मुश्किलें हरहाल में अपने भीतर एक रास्ता छिपाकर आती हैं...भरोसा कायम होना चाहिए।
'कठिन है चाहते रहना' हिन्दी रचनाकार के पेज पर से ये कुछ पंक्तियाँ मुझे मिली हैं। उनका ऋण स्वीकार करते हुए आज के ब्लोग का विचार विस्तार करता हूं। कुछ वस्तु या फिर व्यक्ति को पा लेना एक उपलब्धि हो सकती हैं। लेकिन उसे जीवनभर संभालकर रखना थोड़ा मुश्किल हैं, जनाब। जैसे चाहना एक सरल प्रक्रिया है लेकिन चाहते ही रहना बड़ी धीरज वाली बात हैं। ऐसा कब होता है जब समर्पण की मर्यादा को लांगकर जीया जाय। ऐसे जीना संभव हैं फिर भी लोगों ने इसे असंभव ही बना दिया हैं। और अपनी ही मर्ज़ी के मंजर को अंजाम दे रहे हैं।
कहीं पढ़ने में आया था। सबसे अच्छे इन्सान की पहचान क्या हो सकती हैं, उनके सवाल का उत्तर था, "जिसका दोस्त पुराना और नौकर पुराना वो इन्सान पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता हैं।" एक ही लाइन में जीवन की बहुत बडी फिलसूफी समझ में आ गई। जीना इसी का नाम हैं। दोस्त-यार दूंढने से नहीं मिलते। दो व्यक्तिओं में पारस्परिक ऐसा कुछ आकर्षण बन जाता है। इसे में व्यक्तिगत रुप से अलौकिक बेला समझता हूं। उनमें स्त्री-स्त्री, पुरुष-पुरुष और स्त्री-पुरुष भी हो सकते हैं। उनके बीच कोई धर्म-अर्थ काम का दायरा नहीं होता। जाति-पंथ-संप्रदाय का दायरा नहीं होता। वहाँ नितांत प्रेम गांभीर्य से भरी सरिता की तरह बहता जाता हैं। किनारों को जोडता हुआ, प्रकृति को पोषता हुआ। कईं चिड़ियां के गीत का कारण बनते हुए। कई वृक्षों की मीठाश संजोए हुए नदियां बहती है, वैसे ही प्यार बढ़ता ही रहता हैं।
जिसे संबंध के अनुराग का फूल मिला है उसे संभालना सीखना चाहिए। नहीं सीखे तो जीवन भर की पीडाओं का सामना करना पड़ेगा। प्रायः प्रेम से 'जीवनआनंद' मिलता हैं। उसे कायम करने की जिम्मेदारी वैयक्तिक रुप से हमारी ही होगी। उसमें ईश्वर जो चाहते हैं, वैसा ही मनुष्य जीवन होगा। लेकिन वैयक्तिक स्वार्थवृति बढ़ती है तो संबंध का टिकना नामुमकिन हो जाता हैं। एकबार संबंध को हृदय से महसूस करना चाहिए। उसकी अनुभूति के लिए समय निकालना चाहिए। फिर देखें जीवन की परेशानियां कैसे समाप्त होती हैं। संबंध किसी भी प्रकार का हो, लेकिन वो कभी दुःखकारक नहीं होता। हमारा नजरिया बदलता है तब उसमें खोट आती हैं। एक व्यक्ति जब अच्छे संबंध की शुरूआत करता है, सामनेवाला शायद उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाता तब एक स्थिति पैदा होती है जिसमें पीड़ा ही होती हैं। लेकिन जो संबंध के लिए तरसता रहता है उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वो अपने आनंद में पीछे हट जाएगा। ये संबंध वाला फंडा है, बहुत कीमती हैं संबंध...इतना मैं समझ रहा हूं।
जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल आर्थिक उपार्जन ही नहीं हैं। तर्कसंगत बातों से Narrative मिथक या काल्पनिक कथात्मकता से दूर रहना ही अच्छे संबंध की प्राप्ति के लिए कारगर हैं। बाकी सबको अपनी वैयक्तिक या संगठनात्मक मनसा पूरी करने के षडयंत्रों का भोग बनना ही पड़ेगा। इसके कारण शारीरिक विकृति एवं सामाजिक विकृतियां ही बढ़ेगी। ईश्वर है की नहीं इसके प्रमाण ढूंढने के बजाय उसकी असरों से झुडे रहना होगा। तो संबंध को पा सकते हैं और प्रेम टिक भी सकता हैं। बाकी ईश्वर की चापलूसी भरें ढोंग क्या परिणाम लायेंगे आप स्वयं ही सोच सकते हैं।
मुझे लगता है संभलना है तो संभालना भी जरुरी होगा। और चाहत को कायम करने हेतु कैसे चाहना हैं..!? कैसे संबंध में टिकना हैं, कैसे संबंध को टिकाना हैं वो सीखना ही पड़ेगा..! एक बेहतरीन जीवन के लिए ये उपाय ठीक रहेगा क्या ?!?
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
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INDIA
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જેનો મિત્ર જૂનો અને નોકર પણ જૂનો મોજુદ હોય તો તેના પર આંખો મીંચી ને ભરોસો કરી શકાય...... વાહ એકદમ જોરદાર 👍👍👍👍👍
ReplyDeleteભાઈલાલ સુથાર, ગાંધીનગર
ભાઈલાલકાકા, સતત અભ્યાસું છે. રિટાયર્ડ થયાને 20 વરસ થવા આવ્યા. છતાં જ્યોતિષ આચાર્ય થયા. એમની કૉમેન્ટ ખૂબ ગમી..આભાર 🙏
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