समर्पण की अंतिम सीमारेखा लांघने वाली,
अद्भुत प्रेम दिवानी...मीराबाई।प्रेमानंद स्वामी का एक विडिओ देखने में आया। थोडे ही शब्दों में मीराबाई फिर एक बार मन को जंकृत करने लगे। वैसे तो समर्पण के कईं चरित्रों में मुझे मीरा सबसे ज्यादा पसंद हैं। उनकी 'प्रेमप्रज्ञा' से प्रकट हुए पद और भजन भारतीय भक्ति साहित्य के शिरमोर हैं। लेकिन मुझे मीरा का कृष्ण के प्रति दीवानापन सबसे ज़्यादा पसंद हैं। देखते हैं, प्रेमानंदजी के शब्द में मीराबाई..!
मीराजी को जहर पीलाया गया। दासी ने आकर बताया की ये जहर है जहर..! पर जो लाया था उसने बोला की ये गिरधर का चरना अमृत हैं। मीराजी को दासी ने कहा चरना अमृत नहीं ये ज़हर हैं। तो उन्होंने कहा नहीं, जब ये कह रहे हैं की गिरधर का चरना अमृत हैं तो मैं पियूंगी। मीरा गिरधर का चरना अमृत समझकर पूरा पी गई। और करताल उठाई पूरी रात नाचती रही, कुछ फ़र्क नहीं पड़ा। अब राणा विक्रम जो उनका देवर था, उसको लगा की वैद्य ने हमारे साथ कुछ धोखा किया हैं। जहर के नाम पर उसने कुछ ऐसे ही घोल कर दे दिया है इसलिए मीरा को कुछ नहीं हुआ हैं। तुरंत उस वैद्य को बुलाया गया और उसको कटोरे में जो बचा था, वो चटाया गया। वैद्य तुरंत मर गया। विष इतना जहरीला था की एक बूंद चाटने से भी वैद्य मर गया। मीराजी को जब पता चला तो उन्होंने उस वैद्य की रक्षा के लिए गिरधर को बिनती करते हुए कहने लगी : "हे गिरधर यदि मन वचन कर्म से हम आपको अपना प्रीतम मानते हैं तो वैद्य अभी जीवित हो जाए..!" कहते हैं उसी क्षण वैद्य जीवित हो गया। भगवान में अपार सामर्थ्य हैं।
इस कहानी में किसी को चमत्कार दिखे तो हल्ला मत बोलना। मुझे कहानी की समर्पितता पसंद आई हैं। मुझे मीरा पसंद है इसलिए मिरेकल्स भी अच्छे लगते हैं। everything is fair in love and war. प्रेम में सब जायज हैं। मीरा के लिए कृष्ण सबकुछ हैं, वो उनके लिए कुछ भी कर सकती हैं। कृष्ण दैहिक रुप से सृष्टि में नहीं है फिर भी..! और कृष्ण भी मीरा के समर्पण से द्रवित हैं। वो मीरा के लिए कुछ भी करेंगे। ये पारस्परिक प्रेम चमत्कार भी खडा कर सकता हैं। मीराबाई कृष्ण की मूरत के सामने अपने हृदय के भावों को खुले मन से प्रकट करती थी। कृष्ण में समाई हुई और सर्वत्र कृष्णा को अनुभूत करती मीरा इस संसार की सबसे बड़ी समर्पिता हैं। मीरां की प्रेमशबद बानी के बिना मैं विशेष क्या लिख पाऊंगा !? पढ़िए कुछ पंक्तियाँ..!
"हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय।
जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय।
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय।"
एक ओर सुप्रसिद्ध भजन की दो पंक्तियाँ..! प्रभुजी के प्रेम को पा कर और कुछ नहीं चाहिए। वो संसार का सबसे बड़ा धन हैं। इन्हीं विचार के साथ...!
"पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुर, किरपा कर अपनायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो..!"
मैंने मीराबाई के पद-भजन को जब भी पढ़ा है, तब वो मेरे मन का आनंद बनी हैं। मीरा मेरे लिए एक चरित्र से बढ़कर हो गई हैं। वो एक शब्द विचार से अनुभूति बनी जा रही हैं। आज भी उनके शब्दों के संगीत मढ़े स्वरोंकन अद्भुत लगते हैं। मीरा कृष्ण में लीन थी, वो कृष्ण में ही जी रही थी। इसी तरह मीराजी कईं हृदयों में बसे हुए हैं।
मीरा अमर हैं, मीरा सनातन हैं..! जब तक कृष्णा है तब तक इस संसार में मीराजी रहेगी। क्योंकि मीराजी कृष्ण में समाहित हैं।
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
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मीरा का प्रेम एक प्रसिद्ध औरभगवान कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति और प्रेम के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की
ReplyDeleteमीरा बाई का जीवन भगवान कृष्ण के प्रति उनकी गहरी भक्ति और प्रेम के लिए जाना जाता है। उन्होंने कृष्ण को अपना पति माना और उनके लिए गीत और पद लिखे।
मीरा का प्रेम कृष्ण के प्रति अनन्य और गहरा था। उन्होंने कृष्ण को अपना सर्वस्व माना
मीरा बाई की कहानी और उनकी रचनाएं भारतीय भक्ति साहित्य और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं उनका प्रेम और भक्ति आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं
મીરાંને પૂછવામાં આવ્યું કે તને કૃષ્ણ મળ્યા છે તેથી તું નૃત્ય કરે છે કે નૃત્ય કરે છે તેથી તેને કૃષ્ણ મળ્યા છે?
ReplyDeleteમીરા એ કહ્યું કે હું ક્યાં કંઈ કરું છું. હું તો માત્ર સમર્પણ કરું છું અને બીજું કોઈ મારી પાસે કરાવે છે અને મને તેના સાધન બનવાનો આનંદ છે.
Dr.Haribhai Patel, Dentist
Thanks sirji 😊
ReplyDeleteGood....
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