November 2023 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, November 29, 2023

Principle of energy transformation.
November 29, 20230 Comments

 शक्ति का रूपांतरण एक अद्भुत ईश्वरीय घटना !!

ऊर्जाका उद्भव और नाश असंभव हैं
लेकिन उर्जाका रूपांतरण ही संभव हैं।


आइन्स्टाइन का ये उर्जा रुपांतरण का सिद्धांत दुनिया के सामने आया तब २ प्रतिशत लोग भी उसे समझने के लिए सक्षम नहीं थे। आज उसे समझने वाला विश्व है। उनका दिया गया सूत्र,
E = mc²
Energy उर्जा
Mass द्रव्यमान
Velocity of light. प्रकाश का वेग।

प्रकृति में ऊर्जा कई अलग-अलग रुपों में मौजूद हैं। प्रकाशऊर्जा, यांत्रिक ऊर्जा, गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा, विधुतऊर्जा, ध्वनिऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा एवं परमाणु ऊर्जा। प्रत्येक ऊर्जा को एक अन्य ऊर्जा में परिवर्तित या बदला जा सकता हैं। गति और स्थिति भी ऊर्जा हैं।


उर्जा उद्भवित नहीं की जाती साथ ही उर्जा नाशवंत भी नहीं हैं। जब-जब सिद्धांत की बात आती है  तो हम-सब सहज ही स्वीकार कर लेते हैं। उसमें कोई अन्य देश का आविष्कार हो तो हमारी विश्वसनीयता और बढ जाती हैं। कई बातों में हम आज भी अपने भारतवर्ष की चिरकालिन ज्ञान परंपरा को भूलते आये हैं। साथ ही उसमें विश्वास करने की मानसिकता भी कम होती जा रही हैं।

श्रीमद्भगवत गीता में भगवान कृष्ण के विभूतियोग के कथन को प्रेषित करता हूं। अपने ज्ञानवैभव पर गौरव महसूस होगा।
यधद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोड़शसम्भवम् ॥४१॥

जो भी विभूतियुक्त यानि की एश्वर्यसंपन्न, शोभित व शक्तियुक्त पदार्थ है, उसको तुं मेरे अंश की अभिव्यक्ति ही जान लो। भगवान कहते हैं: "अहं सर्वस्व प्रभवो मत्त: सर्व प्रवर्तते " मैं ही समष्टि की उत्पत्ति का कारण हूं और मुझसे ही जगत चेष्टा करता-गतिमान हैं।

पंद्रह वे पुरुषोत्तम अध्याय में भी भगवान का उवाच हैं;

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेड़खिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥१२॥

सूर्य का तेज जो पूरे विश्व को प्रकाशित करता हैं, जो चन्द का तेज भी हैं जो अग्नि में भी हैं उसे तुं मुझे ही जान लो।

प्रकृति का सिद्धांत ही ईश्वर का विधमान स्वरूप हैं। इस चेतना को जर्मन आईन्स्टारइन ने महसूस किया है। ईश्वरीय तत्त्वों की ज्ञान प्राप्ति बडी ही धीरज मांगती है, एकाग्रता मांगती हैं। महसूसी का शांत मन साथ अतूट-असीम श्रद्धा का भीतरी प्रवाह कुछ भी कर सकता हैं। ये आध्यात्म मार्ग भी हैं। जब बुद्धि का श्रद्धेय मार्ग पर चलना संभव होता है तब अचंभित भी आकार धारण करता हैं, अलौकिक भी !! ये ईश्वर की खूबसूरत दुनिया हैं, इसमें आनंद ही निहित हैं। आनंद व कौतुक का समाधान ज्ञान हैं। ऐसी ज्ञान प्राप्ति का मार्ग बडा सुहाना होता हैं। जीवन इन्हीं मार्ग से व्यतित होता है तो कुछ न कुछ अचंभित खेल हमसे भी हो सकते हैं। कुछ प्राप्त करने पागलपन के साथ प्राप्ति के प्रशस्त मार्ग के आनंद में रहना हैं। ये कर्म हमारे जीवनधर्म को बहतरीन मार्ग प्रशस्त करेगा...!

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Wednesday, November 22, 2023

हम सत्त्वशील राष्ट्र प्रतिष्ठा के यज्ञपुष्प !!
November 22, 20231 Comments

 ।। सत्त्ववृत्तिं समाश्रित्य सन्तु राष्ट्रे प्रतिष्ठिता: ।।

'सत्त्ववृत्ति को धारण करके राष्ट्र में उनको स्थापित होने दे।'

भारत सत्त्व हैं। भारत सत्य हैं। भारत में मनुष्य जीवन के मूलभूत सिद्धांत का परिशोधन हुआ हैं। हजारों सालों की परंपरा और मनुष्य जीवन की उन्नति का विचार भारतीय संस्कृति में सविशेष हुआ हैं। मनुष्य से आगे समग्र ज़ीवसृष्टि की संवेदनशील परिपालन की अद्भुत कल्पना भारत में सबसे ज्यादा हुई हैं। इसीलिए भारत की प्राचीनतम संस्कृति का स्वीकार सहज हो रहा हैं।

India

भारत एक विचार हैं, आचार हैं। साथ ही भारत सख्य भूमि हैं। भारत कुछ तथ्यों को ध्यान करनेवाली तपोभूमि हैं। भारतीय संस्कृति का एक-एक ज्ञान-कर्म पहलू विज्ञान से झुडा है। ओर हमारी प्रकृतिगत वैज्ञानिक सोच अध्यात्म से झुडी हैं। और आध्यात्म समष्टि के कल्याण का ही मार्ग हैं। भारत का भौगोलिक सत्व भी इसीलिए फलप्रद हैं। समय-समय पर भारत में सत्त्ववृत्ति की प्रतिष्ठित होती रही हैं। भारतीय संस्कृति की अमरता का एक महत्त्वपूर्ण पहलू ये भी हैं। राष्ट्र की परम्परागत सांस्कृतिक विरासत का आज भी अडीखम होना ऐसे नहीं हैं। सारी सृष्टि में भारत की आत्मा में कुछ अलग ही प्राणतत्व छिपा हैं। मनुष्य जीवन की उर्ध्वगामीत गतिदृष्टी आनंद व परमानंद को प्राप्त करनेवाली होती हैं।

ईश्वर की सृजन शीलता को भारत के ऋषिओं ने आत्मसात् की हैं। इस तरह ध्यातव्य और ज्ञातव्य की अद्भुत मिसाल कायम हुई वो स्थान भारत भूमि हैं। वेदों की जन्मदात्री भारत भूमि हैं। तप-तपस्या की वाहक ऋषि परंपरा ज्ञानपरंपरा बनी रही....ये है भारतवर्ष की जीवनपरंपरा...!

ऋषि का प्रबोधन हैं,सत्त्ववृत्ति का प्रतिष्ठान होता रहे वो हमारें संस्कार हैं।और इसी परंपरा में हमारें राष्ट्र का अमरत्व सदैव अक्षुण्ण रहेगा। जो सत्वशीलता को धारण करना चाहता हैं उसको क्षति पहुंचाने पर राष्ट्र की गतिशीलता को रोक लगेगी। राष्ट्र की आत्मा का क्षय हो सकता हैं। समाज जीवन तहस-नहस हो सकता हैं। उसकी जिम्मेदारी भारत के हरेक मनुष्य को लेनी पड़ेगी। क्योंकि हम भारत के अमर आत्मा को पहचानने में असमर्थ रहे हैं। इसके विपरीत कोई सामान्य भी, तुच्छ भी इस आस्था को समझकर कुछ समर्पण के संस्कार से प्रेरित होकर राष्ट्र की गरिमा में प्रवृत्त हैं तो...उसका स्वीकार सहज करना हैं। और शायद व्यक्तिगत-समूहगत स्वार्थ वृत्ति से स्वीकार नहीं कर सकते तो...युगों की शक्ति का प्रकोप भी हमें ही झेलना होगा।

भारत की पुण्यभूमि के संस्कार सर्वमान्य, सर्वसमावेशी और प्रकृतिवाद के पुरस्कर्ता हैं। इसके विपरीत प्रभाव प्राकृतिक विपदा के रुप में व्यक्तिगत व सामूहिक रूप भुगतने पड़ेंगे। क्योंकि ईश्वर के अलौकिक तत्त्व के हम-सब पुरस्कर्ता हैं।

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Friday, November 17, 2023

Commitment is the clearity of Relations.
November 17, 20231 Comments

 संबंधो की गरिमा सहज-सरल नहीं हैं।

अच्छे रिश्ते-संबंध निभाना भी एक उमदा मानवीय वर्तन हैं।
ईश्वर जो चाहते हैं वो...स्नेहबंधन !!

संबंध का निर्माण होना बायोलॉजी पर सबसे ज्यादा निर्भर हैं। स्त्री-पुरुष के स्नेहबंधन से परिवार व समाज की परिकल्पना आकारीत हुई। साथ कईं रिश्तो का जन्म हुआ। ये सामाजिक ढाँचे को बनाए रखने के लिए जरुरी भी हैं। ये युगों से चली आ रही प्रक्रिया हैं। संबंधों की ये ईन्द्रझाल इतनी फैली हुई हैं की मनुष्य चाहकर भी इससे विरक्त नहीं हो सकता। जन्म से सारे बंधनों का झुडाव और उसको निभाते-निभाते चलते जाऩा..!
शायद हम-सब इसे जिंदगी कहते हैं। ये एक बंधन हैं, अब दूसरे बंधन की बात छेडता हूं।

Reletions

दूसरा संबंध दिलों से झुडता है। सामाजिक बंधनों से परें कोई ईश्वरीय लीला या संबंधो की अदृश्य परंपरा कायम होती हैं। विश्व की विराटता में हम कुछ नैमित्तिक मिलित्व प्राप्त करते हैं। मिलन की अशक्यताओं में से एक शक्यता आकार सजती हैं। कौन-किसको-कब- कहां क्यों मिलता हैं,
एक लगाव संबंध में परिणमित होता हैं। इन सब अनजान हरकतों को चलानेवाला भी ईश्वर ही हैं। उनकी मर्जी, उनकी करामात और उनकी ही लीलामय संभावनाएं..! "कोई मिल गया" की एक कहानी आकारित होती हैं। साथ ही उस अनोखे संबंध की कहानी का "कब तक" और " जब तक हैं जान" तक का सफर भी शायद वो ही तय करते हैं। इश्वर संबंध स्वरुपा हैं। इश्वर ही सृष्टि में स्नेह साम्राज्य के राजा हैं। उनकी मर्जी से चलने वाला हवा का झोंका भी प्रेमवश बंधन का ही रुप हैं।

एक मत ऐसा भी हैं कि ईश्वर का काम तो झोडना हैं। मिलित्व का निमित्त इश्वर बनते हैं। लेकिन उस मिलाप का...उस बंधन का...उस संबंध की गरिमा को बनाएं रखने का दायित्व हमारा भी हैं। इस विचार से शायद में सत्य के ठीक-ठीक नज़दीक हूँ। सो प्रतिशत का दावा करने वाला मैं कौन होता हूं ? मैं ये लिख रहा हूँ...यह भी तो एक इत्तेफ़ाक ही हैं। इसमें भी कोई बंधन जरुर कारणभूत होगा। शायद ईश्वर की अदृश्य करामात भी कारणभूत होगी। जो कुछ भी हो... लेकिन मुझे वो जीने का अद्भुत पागलपन देती हैं, वो सत्य हैं। इसे पढ़कर कोई भीतर से निहाल हो जाता हैं तो मैं भी निहाल !!

संबंध को निभाना मतलब अपने भीतर से शून्य हो जाना। अपनी पसंद या अपना ममत्व न टीके तब-तक का एक बेहतरीन पडाव संबंध हैं। मनुष्य के रुप में मेरा ह्रदय उल्लास से भरा रहे, मेरा वर्तन मेरा न होकर दूसरें की खुशी का कारण बने, तब एक संबंध बडी नाज़ुकता से अंकुरित होता हैं। दुनिया आज भी स्नेहबंधन का स्वीकार बड़ी लाजवाब रीत से करती हैं। जो सत्वशील हैं, वो ही आधारशिल हैं। जो जीवनमूलक है वो संबंध ही मानवीय हैं। ऐसे संबंधों की कहानियाँ अच्छी लगती हैं। शायद ऐसी कुछ कहानीओं के पात्र में जीना भी हैं। हम सब जानते हैं यही सत्व हैं। यही जीवन का अद्भुत आनंद भी हैं। हम क्यों इससे दूर हैं वो हम अच्छी तरह जानते हैं। भहाभारत के सभापर्व में दुर्योधन के द्वारा बोले गए शब्द ठीक बैठते हैं इसलिए लिखता हूं। "जानामि धर्मम् न च मे प्रवृत्ति, जानामि अधर्मम् न च मे निवृत्ति।" धर्म और अधर्म मैं सब जानता हूँ। लेकिन मुझे जो करना है वहीं मैं करूंगा।

दोस्तो, ईश्वर ही प्रेमस्रष्टा हैं, वो ही बंधन और मुक्ति भी...! हम तो इतनी ईच्छा व्यक्त करें की हमारे भीतर ईश्वर की मर्जी पलती हैं। और उनकी मर्ज़ी के हम निमित्त !! जब-जब विश्व प्रभावित हुआ है तब ऐसी संबंध कहानियाँ प्रकट हुई हैं। संसार में "नटखट कान्हा" का प्रगटन कुछ इसी पारंपरा का संचरण तो नहीं ?!
शायद, संबंधपिता कृष्ण का सृष्टि में प्राकट्य ईसी स्नेहबंधन की स्थापना के लिए तो नहीं हुआ था ?!
हम तो धर्मसंस्थापना के कारण ही समझते हैं !!

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Friday, November 10, 2023

दिलों की दिवाली..!!
November 10, 20230 Comments

 The king of festival.

Sweetness and brightness is equal to DIWALI.


स्नेह के अद्भुत तंतुओं को एकबार और मजबूत करने का अवसर..!
स्नेहबंधन से झुडे सभी को...शुभ दिपावली !!


मनुष्य का एक दूसरों से झुडाव और संबंध झुकाव के कईं निमित्त हैं। उसमें सबसे बड़ा निमित्त उत्सव हैं। उत्सव खुशीओं का सैलाब हैं। इसमें सबसे प्यारी एवं सबकी दुलारी दिपावली का तो क्या कहना..!

आज की उम्र तक कईं दिवालीयां देखी ही। वैयक्तिक रूप से मैंने बडे पागलपन से दिवाली महसूस की हैं। शायद आप सबकी स्मृतियों में मेरी बात का थोड़ा-बहुत मेल-मिलाप भी हो सकता हैं। क्योंकि दिपावली के रंग सुनहरे हैं, हृदय की धडकनों का संगीत जहाँ एक सुर-ताल में बजता है, तब दिपावली आती हैं। नईं आशाओं के किरन लेकर नए सपनों की ओर दौड़ने का होंसला लेकर दिपावली आती हैं। मिठास और प्रकाश की अद्भुत दुनिया का फिर एकबार प्रयास हैं...अपनी दिपावली !!

अपनी याद्दाश्त की पहेली दिवाली शुरु होती हैं, अपने भीतर कईं कल्पनों को पालते हुए। छोटे-से दीप के ज्योति पूंज से ये यात्रा शुरु होती हैं। हर साल खूशीओं का एक नया अध्याय झुडता जाता हैं... अपने भीतर की स्मृतिओं के साथ...अपने जीवन के बड़े हिस्से को रोकते हुए...सबकी दिपावली अलग ही होती हैं। इसीलिए दिपावली की बात नई ही लगती हैं। भारतवर्ष के सभी लोंगो की भिन्नता दिपावली की आनंद विशालता हैं। सभी के दिलों-दिमाग में अपनी दिपावली अनोखा स्थान बनाए हुए हैं। मैं आज उस अपनी-अपनी दिपावली को छेड रहा हूं। आपकी अपनी आनंद क्षणों को ब्लोग के जरिए एक छोटा-सा विचार स्पर्श...बधाई हो !!

पटाखों की गूंज और गंधक की खुशबू...चमचमाती बिजली के जैसे अग्नि के बालक हमारी आंखों में चमक के सुरमें लगाते हैं। कुछ नयेपन से हमारी खुशी बेशुमार बन जाती हैं। रंग बिखेरते तारों की बारात निकलती दिखाई पडती हैं। मुख में मिठाई की मिठास और चहरें पर दीपक और पटाखों का तेज छा जाता हैं। पैर सहज ही थिरकते हैं, ह्रदय उल्लास से उछलने लगता हैं। हमारे आसपास आनंद का माहोल अंगड़ाई लेते घूमता हैं। ऐसे अविरत आनंद की खोज में हमें चलना हैं। दिपावली सबकुछ भूलाकर जीवन के केवल आनंद का निर्देश करती हैं। मुझे कुछ ऐसा समझमें आ रहा हैं की, सबका आनंद एकत्व धारण करता हैं, तब दिपावली आती हैं। दिपावली छा जाती हैं तन और मनमें...! ईश्वर को पसंद है वो हृदय की विशालता दिपावली का प्राण-तत्व हैं। मनुष्य के भीतर जो निजानंद पलता है वो अक्सर साम्यता का अवतरण हैं। अदृश्य ईश्वर की एकरूप परिकल्पना इस उत्सव को मनाने के भाव लेकर आती हैं। ये हमारी सदाबहार दिलों की दिवाली हैं।

मेरा बाल्यकाल का अनुभव रहा हैं, वैयक्तिक या सामूहिक क्लेश को भूलकर लोग दिपावली मनाते थे। एक दूसरों की सारी गलतियाँ सहज समाप्त हो जाती मैने देखी हैं। आपके अनुभव में शायद इससे भी मूल्यवान स्मरण रक्षित होंगे। ये स्मृतियाँ आनेवाले जीवन के लिए अद्भुत हैं, अमूल्य हैं। अपने जीवन के क्रम में हरेक दिपावली अपने अनोखे रंगों को बिखेरती रही हैं। स्नेह के बंधन को थोडी ओर मजबूताई दे कर, जीवन बुरे अनुभवों से भले गुजरा हो...नये उजाले की, कुछ कर दिखाने की उम्मीद को लेकर अपनी प्यारी दिपावली का आगमन हो चूका हैं... बधाई हो !!

तेजोमय पर्व की मंगल कामना में...!
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Monday, November 6, 2023

Never ending...never stopping...!!
November 06, 20230 Comments

Thinking is never stopping process..!

विचार कभी न रुकने वाली गति...!
जब-तक हैं साँस, जब तक हैं धडकन।
तब-तक हैं... विचारों की शृंखला !!


आनंदविश्व की सहेलगाह कुछ दमदार विषयों पर सहज ही चल पडती हैं, "विचार" एक अविश्रांत कथा हैं। अविरत क्षणों का काफिला हैं। विचार एक गति हैं। विचार एक सुनहरा पडाव हैं। विचार बहतरीन यादों का मेला हैं। विचार है तो हम हैं। विचार है तो हम जीवित हैं। हमारी सांसे चलती हैं, हमारी धडकनें चलती हैं इसका प्रमाण विचार हैं। भले हम विचार को इतनी सहजता से लेते हैं लेकिन "विचार"असामान्य हैं,असहज हैं।

Thinking

आंख से जो कुछ दिखाई पडता हैं, स्पर्श से जो कुछ महसूस होता हैं, सुगंध बनकर, आवाज बनकर कुछ गूँजता है। भीतर कोई दृश्य आकार सजता हैं। उसका नाम ही तो विचार हैं। विचार से शूरु होती है एक यात्रा। कुछ पाने की यात्रा, जीवन को जीने की और सुनहरे पल सजाने की यात्रा। जब विचार पैदा होता हैं तो खुद को और दूसरों को भी आनंद देता हैं। इस संसार की खुबसूरत घटना ये हैं कि हम विचार से संवृत हैं। प्राणी-पशु भी विचार तो करते हैं लेकिन उसका प्रकटीकरण भाषागत नहीं हैं। संवेदना उनका विचार व्यापार हैं। उनके वर्तन में हम विचार देख सकते हैं।

आज मुझे विचार की बात करनी हैं। साथ ही संवेदना की अनुभूति करने वाले विचार की बात करती हैं। विचार में हमेशा व्यक्ति-वस्तु या स्थल कारण भूत होता हैं। सबसे अच्छा कोई व्यक्ति का विचार हैं। उससे ज्यादा सबसे पसंद वाला साथ...! वो जब विचार बनकर हमारे भीतर दौडता है तो नायाब करिश्मा हो उठता हैं। और वो पसन्दीदा व्यक्ति हमारे विचारों में सबसे बडी जगह रोकता हैं। हमारे मस्तिष्क में उनका बसेरा रंगबिरंग होता हैं। एक विचार में कितना समाया हैं। जो विचार हमारी धडकनों को तेज करता हैं....वो ही जीने का आनंद हैं। वो विचार जीने की वजह भी बनता हैं। जैसे एक व्यक्ति विचार बन गया हो या विचार व्यक्ति !? समझ में न आने वाली ये विचार प्रक्रिया तब सजीव बन जाती हैं। जैसे की उसमें जान आ गई हो...! उस विचार की अहमियत का अंकन करना नामुमकिन हैं।

दोस्तों, में विचार की ही बात कर रहा हूँ। जो मेरे भीतर है वो आपके भीतर भी हैं, फिर भी सबका अलग-अलग हैं। ये विचार हैं, न रूप है न आवाज है। आकार के बिना आवाज के बिना भी सृष्टि के नियमन का आधार हैं।

एक विचार जब बाह्य जगत में अपना रुप धारण करता हैं। तब अस्तित्व की नई मिसाल खडी होती हैं। कोई मूर्त वस्तु का आकार व कोई कला का आविष्कार होता हैं। संसार के बहुधा लोगों को स्पर्श करने वाली और पसंद पडने वाली घटना आकारीत होती हैं। विश्व के कल्याण के लिए कोई सिद्धांत जन्म लेता हैं। सृष्टिकाल मे नित्य जो कुछ बदलाव आते हैं, ये सब विचार के कारण संभवित होते हैं। ये क्रम सनातन हैं। ये युगों से चली आ रही अदृश्य विचारयात्रा हैं।

सजीव का सहजीवन विचार बीज के कारण संभावित हुआ  हैं। सहजीवन का पारस्परिक व्यवहार पारिवारिक होता गया। प्रेम संबंध का निर्माण होना भी विचार के माध्यम से ही संभव हैं। संवेदन का आदान-प्रदान भी विचार की ही जीत हैं। ईश्वर ने विचार के बीज मंत्र से सृष्टिकाल को चैतन्य से संवृत कर दिया हैं। संसार में सबसे बुद्धिमान मनुष्य विचार के कारण ही दु:खीराम है,सुखीराम भी हैं। इसीलिए विचार प्रक्रिया का श्रेष्ठतम व्यापन  सबके लिए जरूरी हैं। हमारे लिए तो सबसे ज़्यादा !! 

आनन्द फलस्वरूप विचार श्रृंखला !! कभी न ख़त्म होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया..!

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Who is soulmate ?

  'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं !  जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !! शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आ...

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