नैतिकता के बारें में बात करने की मेरी वैयक्तिक क्षमता है कि नहीं ये जानते हुए भी लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे इतना पता हैं नैतिकता जीवन का आधार होने के बावजूद उसे धारण करना पडता हैं। मैं नैतिक़ हूँ ये नाप ने का कोई पैरामिटर्स बना नहीं। एक मूल्य सत्य की बात करते हैं। सत्य सनातन हैं और शाश्वत भी हैं। अब सत्य को धारण करना, एक मूल्य को या अपनी वैयक्तिक नैतिकता बढ़ाने का प्रयास करना। जन्म से सत्य हमारे साथ झुडा नहीं उसे जोड़ना पडता हैं। सत्य की आराधना नहीं करनी हैं उसका आचरण करना हैं। एक बात समझनी चाहिए कि एथिक्स या मूल्य से हमारी पहचान बनती हैं। हमारी पहचान, रुतबा या और कोई उपलब्धि से एथिक्स में कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। मूल्य-मूल्य ही रहते हैं, उससे हमारी कीमत हमारा मूल्य बढ़ सकता हैं। महात्मा गांधी हमारे प्यारे बापू के पहले भी सत्य था। बापू के पहले राजा हरिश्चंद्रजी ने सत्य का पालन किया था। दोनों सत्यवादी भी कहलाये थे। मतलब एक सत्य नाम के मूल्य के सभानतापूर्वक के आचरण से व्यक्ति की पहचान बनती हैं। उसके कारण सत्य में कोई उठाव या गिरावट नहीं आती। सत्य सत्य ही रहेगा। इसी कारण मूल्य में कोई फ़र्क नहीं आता। यहां केवल उदाहरण के तौर पर सत्य की बात रखी हैं। ये बात मेरी समझ में आई इसीलिए ब्लॉग का विचार निमित्त प्रगट हुआ।
मैंने गूगल पर Ethics एथिक्स की कुछ डेफिनिशन इस प्रकार प्राप्ति कि हैं। उसको पढकर आगे बढ़ते हैं। "The study of what is right and wrong in human behaviour."
"नीतिशास्त्र मानवीय व्यवहार में उचित-अनुचित की मीमांसा।"
"Beliefs about what is morally correct or acceptable."
"उचित-अनुचित का विचार।"
"Athicse gives happiness..!" नैतिकता खुशी देती है।
एथिक्स एक्शन हैं। उचित व्यवहार हैं। जो हमारे भीतर को आनंदित करे वो वर्तन है। जीवन को अच्छी पहचान देकर सम्मानित प्रतिभा का विकास करे वो एथिक्स है, मूल्य हैं। वैसे तो एथिक्स का एक अर्थ 'नीतिशास्त्र' हैं। नीति को हम मूल्य भी कह सकते हैं। इस के कारण एथिक्स को एक अर्थ में 'मूल्यशास्त्र' भी कह सकते हैं। 'आचारशास्त्र' भी कहते हैं।
एथिक्स जीवन की प्राण शक्ति है। मनुष्य जीवन के लिए एक अच्छे जीवन व्यवहार के लिए ये बहुत ही कारगर हैं। उचितता ईश्वर को भी पसंद होगी..! इसलिए प्रकृति उचितता से भरी हैं। नदी का काम केवल बहना हैं। उससे अलाभ से ज़्यादा लाभ ही हैं। कभी कभार विनाश के कारण थोड़ी बहुत बेबसी का सामना करना पड़ता है फिर भी नदी के कारण अनगिनत लाभ हैं। ये प्रकृति की मौन उचितता हैं।
आज समय थोडा विचित्र हैं। 'एथिक्स' की बात सुनने में अच्छी लगती हैं। लेकिन थोड़ाबहुत उचितता से जीना चाहा आप कोने में चले जाएंगे। क्योंकि एथिक्स से सबको डर लगता हैं। उसको सम्मान देकर या कोई इनाम-अकराम- पुरस्कार देकर सम्मानित करके समाज अपना दायित्व निभा रहा हैं। अपने आप इस स्थिति को भीतर से देखना का प्रयास करें। शायद मेरी बात सही लगेगी। हाँ, एकबात ओर भी देखने में आती है, उचितता से जीने का प्रयास करने वाले व्यक्ति के जीवन को छानबीन करना। कहीं पर उसकी भूल सामने आए तो बात बन जाए। उसकी अच्छाई के सामने बुराई का खेल खेला जा सके। इन सबको मरते-नज़र रखते हुए हमे जीना हैं। अच्छे विचार-वर्तन को पालते हुए चलते रहना हैं। देखना हैं, ईश्वरीय सिद्धांत के खिलाफ कोई जीत पाता है ? या एक समूह की अंदरुनी चापलूसी से खुशी पाकर बनावटी हँसी से जीता जा सकता हैं क्या ? इसे हम 'शाहमृगवृत्ति' कहेंगे तो ठीक रहेगा। डर के माहौल में, तूफान में शिर छिपाकर "मैं सुरक्षित हूं" का अहसास बनाए रखना, बचते रहेना..! इसका आनंद लेनेवाले लोगों के जीवन की उन्नति के लिए प्रार्थना...! ये मेरी विचार उचितता हैं।
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA
drbrijeshkumar.org
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मूल्य की अदभुत बात अहा रखी है। हम ऐ न भूले की मूल्य के बिना संसार अधूरा है। Thank you sir
ReplyDeleteनैतिकता का जन्म नही होता यह स्वयंभु हैं, सत्यम् ज्ञानम् अनंतम् ब्रह्म!महात्मा गांधीजी ने हरिश्चंद्र के जीवन से जुड़े सत्य को आत्मसात किया तो महात्मा बने, लेकिन ईसी सत्य के कारण ईनका जीव भी गया, इसलिए कि गांधीजी का सत्य सार्वजनिक था,ऐसे ही यहां महत्तम समुदाय ऐसे ही अनैतिक और असत्य जीवन जी रहे हैं कोई भी शख्स कुछ थोडा भी प्रयास करता है संघर्ष करता है,हम माने या ना माने जीवन का एक दुसरा रुप भी है जैसे पौराणिक कथाओं में वर्णित है दैवीय और आसुरी शक्तियां काल -समय वैसे तो मर्यादा से उपर हैं लेकिन ईसे भिन्न भिन्न नाम मिले हैं ईस प्रकार हम आज कलियुग में जी रहे हैं यहां मानवीय भावनाओं मुल्यो के साथ साथ बुद्धि में भी गिरावट आई है मानव सभ्यता को संसाधनों के उचित उपयोग के साथ बांधछोड समाधान करना पडता है ऐसा नही है कि हम हमारी आय से अपनी आवश्यकताए पुरी नही कर सकते हैं दो वक्त की रोटी और एक आशियाना चाहिए लेकिन मन हैं कि मानता नही है फिर एक संक्रमित बिमारी आगु होती है यहां से अनैतिकता प्रवेश करती हैं, श्री रामचन्द्र का मंदिर हमारे लिए आदर्श हैं लेकिन श्री राम का जीवन हमारे लिए कोई एहमियत नहीं रखता है,हम मुर्तियां बनाते हैं और पुजते हैं गुणो की पुजा नही करते हैं तो जैसा हमारा चिंतन होगा हमारी विचारधारा भी ऐसी ही बनती जाती है, भौतिक विज्ञान भी मान चुका है हम जो सोचते हैं बनते हैं हमारी सोच में गुणो का कोई स्थान नही है तो फिर पदार्थ की तरह चित्र भी जड है हम भी जड बनते जाएंगे इसलिए गुणों की संस्कारों की बात चिंतन जरुरी है, नैतिकता सत्य और अहिंसा भी गुण हैं,,ऐसे गुणो का चिंतन चितवन अनिवार्य हैं।
ReplyDeleteThanks...बहुत विस्तृत काॅमेन्ट हैं, आपका नाम लिखना चाहिए। सबको पता चले आपके विचार।
ReplyDeleteઆજ કલ જો જિસકે લિયે અચ્છા વો એથિક્સ હો ગયા હૈ
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