Can not Comparable power of
THE LION.🦁
।। स्वयमेव मृगेन्द्रता ।।
प्रकृति सत्वशीलता से भरी हैं। प्रकृति पौरुष से भरी हैं। क्योंकि ये सभी अपौरुषेय ईश्वर की दृश्यमान हरकतें हैं। मनुष्य से ज्यादा इश्वर ने पशु-प्राणीओं को बलशाली बनाया हैं। उदाहरणों में नहीं पडता क्योंकि मुझे ये लिखकर कोई पढें इसमें दिलचस्पी हैं ही नहीं। मगर अपनी खुद की सोच से कोई विचार को महसूस करें इस कर्म में दिलचस्पी हैं। आज बात भी पौरुष की हैं, शौर्य की हैं, पराक्रम की हैं और स्वयं को साधारण न समझने की भी हैं। "स्व" की सत्वशीलता को एक विचार के माध्यम से स्पर्श करने की बात भी हैं।
महान ईश्वर ने सृष्टि को शक्यताओं से संतृप्त कर दिया हैं। यहाँ के हरेक जीव की अपनी पहचान हैं। अपना खुद का दम हैं। सभी जीव अपना अस्तित्व संजोए दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। किसी के साथ तुलना करना ये बात में दम ही नहीं और हमसब इसी बात पे अटक गए हैं। हमें कुदरत की तत्व-सत्व गुणात्मकता को धारण करना हैं। औचित्य से अडिग को पाना संभव हैं। मृगेन्द्र औचित्य और उसका पौरुष संभव हैं। मनुष्य के रुप में इस सृष्टि में दमदार तरीके से स्थापित होने हमारी प्रयत्नशीलता को मैं "स्वयमेव मृगेन्द्रता" कहता हूँ।
आनंदविश्व सहेलगाह की विचार शृंखला के माध्यम से मैं औचित्य से आगे संभावनाओं की बात रखकर अपना कर्तृत्व निभा रहा हूं। ईस धरातल पर मैं आनंद के स्वयमेव विचार को सहजता से आपके सामने रखता हूँ। मेरा मृगेन्द्र का औचित्य शायद वैचारिक गति की संभावनाए बन गया हैं। हमें अपने औचित्य को भंग नहीं होने देना। उसकी गति को गीति का रूप धारण करने हेतु पराक्रमित "स्व" को जाग्रत करना हैं। स्वयं को पराक्रमित रूप में स्थापित करना ही मृगेन्द्रता हैं।
सहेलगाह अकेलेपन से कैसी होगी ?
और सत्यापन के साथ झुडाव से कैसी होगी !! हमें ही सोचना होगा।
हमारी आनंदविश्व सहेलगाह पराक्रम से भी अनुस्यूत होकर सक्षम बने...!
Your ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat
INDIA
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