August 2024 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, August 28, 2024

Then life becomes experience..!
August 28, 20240 Comments

This life like a..precious gem is not easy to come across.

ये जिंदगी जैसे...! बहुमूल्य रत्न,आसानी से नहीं मिलता।

ये ह्रदय को स्पर्श करने वाले शब्द ईशा फाउन्डेशन द्वारा स्वर बद्ध किये भजन-कविता के हैं। ईसे सुनने का मजा लेने की ज़िम्मेदारी आपकी। शब्द और विचार की गहराई को पकड़कर देखे। बहुत आनंद मिलेगा।

                               Special thanks to ISHA and my favorite SADHGURU 
सूफी रोहल फकीर द्वारा लिखित "लीना ह्यू सो" एक कविता है जो लोगों से जीवन के गहरें आयामों में जाने का आग्रह करती है - एक संभावना जो केवल मनुष्यों के लिए उपलब्ध है। कवि व्यक्त करता है कि यह मानव जीवन एक अनमोल रत्न की तरह है, जिसे पाना कठिन है। और यह क्षण वह प्राप्त करने का समय है जो अनुग्रह प्रदान करता है।
कुछ पंक्ति पढें और भाषा समजने का प्रयास भी करें..!

"लीना हुए सो लीजे म्हारा भाईदा रे..!
अब आई लेवन के बेला, रे साधो !
माणको जनम हीरो हाथ नहीं आवे रे..!
फिर भटकत चौरासी रा फेरा रे साधो !
एदो रतन हीरो हाथ नहीं आवे रे !!"

सूफी रोहल फकीर (1734-1804) (सिंधी) एक संत-कवि और रहस्यवादी और परिष्कृत दर्शन के प्रतिपादक थे। जाति से ज़ंगेजा, धर्म से मुस्लिम और व्यवहार से सूफी। उन्हें सिंध में पुनर्जन्म लेने वाला महान संत कवि कबीर माना जाता था। रोहल कवियों और धर्मपरायण लोगों की प्रसिद्ध कंदरी शरीफ जनजातियों के पूर्वज थे। वह प्रसिद्ध शहीद सूफी-संत शाह इनायत के आशीर्वाद से सूफीवाद की ऊंचाइयों तक पहुंचे। अपनी कविता में उन्होंने अहंकार और घृणा को त्यागने और प्रेम के पंथ का पालन करने का अपना संदेश व्यक्त किया है। 'सूफी रोहाल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने मुस्लिम सूफी अवधारणाओं के साथ वेदांतिक तत्वों को जोड़ा।' अब उनका मंदिर कांद्री शरीफ तालुका रोहरी जिला सुक्कुर में है। (स्रोत: विकीपीडिया)

येसे महान संतप्रकृत को वंदन। विचार की गहराई के साथ समत्व आकारीत होता हैं। मात्र माहिती के लिए रोहल फकीर की बात रखता हूं। सूफीवाद और वेदांतिक मेल की बात भी मैं पहली बार देख रहा हूं। प्लीज, रूढ़िगत मान्यता से गलत मत समजना।

जीवन संभावना हैं। जीवन बहुमूल्य रत्न हैं। जीवन की किमत को समझना भी एक अमूल्य स्थिति हैं। जीवन के स्वर का संधान व्यक्ति को भीतर से न्याल कर देगा। संसार में कईं लोग अपनी पहचान बनाने में सफल होते हैं। एक नईं सोच कारण या नयें विचारों की अभिव्यक्ति के कारण वे कुछ माननीय सुर्खियों को प्राप्त करते हैं।  कहीं उनकी असूया भी होती हैं। कभी जन्म के कारण या अन्य कोई वर्गभेद के कारण अवहेलना भी होती हैं। फिर भी जो जीवन की मूल्यता को पकडकर चलता है उनका कतई बूरा नहीं होता। उल्टा वो यूनिवर्स से शक्ति का संचय करता जाता हैं। किसी को हल्का समझने वालों की मानसिकता पर मुझे कुछ नहीं कहना। क्यूंकि वैयक्तिक रुप से मुझे किसी को ठेस पहुंचाने का हक ही नहीं हैं।

जीवन बडी ही जटिल पक्रिया भी हैं। जीवन उलझनों से गिरा हुआ भी हैं। संघर्ष से तपना भी पडता हैं। कईं अनुभवों से एक इन्सान को गुजरना पडता हैं। मैं तो कहता हूं जिनके जीवन में अनुभवों की संख्या ज्यादा उसका जीवन नयें आयाम से स्फूर्त होगा। जैसै जीवन तपन से..तडपन से एक व्यक्ति बहुमूल्यन का अधिकार प्राप्त करता हैं। उसकी टिकाए- निंदाए बहुत होती हैं। फिर भी एक बहुश्रुत जीवन आकारीत होता हैं। संसार येसे कईं चरित्रों से महान व्यक्तित्वों से भरा पडा हैं। सबके जीवन में कुछ अलगता छाई हैं। सबको पीडा मिली हैं, फिर उनके कारण संसार को शाता मिली हैं। जीवन की ये सबसे बडी पारस्परिक आदान-प्रदान की बेला हैं। संसार को कुछ अच्छा देनें की बेला..!
सचमुच, जीवन अनुभव से अनमोल के प्रति यात्रा हैं..!!
आई लव यू जिंदगी !!

आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat
INDIA
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234
Reading Time:

Wednesday, August 21, 2024

The Great pleasure..!
August 21, 2024 4 Comments

Once your life becomes an expression of joy..!

you will no longer be in conflict with anyone.


ब्लोग के टाईटल में मैने 'ग्रेट प्लेजर' लिखा हैं। महान आनंद की प्राप्ति के लिए संसार के कईं चरित्रों ने प्रयास किए हैं। कोई ध्यान-योग-हठयोग-साधना-पूजा-व्रतजप से आनंद की प्राप्ति खोजता हैं। कोई कर्मयोग से कोई धर्म से आनंद प्राप्ति के प्रयास करता हैं। सभी मार्ग अपनी-अपनी रूची के अनुसार ठीक हैं। कोई भी मार्ग ऊँचा या नीचा नहीं हैं। सभी मार्ग पर आनंद प्राप्त होगा। युगो से चली आ रही मानवीय सभ्यता में कईं पहलू पर विचार हुआ हैं। अनेक दूरंदेशीओं ने मार्गदर्शन भी किया हैं। नयें नयें प्रकल्प अस्तित्व में आए हैं। संसार में नई-नई विचारधाराएं अस्तित्व में आई हैं।


मैं समजता हूँ कि सभी प्रकल्प की अपनी-अपनी फिलसूफी हैं।  सबके ढांचेगत आचार है, विचार हैं। सबकी कार्य प्रणाली हैं, पद्धति हैं। सबकी धाराए मनुष्य के कल्याण के लिए बहती हैं। मनुष्य जीवन को बेहतर बनाने की प्रक्रियाएं चल रही हैं। मनुष्य जीवन को आनंद देने की या आनंद में रहने की कुंजी देने के प्रयास चारों ओर चल रहे हैं। सही है मनुष्य को  आनंदित होना हैं। सभी भौतिक चीजवस्तुओं का आविष्कार मनुष्य के आनंद के लिए हुआ। फिर भी कुछ त्रुटियाँ रह जाती हैं। जीवन के आनंद की खोज जारी रहती हैं। ये मनुष्य जीवन की सबसे बडी यात्रा हैं। आनंद को खोजने की यात्रा..!

आज भारत में सद्गुरु वासुदेव जग्गी की स्पष्टतावाली विचारधारा चर्चा में हैं। भारत के बहार विदेश में भी उनके जीवन संबंधित विचार को पुष्टी मिल रही हैं। जीव-जगत-पर्यावरण का तालमेल कैसे प्रमाण भूत हो उसकी पक्रियाएं उनके कोईम्बतुर आश्रम में चलती हैं। वो  जल-जंगल को बचाने की बात रखते हैं। नदी और मिट्टी के बचाव मैं उन्होंने मार्गदर्शी यात्राएँ की हैं। मानवमन की जागृति के लिए सद्गुरु आवश्यक कदम उठा रहे हैं। चिरकालिन ज्ञान परंपरा एवं तंत्र विज्ञान के जरिए मानवमन को आनंदित व शांत करने का प्रयास भी कर रहे हैं। 
उनका एक सुंदर क्वोट हैं :"एक बार जब आपका जीवन आपके आनंद की अभिव्यक्ति बन जाता हैं, तो आप किसी के साथ संघर्ष में नहीं रहेंगे।"
हम भारतीय सभ्यता को चिरकालिन मानते है। कभी न तूटने वाली सभ्यता मानते हैं। दूसरों को स्वीकार करनेवाली हमारी सभ्यता हैं। किटक से लेकर कदावरों की फिकर करने वाले है हम..! प्रकृति के पूजक है हम..! सनातन है हम...ऐसी कई बातों का गर्व करने वाले है हम भारतवासी..! सद्गुरु हमारी सनातन बात रख रहें हैं। जैसी हैं वैसी, उसे रीयल तरीके से रखते हैं। उसमें कोई अपनी खुद की फिलोसोफी नहीं डालते। इसी कारण सब स्वीकार रहें हैं। भारतवर्ष में ऐसे कई महापुरुष भी हुए हैं। उनका स्वीकार होना सहज हुआ हैं।

ये संघर्ष की बात सुनकर- पढकर मैं बडा विचलित हुआ। जीवन की उन्नति के लिए संघर्ष करना भी पडता हैं। वो संघर्ष वैयक्तिक हैं। अपनी प्राप्ति के लिए हैं। उसमें तो अपना भीतरी आनंद छीपा हैं।फिर समझ में आया, संघर्ष मतलब दूसरों के साथ किया हुआ स्वार्थवश व्यवहार। उसमें आनंद नही हैं, स्पर्धा हैं। उसमें ईर्षा हैं, मलिन ईरादें भी हो सकते हैं। क्योंकि वहां "सबसे बहतर मैं हूं" की लडाई हैं। उसमें जो संघर्षे है वो कभी आनंद नहीं दे सकता। संघर्ष से कभी आनंद नहीं मिल सकता। जैसे "शांति के लिए युद्ध या युद्ध के बाद शांति !?"
फिर भी कहने का मन हो रहा हैं। दूसरों की कमियों निकाल कर या दूसरों को हल्का कहकर कैसा आनंद मिल सकता हैं ? बड़ी सोच बडी ही होती हैं। मेरे या कोई ओर के कहने से सनातन सभ्यता के विचार बदला नहीं करते..! कोई हवा चलती भी हैं, फिर हवा के झोंके से बदल जाती हैं। उसे आप जो कहें !!

आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar. Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
+ 91 9428312234 
Reading Time:

Wednesday, August 14, 2024

Evergreen...KABIR.
August 14, 20241 Comments

My heart is now drunk on love, l find no need to speak.

मन मस्त हुआ फिर क्या बोले ?!

भारत के अद्भूत चरित्रों में से एक हैं कबीर..! संत कबीर, मैं पूरी अदब से उन्हें संत कहता हूँ। अब उनके जन्म, ज्ञाति-जाति, धर्म- व्यवसाय की बात करनी चाहिए। लेकिन मैं उस बात में पडनेवाला नहीं हूँ। क्योंकि मुझे कबीर कौन था ? में इन्टरेस्ट नहीं हैं। मुझे उस संत कबीर के द्वारा कही गई 'आत्मज्ञान' की बानी में इन्टररेस्ट हैं। कबीरजी को किसीने साहित्यकार समझा, समाज श्रेष्ठीओं ने सुधारक समझा,आत्म खोजी लोगों ने आत्मज्ञानी समझा। साधक वृत्ति के लोगो ने कबीरजी को साधक भी समझा हैं।


उनकी कठोरतम "पाषाणीबानी" उस समय के समाज में फैले पाखंड के लिए आवश्यक कदम था। जैसे स्वामी दयानंद सरस्वतीजी का "वेदों की ओर लौटो" का सामाजिक क्रांति का पैगाम था। बस, वैसे ही कबीरजी की कठोरतम भाषाने एक समर्पित वर्ग खडा किया हैं। आज भी ईस विचारपंथ को 'कबीरपंथ' के नाम से जाना जाता हैं।

कबीर का समग्र सृजन मनमस्ती हैं। भीतर की ख़ुशी हैं। जीवन ऐसा आनंद है जो कुछ भी बोलने के लिए या किसी का बूरा सोचने के लिए तैयार नहीं। "मन मस्त हुआ फिर क्या बोले ?" जैसे सवाल से ही कबीरजी मस्त हैं। ये कबीरजी का एक भजन हैं। उसमें कबीर जो बात रखते हैं वो लाजवाब हैं।
हीरा पाया बांध गठरियाँ,
बार-बार गांठ क्यों खोले ?
कबीरजी आत्मा को हीरा कहते हैं। I have found an Invaluable gem..! "मुझे एक अमूल्य रत्न मिल गया हैं और मैंने उसे सुरक्षित रुप से अपने भीतर बांध लिया हैं।" उसे बार-बार क्यों देखना हैं। हमें विश्वास होना चाहिए।  उसकी मूल्यता पर कभी शंका न होनी चाहिए। जब मन शंका से मुक्त हो जाएगा तब निडरता के प्रति सहज प्रयाण होगा। दूसरी एक पंक्ति :
हंसा नावें मान सरोवर,
ताल-तलैया में क्यों डोले ?
Now why would it dwell in ponds and puddles ? बडा ही उँची गुणवता से भरा सवाल हैं। हम ईश्वर के बनायें हुए हैं, ईसी शक्यता में सब समाहित हैं। मानसरोवर के झील में मोती का चारा चरने वाला हंस कभी तालाब के कीचड का विचार ही नहीं करता। उसको पता हैं अपने खुद की अहमियत..! मुझे कैसे जीना हैं, मेरा क्या वजूद हैं, मेरी भी कुछ जिम्मेदारी हैं। हंस के प्रतिक से कबीरजी हमें जीवन का उद्देश्य बताते हैं। इससे जो जीवन की मस्ती मिलेगी शायद वो किसी कीमत पर नहीं मिल सकती। एक तरफ दूसरों की बुराई में भी, दूसरें को हल्का सोचने में भी जिंदगी बह जाती हैं। जीवन के सत्व को कलुषित करने का काम भी हम खुद ही करते हैं। नियंता की निर्मलता पर संदेह करना, यानी हमारे भीतर मलिनता को भरना..! कोई विचार को इतनी बेरहमी से मत पालें कि वो जीने न दे। आने वाली पीढ़ीओ को उसका भूकतान न करना पडे..!

मन को मस्त बनाना सहज हैं; सरल हैं। मनमस्त वाली बात सही हैं, लेकिन वो बात पर विश्वास नहीं आता। कबीर सहज होकर कहते हैं, अपना उद्धार खुद करना हैं, ये बात सबको पसंद आईं वो मुमकिन है ऐसा भी महसूस हुआ।  संत कबीरजी ने मानसरोवर के हंसों की उपमा देकर मानव-जाति का बहुमूल्यन किया हैं। आपको लगता हैं तो कमेन्ट करें।

आपका, ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar,Gujarat
INDIA
dr.brij59@gmail.com
drworldpeace.blogspot.com
09428312234
Reading Time:

Wednesday, August 7, 2024

एक छोटी-सी दौड..!!
August 07, 2024 9 Comments

Do anything at your own pace.

Life's not a race."
"जीवन दौड नहीं हैं, जो कुछ करो अपनी गति से करो।"

बचपन में एक कहानी सुनी थी, "खरगोश और कछुआ" सबने सुनी होगी। कई कहानीओं ने हमारा बचपन सँवारा हैं। जब छोटे थे तो प्राणी और पशुओंकी कहानियाँ ने हमें मधुर निंद दी। थोडी-बहुत हमारी जिज्ञासा तृप्त हुई। थोडी-बहुत कल्पनाशीलता को पंख मिले। तब कहानी मात्र आनंद के लिए सुनते थे। कहानी में जब प्राणी-पशु-पंखी आपस में बातें करते थे, वो सुनना अचंभित लगता था। उनके डायलोग्स हमें बहुत पसंद आते थे। कहानी के वर्णन अच्छे लगते थे। बस, फिर मिठी-सी निंद..!


अब सुनें बडें होने के बाद वाली कहानी की असर..! आपकी पुरानी यादें हलचल में आ गई !? नहीं आई तो पढना शुरु रखे..! आज बडे होने के बाद उस कहानी से ज्यादा मिलता हैं। जब वो कहानी फिर से याद आती हैं। थोडी कहानी..."एक दिन जंगल में खरगोश और कछुए के बीच दौडने की होड लगी। खरगोश को अपनी ताकत पे गुरुर था। कछुआ बिल्कुल शांत था, वो अपनी गति पर कायम रहनेवाला था। उनको रेस में या चैम्पियनशिप में कोई रस नहीं था। उनकी रेस अपने आपसे थी। वो शांत था, धीर था एवं गंभीर था। खरगोश के बहुत कहने पर कछुआ उनकी बात का मान रखता हैं। कभी-कभार जीतनेवाली की बात, उनके तेवर के सामने झुक जाना ही अच्छा हैं। खरगोश को अपनी दौडने की क्षमता पर गुरुर था। रेस शुरु हुई, कहानी अब नहीं कहता। परिणाम क्या आया सबको पता हैं।"

"जो कुछ करो अपनी गति से करो" कछुआ इस विचार की ताकत से जीतता हैं। उनकी गति ओरो के लिए बहुत ही मंद हैं। खरगोश के सामने कभी न टीकनेवाली हैसियत होने के बावजूद कुछ अचंभित होता हैं। बस, हमें उस अचंभित करने वाली घटना को कायम उस बच्चें की तरह अनुभूत करना हैं। उस समय बच्चें के मनमें जो हैरत थी, उसे हमेशा के लिए अपने दिलों-दिमाग में पालते रहना हैं। कहानी एक ही हैं। हमारी सोच बढती हैं। हमारी समझदारी बढती हैं। फिर-भी आज बच्चें की तरह ही कछुए की जीत का मजा लेना हैं।

आज भी कईं खरगोश हमें ललकारने या विचलित करने के लिए तैयार बैठे हैं। और सांप्रत तो स्पर्धा से ही भरा हैं। शिक्षा और व्यवसाय में तो बडी ही हलचल लगी पडी हैं। सब आगे निकाले जाने की फिकर में पडे हैं। इसमें अपनी गति, अपनी मति कहीं न कहीं गायब हैं। "मुझे भी ईश्वर ने कुछ गति दी हैं। मेरी भी एक छोटी-सी दौड इस संसार में स्थापित हैं। मैं उस प्रभु के द्वारा निर्मित हुआ छोटा-सा कछुआ हूँ।" शायद मुझे दौडना नहीं आता, मगर मेरी जो कुछ धीमी रफ्तार हैं, वो ही मेरी औक़ात हैं। उसे आप चलना भी कह सकते हैं, दौडना भी..!

जब हम कछुआ बन जाने की सोच रखेंगे तो, खरगोश हमारा कुछ बिगाड न पाएंगे। वो हमें जीताकर ही छोड़ेंगे। बस, हमारी कछुए की चाल पे एकदम भरोसा रखना हैं। मुझे जो कुछ गति या मति मिली हैं, उसमें ईश्वर की मर्ज़ी निहित हैं। मुझे वो चलायेगा तो चलेंगे, दौडायेगा तो दौडेंगे बस, यहीं विश्वास मन में कायम करना हैं। मानव जीवन में फलने-फूलने का अधिकार सबका हैं। धरती पर मौजूद सभी जीवों की अपनी-अपनी अहमियत हैं। सभी की क्षमताएं भी अलग-अलग हैं। सबकी आदतें भी अलग हैं। फिर भी स्वीकार करने की मानसिकता सबसे ऊपर हैं। जो मनुष्य इस स्वीकार वालें किरदार को निभाएगा वो सफल हैं। उसे हम जीतनेवाला कहते हैं, उसे दूसरों से बेहतरीन कहते हैं। विचार हमें ही करना हैं। लाइफ इज नोट अ रेस..!
मुझे कौन-से किरदार से जीवन को सम्यक बनाना हैं !?!
हां, मुझे कौन-सा जीवनमार्ग प्रशस्त करना हैं !?!

आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
+919428312234.









Reading Time:

Quality of life..!

The quality of your thinking  determines the quality of your life. आपकी सोच की गुणवत्ता आपके जीवन की  गुणवत्ता निर्धारित करती है। जीवन आखिर...

@Mox Infotech


Copyright © | Dr.Brieshkumar Chandrarav
Disclaimer | Privacy Policy | Terms and conditions | About us | Contact us