Only the spring..? - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Friday, February 16, 2024

Only the spring..?

जीवन में ठहरे हर पतझड़ का बस अंत हो..!

केवल वसंत हो !!
Life finds a way and nature helps always.


एक पडाव से दूसरें पडाव की और जाना, एक स्थिति से दूसरी स्थिति में प्रवेश करना, एक अनुभव से दूसरें अनुभव तक पहुँचना ये सब एक ही बातें हैं। पतझड के बाद बसंत..! प्रकृति का एक अनमोल बदलाव हैं। जैसे प्रकृति की अनवरत गति हैं वैसे हमारे जीवन की भी गति हैं। प्रकृति और जीवन का संबंध हैं की वो हमें हमेशा मददरूप रहती हैं।
कैसे मदद करती है प्रकृति ?
प्रकृति हमें कुछ दिखाती हैं, सिखाती हैं। कुछ अनुभूत करवाती हैं। उनकी अदृश्य चेतनाएँ हमारें भीतर गतिमान हैं। ईश्वर के इस स्पर्श को हम प्रेम कह सकते हैं। हम सब ईश्वर की प्रेम वस्तु हैं। एक हैं पतझड़ जो छोडना सिखाती हैं, एक तरफ वसंत है वो अंकुरित होना सिखाती हैं। ये युगों के अनवरत बदलाव को में ईश्वर की "प्रेमपरंपरा" कहते आनंदित हूँ। इस विचार मात्र से मैं वसंत का स्पर्श अनुभूत कर रहा हूँ।
thanks nature and love you god.


हमारें प्यारे ईश्वरकी प्रेमदुनिया की मशहूर ऋतु वसंत की बधाई-बधाई।
पतझड़ और वसंत प्रकृति की दो अलग-अलग स्थितियां हैं। एक में काफी कुछ छूटता हैं और दूसरी तरफ सब पाना ही पाना हैं। नयेपन को धारण करने का अद्भुत आनंद हैं। छूटता है तो कुछ झुडता भी हैं। शायद ये प्रकृति हमें भी जीवन सिखाती हैं। पतझड़ का भी एक आनंद होता हैं उसे हम एतबार भी कह सकते हैं, आशा व श्रध्दा भी..! 
क्या-क्या सिखाते है, ऋतुओं के ऋतबें !?
एकमात्र प्रेमका निर्वहन करने वाली प्रेमऋतु वसंत के बारे में क्या लिखना ?
क्या पढना ? केवल महसूस करना ही मुनासिब लगता हैं। मैं लिख रहा हूँ वो मेरा आनंद हैं। मेरे महसूस अनुभव को शब्दरुप दे रहा हूं। आप शायद वसंत की प्रेमदोर से खिंचे हैं इसलिए पढ रहें हैं। आखिर हम सब प्रेमरंग को पिए जा रहे हैं। वसंत तो वसंत हैं। सहज-असहज का अनोखा रंग हैं। यहाँ प्रकृति ने रंग बिखेरे हैं साथ ही कईं दिलों में भी रंग छाये हैं !! सबके अपने रंग !! सबकी अपनी वसंत !! 
पतझड़ और वसंत का प्राकृतिक मेल प्रेम हैं। इस प्रकृति प्रेम की घटना के साथ सद्गुरु की अद्भुत प्रेम कविता रखता हूं।

प्रेम-नहीं होता केवल मधुर शब्दों,
या कोमल स्पर्श और रसीले भावों के लिए।
प्रेम एक आधार है
जिस पर टिकी हैं निष्ठा, साहस और बलिदान।
सिवाय उनके जिनके हृदय
प्रेममें डूबे होते हैं
कौन रख सकता है ?
दूसरों के कल्याण को अपने से ऊपर ?
कौन हो पाया है खड़ा भय और विपदाओं के सामने ?
केवल वही जो लुटा चुके हैं सबकुछ - प्रेम में..!
कौन हुआ है तत्पर, प्रेमियों से बढ़कर ?
कर देने न्योछावर, प्रेम की वेदी पर
अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु को और स्वयं को भी।
समस्त मानवीय गुणों में,
प्रेम ही हैं
सबसे कोमल और सबसे अविचल।

मेरी नजर में इससे अच्छे प्रेमशब्द शायद नहीं पड़े। इसीलिए आपको भी प्रेषित करता हूं।आनंदविश्व सहेलगाह की कुछ अच्छे विचार बाँटने की छोटी-सी हरक़त ! कुदरत हमें यही सिखाने की कोशिश में है। हरएक ऋतु परिवर्तन सिखाती हैं। जीवन के घटनाक्रम की बात सहज सिखाती हैं। कोई कविता या ब्लोग वसंत नहीं हैं। मगर वसंत को देखने-महसूस करने के नजरिए को बदल देती हैं। शायद ये कईं प्रकार की व्यस्तताओं में एक कोयल की मधुर आवाज हैं या वसंत की टीक-टीक !?!

आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
9428312234.

1 comment:

Thanks 👏 to read blog.I'm very grateful to YOU.

Strength of words.

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