May 2023 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Saturday, May 27, 2023

Who I'm and What I'm...!?
May 27, 2023 3 Comments


हम क्या हैं ?
हम क्या बन सकते हैं ?
इन दो प्रश्नों के बिच की अद्भुत सफर को
 हम जिंदगी कहते हैं।

Who I'm


सुबह कईं संभावनाए लेकर आती हैं। सूरज की किरनों के साथ दिन की खूबसूरत शुरुआत, पंछीओं की चहलपहल के बिच सपनों की बारात...यादों का कारवां..!! कुछ गीतों की धून,दिनभर की कर्मकता ये सब फिर हमें नई उम्मीदों की सक्रियता से भर देते हैं।

"ये दिल हैं मुश्क़िल" फिल्म का टाइटल गीत लाजवाब हैं। एक पंक्ति जो मुझे आज के ब्लोग का सफर दे गई..." सफर खूबसूरत है मंजिल से भी...!" समय हैं तो जरूर सुनना। मनुष्य के रूप में हमें खुद को जानने की कोशिश करनी चाहिए। ईस खोज के बाद ही हम क्या कर सकते हैं ? क्या बन सकते हैं ? दुनिया को क्या कुछ दे सकते हैं ? ईसके बारें में सोचने की हमारी गति सहज रफ्तार पकड़ेगी। निश्चित ही हमारे लक्ष्य की ओर हमारी दौड...सही दिशा में हमारी दौड...बिना थकान वाली दौड...आनंद मार्ग की ओर ही ले जायेगी।

महान ईश्वर की अद्भुत जीव सृष्टि में सबकी अपनी-अपनी मंजिल होती हैं। यहाँ क्षणों की जिंदगी जीने वाली तितलियां, रंगों की बेहतरीन दुनिया अपने पंखों पर सजाकर मस्त हैं। यहाँ मधुमक्खी फूलों की खुशबों को चूसकर मधुर शहद को बनाने के काम में मस्त हैं। कहीं भंवरों की गूंज हैं तो कहीं पंछीओं के गीत। इस धरती पर सबकी अपनी यात्रा हैं। सबका सफर अनूठा हैं, शानदार हैं। यहाँ पंछी-प्राणी और मनुष्य के साथ फूलों की ओर तरूवर की भी यात्रा हैं। ईश्वर की समग्र जीवसृष्टी अनोखी यात्रा से भरी हैं। इन सब में हमारी मनुष्य के रुप में यात्रा कैसी होनी चाहिए ? क्योंकि हम अभिव्यक्ति के सरताज हैं। हम भाषा से विचार को स्थापित करने का कौशल व कौवत धरें हैं। मनुष्य के रुप में अपने और सबके उत्कर्ष की क्षमता धरें हुए हैं। विश्व में मनुष्य को ही सबके कल्याण की भावना से जीना होगा। सारी प्रकृति हमे विकसित करने हेतु युगो से पराक्रमित हैं। हमें सफर को बहतरीन बनाना हैं। मंजिल की परवाह किए बिना... बस हमें चलते जाना हैं।

"आनंदविश्व सहेलगाह" विचार से छोटी-सी बात रखकर अपने सफर को बहतर बनाने के प्रयास में हैं। विश्व में लाखो-करोड़ो ईन्सान हैं शायद किसीकी नजर में कोई विचार स्थापित हो जाए और नया कुछ  दिखाई  देने वाला आकारित हो....!! मुझे सफर के आनंद में ही मस्त रहना हैं...शायद आप भी यहीं सोचते होंगे !!

🐣 आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav 
Gandhinagar.

Gujarat INDIA.
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Wednesday, May 24, 2023

A WONDERFUL REQUEST.....Please Read.
May 24, 20230 Comments

 A WONDERFUL REQUEST 


Brothers and Sisters of the universe, 

"Anand Vishwa Sahelgah" is an ideological column. I Dr. Brijeshkumar request to you that we all together help the needy people in the world, regarding education and health. I want to connect with the needy through a schools and hospitals. I request to the world's richest businessmen, Sportsmen, Holywood film stars, artists and world's leaders that. I have an ideas. Make your financial contribution. Let us together incarnate the newness. Set a wonderful example of great God's principled help. An idea has to be shaped. Let us go together to give a wonderful mode to the way of Happiness...!! 

"SAHELGAH OF ANAND VISHWA."


Contact Drworldpeace.blogspot.com 

Your ThoughtBird.... Dr. Brijeshkumar Chandrarav.

Gujarat, 

INDIA.

09428312234. 

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 एक बहतरीन अनुरोध 


ब्रह्मांड के मेरे भाईओं और बहनों, 


आनंदविश्व सहेलगाह वैचारिक लेखमाला हैं। मैं डॉ. ब्रिजेशकुमार आपसे बिनती करता हूँ कि हम सब साथ मिलकर दुनिया के शिक्षा और आरोग्य के बारें में जरूरतमंद लोगों की मदद करें। मैं एक स्कूल और अस्पताल के माध्यम से जरूरतमंदो से जुड़ना चाहता हूँ। विश्व के धनी व्यापारी, (ऐथलेट्स) रमतावीरों, हॉलिवुड फिल्म स्टार्स एवं कलाकारों और नेताओं से अनुरोध करता हूँ कि मेरे पास विचार हैं। आप अपना आर्थिक योगदान करें। हमसब मिलकर नयेपन को अवतरित करेंगे। महान ईश्वर की प्रकृतिगत सैध्दांतिक मददगारी की अद्भुत मिसाल कायम करें। आज नहीं तो कल एक विचार को आकारित होना ही पडता हैं। आनंदविश्व की सहेलगाह को बहतरीन मोड देने हम साथ चलें। 


संपर्क करें Drworldpeace.blogspot.com 

आपका विचारपंखी...डॉ.ब्रजेशकुमार चंद्रराव 

गुजरात

भारत 

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Monday, May 22, 2023

TODAY AND TOMORROW.
May 22, 2023 3 Comments

 Today is present Tomorrow is future.

 IS and WILL be scarce.

ज और कल की आश में हमारी जिंदग़ी का गीत पेश होते जा रहा हैंरआज और कल की आश में हमारी जिंदग़ी का गीत पेश होते जा रहा हैं। आज वर्तमान हैं तो कल भविष्य हैं। इस आज-कल की दुर्लभतम घटनाओं के साक्षी बनने का अवसर ही जिंदग़ी हैं। ईश्वर ने धरती पर पलती हरेक जिंदगी को अपने-अपने गीत देकर सजाया हैं। उचितता के मूल मंत्र को ईश्वर ने बखूबी निभाया हैं। एक छोटी-सी चिड़िया के स्वर को भी खुद के अस्तित्व से जोड़कर अपने औचित्य को कायम किया हैं। यहाँ सब नाविन्य से भरा हैं। यहाँ की अद्भुत जीवन सृष्टि कमाल हैं। ईसी धमाल का नाम अपनी-अपनी जिंदग़ी...!!

सबका अपना स्वर हैं, सबका अपना अस्तित्व हैं। सबकी अपनी दौड हैं। सबकी अपनी उम्मीदें हैं और सबका अपना गीत हैं। उसको मैं जिंदगी कहता हूँ। अपने गीत से कोई प्रभावित हैं, नहीं भी हैं। अपने गीत के शब्द कहीं असर छोडते हैं, नहीं भी छोड़ते। अपने गीत की धून पर कईं पागल होते हैं कभी हम खुद पागल कहलाते हैं। फिर भी अपनी-अपनी जिंदगी का खूद का अस्तित्व भी कमाल हैं। कारण ईस जिंदग़ानी पे ईश्वर के हस्ताक्षर हैं..!! 

हँसना-रोना, गिरना-उठना, सोना-झगना और बैठना-चलना-दौड़ते रहना। सांसो का चलना और हृदय का धडकना ये सब अपनी जिंदगानी के बेहतरीन करतब हैं। मनुष्य के रूप में हमें मिले किरदार को जिंदगी के रंगमंच पर बखूबी निभाना हैं। जीवन के फासलों पर हमारा फैसला नहीं चलता। लेकिन उन फासले को बेशुमार आनंद से भर देना हैं। 

"आनंद विश्व सहेलगाह" जीवन के कुछ मिठे पल की याद दिलाने के प्रयास में हैं। शब्द-विचार के माध्यम से मैं अपनी जिंदगी के कुछ पल को आकार देने का काम करता हूँ। ईसे पढने से आपको आनंद मिलता हैं तो मेरा गीत ठीक हैं। मेरा ये छोटा-सा किरदार ठीक हैं।

विश्व के कई किरदारों की अपनी-अपनी पहचान हैं। ईश्वर के रंगमंच से मेरे किरदार की प्रस्तुति बड़ी लाजवाब हो इसके बारें में कौन सोचेगा ? बेशक हमें ही सोचना होगा। सबका एक ही रंगमंच मगर किरदार अनगिनत। ईश्वर की अवर्णनीय परंपरा युगों से चली आ रही हैं। अच्छे किरदार की खुशबू आज भी इतिहास बनाकर सुवासित हैं। ये जीवन के प्रेरणास्रोत बनकर हमें अपने किरदार को आकारीत करने का मार्गदर्शन करते हैं। हम सिखते हैं लेकिन किरदार का रंग तो अनूठा ही प्रकट होता हैं।

 ईश्वर सब जानते हैं, अपने जीवन की पूरी स्क्रिप्ट उन्होंने ही लिखी हैं। पर हमारे किरदार को निभाते हुए देखना शायद ईश्वर को ज्यादा पसंद होगा। हमारे संवाद...हमारे नृत्य...हमारी हलचलें...हमारी हरकतें सब को ध्यान पूर्वक ईश्वर देखते होंगे क्या ? बेशक वो देखते हुए खुश भी होते होंगे। ईश्वर की अदृश्य लीला को संदेह से नहीं संवेदन से महसूस करके हमें अपनी सहेलगाह को बेहतरीन बनाना हैं। "चलो चलें मितवा इन ऊंच-नीची राहों में...कहीं हम खो जाए"

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 सजाया हैं। उचितता के मूल मंत्र को ईश्वर ने बखूबी निभाया हैं। एक छोटी-सी चिड़िया के स्वर को भी खुद के अस्तित्व से जोड़कर अपने औचित्य को कायम किया हैं। यहाँ सब नाविन्य से भरा हैं। यहाँ की अद्भुत जीवन सृष्टि कमाल हैं। ईसी धमाल का नाम अपनी-अपनी जिंदग़ी...!!

सबका अपना स्वर हैं, सबका अपना अस्तित्व हैं। सबकी अपनी दौड हैं। सबकी अपनी उम्मीदें हैं और सबका अपना गीत हैं। उसको मैं जिंदगी कहता हूँ। अपने गीत से कोई प्रभावित हैं, नहीं भी हैं। अपने गीत के शब्द कहीं असर छोडते हैं, नहीं भी छोड़ते। अपने गीत की धून पर कईं पागल होते हैं कभी हम खुद पागल कहलाते हैं। फिर भी अपनी-अपनी जिंदगी का खूद का अस्तित्व भी कमाल हैं। कारण ईस जिंदग़ानी पे ईश्वर के हस्ताक्षर हैं..!!

 हँसना-रोना, गिरना-उठना, सोना-झगना और बैठना-चलना-दौड़ते रहना। सांसो का चलना और हृदय का धडकना ये सब अपनी जिंदगानी के बेहतरीन करतब हैं। मनुष्य के रूप में हमें मिले किरदार को जिंदगी के रंगमंच पर बखूबी निभाना हैं। जीवन के फासलों पर हमारा फैसला नहीं चलता। लेकिन उन फासले को बेशुमार आनंद से भर देना हैं। "आनंद विश्व सहेलगाह" जीवन के कुछ मिठे पल की याद दिलाने के प्रयास में हैं। शब्द-विचार के माध्यम से मैं अपनी जिंदगी के कुछ पल को आकार देने का काम करता हूँ। ईसे पढने से आपको आनंद मिलता हैं तो मेरा गीत ठीक हैं। मेरा ये छोटा-सा किरदार ठीक हैं।

विश्व के कई किरदारों की अपनी-अपनी पहचान हैं। ईश्वर के रंगमंच से मेरे किरदार की प्रस्तुति बड़ी लाजवाब हो इसके बारें में कौन सोचेगा ? बेशक हमें ही सोचना होगा। सबका एक ही रंगमंच मगर किरदार अनगिनत। ईश्वर की अवर्णनीय परंपरा युगों से चली आ रही हैं। अच्छे किरदार की खुशबू आज भी इतिहास बनाकर सुवासित हैं। ये जीवन के प्रेरणास्रोत बनकर हमें अपने किरदार को आकारीत करने का मार्गदर्शन करते हैं। हम सिखते हैं लेकिन किरदार का रंग तो अनूठा ही प्रकट होता हैं।

 ईश्वर सब जानते हैं, अपने जीवन की पूरी स्क्रिप्ट उन्होंने ही लिखी हैं। पर हमारे किरदार को निभाते हुए देखना शायद ईश्वर को ज्यादा पसंद होगा। हमारे संवाद...हमारे नृत्य...हमारी हलचलें...हमारी हरकतें सब को ध्यान पूर्वक ईश्वर देखते होंगे क्या ? बेशक वो देखते हुए खुश भी होते होंगे। ईश्वर की अदृश्य लीला को संदेह से नहीं संवेदन से महसूस करके हमें अपनी सहेलगाह को बेहतरीन बनाना हैं। "चलो चलें मितवा इन ऊंच-नीची राहों में...कहीं हम खो जाए"

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Tuesday, May 16, 2023

FUN WITH FRIENDS.
May 16, 2023 6 Comments

 तुं सही मैं गलत !!

तेरे कारण तो मैं निश्चिंत हूं !!
ये स्वीकार जहां हैं वहाँ मित्रता बडी खूबसूरती से 
पलती हैं !!
Friendship is the best medicine for happiness.



मित्रता बडी खूबसूरत होती है। जहाँ मित्रता पलती हैं, वहाँ खूशीयों के आशियाने सजते  ही रहते हैं। मित्रता यादों का मेला हैं। जिनके साथ मित्रता हैं उनके साथ बनी छोटी-बडी घटनाएं कायम याद रहती हैं। याददाश्त की भी एक मर्यादा होती हैं। लेकिन उस मर्यादा को लांघकर यादों का कारवां जहाँ बेशुमार बनता हैं... मित्रता वहाँ साँस लेती हैं। धडकन बनके दो दिलों में एक ही साथ के धबकार बन जाती हैं।

हमारे सामने मित्रता के कई उदाहरण प्रस्तुत हैं। इतिहास के पन्नों में कई कहानियां मित्रता की खूबसूरती को संजोए हुए हैं। ईश्वर ही सख्य हैं, ईश्वर ही संबंध हैं। ईश्वर ही निमित्त हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी किसी न किसी रूप धारण कर हमारे जीवन को "आनंद फुहार" से भर देता हैं। मनुष्य जीवन इन्हीं सत्वों से तो बेशुमार होता हैं। मित्रता के तत्व को ईश्वर ने बडी मासूमियत से घटित किया होगा। एकमात्र मित्रता ही तो हैं, जिसे अबाधित संभावनाएं मिली हैं। मित्रता की जीवंतता कहीं भी प्रकट हो सकती हैं।जहां स्त्री-पुरुष,जाति-धर्म,ज्ञान-अज्ञान,धनधान्य की मर्यादा कुछ भी नहीं हैं। वहां हैं एकमात्र सूकून, निर्दोष मस्ती की हरकतें, सुख और दुख की एकरूपता, साथ जीये कुछ पलों की बेशुमार यादें और बातें... !!

मित्रता असंतोष से आकारित हैं। कभी कभार अवगुण में जीने का मजा मित्रता देती हैं। महाभारत भी अद्भुत मैत्री की कहानियों संग्रहित हैं। दुर्योधन और कर्ण की अनमोल मैत्री की बात अनन्य हैं। पराक्रम की कदरदानी से शुरु हुई मैत्री रक्तसंबंधों की परवाह किए बिना एक ही गति में बहती चली जाती हैं।जब कर्ण को पता चला की मै तो ज्येष्ठ पांडव हूं। मैं ही हस्तिनापुर का राजा बनूंगा। लेकिन मित्र के विश्वास को ठेस न पहुंचे... स्वार्थ का नामोनिशान न हो... बस इसको बनाए रखकर जीना ही मैत्री हैं। दूसरी तरफ अपने मित्र के प्रति सदा समर्पित दुर्योधन हैं, कर्ण का गौरव-सन्मान ही दुर्योधन की मैत्री हैं। मुझे लगता हैं, कर्ण ने एकबार अपने मित्र दुर्योधन को युद्ध को लेकर समझाया होता तो वो मान ही जाता। लेकिन ऐसा क्यों नहीं हुआ...? मित्रता मित्र से निभाई जाती हैं उसकी ईच्छा-आकांक्षा से हरगिज नहीं। दुनिया के विभिन्न संबंधों को निभाए जाने की कर्मकता हैं, वर्तनी हैं। लेकिन मैत्री बंधनों से मुक्त हैं, परंपराओं से मुक्त हैं। मैत्री जहाँ आकार सजती है वहाँ नया आकार बनाती ही हैं। वो हैं पारस्परिक अनुबंध का आकार...सामीप्य का आनंद ही तो समाहित है मित्रता में...!! 

आनंदविश्व सहेलगाह में आज मैत्री की बात रखकर खूशी महसूस करते हुए अपने शानदार-जानदार-मित्रों को ब्लोग समर्पित  करता हूं। शायद मैं कुछ लिख पा रहा हूं उसकी वजह भी आप हो। तेरे नाम आज का काम..!

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Tuesday, May 9, 2023

THE KING OF HINDUSTAN.
May 09, 20231 Comments

 The Maharana Pratap was great warrior of Hindustan.

महाराणा प्रताप महान भारत की भड़वीर आत्मा के रूप में अमर हैं।

प्राकृतिक आपदाओं से भरा मरूस्थल राजस्थान। अरवल्ली की पर्वतमाला का आभूषण धरे, वीरता के इतिहास से संवृत और त्याग-बलिदान के रंगों से सजी धरती का अहसास राजस्थान !! मुगलों के आक्रमण का मुहतोड जवाब देने वाले राजपूतों की आन-बाना-शान हैं राजस्थान !! वीरों की भूमि मेवाड और इस धरती को सदा समर्पित सिसोदिया वंश के पराक्रम की अमर कहानीओं का जीवंत प्रदेश राजस्थान !!

मेवाड के सूर्यवंशी राजपूत महाराणा उदयसिंह और जयवंताबाई के निर्मित बल १५४० की ९ मई जेष्ठ सुद त्रीज को कुंभलगढ के दुर्ग में प्रताप का जन्म हुआ। आज करीबन ४८३ साल का समय बीत चुका हैं इस घटना को
आकार लिए। फिर भी भारत के शौर्य में, भारत की आत्मा में आज भी  महाराणा प्रताप धडकन बने हुए हैं। वीरता की मिसाल खडी करने वाले प्रताप !! अपनी जन्मभूमि के लिए प्रतिबद्ध प्रताप !! धरती का कर्ज चुकाने प्रतिज्ञित प्रताप !! और मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाकर लडने का जुनून हैं प्रताप..!!

१८ जून १५७६ के दिन हल्दीघाटी में मुगलों की सेना के सामने महाराणा का युद्ध हुआ था। भील सरदार पूंजा सोलंकी ने अपनी भील सेना इस युद्ध में शामिल की थी। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह ने किया था। तीन-चार घंटे चले इस भयानक युद्ध में महाराणा प्रताप घायल हुए। बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान देकर महाराणा की रक्षा की थी। अद्भुत तरीके से प्रताप को युद्ध से हटाया गया था। मेवाड प्रताप के बिना अधूरा था। राजपूत भीलों की सेना के प्राण थे प्रताप... ईसीलिए उनका जीवित रहना जरुरी था। ईस युद्ध में १७००० उपरांत सैनिकों की मौत हुई। मुगल सेना हतप्रभ हो गई। इतिहास कहता हैं की आमने-सामने के इस भयानक युद्ध में महाराणा की ही जीत हुई थी लेकिन मुगल सेना के घेराव के कारण प्रताप को जंगल में छुपाना पडा। भयानक यातनाओं के बीच भी प्रताप का मनोबल तूटा नहीं। भामाशा ने २४००० सैनिकों के बारह साल तक के निभाव की व्यवस्था की थी। एक मात्र मेवाड के प्रति प्रताप की ममता और जननी जन्मभूमि को आजाद कराने की महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा संघर्ष में भी सहायता खोज लेती थी। मनोबल से प्रताप का मुकाबला हो ही नहीं सकता। मेवाड की मुक्ति के लिए घास खा कर भी और खून के अंतिम बूंद तक की न्योछावरी प्रताप का संकल्प बन गई थी।

राजस्थान के इतिहास में १५८२ का दिवेर का युद्ध महत्वपूर्ण माना जाता हैं। क्योकि इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को खोये हुए राज्यों की प्राप्ति हुई। ईस लंबे युद्ध को कर्नाल जेम्स टॉर्ड ने "मैराथन ओफ मेवार" कहा था। दिवेर की विजय महाराणा के जीवन का उज्जवल कीर्तिमान हैं। जहां हल्दीघाटी का युद्ध नैतिक विजय और परिक्षण का युद्ध था लेकिन दिवेर का युद्ध छापली का निर्णायक साबित हुआ। इसके फलस्वरूप संपूर्ण मेवाड पर महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। हल्दीघाटी के रक्त का बदला प्रताप ने दिवेर के युद्ध में चुकाया।

महाराणा प्रताप के शौर्य-संकल्प-मातृभूमि गौरव और स्वाभिमान का कोई मोल नहीं हो सकता। दिवेर विजय की दास्तान सर्वदा हमारे देश की प्रेरणास्रोत हैं। आज भारत के अमर सपूत महाराणा प्रताप के जन्मोत्सव की बधाई। साथ हरपल कुछ नयेपन के विषय के साथ...!!

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Sunday, May 7, 2023

THE RADHAKRISHNA.
May 07, 20231 Comments

 The Highest feeling of love.

इश्क के नूर में डूबके पश्मीना हो गए...!!




पश्मी यानी ऊन wool. नूरेजहाँ कश्मीर के पर्वतीय प्रदेश में ये बेहतरीन उन पाने के लिए भेड़-बकरियों को एक ऊँचाई पर ले जाना पडता हैं। वहाँ रहने के बाद उस भेड़-बकरियों पर जो ऊन पाया जाता है वो बहुत ही महंगे दामों में बिकता हैं। उससे बनीं कश्मीरी शाल तो बेशुमार कीमती हैं। प्राकृतिक रूप से सर्दी के कारण साथ ही उस प्राणी की अंदरुनी ताकत से ये बदलाव ऊन में दिखाई पडता हैं। ईश्वर की प्रकृतिगत दुनिया में सैद्धांतिक आधार पर कोई पडाव का महत्व हैं। उच्चतम शिखर पर पहुँचने का प्रयास ही बेहतरीन निर्माण के लिए कारणभूत हैं। ये बदलाव ऐसे नहीं होता...इनमें शामिल हैं कुछ पाने के प्रयास। अपनी पहचान से ऊपर उठकर नई पहचान बनाने का पागलपन।

एक हिंन्दी अल्बम सोंग की कुछ पंक्तियों ने मुझे आज का ब्लोग लिखने के लिए विवश कर दिया। "रब ने मिलाई धडकन" सोंग देवरथ शर्मा ने गाया हैं।बहुत ही सुंदर गीत हैं, सुनने का और उस गीत की फिलसूफी को समझने का आनंद भी लेना। इश्क की खूबसूरती ही बदलाव हैं..! ये भी ईश्वरीय स्पर्श की करामात हैं। भीतरी बदलाव की अवस्था ऐसे नहीं होती। तपना भी है, तड़पना भी, ढलना और ढालना भी हैं, बदलना और बहना भी...! कुछ नये आकार को धारण करने का नाम ही इश्क हैं। मनुष्य के रुप में हमें प्रकृति के मार्गदर्शन में या तो प्रकृति के बदलाव को महसूस करके जीने की आदत डालने का प्रयास करना चाहिए। वही हमें भीतरी आनंद की सहलगाह करवाने सक्षम व समर्थ हैं।

प्रेम-इश्क-समर्पण-बदलाव की बात करे और राधा-कृष्ण की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। कृष्ण जब गोकुल छोडकर जा रहे थे। तब आखरी बार वो राधा को मिलने जाते हैं। राधा बहुत ही व्यतीत हैं, राधा तडपती हैं। वो कृष्ण को देखते ही भला-बुरा जो कुछ मन में आया वो क्रोध में आकर कहने लगती हैं। "तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो ? तेरे वादें वो यादें कैसे भूलें, मेरी परवाह किए बिना जाने की बात तुने कर भी कैसे ली ?" कृष्ण मुह फेर लेते हैं, राधा ओर क्रोधित होकर चोधार आंसुओ से बरसती हैं। थोड़ी देर बाद कृष्ण राधा के सामने अपना मुंह करते हैं। ये क्या हुआ ? आंसु भरे कृष्ण का आधा शरीर राधा बन चुका था...!! इस दृश्य को देखते ही राधा अचंभित व शांत हो गई। राधा के सारें प्रश्न सारी अपेक्षाएं समाप्त हो चुकी थी..!! बचा था एकमात्र अद्भुत-अदम्य बदलाव। परस्पर का अतूट-असीम स्नेह का अदृश्य बंधन ही तो बचा था अब..!! इसे हम अद्वैत कहें Extreme level feelings of love कहें। राधा-कृष्ण का प्रेम इसीलिए तो शाश्वत सीमांकन को अंकित करने योग्य बन गया हैं। आज भी प्रेम की उच्चतम अवस्था के धनी राधाकृष्ण ही तो हैं।

महान ईश्वर हमें अलौकिक अवस्थाएं देते हैं। हमें अवस्थाओं के पडाव को पार करते हुए, कई नए पहलूओं से गुजरते हुए पश्मीना के बहुमूल्यन को धारण करने का करतब सिखना हैं। आनंदविश्व सहेलगाह कुछ ऐसे ही पडाव से गुजरती हुई "प्रेमउर्जा" से राधाकृष्ण अनुभूत संचरण प्राप्त करें इस शुभ कामना के साथ आपका...!!

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Wednesday, May 3, 2023

BE YOUR OWN LIGHT.
May 03, 20230 Comments

 The Buddha is clearity, confidence and consciousness.

बुद्ध क्या हैं...?
बुद्ध निर्मलता हैं...! बुद्ध आत्मविश्वास व श्रद्धा हैं...! बुद्ध चैतन्य या आंतर प्रतिति हैं !!


ईसापूर्व 563 में नेपाल के लूंबिनी में भगवान बुद्ध का अवतरण हुआ। उनके जीवन की कईं बातों से सब अवगत हैं। माहिती से बच कर थोडा बहुत चिंतन आज बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर अक्षरांकित करता हूँ। एक वाहक के रुप में मैं अपनी थोडी सी बात-छोटी सी बात रखता हूँ। विश्व को मार्गदर्शन करनेवाले भगवान बुद्ध की विचार सहेलगाह में आपका स्वागत करते हुए बुद्ध पूर्णिमा की शुभेच्छा..!! बुद्धि को विकसित करने वाली प्राकृतिक घटना के साथ !!

भगवान बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग यानि सम्यक मार्ग में मनुष्य जीवन का आनंद समाहित हैं। मनुष्य जीवन के योग्यतम दिशा निर्देश यहाँ स्पष्ट हैं। बुद्ध त्याग तपस्व और प्रेम के बीज रूप हैं। जहाँ इसका अनुसरण होगा वहाँ शांति का साम्राज्य स्थापित होगा। विश्व की समस्याओं का समाधान भी दृश्यमान होगा।

🌎 सम्यक दृष्टि
🌍सम्यक संकल्प
🌎सम्यक वाणी
🌎सम्यक कर्मान्त
🌍सम्यक आजीविका
🌏सम्यक व्यायाम
🌎सम्यक स्मृति
🌎सम्यक समाधि

भगवान बुद्ध सम्यक दृष्टि के उच्चतम शिखर हैं। "स्व" पर विजय प्राप्त  करने की बात बुद्ध ने बताई हैं। ईसके द्वारा जीवन करुणा दृष्टि विकसित करने की यात्रा बन जाता हैं। अपना मन ही सर्वस्व हैं, हम जो विचार करते हैं वो बनते हैं। जीवन की यात्रा में विचार ही हमारा मार्ग तय करता हैं। और जीवन की सम्यक गति भी इससे ही विकसित होती हैं। 

बौद्ध धर्म में "बोधिसत्व" का विचार अनुसरण हैं। जो व्यक्ति बुद्ध बनने का सतत प्रयास करता हैं वो बोधिसत्व हैं। अनुभूत हो कर सतत सिखते रहना ही तो जीवन हैं। हम कभी सिखने की बात से दूर नहीं रह सकते हैं। हम  स्विकार करें या न करें सिखने की अद्भुत प्राकृतिक पक्रिया के यात्री हैं। भगवान बुद्ध ने इस सम्यक मार्ग के अनुसरण का उपदेश दिया हैं। अपने शिष्यगण को सहज प्रतिबिंबित दृष्टि से अवगत करके समाज में स्थापित करते बुद्धदेव ने " धीरज और ध्यान " का सम्माननीय मार्ग दिखाया हैं। समज पूर्वक के प्रेम से सबका समाधान भगवान बुद्ध बने हैं। विश्व को त्याग तपस्व पंथ से करुणामय बनाया हैं। चित्त का चैतन्य निर्माण करने का सामर्थ्य बुद्ध में हैं। सम्यक दृष्टि के कारण मैं भी बिचार शृंखला आगे बढाता हूँ। 

शांत मन एवं शांत गति से जीवन को सम्यक बनाने का आनंदमार्ग भगवान बुद्ध ने स्वयं प्रेरित किया हैं। साथ ही अनुभूत जीवनशैली से सहज जीवन व्यापन का " करुणामार्ग " बुद्ध ने दिखाया हैं। विश्व को सम्यक जीवन दृष्टि का मार्गदर्शन करने वाले भगवान बुद्ध के अवतरण दिन की शुभकामना के साथ....सम्यक मार्ग की और....करुणा के उच्चतम पंथ की और....!!आनंद विश्व सहेलगाह का प्रयास भगवान बुद्ध के चरणों में समर्पित करता हूँ। "अप्पो दीप भव:" की अद्भुत स्वाभिमान बात बुद्ध ही कर सकते हैं।ईसीलिए सम्राट अशोक भी शरणं शरण में आ सकते हैं। बुद्ध ही वो चैतन्य हैं जो समत्व और एकत्व की बात रखकर चमत्कार कर सके...!! 

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Monday, May 1, 2023

The Gujarat.
May 01, 20230 Comments

 The Gujarat's Great Day.

Ravishankar DADA was messenger of MAHATMA GANDHI.

       पू. दादा ने गुजरात के राज्य के स्थापना दिवस पर दिये अपने मंगल शुभसंकल्प संदेश प्रेषित करते हुए कहा था " प्रभु हमें गांधीमार्ग पर राज्य चलाने, धन की मर्यादाओं के बीच संस्कारों से भव्य बनके भारत के सेवक बनने की शक्ति और सद् बुद्धि दें। साथ ही प्रभु सुपंथ पर चलने का बल दें ऐसी प्रार्थना करके नव प्रयाण करें।" 



हमारे राज्य की आज ६३ मी वर्षगांठ हैं। १ मे १९६० को मूक सेवक,गांधी मार्ग पर चलने वाले रविशंकर महाराज ने अपने भाषण में बहुत ही संवेदना से भरी बात रखी थी। गुजरात की प्रजा को नजदिकता से पहचानने वाले एवं लोगो के बीच पूरा जीवन व्यतीत करने वाले दादाने अपनी अनुभव मुद्रा को प्रकट करते हुए गुजरात के कल का बीज बोया था। गांव की, मजदूर एवं किसान की, कसबी-कलाकार की वेपार वाणिज्य की और सागरीय नाविकों की अद्भुत कुशलता को याद किया था।

"लोकशाशन की चाबी लोकशिक्षा हैं।" ऐसा उत्कृष्ठ मंत्र पू. दादा ने दिया हैं। सबके साथ चलने की बात में ही हमारी प्रगतिशीलता हैं। उनकी एक छोटी सी बात लिखता हूँ। "घास के एक तिनके में कितना बल होता है ?? बहुत ज्यादा तिनके इकठ्ठे करें फिर भी पवन का एक झोंका उडा देगा। लेकिन उस तिनकों से बनी रस्सी से हाथी जैसे महाकाय प्राणी को बाँध सकते हैं। हाथी को बांधने का बल तिनके में आया कहाँ से ?? हमें एक दूसरें के साथ प्रेम से जुड़े रहने का संकल्प पू.महाराज ने दिया हैं। उन संकल्पबल को धारण किए बिना क्या हम पूर्णता को प्राप्त कर पाएग़ें क्या..?! पू.महाराजजी को शत शत नमन !!

हमारा राष्ट्र सांस्कृतिक विरासत से एवं विविधता से भरा हैं। भारत के सभी भू भाग की अनूठी विशेषताएँ हैं। खान-पान,रहन-सहन,भाषा-बोली सब अलग अलग साथ ही भौगोलिक विविधा भी..! फिर भी हम एकत्व के मूलमंत्र को अपनी साँसों में बसाएं !! एक राष्ट संकल्प के अनुसरण में जी रहे हैं। विश्व को मार्गदर्शन करने का हमारा ईश्वरीय सामर्थ्य बनाए हुए अडिग हैं। हमारे भारत की इस भीतरी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की एवं सत्यापन की संकल्पबद्धता के अनुसरण में दायित्वबोध की आवश्यकता हैं क्या ?! हमारे भारतवर्ष को कौन करेगा ये बोध ?!
मैं आप और हम..!!

आनंदविश्व सहेलगाह में ऐसे सहज अनुसरण की बात रखकर कर्तृत्व आनंद महसूस कर रहा हूँ। जय जय गरवी गुजरात...!!

 Your ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar.
Gujarat INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234

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