A flute is small instrument.
Voice of air but...KRISHNA'S opinion is Different...!!
It's a voice of heart...!
मनुष्य ने अपने आनंद की प्राप्ति के लिए कईं मार्ग अपनाएं। उनको सफलताएं भी मिलती रही हैं। मनुष्य जीवन में संगीत का बडा महत्व हैं। झड़-चेतन, पशु-पंखी-मनुष्य सबकी पसंद...संगीत !! सूर-ताल से बनी मन को मोहित करनेवाली क्षण जहां निर्मित हुई वहीं से संगीत का जन्म हुआ। प्रथम संगीत के तत्व को किसने महसूस किया होगा ?मुझे तो लगता हैं...हवा की सरसराहट ही संगीत की माँ हैं। बहती हवा में उनकी आवाज में संगीत की हरेक धून सजी हैं। हवा के साथ बारीकी से जीना शायद कृष्णा ने शुरू किया होगा। हवा की धडकन को किसने सूना हैं ? कृष्ण ही पहले होंगे जिसने हवा को बांस में भरकर सूर को एकसूत्र में स्थापित किया। इसतरह बंसी हमारे बीच जीने लगी... उनके साथ हम भी !!
आए... कुछ बातें कृष्णा और बंसी की...नहीं महाराज कृष्ण और सूर की महारानी बंसी की..! कृष्ण बंसी बजाने वाले हैं लेकिन बजना तो बंसी को हैं। हां कृष्ण बजाते हैं इससे बंसी भी मूल्यवान बन जाती हैं।
यहां तक ठीक हैं। हम बजने-बजाने वाली बात समझ गए। लेकिन जो दिखाई न पडती फिर भी अहम हैं। बहनें की अपनी पहचान को छोड़कर बजानेवालें की मर्ज़ी को धारण करना सहज नहीं हैं...तभी तो कुछ नया आकारित होता हैं।
विज्ञान के प्रयोग में हवा हैं ? नहीं हैं ? साबित करके हरपल की महसूसी को हम सब भूल जाते हैं। दोस्तों,अपने-आप बहनें में, चलने में आनंद हैं मगर दूसरें की मर्ज़ी में बहनें में प्रेम हैं। अपने अस्तित्व को भूलकर चलना संभव हैं जब प्रेम हैं तो..! हवा बंसी में से पसार होती हैं, तब सुरीली आवाज बन जाती हैं, इनमें कुछ प्रेम की हरकत नहीं हैं? मुझे तो ये असहज लगता हैं। जब सहजताएं असहज बन जाए तब प्रेम संबंध स्थापित होता हैं। और यहाँ तो स्वयं प्रेमपुरूष कृष्ण की अप्रतिम अलौकिक उपस्थिती हैं। स्वयं कृष्ण हैं वहां अनायास ही एकत्व प्रकट होगा। बंसी और हवा का एकत्व, दृश्य बंसी और अदृश्य हवा का मिलनोत्सव..! हवाओं में छिपी मधुरप को बंसी ने बहाया हैं, उस बहाव के निमित्त को में प्रणाम करता हूँ।
इन सारी बातों में हमें सहजता महसूस हो रही हैं ? हां बंसी के बजने में कुछ येसा ही हो रहा हैं...तो हम ईश्वर के अस्तित्व का बेशुमार झुडाव महसूस कर सकेंगे। बस झुडाव वाली बात में कमी न हो इसका ध्यान रखना हैं।
कृष्ण ने अपने भीतरी संवेदन को प्रकट करने हेतु मदहोश होकर बंसी बजाई हैं। पागलपन से कृष्ण जब बंसी बजाते तब मानो प्रकृति की गति थम जाती। कृष्णा भी एकतंत होकर चोधार आंसुओ की धारा में बहतें चलें जाते। ह्रदय की गहराई संगीत के जरिए सहज स्पंदित होती हैं। विश्व को प्रेममय बनाने का कर्तृत्व निभाने वाले कृष्ण की बंसी भी उनसे कम थोड़ी रहें...!
आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Wowwwww suprb
ReplyDelete