Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, August 13, 2025

Ethics is power of life.
August 13, 2025 4 Comments


नैतिकता जीवन की शक्ति है..!

नैतिकता के बारें में बात करने की मेरी वैयक्तिक क्षमता है कि नहीं ये जानते हुए भी लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे इतना पता हैं नैतिकता जीवन का आधार होने के बावजूद उसे धारण करना पडता हैं। मैं नैतिक़ हूँ ये नाप ने का कोई पैरामिटर्स बना नहीं। एक मूल्य सत्य की बात करते हैं। सत्य सनातन हैं और शाश्वत भी हैं। अब सत्य को धारण करना, एक मूल्य को या अपनी वैयक्तिक नैतिकता बढ़ाने का प्रयास करना। जन्म से सत्य हमारे साथ झुडा नहीं उसे जोड़ना पडता हैं। सत्य की आराधना नहीं करनी हैं उसका आचरण करना हैं। एक बात समझनी चाहिए कि एथिक्स या मूल्य से हमारी पहचान बनती हैं। हमारी पहचान, रुतबा या और कोई उपलब्धि से एथिक्स में कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। मूल्य-मूल्य ही रहते हैं, उससे हमारी कीमत हमारा मूल्य बढ़ सकता हैं। महात्मा गांधी हमारे प्यारे बापू के पहले भी सत्य था। बापू के पहले राजा हरिश्चंद्रजी ने सत्य का पालन किया था। दोनों सत्यवादी भी कहलाये थे। मतलब एक सत्य नाम के मूल्य के सभानतापूर्वक के आचरण से व्यक्ति की पहचान बनती हैं। उसके कारण सत्य में कोई उठाव या गिरावट नहीं आती। सत्य सत्य ही रहेगा। इसी कारण मूल्य में कोई फ़र्क नहीं आता। यहां केवल उदाहरण के तौर पर सत्य की बात रखी हैं। ये बात मेरी समझ में आई इसीलिए ब्लॉग का विचार निमित्त प्रगट हुआ।

मैंने गूगल पर Ethics एथिक्स की कुछ डेफिनिशन इस प्रकार प्राप्ति कि हैं।  उसको पढकर आगे बढ़ते हैं। "The study of what is right and wrong in human behaviour."

"नीतिशास्त्र मानवीय व्यवहार में उचित-अनुचित की मीमांसा।"

"Beliefs about what is morally correct or acceptable."
"उचित-अनुचित का विचार।"

 "Athicse gives happiness..!" नैतिकता खुशी देती है।



 With great pleasure....photo by Freepic.

एथिक्स एक्शन हैं। उचित व्यवहार हैं। जो हमारे भीतर को आनंदित करे वो वर्तन है। जीवन को अच्छी पहचान देकर सम्मानित प्रतिभा का विकास करे वो एथिक्स है, मूल्य हैं। वैसे तो एथिक्स का एक अर्थ 'नीतिशास्त्र' हैं। नीति को हम मूल्य भी कह सकते हैं। इस के कारण एथिक्स को एक अर्थ में 'मूल्यशास्त्र' भी कह सकते हैं। 'आचारशास्त्र' भी कहते हैं।

एथिक्स जीवन की प्राण शक्ति है। मनुष्य जीवन के लिए एक अच्छे जीवन व्यवहार के लिए ये बहुत ही कारगर हैं। उचितता ईश्वर को भी पसंद होगी..! इसलिए प्रकृति उचितता से भरी हैं। नदी का काम केवल बहना हैं। उससे अलाभ से ज़्यादा लाभ ही हैं। कभी कभार विनाश के कारण थोड़ी बहुत बेबसी का सामना करना पड़ता है फिर भी नदी के कारण अनगिनत लाभ हैं। ये प्रकृति की मौन उचितता हैं।

आज समय थोडा विचित्र हैं। 'एथिक्स' की बात सुनने में अच्छी लगती हैं। लेकिन थोड़ाबहुत उचितता से जीना चाहा आप कोने में चले जाएंगे। क्योंकि एथिक्स से सबको डर लगता हैं। उसको सम्मान देकर या कोई इनाम-अकराम- पुरस्कार देकर सम्मानित करके समाज अपना दायित्व निभा रहा हैं। अपने आप इस स्थिति को भीतर से देखना का प्रयास करें। शायद मेरी बात सही लगेगी। हाँ, एकबात ओर भी देखने में आती है, उचितता से जीने का प्रयास करने वाले व्यक्ति के जीवन को छानबीन करना। कहीं पर उसकी भूल सामने आए तो बात बन जाए। उसकी अच्छाई के सामने बुराई का खेल खेला जा सके। इन सबको मरते-नज़र रखते हुए हमे जीना हैं। अच्छे विचार-वर्तन को पालते हुए चलते रहना हैं। देखना हैं, ईश्वरीय सिद्धांत के खिलाफ कोई जीत पाता है ? या एक समूह की अंदरुनी चापलूसी से खुशी पाकर बनावटी हँसी से जीता जा सकता हैं क्या ? इसे हम 'शाहमृगवृत्ति' कहेंगे तो ठीक रहेगा। डर के माहौल में, तूफान में शिर छिपाकर "मैं सुरक्षित हूं" का अहसास बनाए रखना, बचते रहेना..! इसका आनंद लेनेवाले लोगों के जीवन की उन्नति के लिए प्रार्थना...! ये मेरी विचार उचितता हैं।

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Wednesday, August 6, 2025

It's hard to keep wanting..!
August 06, 2025 3 Comments

 

मुश्किलें हरहाल में अपने भीतर एक रास्ता छिपाकर आती हैं...भरोसा कायम होना चाहिए। 


'कठिन है चाहते रहना' हिन्दी रचनाकार के पेज पर से ये कुछ पंक्तियाँ मुझे मिली हैं। उनका ऋण स्वीकार करते हुए आज के ब्लोग का विचार विस्तार करता हूं। कुछ वस्तु या फिर व्यक्ति को पा लेना एक उपलब्धि हो सकती हैं। लेकिन उसे जीवनभर संभालकर रखना थोड़ा मुश्किल हैं, जनाब। जैसे चाहना एक सरल प्रक्रिया है लेकिन चाहते ही रहना बड़ी धीरज वाली बात हैं। ऐसा कब होता है जब समर्पण की मर्यादा को लांगकर जीया जाय। ऐसे जीना संभव हैं फिर भी लोगों ने इसे असंभव ही बना दिया हैं। और अपनी ही मर्ज़ी के मंजर को अंजाम दे रहे हैं।



कहीं पढ़ने में आया था। सबसे अच्छे इन्सान की पहचान क्या हो सकती हैं, उनके सवाल का उत्तर था, "जिसका दोस्त पुराना और नौकर पुराना वो इन्सान पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सकता हैं।" एक ही लाइन में जीवन की बहुत बडी फिलसूफी समझ में आ गई। जीना इसी का नाम हैं। दोस्त-यार दूंढने से नहीं मिलते। दो व्यक्तिओं में पारस्परिक ऐसा कुछ आकर्षण बन जाता है। इसे में व्यक्तिगत रुप से अलौकिक बेला समझता हूं। उनमें स्त्री-स्त्री, पुरुष-पुरुष और स्त्री-पुरुष भी हो सकते हैं। उनके बीच कोई धर्म-अर्थ काम का दायरा नहीं होता। जाति-पंथ-संप्रदाय का दायरा नहीं होता। वहाँ नितांत प्रेम गांभीर्य से भरी सरिता की तरह बहता जाता हैं। किनारों को जोडता हुआ, प्रकृति को पोषता हुआ। कईं चिड़ियां के गीत का कारण बनते हुए। कई वृक्षों की मीठाश संजोए हुए नदियां बहती है, वैसे ही प्यार बढ़ता ही रहता हैं।

जिसे संबंध के अनुराग का फूल मिला है उसे संभालना सीखना चाहिए। नहीं सीखे तो जीवन भर की पीडाओं का सामना करना पड़ेगा। प्रायः प्रेम से 'जीवनआनंद' मिलता हैं। उसे कायम करने की जिम्मेदारी वैयक्तिक रुप से हमारी ही होगी। उसमें ईश्वर जो चाहते हैं, वैसा ही मनुष्य जीवन होगा। लेकिन वैयक्तिक स्वार्थवृति बढ़ती है तो संबंध का टिकना नामुमकिन हो जाता हैं। एकबार संबंध को हृदय से महसूस करना चाहिए। उसकी अनुभूति के लिए समय निकालना चाहिए। फिर देखें जीवन की परेशानियां कैसे समाप्त होती हैं। संबंध किसी भी प्रकार का हो, लेकिन वो कभी दुःखकारक नहीं होता। हमारा नजरिया बदलता है तब उसमें खोट आती हैं। एक व्यक्ति जब अच्छे संबंध की शुरूआत करता है, सामनेवाला शायद उसकी भावनाओं को समझ नहीं पाता तब एक स्थिति पैदा होती है जिसमें पीड़ा ही होती हैं। लेकिन जो संबंध के लिए तरसता रहता है उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वो अपने आनंद में पीछे हट जाएगा। ये संबंध वाला फंडा है, बहुत कीमती हैं संबंध...इतना मैं समझ रहा हूं।

जीवन का मुख्य उद्देश्य केवल आर्थिक उपार्जन ही नहीं हैं। तर्कसंगत बातों से Narrative मिथक या काल्पनिक कथात्मकता से दूर रहना ही अच्छे संबंध की प्राप्ति के लिए कारगर हैं। बाकी सबको अपनी वैयक्तिक या संगठनात्मक मनसा पूरी करने के षडयंत्रों का भोग बनना ही पड़ेगा। इसके कारण शारीरिक विकृति एवं सामाजिक विकृतियां ही बढ़ेगी। ईश्वर है की नहीं इसके प्रमाण ढूंढने के बजाय उसकी असरों से झुडे रहना होगा। तो संबंध को पा सकते हैं और प्रेम टिक भी सकता हैं। बाकी ईश्वर की चापलूसी भरें ढोंग क्या परिणाम लायेंगे आप स्वयं ही सोच सकते हैं।

मुझे लगता है संभलना है तो संभालना भी जरुरी होगा। और चाहत को कायम करने हेतु कैसे चाहना हैं..!? कैसे संबंध में टिकना हैं, कैसे संबंध को टिकाना हैं वो सीखना ही पड़ेगा..! एक बेहतरीन जीवन के लिए ये उपाय ठीक रहेगा क्या ?!?


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Tuesday, August 5, 2025

Thanks Netherland.
August 05, 20250 Comments

Greetings to all my brothers and sisters worldwide.


Especially, I extend my deepest respect and gratitude to the people of the Netherlands and other countries where my work is appreciated. I am Dr. Brijeshkumar, a humble educator and writer from a small village in India. Despite facing challenges, I have achieved academic success and continue to work as a teacher, driven by my passion for education.


As a columnist for two prominent Gujarati newspapers and a novelist, I am committed to using my writing to inspire and educate. My dream is to provide quality educational and healthcare facilities to those in need. Although I face struggles due to circumstances beyond my control, I believe that thoughts and ideas can transform lives. I am satisfied with my personal life, but I am driven by a vision to make a positive impact.


This is my blog link. 

https://drworldpeace.blogspot.com

'Anandvishva Sahelgah', has reached a global audience, and I am grateful for the support from countries like the Netherlands, Russia, USA, Singapore, Hong Kong, Germany, Canada, Sweden, Ireland, UK, and Mexico. So,  I humbly request the support of affluent individuals, athletes, artists, and leaders to help me realize my vision. Together, we can create a brighter future. In return for your support, I assure you that I will take care of your stay and hospitality when you visit India. I look forward to your response and support. I will share my account details after discussing with you. Contact me with sincerity:


Dr. Brijeshkumar Chandrarav

Gujarat, India

Mobile: +91 9428312234

Website: https://drbrijeshkumar.org

Email: dr.brij59@gmail.com 




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Thanks Netherland.
August 05, 20250 Comments

 ब्रह्मांड के मेरे भाईओं और बहनों,


और नीदरलैंड की भूमि को वंदन करता हूं..! साथ दूसरे देशो का भी धन्यवाद करता हूं। वंदन करने का कारण आगे पढ़े।

मैं डॉ. ब्रजेशकुमार भारत के एक छोटे-से गाँव से हूँ। संघर्ष भरी स्थिति में उम्मीद के सहारे शैक्षिक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। आज भी शिक्षा से झुडा हूं। शिक्षक के रुप में काम कर रहा हूं। कुछ करने की उम्मीदें और अपने जरुरियातमंद बंधुओं के लिए शिक्षा एवं स्वास्थ्य विषयक सुविधा करने का मन हैं। इसके लिए मेरे पास आर्थिक व्यवस्था नहीं हैं। हां, ईश्वरने मुझे लिखने की शक्ति दी हैं। विचार मनुष्य जीवन को बदल सकता हैं। मैं एक नाॅवेलिस्ट हूं साथ में भारत के एक स्टेट गुजरात के प्रमुख दो अखबारों में काॅलमिस्ट के रूप में काम कर रहा हूं। मेरे देश भारत से भी मेरी कईं उम्मीदें हैं। लेकिन कुछ जन्म आधारित अवहेलना और मुझे समज में न आए ऐसी स्थिति के कारण एक कोने में ही संघर्षरत हूं। मेरे वैयक्तिक जीवन से मैं संतृप्त हूं। लेकिन ईश्वर के द्वारा दिये गए विचार और कुछ करने की लगन से थोड़ा परेशान हूं।  फिर भी आज उम्मीद से भरा हूं। विश्वास हैं कोई न कोई रूप से आर्थिक योगदान मिलेगा। निश्चित विचार उसका रुप ले ही लेता हैं। शायद इसका मैं ज़रिया हूं। केवल निमित्त हूं।

मैं मेरी लेखनयात्रा एवं विचारयात्रा से लोगों को मदद करना चाहता हूँ। मेरे विचार को मूर्तरुप देना चाहता हूं। इसीलिए मैंने ब्लॉग लिखने का माध्यम चूना हैं। मेरे गूगल एनालिसिस में नीदरलैंड, रशिया, युनाइटेड स्टेट USA, सिंगापुर, हांगकांग, जर्मनी, कनाडा, स्वेदन, आयर्लेन्ड, युनाईटेड किंगडम UK, मेक्सिको जैसे कईं धनी देशों में मेरा ब्लॉग ज्यादा पढ़ा जाता हैं। मैं हृदय के उत्कृष्ठ भाव से उन सब देशों का आभार प्रकट करता हूँ।  फिर एकबार इन धनिक राष्ट्रो ने मेरी उम्मीद को जगाया हैं। मैं आशाप्रद हुआ हूं। आप जहां से मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं एकबार मेरी बात पर विचार करना, प्लीज।

Drworldpeace.blogspot.com आनंदविश्व सहेलगाह वैचारिक लेखमाला हैं। मैं डॉ. ब्रिजेशकुमार आपसे बिनती करता हूँ कि हम सब साथ मिलकर दुनिया के शिक्षा और आरोग्य के बारें में जरूरतमंद लोगों की मदद करें। मैं एक स्कूल और अस्पताल के माध्यम से जरूरतमंदो से जुड़ना चाहता हूँ। मेरे देश और विश्व के धनी व्यापारी, (ऐथलेट्स) रमतावीरों, हॉलिवुड फिल्म स्टार्स एवं कलाकारों और नेताओं से अनुरोध करता हूँ कि मेरे पास विचार हैं। आप अपना आर्थिक योगदान करें। हमसब मिलकर नयेपन को अवतरित करेंगे।

आप मुझे मदद करे उसके ऋण स्वीकार हेतु आप जब भी मेरे देश में आएगें और जब तक रहेंगे मैं आपकी रहने की खाने-पीने की हमारी भारतीय परंपरा से खातिरदारी करुंगा। यहां आकर आपको एक रुपया भी खर्च करना नहीं पड़ेगा। ये पारस्परिक प्रेम का काम हैं। अभी बस इतना ही कहता हूं। योगदान हेतु अकाउन्ट नंबर आपकी ईच्छा के बाद और थोड़ी बहुत चर्चा के बाद सेन्ड करुंगा।

महान ईश्वर की प्रकृतिगत सैध्दांतिक मददगारी की अद्भुत मिसाल कायम करें। आज नहीं तो कल एक विचार को आकारित होना ही पडता हैं। 'आनंदविश्व की सहेलगाह' को बहतरीन मोड देने के लिए हम थोड़ा साथ चलें..! महान ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए अच्छे विचार के लिए आपका इन्तजार रहेगा..!

Contact me with great emotions.

Your ThoughtBird....! 🐣 
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
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See Google Analysis..on 5 'th August 2025.









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Wednesday, July 30, 2025

Life is all about balance.
July 30, 2025 5 Comments

Life is all about balance. build your strength, balance your emotions and keep smiling through it all.


ज़िंदगी का मतलब है संतुलन। अपनी ताकत बढ़ाएँ, अपनी भावनाओं को संतुलित करें और हर हाल में मुस्कुराते रहें।

अच्छे विचार सबके होते हैं। आज सोशल मिडिया के कारण कईं अच्छे विचारों का मिलना सहज हो गया हैं। ऐसा ही कुछ मंत्र सा वाक्य मुझे मिला। ये जिसका भी विचार हैं उसको वंदन करते हुए ऋणात्मक भाव से आगे बढ़ता हूँ। जीवन के इस संतुलन को जगद्गुरु कृष्ण भगवद्गीता में 'स्थितप्रज्ञता' कहते हैं। ये जीवन को अद्भुत मुकाम पर ले जाएगी। इस के बारें में कृष्ण से ज्यादा मैं क्या बता सकता हूं ? फिर भी शब्द-विचार के साथ थोड़ी-सी मस्तियाँ..!

Thanks to Quanagpraha for pic.

हिन्दी फिल्म 'आनंद' का एक गीत हैं। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के सुंदर अभिनय से ये फिल्म आज भी सदाबहार रही हैं। और इस फिल्म के गीत-संगीत की तो बात ही कुछ ओर हैं।

ज़िंदगी...!
कैसी है पहेली, हाए
कभी तो हंसाये कभी ये रुलाये...ज़िंदगी...!
कभी देखो मन नहीं जागे,
पीछे पीछे सपनों के भागे,
एक दिन सपनों का राही चला जाए...सपनों के आगे कहाँ...ज़िंदगी....!
जिन्होने सजाए यहाँ मेले,
सुख-दुख संग-संग झेले,
वही चुनकर ख़ामोशी यूँ चली जाए...अकेले कहाँ...ज़िंदगी...!

गीतकार योगेश ओर सलिल चौधरी के संगीत में मशहूर गायक मन्ना डे की मखमली आवाज को सुनना बहुत आनंद मिलेगा। और जिंदगी के प्रति देखने का थोड़ा-सा तजुर्बा भी बदल जाएगा। थोड़ी देर ही भले, अच्छे कंपनो से शरीर और मन ताजगी का अनुभव करेंगे। संगीत में ऋचि रखनेवाले कईं लोगों ने इस गीत का लुफ्त भी उठाया होगा। मैं कुछ नया भी नहीं कह रहा।

मुझे लगता हैं, जिंदगी में संतुलन बढ़ता है तब समझदारी सहज ही बढ़ने लगती हैं। व्यक्ति शांत होता जाता हैं। आंतरदृष्टि का बढ़ना और धीरता का अनुभव सहज होता चला जाता हैं। स्पष्टताएं स्फूरित होती हैं। इसे हम शक्ति कहेंगे, अपनी भावनाओं का संतुलन जीवन को स्थितप्रज्ञता देता हैं। इससे भीतर की मुस्कराहट बढ़ती हैं। मानो, आनंद के सागर में बहते जाना...! जीवन को समझना, जीवन देनेवाले के बारे में सोचना। ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहेना। और ईश्वर की सजाई हुई सृष्टि के बारे में भी अहोभाव पूर्ण जीवन जीना...!

ईश्वरने हमें जीवन दिया हैं। पृथ्वी पर सांस से लेकर शांति तक सबका जीवन प्राकृतिक तत्त्वोंसे संवृत हैं। हमारे आसपास भौतिक जीवन के अलावा संवेगात्मक जीवन का भी आवरण हैं। भौतिक और संवेगिक दोनों क्षेत्र अपनी-अपनी जगह पर स्थापित हैं। उन दोनों से हमें सीखना हैं और गुजरना भी हैं। एक का भुगतना हैं, दूसरा समझ और समर्पण पर टिका हैं। एक प्रकृति की कृपा के रुप में हैं। एक तरफ कृपा से संवेदन को जगाना हैं। ये मनुष्य के रुप में संतुलन करने की बात हैं। भौतिक संगत में हमारी सामाजिक संगत को जोड़कर अपने जीवन को आकार देना हैं। दोनों स्थिति प्रेम और संवेदन का पुरस्कार करने वाली हैं। इसीलिए कहते हैं ज़िंदगी-ज़िंदगी होती हैं। एक पहेली की तरह उलझन सी और सुख दुःख के मेले सी और हसने-रुलाने की हसरत सी...! कभी कभार भावनाओं में बहना ही पडता हैं। कहीं मक्कम निर्धार से गुज़रना पडता हैं। इन सभी स्थितिओं को मरते-नज़र रखते जीवन को बेहतर करना होगा...पूर्णरुप से सम्मिलित होते हुए। इससे जो शक्ति प्राप्त होगी वो हमारा मार्ग प्रशस्त करेगी। इसलिए बस, आनंद किजिए और मस्त रहिए..!

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Wednesday, July 23, 2025

Extreme level of dedication.
July 23, 2025 4 Comments

 समर्पण की अंतिम सीमारेखा लांघने वाली,

अद्भुत प्रेम दिवानी...मीराबाई।

प्रेमानंद स्वामी का एक विडिओ देखने में आया। थोडे ही शब्दों में मीराबाई फिर एक बार मन को जंकृत करने लगे। वैसे तो समर्पण के कईं चरित्रों में मुझे मीरा सबसे ज्यादा पसंद हैं। उनकी 'प्रेमप्रज्ञा' से प्रकट हुए पद और भजन भारतीय भक्ति साहित्य के शिरमोर हैं। लेकिन मुझे मीरा का कृष्ण के प्रति दीवानापन सबसे ज़्यादा पसंद हैं। देखते हैं, प्रेमानंदजी के शब्द में मीराबाई..!

मीराजी को जहर पीलाया गया। दासी ने आकर बताया की ये जहर है जहर..! पर जो लाया था उसने बोला की ये गिरधर का चरना अमृत हैं। मीराजी को दासी ने कहा चरना अमृत नहीं ये ज़हर हैं। तो उन्होंने कहा नहीं, जब ये कह रहे हैं की गिरधर का चरना अमृत हैं तो मैं पियूंगी। मीरा गिरधर का चरना अमृत समझकर पूरा पी गई। और करताल उठाई पूरी रात नाचती रही, कुछ फ़र्क नहीं पड़ा। अब राणा विक्रम जो उनका देवर था, उसको लगा की वैद्य ने हमारे साथ कुछ धोखा किया हैं। जहर के नाम पर उसने कुछ ऐसे ही घोल कर दे दिया है इसलिए मीरा को कुछ नहीं हुआ हैं। तुरंत उस वैद्य को बुलाया गया और उसको कटोरे में जो बचा था, वो चटाया गया। वैद्य तुरंत मर गया। विष इतना जहरीला था की एक बूंद चाटने से भी वैद्य मर गया। मीराजी को जब पता चला तो उन्होंने उस वैद्य की रक्षा के लिए गिरधर को बिनती करते हुए कहने लगी : "हे गिरधर यदि मन वचन कर्म से हम आपको अपना प्रीतम मानते हैं तो वैद्य अभी जीवित हो जाए..!" कहते हैं उसी क्षण वैद्य जीवित हो गया। भगवान में अपार सामर्थ्य हैं।


इस कहानी में किसी को चमत्कार दिखे तो हल्ला मत बोलना। मुझे कहानी की समर्पितता पसंद आई हैं। मुझे मीरा पसंद है इसलिए मिरेकल्स भी अच्छे लगते हैं। everything is fair in love and war. प्रेम में सब जायज हैं। मीरा के लिए कृष्ण सबकुछ हैं, वो उनके लिए कुछ भी कर सकती हैं। कृष्ण दैहिक रुप से सृष्टि में नहीं है फिर भी..! और कृष्ण भी मीरा के समर्पण से द्रवित हैं। वो मीरा के लिए कुछ भी करेंगे। ये पारस्परिक प्रेम चमत्कार भी खडा कर सकता हैं। मीराबाई कृष्ण की मूरत के सामने अपने हृदय के भावों को खुले मन से प्रकट करती थी। कृष्ण में समाई हुई और सर्वत्र कृष्णा को अनुभूत करती मीरा इस संसार की सबसे बड़ी समर्पिता हैं। मीरां की प्रेमशबद बानी के बिना मैं विशेष क्या लिख पाऊंगा !? पढ़िए कुछ पंक्तियाँ..!

"हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय।
जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय।
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय।"

एक ओर सुप्रसिद्ध भजन की दो पंक्तियाँ..! प्रभुजी के प्रेम को पा कर और कुछ नहीं चाहिए। वो संसार का सबसे बड़ा धन हैं। इन्हीं विचार के साथ...!

"पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुर, किरपा कर अपनायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो..!"

मैंने मीराबाई के पद-भजन को जब भी पढ़ा है, तब वो मेरे मन का आनंद बनी हैं। मीरा मेरे लिए एक चरित्र से बढ़कर हो गई हैं। वो एक शब्द विचार से अनुभूति बनी जा रही हैं। आज भी उनके शब्दों के संगीत मढ़े स्वरोंकन अद्भुत लगते हैं। मीरा कृष्ण में लीन थी, वो कृष्ण में ही जी रही थी। इसी तरह मीराजी कईं हृदयों में बसे हुए हैं।

मीरा अमर हैं, मीरा सनातन हैं..! जब तक कृष्णा है तब तक इस संसार में मीराजी रहेगी। क्योंकि मीराजी कृष्ण में समाहित हैं।

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Tuesday, July 15, 2025

The best definition of education.
July 15, 2025 4 Comments

परंपराएं शानदार ही होती हैं।

नया सिखने का मतलब ये कतई नहीं हैं,

की पुरखों की सभी मान्यताएं गलत थी।


"मैंने तुम्हें स्कूल में नईं चीज़े सिखने के लिए भेजा था। पूरानी चीज़े भूलने के लिए नहीं। पुराना भूला दे वो सभ्यता कल्याणकारी नहीं होती। जो सभ्यता पुरानी सभ्यता को भूला दे वो कितनी भी अच्छी क्यों न हो, वो ठीक नहीं।"

शब्दों में संवेदनशीलता हैं, आर्द्रता हैं। आगे सुने, बहुत अच्छा महसूस होगा। हम सब शिक्षित हैं, नये जमाने में रहते हैं। फिर भी शिक्षा के बारे में प्रयोग ही करते रहते हैं। कैसा सही रहेगा कैसा गलत !? इस स्थिति में काफी-कुछ भूलने लगे हैं। परंपरा की नींव मजबूत नहीं रही इसीलिए नयेपन के बंधी हो गए हैं। चलो फिर आगे...!


"शिक्षा दूर खडे व्यक्ति को पास लाने का काम करती हैं। जो पास खडे व्यक्ति को दूर ले जाने का काम नहीं करती। शिक्षा अमित्र को मित्र बनाने के लिए होती हैं। मित्र को अमित्र बनाने के लिए नहीं होती। आज मुझे स्कूल और विद्यालय में अंतर समझ में आ गया। स्कूलो में व्यक्ति को साक्षर बनाया जाता हैं। और विद्यालयो में व्यक्ति को शिक्षित किया जाता है। बेटा, में ग्रामीण परिवेश का व्यक्ति हूं। मुझे नहीं पता की साक्षरता कितनी कल्याणकारी है कितनी नही हैं। मैं चाहता हूँ , मुझे ये पता है की शिक्षा निश्चित रुप से कल्याणकारी हैं। मैं नहीं चाहता की तुम एक असंवेदनशील साक्षर व्यक्ति के रुप में जाने जाओ। मेरे लिए एक संवेदनशील निरक्षर व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण होगा।"


बहुत ही दिलचस्प शिक्षा विचार के शब्द हैं। दिल को छू लेनेवाले शब्दो के किरदार का परिचय करवाता हूँ। हिन्दी फिल्म जगत में 'आशुतोष राणा' एक बेहतरीन अदाकार हैं। और व्यक्ति के रुप में भी उनकी काफ़ी तारीफ़े होती रहती हैं। मैंने कुछ पहले एक पॉडकास्ट देखा था। उसमें ये बात कही गई थी। वो पॉडकास्ट में आसुतोष थे, रीचा होस्ट कर रही थी। 'रीचा अनिरुद्ध' एक जानी-पहचानी पॉडकास्टर हैं। Zindagi with Rich. टाइटिल के माध्यम से वो प्रोग्राम चलाती हैं। उस पॉडकास्ट टॉक में आसुतोष राणा ने अपने स्कूली अनुभव को सांझा करते हुए बताई थी। हाँलाकि ये शिक्षा संबंधित विचार उनके पिताजी के थे। आसुतोष और उनके भाईयो को एक क्राइस्ट चर्च बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था। ये क्राइस्टचर्च जबलपुर की ख्यातनाम स्कूल थी। वहां एक हफ्ते के बाद आसुतोष के पिताजी उनको मिलने के लिए आते हैं। बच्चों को सूट-बूट में देखते हैं। लेकिन एक बात उनको अच्छी नहीं लगती। स्कूल की सिविलइज्ड डिसिप्लिन के मरते नज़र रखते हुए बच्चोंने दूर से "गुड इवनिंग बाबूजी" कहा। आशुतोष कहते हैं : "बाबूजी को ये बात ठीक न लगी और स्कूल ही छुडवा दी।" इस घटना के उत्तर में आशुतोष के पिताजी ने जो कहा मैंने वो लिखा हैं। एक गाँव के आदमी के मन में शिक्षा की इतनी बडी स्पष्टता हैं। ये सुनकर वाकई में खुश हुआ। सोचा एक अच्छी बात ब्लोग के जरिए आप सबको बताऊँ।

मैं समझता हूं शिक्षा कभी भी अकल्याण को प्रेरित करने वाली नहीं होती। शिक्षा के संबंध में कईं मत हैं। लेकिन सबकी एक ही आवाज रही हैं,  शिक्षा से समाज उन्नत बनता हैं, शिक्षा से शांति व सौहार्द स्थापित होते हैं। शिक्षा स्वयं से ज़्यादा दूसरों का विचार करती हैं। शिक्षा मनुष्य का मूलभूत स्वभाव बने तो ही अच्छा हैं। जो शिक्षा पर-पीडन सिखाती हैं, दूसरों की अवहेलना सिखाती हैं या दूसरों को प्रयास पूर्वक पीछे धकेलने के षड्यंत्र करवाती है वो शिक्षा कतई नहीं हैं। ये मात्र वैयक्तिक या सामूहिक रुप से अपनी ही बरबादी हैं। एक ही उदाहरण और एक ही वाक्य में कहे तो मोहनदास करमचंद गांधी की महात्मा तक की सफर शिक्षा से ही संभव हुई हैं। ऐसे कईं चरित्रों से अपनी अपनी शिक्षा संकल्पना दृढ़ करे।

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
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Ethics is power of life.

नैतिकता जीवन की शक्ति है..! नैतिकता के बारें में बात करने की मेरी वैयक्तिक क्षमता है कि नहीं ये जानते हुए भी लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे इतन...

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