Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, October 1, 2025

The key of healing...RAMA.
October 01, 2025 2 Comments


रामस्य दासोऽस्महं
रामे चितलय: सदा भवतु मे भो राम मामुघ्दर॥


"मैं राम का दास हूं, हमेशा श्रीराम मैं ही लीन हूँ। हे ! श्रीराम आप मेरा उद्धार करें।" शक्तिपर्व के साथ दशहरे की शुभ कामना..!

जीवन को अच्छा मोड़ देना या कुछ सिद्धांत का अनुसरण करना यही मनुष्य का मूलभूत कर्तव्य हैं। ये कोई सलाह नहीं लेकिन हमारी संस्कृति के महान चरित्रों का दर्शन हैं। भारतवर्ष तो कईं महानताएं अपने भीतर समाये बैठा हैं। सबकी बात करना संभव नहीं लेकिन आज के निमित्त रुप आज के उत्सव का शरण लेकर आगे बढ़ते हैं। आज विजय पर्व हैं। आज मर्यादापुरुषोतम श्रीराम की आदर्श पहचान को वंदन करने का उत्सव हैं। ये समय हैं जीवन को जाग्रत करने का...!


राम की शक्ति को समझना हैं; उनकी मर्यादा को समझना हैं या राम के पराक्रम को समझना हैं यह हम पर ही निर्भर हैं। राम के कुटुंबकम के भाव को समझना है, उनके राजकर्म को समझना हैं। एक मनुष्य के रुप में दूसरों का विचार करना, अधर्म को समझकर उसका नाश करना समझना हैं। राम से सिखना हैं, या राममय जीना हैं उसको समझना होगा। You are the key to healing not time. "आप ही हैं ठीक होने की कुंजी, समय नहीं !" हमारी जिंदगी हैं, हमें ही समझना पड़ेगा। श्रीराम जैसे चरित्रों से सीखना एक अच्छी कुंजी हैं। बुद्धिमत्तां वरिष्ठं हनुमानजी जो राम के दासत्व भाव में जीते हैं, उनसे सीखना भी एक कुंजी हैं। रामनाम की धुन से भारत में स्वतंत्रता स्थापित करने वाले महात्मा गांधी बापू से सीखना है तो उनसे सीखे। ये महानतम घटनाओं को आधारित करने वाले थे। उनके कारण सत्य स्थापित हुआ असत्य पराजित हुआ।

सत्य को स्थापित होते हुए कोई नहीं रोक सकता। विजय की एक ही संभावना हैं; सत्य..! सत्य के साथ चलने वालो के साथ कारवाँ सहज ही चल पडता हैं। उसके अनुसरण के लिए योजनाएँ नहीं बनानी पड़ती। वो स्वयंभू प्रकट होती हैं। उसे हम शक्ति कहे तो गलत नहीं। रामजी का सत्य पालन रामजी की जीवन मर्यादाएं शक्ति पूंज से कम नहीं हैं। राम हैं वहां   सत्य हैं इसीलिए जहाँ राम हैं वहाँ विजय हैं। द्वापर युग में मनुष्य के जीवन के आदर्श को स्थापित करने का काम रामजीने किया था। ये हमारी धरोहर रुप घटना हैं। उसे बचाएं रखना कोई एक व्यक्ति का काम नहीं हैं। फिर भी कोई एक व्यक्ति प्रयास करता है तो उसका विजय तो निश्चित ही हैं।

इस दिव्यपर्व और विजय पर्व पर हमें सज्जन शक्तियां के बारे में ही सोचना हैं। हां, उसमें भी कोई पूर्वग्रह रखकर सज्जन शक्ति में भी रावण को देखना भी एक दृष्टि हैं। उसका दहन करने का प्रयास करते रहना भी एक मार्ग हैं। उसके परिणाम के बारे में चर्चा करने का मेरा मन नहीं हैं। क्योंकि मुझे रामजी की निश्रा, चितलय: पसंद हैं। "रामो राजमणि सदा विजयते" राम का केवल स्मरण लाभप्रद है लेकिन समष्टि के कल्याण के लिए राम के आदर्शो का अनुसरण चाहिए। सनातन सत्य के विजय की यह कुंजी हैं। यह कुंजी का प्रयोग व्यक्ति समूह या सृष्टि का कोई भी स्थान में बसा राष्ट्र भी कर सकता हैं। क्योंकि आदर्श राम सबके हैं। और विजय पर सबका अधिकार हैं। सत्य के मूल मंत्र पर किसीका अधिकार हरगिज नहीं होता।

आज राम दैहिकरूप से अदृश्य हैं, लेकिन वर्तनरुप से, वचन रुप से उनके आदर्श प्रस्थापित हैं। रामजी की उस सनातन परंपरा को शत शत वंदन...!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Wednesday, September 24, 2025

let's go away..!
September 24, 2025 2 Comments

 Preparation beats complaining.

"तैयारी शिकायत से बेहतर है !"

Walk with your loved ones..! अपने प्रियजनों के साथ चलें। जीवन बहता हैं, उस बहाव में कईं साथ, दोस्त या प्रियजन के रुप में मिलते हैं। जिससे आनंद मिले वो याद रहते हैं, वो शख्स बार-बार याद आता हैं। ये हमारे जीवन के बहतरीन लम्हें बनकर भीतर में जगह बना लेते हैं। जीवन वैसे तो एक खूबसूरत सफर हैं। उस सफर को लाज़वाब बनाने के लिए कुछ तैयारी हमारी ओर से भी होनी चाहिए।

जो हमारे अधिकार में हैं, जो हम कर सकते हैं। उसके बारें में गंभीरता पूर्वक सोचना चाहिए। मैं भार देकर बोल रहा हूं.."जो काम हमें आनंद देता हैं, उस कार्य में किसी का सहयोग हैं। ये मनचाही डगर पर टहलने जैसी एक घड़ी हैं। उससे आनंद ही आनंद मिलता हैं। हमारे लिए वो काम ठीक हैं, उसी काम से मेरी पहचान होगी ऐसा अहसास मन में पालना होगा। तब वो संभावना बनकर उभरती हैं। इस आनंद के समय में प्रियजन से जुड़ाव बनाए रखे। उससे जीवन को उर्जा मिलती हैं। जो हम नहीं कर सकते वो नहीं करना हैं। मगर हम जो सहज रूप से कर सकते हैं वो काम करना जरुरी बन जाएगा। बारिश को हम रोक नहीं सकते लेकिन छाते से उसे रोक सकते हैं। नदी को बहने से रोकना एक स्वार्थपूर्ण विचार-व्यव्हार हैं। मगर उसके साथ बहते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचना बडी अच्छी बात हैं।


जहाँ तक पहुंचना हैं वो हमारा 'जीवनकेन्द्र' हमारा लक्ष्य हैं। उसके लिए संभव कोशिश करना हमारा कर्तव्य हैं। वैसे तो यही मनुष्य की कर्मशीलता हैं। कोई इसे भी करना नहीं चाहता उसके समय पर क्या कहें...? हमारी आज की डगर, हमारी आज की सोच हमारे इरादों में प्राण सिंचित करती हैं। इससे शिकायते अपने आप ही खत्म हो जाती हैं। और याद रखना होगा कि जिस काम से शिकायतें कम होती रहे। और नईं शिकायतें खडीं ही न हो, इसे मैं बहतरीन निमित्त कहता हूं। इसे हम भाग्य भी कह सकते हैं। प्रीपरेशन के आगे कम्प्लेन अपना सिर नहीं उठाती, ये भी सनातन सत्य हैं। अपने कार्य के लिए शुभकामनाएँ मिलना शुरु हो जाय या फिर अवहेलन बढ़ने लगे तो समझो रास्ता एकदम सही हैं।

जीवन में कठिनाई या समस्या ही न हो ऐसा भला होता है क्या !? और हर समस्या को सहजता से लेनेवाले लोग कितने होते हैं !? आज तो भ्रम पैदा करना, उलझने बढ़ाना तो एक स्टाइल बनी हुई हैं। इसलिए शिक़ायते कम होने के बावजूद ज़्यादा लग रही हैं। लोग उसे बढा चढ़ाकर पेश करके अपने तरफ ध्यान बटोर रहे हैं। जीवन को एक इवेन्ट की तरह जीया जा रहा हैं। सबको सेलिब्रिटी बनने का मन हो रहा हैं। अच्छी बात है, कुछ न कुछ तो करना ही चाहिए। मगर शिकायतें कम करना होगी, इससे हमारे कार्य के प्रति ध्यान केंद्रित होता हैं।

एक ओर भी सुंदर बात बताता हूं। मुझे वैयक्तिक रुप से अपनों की बातों में विश्वास ज़्यादा आता हैं। शिकायते भरे समय में अपने लोग इससे दूर रहे तो भी चिंतित होना नहीं हैं। संसार में अच्छे विचार से आगे बढ़ते रहे, अक्सर अच्छाई सामने आयेगी। ईश्वर ने सबके लिए एक अच्छा संबंध बना ही रखा हैं। ईश्वर ने ऐसे लोग अपनी अदृश्य भूमिका को निभाने के लिए ही निर्मित किए हैं। ये लोग कौन-से रुप में हो सकते है, ये अपने आप खोजने की बात हैं। कोई मिल जाए तो जीवन के लक्ष्य के प्रति तैयारी बहतरीन बन जाएगी। शिकायतें कम आनंद ज़्यादा मिल पाएगा।

चलो, उसे ढूंढने के लिए...जो, हमारे कल को सजाने की उम्मीद बना हैं !!let's go away and start your journey.

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Thursday, September 18, 2025

Elephant appear to have self-awareness.
September 18, 2025 5 Comments

 गज: दृष्टि सदा विजयं करोति।


आज एक विशालकाय प्राणी की बात करता हूं। उसके बारें में सबको पता है, फिर भी हाथी मुझे बचपन से आकर्षित करता रहा हैं। इसलिए आज गजराज की बात करता हूं। थोड़ी बहुत इन्फोर्मेशन...ओर भी विकिपीडिया पर उपलब्ध हैं। हजारो सालों से हाथी इस धरती पर विद्यमान हैं। विश्व के कईं क्षेत्रो में हाथी पाए जाते हैं। ये एक बड़ा जीव हैं। डायनासोर के बाद इसकी शरीरी विशालता हैं। लेकिन डायनासोर अब सृष्टि में विद्यमान नहीं हैं। उसके कारणों में पड़े बीऩा आगे बढते हैं।

हाथी स्पर्श, दृष्टि, गंध और ध्वनि के माध्यम से संवाद से पारस्परिक संवाद करते हैं। हाथी लंबी दूरी पर इन्फ्रासाउंड और भूकंपीय संचार को महसूस कर सकते हैं। हाथियों की बुद्धिमत्ता की तुलना 'प्राइमेट्स और सीतासियों' से की गई है। 'प्राइमेट्स' का मतलब वे स्तनधारी हैं और जटिल व्यवहार और संज्ञानात्मक क्षमताओं को साझा करते हैं। 'सीतासियन' प्राणी का मतलब हैं, वे अपने शरीर को पूरी तरह से पानी में बिता ने के लिए अनुकूलित हैं। ऐसे दूसरे भी कईं प्राणी इस धरती पर विद्यमान हैं। ऐसा प्रतीत  होता है कि हाथी में आत्म-जागरूकता की शक्ति होती है। और संभवतः वे अपनी प्रजाति के मरते हुए और मृत जीवों के प्रति चिंता और संवेदना भी प्रदर्शित करते हैं।



सृष्टि के सभी प्राणियों की संरचना और बुद्धिमत्ता विभिन्न होती हैं। सबको अपनी विशेषताएँ भी होती हैं। छोटा सा पंछी भी अपनी बुद्धिमता से करामात करते रहते हैं। ये हमारे संसार की बड़ी खूबसूरती हैं। हम सबने हाथी के बारे में भी कईं बातें पढ़ी और सुनी हैं। हाथी के बारे में मैने एक बात सुनी हैं, कि वो दूसरों को अपने जैसा विशाल समझता हैं। उनकी आंखे भले ही छोटी लगती हैं मगर उसके लेन्स की संरचना कुछ ऐसी है कि वो वस्तु को मूल रुप से बड़ा देख पाता हैं। हमने पंछीओं के बारे में सुना हैं उसको सभी वस्तु-चित्र ब्लेक एन्ड वाईट ही दिखते हैं। रंगों की पडछाई ही वो महसूस कर पाते हैं। ये भी ईश्वर का कमाल ही हैं।

दृष्टि जीवन की प्रगल्भता प्रकट करती हैं। हाथी को अपने जैसे सब दिखते हैं। उनकी दृष्टि सबसे सुंदर हैं। किसीको छोटा नहीं समझना हैं। शायद "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि" इसी को ही कहते होंगे। ऐसी दृष्टि हाथी को बुद्धिमता वाले प्राणी की श्रेष्ठता प्रदान करती हैं। हाथी शक्तिशाली है फिर भी शांत है। समर्थता के बीच गांभीर्य भी होना चाहिए। धीरता सबसे अच्छा गुण हैं। इससे व्यक्ति की भी महानता बढ़ती हैं। और वो सामर्थ्यवान कहलाता हैं। दृष्टि हमें ताक़त देती हैं, दूसरों के लिए एक अच्छी सोच मन में पनपती हैं फिर जीने का असली मजा शुरु होता हैं। "गज: दृष्टि सदा विजयं करोति।" कभी-कभार प्राणी के जीवन से भी सिखना चाहिए। ईश्वर ने सभी प्राणी-पशु और पंछीओ को अपनी-अपनी योग्यता से सजाया हैं। उस योग्यता से वे अलग रुप से प्रस्थापित होते हैं।

"गज:दृष्टि" एक अच्छी सोच का प्रतीक हैं। हाथी भी एक मंगलकारी प्रतीक हैं। वो पशु होने के बावजूद संसार में अपनी योग्यता से ख्यात हैं। पहले के समय में युद्ध में हाथी की आक्रामक शक्ति का उपयोग किया जाता था। वो शांत भी है और आक्रामक भी हैं। लेकिन वो कभी अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करता। हां, समय आने पर वो अपना पराक्रम दिखाता हैं। हाथी की तरह ये बात भी बडी हैं, विशाल हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १० विभूतियोग के २७ वे श्लोक में कृष्ण कहते हैं। "ऐरावतं गजेन्द्राणां नराणां च नराधिपम्" श्री कृष्ण कहते हैं कि "गज इन्द्राणां, हाथियों में मैं ऐरावत हूँ मनुष्यों में वे 'नर-अधिपम्' यानी राजा हैं।" इनमें ईश्वर अपनी विराटता को दर्शाते है। इस संयोग में वह विभिन्न रूपों में अपनी उपस्थिति व्यक्त करते हैं। व्यक्ति की विशालता में, उसके पराक्रम और उसके धैर्य में मुझे "गज:दृष्टि" समाहित लगती हैं, ऐसे भाव रखकर आनंद प्रकट करता हूं। 

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Wednesday, September 10, 2025

Opinions are good or not ?
September 10, 20251 Comments

 

Your opinions are a wall not just for others, but also for yourself. A closed mind means closed possibilities.
SADGURU

"आपकी राय न सिर्फ़ दूसरों के लिए, बल्कि आपके लिए भी एक दीवार है। बंद दिमाग का मतलब है बंद संभावनाएँ।"

राय देना सबको पसंद हैं। लेकिन राय सुनना किसीको पसंद नहीं। कईं लोगों को मुझ पर सद्गुरु के विचारो की असर ज्यादा लगे तो मैं खुद को भाग्यशाली समझूंगा। क्योंकि मुझे अच्छे विचार पसंद आते हैं ये बात तो तय हो गई। इससे अच्छी बात क्या हो सकती हैं !? ज्ञानपूजा करना यानि की अच्छे विचारो का सम्मानपूर्वक स्वीकार करना हमारे भारतवर्ष की सांस्कृतिक धरोहर हैं। अपरे प्राचीन ग्रंथ वेद-ऋचाएं, उपनिषद्...हमारे राष्ट्र का संपूर्ण वांग्मय मनुष्य जीवन की उन्नति का आधार हैं।


फिर भी राय देना या सुनने से बचना हैं। कहाँ बचना नहीं हैं ? ये समझ होनी चाहिए। जहां तर्कसंगतता से प्रस्तुत की हुई और समग्र मानव समूह को प्रभावित करनेवाले विचार को अपनाए। जिनमें व्यक्ति विशेष या समूह विशेष के स्वार्थ की बू आती हो वो विचार सनातन नहीं हो सकता। हाँ उसे प्रस्थापित करने के लिए कितने भी छल-प्रपंच का सहारा लिया जाय..! वो विचार-सलाह कभी भी कारगर नहीं हो सकता। और इससे आगे " मैं ही श्रेष्ठ हूँ !" या फिर "हमारे विचार राष्ट्र कल्याणक हैं !" ऐसी शाहमृगी वृत्ति अपने ही विनाश का कारण बनती हैं। शाहमृग को हम शुतुरमुर्ग से भी जानते हैं। दो बड़ा पंछी होता हैं। उस पर सवारी भी की जाए इतना ताक़तवर भी होता हैं। जब हवा के भयंकर तूफान आता हैं तो उससे बचने के लिए शुतुरमुर्ग अपना शिर घास में या झाड़ियों मे छिपा लेता हैं। और महसूस करता है जोखिम टल गया...! ये उसकी मान्यता हैं, उसका अहसास हैं। मगर तूफान रुका नहीं होता। और वो तूफान सामना नहीं कर पाता। अपना विनाश खुद करता हैं। कहां छिपना चाहिए उस विचार से भी दूर रहता हैं। उस वृत्ति को हमारे मनीषीओं ने 'शाहमृगवृत्ति' कहा हैं।

किसी अच्छे विचार को मानना, दूसरें को बताना या फिर उसका अनुसरण करना बिल्कुल गलत नहीं हो सकता। अच्छे विचार कभी एक व्यक्ति के भी नहीं रहते। हाँ एक व्यक्ति उसका माध्यम बनता हैं। वो समष्टि के हित के लिए होते हैं। वो सलाह और राय नहीं कहलाते ये स्पष्ट हैं। अपने भीतर भी अपनी एक राय या अपनी एक मान्यता पलती हैं। वो भी ठीक होनी चाहिए। अपने वैयक्तिक जीवन को बाधा में डाले ऐसी नहीं होनी चाहिए। ये खुद हमारे लिए एक दिवार बन जाती हैं। उसे लांघना हमारे लिए दुष्कर हो जाएगा।

विचार स्पष्टता से हमारे भीतर जगह बनाए तो वो ठीक हैं। सद्गुरु जैसे लोग हमारी स्पष्टता हैं। उनके विचार में ताज़गी होती हैं। उनमें हृदय को छू लेनेवाली खनक होती हैं। दुविधा युक्त मन शांत हो जाता हैं। जैसे हम कुदरत के नज़ारों को देखते हैं तब मन शांति से भर जाता हैं। हम निःशब्द हो जाते हैं। वैसे अच्छे विचारों का भी होता हैं। अब अपने मानस में कौन- से विचार-राय को जगह देनी है, ये हमें ही तय करना पड़ेगा। कौन-से विचार, राय या सलाह से प्रभावित होना है, ये भी हमें ही समझना होगा। जिसको सुनने मात्र से सहजता महसूस हो, मेरे विचार में शायद वो अच्छी राय हैं। अपने दिमाग को कैसे खोलना है, ये हम बख़ूबी जानते हैं। इसे स्वीकार करने में मेरा बिल्कुल आग्रह नहीं हैं।

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Wednesday, September 3, 2025

Light is everywhere..!
September 03, 2025 4 Comments

 बुद्धिमानी हम किसे कहते हैं ?

पहले अपने हित का विचार करना बुद्धिमानी हैं।

"Always do the best you can for whoeveris around you because tomorow, either they may be gone, or you may be gone."
SADGURU 

"हमेशा अपने आस-पास जो भी हो, उसके लिए सबसे अच्छा करो, क्योंकि कल या तो वे चले जाएँगे, या तुम चले जाओगे।" सद्गुरु के इस विचार पर ब्लोग विस्तार करता हूं।

एक चिराग को जानबूझकर या असूया से बुझाने में मूर्खता हैं। कैसे मुर्खता से बचा जाए ये बुद्धिमानी कहलाएगी। एक सुंदर क्वाॅट विचार में आया। काफ़ी देर तक उस विचारने मुझे झकझोर रखा था। मैं विचारतंतु को जोड़ता रहा। सोचता रहा और उस अवस्था को मैं बयां कर रहा हूं। पहले एक सुंदर वाक्य को पढ़े, दोबारा पढें। समज में बैठ जाने के बाद अच्छे अनुभव से अपने हित का विचार करना होगा। "किसी चिराग को बुझाने का प्रयास मत कीजिए, अंधेरा खुद को ही भुगतना पड़ेगा।"


बड़ा ही सुहावना विचार हैं। हम खुद एक जीते-जागते  चिराग ही तो हैं। जब तक ईश्वर की मर्ज़ी होगी, उनके दिए गए श्वास होंगे तब तक हम जलते रहेंगे। हम सब चलते दिये ही तो हैं। जीवन के रुप में हमें भी प्रकट होना हैं। सांस चलती है यह एक बात हैं। हम विचार से चलते हैं ये दूसरी बात हैं। संसार से कुछ न कुछ सीखते हैं। शिक्षा से ज्ञान प्राप्त करते हैं। कुछ नयेपन से उभरते हैं। समाज को कुछ नईं सोच मिलती है या फिर कोई आविष्कार मिलता हैं। कहीं न कहीं जीवन को बड़ी खूबसूरती से समझने वाले सृष्टि को कुछ न कुछ देते हैं। ईश्वर के निमित्त मनुष्य-प्राणी-पशु या प्रकृति के जरिए पूरे होते हैं। किसी एक का सपना साकार होता हैं। किसी की महेनत रंग लाती हैं। इसे मैं दिये का उजियालापन कहेता हूं। कईं दिये टिमटिमाते हुए अँधेरे को हराने का काम करते हैं। वहाँ तेज की किरनें स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं।

यहाँ तक सब ठीक हैं। लेकिन कईं लोगों को चिराग बुझाने का बड़ा शौक होता हैं। उनको दिये के अँधेरा हरने की हरक़त से डर लगता हैं। 'अँधेरा कायम रहे' ऐसी घटिया किस्म की सोच रखनेवाली कईं प्रजातियाँ संसार में अपना डेरा लगाये बैठी हैं। अपने वैयक्तिक स्वार्थ को पूरा करने हेतु वो दूसरे चिराग से जलते हैं। इसलिए उसको बुझाना अपना कर्तव्य मानते हैं। अपने अस्तित्व को बचाने का ये प्रयास है ऐसा भी मानकर चलते हैं। उनको अपनी बुझानेवाली हरक़त से कोई गिला-शिकवा नहीं होती। बस, पिशाची आनंद ही उनका जीवन होता हैं। इसके लिए बड़े बड़े षड्यंत्रों का सहारा लेना पड़ता हैं। इन परिस्थिति में कभी कभार अपने कार्य की विचित्रता का ख्याल भी नहीं रहता। मानो झूठ भी सच का आंचल ओढ़कर अट्टहास करने लगता हैं। अपने ही चिरागो को बुझाकर खूद अंधकार की गर्ता में जा गिरते हैं। वैसे लोग सूरज की किरनों को भी आभास समझते हैं। और जब अंधेरा छाने लगता है तब सूरज के बूझने का आनंद मनाते हैं।

हमें खुद तय करना होगा कि मुझे वैयक्तिक रुप से अंधेरे से प्यार है या उजास से..! जिसे उजास पसंद है वो कभी दिये बुझाने के काम में नहीं जुड़ेगा। उसे सारा संसार प्रकाशमान चाहिए। दैदीप्यमान सृष्टि को वो चाहते हैं। किसी एक छोटे-से चिराग को जलते रहने का प्रयास करते हैं। और इसी प्रयास में जगमगाते- टिमटिमाते अनगिनत दिये इस संसार को प्रकाशित करने लगते हैं। सारे संसार का संचालन करने वाले अदृश्य ईश्वर को ऐसा मंज़र पसंद आता होगा। इस बात में मैं हरदम श्रद्धेय हूं। ऐसे अद्भुत नज़ारों की खोज में निकलना हैं। बेशुमार खुशीओं की बारिश में भिगने जैसा मंज़र सबको पसंद आएगा। विश्व को उजियारे से भरना हैं तो किसी चिराग को जानबूझकर बुझाने की हरक़त मत करना। ईश्वर बहुत खुश होंगे...!

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Tuesday, August 26, 2025

Power of Life...!
August 26, 2025 5 Comments

 Strength is silent, flight is loud.

शक्ति मौन है, उड़ान जोरदार है।

पंछीओं में मुझे बाज़ पसंद हैं। सृष्टि के सभी जीवों की संघर्षगाथा अलग अलग हैं। सबको अपने संघर्ष होते हैं। और सबको अपना आनंद भी...! लेकिन बाज़ की बात ही कुछ और हैं। आज उनके बचपन की हकीक़त से वाकिफ कराने जा रहा हूँ। वैसे तो आप सब जानते हैं कि बाज के जीवन पर आधारित मेरी एक नॉवल प्रकाशित हुई हैं। "फ्लाईंग मार्वल" एक बाज की प्रेमभरी उड़ान...ऐसा उसका शिर्षक हैं। ये नाॅवल गुजराती और हिन्दी दोंनो भाषाओं में ऑनलाईन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। बाज़ मुझे बेहद पसंद हैं। उसका कारण गीताकार का यह श्लोक भी हैं। श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय-१० विभूति योग का यह श्लोक भावार्थ के साथ पढ़े।

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालःकलयतामहम् ।
मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् ॥१०-३०॥

भावार्थ : मैं सभी असुरों में भक्त-प्रहलाद हूँ, मै सभी गिनती करने वालों में समय हूँ, मैं सभी पशुओं में सिंह हूँ, और मैं ही पक्षियों में गरुड़ हूँ।


वैसे गरुड़ और बाज़ में थोडा-सा अंतर हैं। लेकिन शक्ति और गति की तुलना में ये दोनों एक ही है। उनका देखाव भी एक जैसा ही हैं। यहां मैं बाज़ को ध्यान में रखकर ब्लोग का विस्तार कर रहा हूँ। बाज़ की शक्ति साइलेंट होती हैं, मौन हैं। लेकिन उसकी उड़ान शानदार होती हैं। बाज़ की परवरिश में अच्छी ट्रेइनिंग का खास ख्याल होता हैं। बाज़ के बच्चे को उनकी माँ ही ट्रेइनिंग देती हैं। जब बच्चा घोसले के बाहर आकर थोड़े बहुत पंख फडफडाता हैं तब उनकी माँ को पता चल जाता हैं, की बच्चा अब उड सकता हैं। बच्चे को उनकी माँ खुद अपने पंज़ों से उठाती हैं। और आसमान में उड़ान भरने लगती हैं। काफी ऊंचाई के बाद वो बच्चे को पंजो की पकड से छोड़ देती हैं। छोटा-सा बाज हैरान हो उठता हैं। अपने पंख को सिकुड़ते हुए और अपने आप ही खुले हुए पंख से गभरा जाता हैं। वो निःसहाय तरीके से धरती की ओर आ रहा होता हैं। जब एकदम जमीन से टकराव की स्थिति आती है तब माँ उसे पंजो से पकड लेती हैं। ये नित्य होता रहता हैं। कुछ दिनों के बाद बच्चे में हिम्मत बढ़ने लगती हैं। उसे आसमान से प्यार होने लगता हैं। उसे माँ से मिले दिल-धड़क प्रशिक्षण से आनंद मिलता हैं। उसके हौंसले में विश्वास भरता हैं। विश्व के सभी सजीव सृष्टि में सबसे बेहतर शिक्षा बाज़ की होती हैं। फिर बाज आसमान का राजा कहलाता हैं। ऊँची उड़ान से उसे प्यार होता रहता हैं। आसमान उसका घर ही बन जाता हैं। मेरी नाॅवल का बाज बोलता हैं : "हम बाज, सीखनेवाले हैं इसलिए उडनेवाले हैं।"

जो सिखते रहता हैं वही कमाल करता हैं, धमाल भी..! सिखने वालों में एक दृष्टि आकार धारण करती हैं। उनकी क्रियाओं में बड़ा उछाल होता हैं। उसके इरादों में जान होती हैं। उनके रास्ते भले ही कठिनाई से भरें हो। संघर्ष के साथ वो गहराई वाला रिश्ता कायम कर लेते हैं। सफलताओं के मुकाम ऐसे तय किए जाते हैं। हौंसलो में जान होती हैं, उनकी उड़ान शानदार होती हैं। इसलिए बाज सबसे ऊपर हैं। सभी पंछीओं में वो राजा कहलाता हैं। बाज के जीवन का संघर्ष भी लाजवाब होता हैं। उसके बारें में कभी बात करेंगे।

मुझे बाज़ के जीवन से इतना समझ में आया हैं की जितना बड़ा संघर्ष उतनी बड़ी उड़ान..! संघर्ष से डरो मत, भागो मत, उसका डटकर सामना करो। फिर देखिए एक साफ-सुथरा, निडर चरित्र आकारित होगा। संघर्ष में डालने वालों को मैं सलाम करता हैं। क्योंकी एक होनहार चरित्र के निर्माण में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी होती हैं। विश्व के कईं ऐसे लोग हैं जिनको बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता हैं। लेकिन प्रकृति के सिद्धांत के मुताबिक पीड़ाओं में से ही उत्तम इन्सान पैदा होता हैं। और ये सिस्टम चलती ही रहेगी। प्रकृति के कईं तत्वों या जीवंत जीव को देख लिजिए। कालक्रम ने उन्हीं के सामर्थ्यवान इतिहास को संगृहीत किया हैं। बाज की तरह संघर्ष को गले लगाते हुए...!

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Wednesday, August 20, 2025

Life is a wonderful journey..!
August 20, 2025 2 Comments

Do not look for the finish line.

With Life, the Journey itself is the Destination.
SADGURU.
"अंतिम रेखा की तलाश मत करो। जीवन में, यात्रा ही मंजिल है।"


जीवन यात्रा हैं और बेहतरीन यात्रा हैं। जन्म-जन्मांतर के निमित्त कहे या हम नहीं जानते वैसी ईश्वर की कोई योजना कहे..! जिनके तहत ये जीवन मिला हैं, हैं बड़ा ही सुहाना...! आज मुझे सद्गुरु ने फिर एकबार ब्लोग का विषय दिया हैं। सद्गुरु जैसे ऋषियों के कारण हम जैसे लोगों को विचार मिलता हैं। चिंतन मनन व्यापार मिलता हैं। जीवन की दृष्टि खिलती हैं। जीवन का कोई अंतिम स्थान ही नहीं हैं। जीवन ठहराव के बीना अनवरत बहती नदी जैसा हैं। सागर के मिलन के बाद भी जल की यात्रा ठहरती नहीं हैं। खारेपन को छोडकर तपना हैं फिर एकबार बारिश बनके धरती पर बरसाना हैं। जीवन की यात्रा भी कभी थमती नहीं..! एक जीवन के बाद दूसरा जीवन, जैसे जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म...! सद्गुरु इसी कारण जीवन को यात्रा कहते हैं। और ये यात्रा ही मंज़िल हैं ऐसा भी कहते हैं।

हम जानते हैं कि एक जीवन जन्म से मृत्यु पर्यंत प्राप्ति की दौड़ में लगा रहता हैं। वो भी एक जीवन की आनंद यात्रा हैं। मनुष्य इस जीवन की यादें लेकर दूसरे जीवन की यात्रा में निकल पड़ता हैं। एक जीवन का शरीर पंचमहाभूतों में विलिन हो जाता हैं, इसे हम मृत्यु कहते हैं। सद्गुरु पूरे जीवन को यात्रा कहकर हमें हमारी आज पर या इस जन्म की हमारी मानवीय सभ्यता पर केन्द्रित होना कहते हैं। जीवन के आनंद के प्रति जागरूक होने की बात करते हैं। एक शांत झरने की तरह उछलते, खेलते बस बहने की बात सिखाते हैं। इसका मतलब कोई ऐसा हरगिज न करें कि जीवन में कुछ प्राप्त नहीं करना हैं। जीवन में भीतर उठती आशाओं को पालना हैं, उसे पूरी करने का आनंद भी लेना हैं। जीवन की यात्रा में मिले ये बेहतरीन मुकाम कहलायेंगे। चलों...एक बहुत ही सुंदर विचार से भरी कविता पढ़ते हैं। जिसमें रचनाकार की यायावर के साथ बातचीत हैं।

ले गए तुम कई बार साथ में,
हमें अपनी यात्राओं पर,
चित्रकूट, वृंदावन, सौराष्ट्री सागर-तट
या कहीं और भी,
पर यह कौन-सी यात्रा है ?
यायावर !
जहाँ तुमने,
अकेले ही असंग जाने का निर्णय लिया,
और चल भी दिए ?

● स्रोत : पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ ११२) संपादक : प्रभाकर श्रोत्रिय, रचनाकार : श्री नरेश मेहता, प्रकाशन : साहित्य अकादेमी संस्करण : 2015

कविता का विचार और सद्गुरु जी के विचार में मुझे साम्यता दिखी हैं। जीवन पंछी की तरह गाता, मुस्कुराता और आसमान में मस्तीभरी सैर करनेवाला होना चाहिए। लेकिन रचनाकार की संवेदन को पकडना। उनके शब्दों में यायावर की असंग उड़ान से खेद हैं। एक तरफ जीवन का कोई साथी-संगी अपनी अंतिम यात्रा पर निकल गया हो और संगति का साथ छूट गया हैं, ऐसी भी संवेदना प्रकट होती दिखाई पड़ती हैं। हमें इतना समझ में आ रहा हैं। जीवन ही यात्रा हैं वो यात्रा अनवरत हैं। हाँ, एक भौतिक शरीर की यात्रा रुक जाती हैं, जीवन की नहीं...!

यात्रा 'अनुभव और अनुभूति' से जुड़ी हैं। यात्रा के दौरान कई ऐसे हादसों से गुजरना पड़ता है इसमें सुख-दुख का तालमेल बना रहता हैं। कहीं आनंद हैं, कहीं पीड़ा, कहीं हर्ष-शोक-निराशा सबकुछ हैं। कहीं पर प्राप्ति-अप्राप्ति भी हैं। कहीं पर क्रोध हैं, असूया हैं। कहीं पर दूसरों के प्रति आदर हैं, प्रेम भी हैं। कहीं पर घृणा रक्त बनकर बह रही होती हैं। कहीं पर घृणा अत्यंत क्रोध में परिणमित होकर विकृति बन जाती हैं। अपने खुद की यात्रा को खुद ही विचित्रता से घेर लेते हैं। ऐसे लोगो की जीवन यात्रा समाज को जीने लायक नहीं छोड़ती। इस सत्य को स्वीकार करना बहुत मुश्किल हैं। क्योंकि यहां साफ-सुथरे लोगो ने अपना आशियाना भौतिक चकाचौंध से सजाया हैं। वो जीवन को यात्रा से कम ऐयाशी ज़्यादा समझते हैं। उनको  अपने जीवन की भीतर की आवाज के मुताबिक जीना होगा..! दोस्तों, इसे सलाह सूचन या कोई फिलसूफी भरी बातें मत समझना केवल एक विचार का वैयक्तिक समर्थन समझना...!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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The key of healing...RAMA.

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