प्रेमशक्ति ही विकसित होने का एक मात्र मार्ग हैं।
ईश्वर स्वयं प्रेम स्वरुपा हैं। ईश्वर प्रेम के बीज का सृजन कर्ता हैं।
जन्म का आधार ईश्वर हैं। जीवन का आधार ईश्वर हैं। झड़- चेतन का आधार ईश्वर हैं। विश्व की सारी शक्तियों का नियमन इश्वर तत्व के आधिन हैं। निमित्त रूप हम सब उसकी निर्वहन कला की वस्तुओं के रुप में हैं। जीवित हैं, बुद्धि से भरें हैं, सोच सकते हैं, बोल सकते हैं, अपने विचार से दूसरों का आनंद क्षेत्र बन सकते हैं। विश्वमें किसी व्यक्ति जीवन को आनंदित करने का कार्य सबसे बेहतरीन हैं। मनुष्य के चेहरें की खुशी से आगे ईश्वर तो सभी जीवों का आनंदक्षेत्र बननें की ख्वाहिश रखते होंगे...!! क्या ख्याल हैं आपका ? बस इस वैचारिक एकत्व की बात से ईश्वर खुश होंगे।
ईश्वर ने इसी के कारण प्रेम के उत्कृष्ट भाव को पैदा किया हैं। ईश्वर प्रेम स्वरुपा हैं। प्रेम की शक्ति ही ईश्वर की शक्ति हैं। ये बात सबको पता हैं। मैं कुछ नया विचार नहीं कह रहा। प्रेम तो शाश्वत हैं ..! अनादिकाल से चली आ रही प्रेमशक्ति के बारें में हमसब ने बहुत कुछ पढा हैं। लेकिन प्रेम की परिभाषा को समज ने के बजाय उसकी अनुभूति में जीना होगा। हम सब उसके हकदार हैं। प्रभु ने इसी शक्ति से हमारा निर्माण कार्य कीया हैं। तो ये जन्मदत्त अधिकार से हम दूर क्यों हैं ??
कुछ परेशानियाँ, सबसे आगे निकल जाने का पागलपन, वस्तु में सुकुन खोज ने की हमारी आदतें, किसी दूसरें व्यक्ति का स्वीकार ही न कर पाने की बुजदिली, खुलें मन से सब को स्वीकार करने की आवश्यकता हैं क्या ?!
आनंदविश्व की सफर में ईश्वर की उम्मीद समजने की कोशिश करना हैं। उनके साथ खुलें मन से की हुई बातों से हमारे भीतर कुछ न कुछ नयापन अवतरित होगा। श्रद्धापूर्वक कहता हूं। हजारों लाखों सालों से उसकी ब्रह्माण्डीय शक्तियों कार्य कर रहीं हैं। वो इन्सान को समय समय पर शक्तिमान बनाते जा रही हैं। नये आविष्कार नित्य नए आयामों के झुडने से सृष्टिकाल कितना गौरवशाली बन रहा हैं....!!
ईश्वरीय पारस्परिक प्रेमशक्ति से ये घटित हो रहा हैं। हमें इश्वर की पारस्परिक संवेदनाएं और अवलंबन की प्राकृतिक परिभाषा के बारें में विचार करना होगा। प्रेमबीज को संवारना होगा। सच है ना !?
आनंदविश्व की सहलगाह को प्रेममय बनानें का प्रयास करें। सब साथ मिलकर अपनी जीवन यात्रा को नयेपन के अवसर प्रदान करें। आपके साथ कुछ शब्द- विचार से आपका डॉ.ब्रजेशकुमार...!! 9428312234
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