश्वर का रहस्यमयी सृजन आनंद और प्रेम के बीज को ही संस्थापित व संवर्धित करने हेतु प्रयत्नवंत है, येसा मुझे लगता हैं। सहज मत ही सर्वसामान्य मत बनता हैं,और सहज मत ही प्रकृतिगत सिद्धांत हैं। शायद मैं सच बोल रहा हूं..!? 

जीवन के आनंद के लिए रंगोत्सव से कुछ रंगीन सपनों को साकार करने का उत्साह भरें। अपने भीतर सामीप्य की आह्लादक वृत्ति का संचार भरें।आनेवाली हर क्षण को रंगीन बनाने का कौशल सिखे। बस ईससे ज्यादा सोचना मेरे बस में नहीं। Colourful whish for you.💕

Your ThoughtBird Dr.Brijeshkumar
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Wednesday, March 1, 2023

The spring part 2
March 01, 2023 2 Comments

 Regularization is the habit of the Nature.

प्रकृति पुरानी,उसकी नियमित आदतें भी पुरानी...!!
Friends...recall. the spring is come....A timetable of GOD.



आनंदविश्व विश्व सहेलगाह में फिर एक बार वसंत के शब्द साज सजाता हूं, क्योकि वसंत मुझे बेशुमार पसंद हैं। मैंने कह दिया लेकिन आपका भी यही मानना होगा.. सच हैं ना ??
धरातल पर अदृश्य ईश्वर की दृश्यमान घटनाएँ निरंतर होती रहती हैं। सारी पृथ्वी में प्रकृति संवृत भू-भाग ज्यादा हैं।  इसलिए सहज ही कुदरत की ऋतु बदलाव परंपरा वहाँ जल्द नजर आती हैं। वसंत में तरूवर का नयापन सहज हमारी दृष्टि में आता हैं। इसके कारण सबसे पहले वसंत हमें वहाँ दिखाई पडती हैं। पलाशवन में तो वसंत बेशुमार खिलती भी हैं साथ खेलती भी हैं। मानो रंगो का उत्सव मनाया जाता हो ऐसा माहोल....!

प्रकृति में ज़्यादातर वृक्षों में बसंत की प्रगल्भता परिवृत होती हैं। पानखर में पेडों के पत्ते गिर जाते हैं। वर्षा की ऋतु में पेडों का पोषण जबरदस्त तरीके से हुआ हो, सर्दी की मौसम में भी पेडों के पत्तों की ज्यादातर चिंता नहीं होती। लेकिन गर्मी की मौसम में नयें पन्नों को वृक्ष का पोषण करना सहज हो जाए..! नव पल्लवित वनस्पति सूरज के तेज किरनों के सामने अपना अस्तित्व संजोए दमदार खडी रहें। कुदरत ने कितना ख्याल रखा हैं ना..! 

महान ईश्वर की ये बेशुमार प्रेम करने की दृश्य चेष्टा हैं। सृजन का जिम्मेदार कदम, ईश्वर की सक्षमता प्रकृति को भी सक्षमता बक्षती हैं। अपना अस्तित्व टिकाए जीना हमें ईश्वर ही सिखाते हैं। वसंत इसका दमदार उदाहरण हैं। अदृश्य नियंता की दृश्य चेतना का संचार वसंत की बहार हैं, यही वसंत की भीतरी पहचान हैं। 

मदहोशी-महसूसी का ये कुसुमोत्सव हम विचारशील मनुष्य के लिए तो सबसे महत्वपूर्ण हैं। हम तो हृदय की धडकनो से, संवेदना की अनुभूति से और पारस्परिक सख्यता की आकांक्षा से भरें हुए हैं। हमारे साथ हमारा पंथी-साथी भाषिक संवेदन प्रकट करने वाला हैं। वसंत में तो प्रगटत्व का सरीयाम उत्सव निर्माण होना चाहिए। ये मात्र कल्पना नहीं हैं, सिद्धांत हैं। हमें स्वीकार नहीं करना ये अलग बात हैं। लेकिन ह्रदय कभी जूठ नहीं बोलेगा...पूछ लेना एक बार !!
बस ज्यादा हो गया। रुकता हूँ, वसंत की अपनी-अपनी मदहोशी के लिए महसूसी लिए।
Your thoughtbird... Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

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