SADGURU is called....
"If you are in love So it will guide you on the path of life. love has its own intelligence."
"अगर आपके दिल में प्रेम हैं। तो यह जीवन की पगदंडी पर आपका मार्गदर्शन करेगा। प्रेम की अपनी बुद्धि होती हैं।"
प्रेम की फिलासफी बहुत गहरी हैं। कईं महान विभूतियों ने प्रेम के बारें में अपना अभिप्राय दिया हैं। सबकी बात में दम हैं। कृष्ण की 'प्रेमवाणी' तो सबसे बेहतर हैं। सद्गुरु की बात में अचरज और सुंदरता देखें...प्रेम की अपनी बुद्धि होती हैं। मतलब, प्रेम बुद्धि में भी अग्रिम हैं। सृष्टि का सबसे सुंदर व्यवहार प्रेम हैं, जीवन की उत्तम गति भी प्रेम हैं। जीवन का उत्कृष्ठ आनंद ही प्रेम हैं।
एक सुंदर कथा कहता हूं। संत कबीरजी और उनकी पत्नी लाली का गृहस्थाश्रम अत्यंत प्रेम भरा रहा था। एक दिन एक व्यक्ति कबीरजी को मिलने आता हैं। मिलने का प्रयोजन भी था। वो कबीरजी को पूछता हैं, "मैं गृहस्थ जीवन की शुरुआत करना चाहता हूं। इसलिए मुझे कैसा जीवनसाथी चाहिए आप उसका मार्गदर्शन करें।"
कबीरजी यह बात सुनकर उसको अपने घर ले जाते हैं। पत्नी को आवाज लगाई, "खाने में क्या है ?"
उनकी पत्नी लाली ने कहा: "केवल चावल हैं।"
कबीरजी ने कहा: "परोस दिजीए।"
दोनों व्यक्ति खाना खाने के लिए बैठे। थाली में चावल आए। चावल आने पर कबीरजी बोले: "चावल बहुत गरम है, उसे ठंडा करो।"
लाली चावल ठंडा करने लगी। वो व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया, चावल एकदम ठंडे थे फिर भी कबीरजी ने ऐसा क्यो किया ?
फिर कबीरजी अपनी बुनाई के स्थान पर गए। सब जानते हैं, कबीरजी कपड़ा बुनने का काम करते थे। वो व्यक्ति भी साथ में था। दिन का समय था, चौतरफ उजियारा था। फिर भी कबीरजी ने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाई : "सुनती हो क्या ? मुझे सूई में धागा पिरोना है, जरा चिराग जलाओ।"
पत्नी लाली कुछ भी कहे बिना चिराग जलाकर लाई। वो आदमी एकदम सुन्न हो गया। और कहने लगा : "कबीरजी मैं अपने जीवन के बारें में सलाह लेने आया हूं। मुझे कुछ तो बताईए ?"
कबीरजी ने उत्तर दिया: "यहां जो कुछ देखा, इसका अचरज न हो और सब काम सहजता से हो जाए...ऐसी कोई मिले तो उससे घर बसालो।"
कबीरजी की बानी मार्मिक थी। लेकिन उनकी पत्नी लाली के व्यवहार में नितांत प्रेम था। कोई भी सवाल किए बिना केवल वहां अनुसरण था। शायद उन दोनों की 'अन्डरस्टेन्डींग' थी। उन्होंने कहा है, तो कोई मतलब होगा। ऐसा कोई अटूट विश्वास था उनकी पत्नी को...या समर्पण की मर्यादा थी !?
सद्गुरु के शब्द यहाँ सच होते दिखाई देते हैं। कबीरजी ने प्रेम को जीया हैं। उनके जीवन की पगदंडी में उनका मार्गदर्शन प्रेम ने किया था। वो बुद्धि से परे प्रेम की अनुभूति करने के लिए समर्थ थे। इसलिए वो एक बानी में कहते हैं;
"पोथी पढ़कर जग मुआ, पंडित क्या न कोई।
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े जो पंडित होई।"
प्रेम में बुद्धि की जरुरत ही नहीं होती। लेकिन प्रेम की अपनी बुद्धि होती हैं। प्रेम की बुद्धि मतलब स्वीकार, समर्पण ओर श्रद्धा। जिसके साथ जीना है, उसका संपूर्ण स्वीकार करना। उसके आगे सब न्योछावर और उसके उपर अटूट विश्वास ये प्रेम हैं। love has its own intelligence. शायद यह समझना आपके लिए मुश्किल न होगा। अगर आपके जीवन की पगदंडी प्रेम से भरपूर है तो...
you are on the right way of life...!
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar chandrarav
Gujarat, India.
drbrijeshkumar.org
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Very good
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रेम विचार प्रस्तुत कीया है।
ReplyDeleteआनंद आनंद हो गया डॉ.ब्रजेशकुमार जी
ReplyDeleteआपकी फ्लाइंग मार्वल बुक पढ़ ली। बहुत खूब लिखा हैं। मैं आपका नियमित पाठक हूं।
ReplyDeleteआभार मित्रो, नाम लिखे तो अच्छा रहेगा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteग्रेट ब्लोग।
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