The man of Justice. - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, April 12, 2023

The man of Justice.

 The Bhimrao is strength of suffering.

डॉ.बाबासाहब आंबेडकर पीडा में से खड़ी हुई ताकत हैं।

विश्व को अचंभित कर नए अध्याय का निर्माण करना असंभव हैं। उनके लिए जिसका स्वीकार ही नहीं। असमान विचित्र सामाजिक दृष्टि को झेल कर कोई अपने अस्तित्व को युगों तक कायम करता हैं। मनुष्य का मनुष्य के द्वारा अपमानित करना। जन्म के आधार पर मनुष्य की हलकटता स्थापित करने की बौद्धिकता से ईश्वर खुश होंगे क्या ? डॉ.बाबासाहब आंबेडकर इस असंभवता के पर्वत को अपने निजी संघर्ष से लांघकर अपने खुद के व्यक्तित्व परचम को लेहरा गए।


The Great


डॉ.बाबासाहब जन्म से ही असमर्थता से घिरे हुए थे। कुछ करने, कुछ बनने की सोच कायम करना भी उस समय के सामाजिक ढांचे के खिलाफ था। फिर भी प्रकृति की विजय कहो या ईश्वरीय सिद्धांत की जीत कहो। एक व्यक्तित्व को निखार मिलता गया। ईस मेधावी चरित्र के परिवृत असमर्थता के पंथ को सक्षम समर्थ बनना ही पडा।

समाज की दृष्टि से सामान्य व्यक्तित्व असामान्य मार्ग पर चल पडा..! ज्ञान की अखंड-अविरत-अविश्रान्त कर्म साधना शुरू हुई... भीमराव अमेरिका और ईग्लेंड में अर्थशास्त्र व कानून का अथक अभ्यास करते हैं। डाँ.बाबासाहब आंबेडकर दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मानव विज्ञान, समाजशास्त्र एवं ईतिहास के भी ज्ञाता थे। उन्होंने विश्व के सभी धर्मों का भी गहन अभ्यास किया था। विश्व में उनका स्वीकार इसके कारण ही सहज हुआ हैं। उनकी सबसे पसंदीदा पुस्तको में

Life of Tolstoy by Romain Rolland.
Les miserables by Victor Hugo
Far from the madding crowd by Thomas Hardy.

विश्व के नृवंसशास्त्र के गहन अध्ययन से बाबासाहब की प्रज्ञा अद्भुत परिमाण को लेकर स्पष्ट होती गई थी। विश्व को अचंभित करने वाली एक वैचारिक आधारभूतता डॉ.बाबासाहब के नाम से गूंज उठी। उस गूंज का प्रमाण हैं...! अमेरिका की प्रसिद्ध युनिवर्सिटी कोलंबिया में स्थापित "सिम्बोल ओफ नॉलेज" का सम्मान हैं।
डॉ.बाबासाहब आंबेडकर सेन्सेटिव पर्सनालिटी के धनी थे। संवेदना से भरें इन्सान होने के कारण उनमें अकल्पनीय राष्ट्र अनुबंध था। उन्होंने अपने निजी संघर्ष को कायम ईग्नोर करके सिर्फ एज्युकेशन पर ही फोकस किया। राष्ट्र विकास की पारस्परिक समानता-समता और बंधुता की नींव रखने वाले निर्माता बाबासाहब थे।
आनंदविश्व सहेलगाह में आज डॉ.बाबासाहब के जन्म दिन की बात सेल्युट से 🫡 रखता हूँ और अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। संवेदना-पुरुष,संघर्ष-पुरुष डॉ.बाबासाहब से हमें प्रेरित होना है कि Inculcate self confidence.
आत्मविश्वास को मन में ठाम लो.. कुछ ठान लो। डॉ.बाबासाहब आंबेडकर Message of Inspiration के अजर-अमर चैतन्य स्तंभ हैं।

Your ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav✍️
Gandhinagar, Gujarat
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234. 

10 comments:

  1. It's really good thought 👏 👍 👌

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  2. अस्पृश्यता का शाब्दिक अर्थ है - न छूना। इसे सामान्य भाषा में 'छूआ-छूत' की समस्या भी कहते हैं। अस्पृश्यता का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह के सभी लोगों के शरीर को सीधे छूने से बचना या रोकना। ये मान्यता है कि अस्पृश्य लोगों से छूने, यहाँ तक कि उनकी परछाई भी पड़ने से उच्च जाति के लोग 'अशुद्ध' हो जाते हैं और अपनी शुद्धता वापस पाने के लिये उन्हें पवित्र गंगा-जल से स्नान करना पड़ता है। ઇતની इतनी मुश्किलों के बावजूद पीछे हठ किया नहीं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जय भीन

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  3. आज भी, डॉ. अंबेडकर के विचार भारतीय समाज में सामाजिक न्याय और समानता की स्थापना के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनकी जयंती (14 अप्रैल) को पूरे भारत में सामाजिक न्याय दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज, 15 अप्रैल, 2025 को भी उनके विचारों और योगदान को याद किया जा रहा है क्योंकि भारतीय समाज अभी भी सामाजिक असमानता और भेदभाव जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, और अंबेडकर के आदर्श एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज की दिशा में मार्गदर्शन करते रहते हैं।

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  4. MY DEAR FRIEND आपकी कलम में लिखने की ताकत है आप किसी भी सब्जेक्ट पर अच्छी तरह से लिख सकते हो लिखते रहिए और आप सदेव आगे बढ़िए
    फिर भी आज मे भी भीम राव के बारे में कुछ कहेना चाहता हूं
    मुझे तो ऐसा लगता है कि कर्ण का जीवन चरित्र और बाबा साहेब का जीवन चरित्र दोनों में अभाव दिखने मिलता है फिर भी फिर भी कर्ण ने भीं हार नहीं मानी और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने भी हार नहीं मानी
    भीमराव अंबेडकर का जीवन संघर्ष और उनकी पढ़ाई लिखाई में आने वाली चुनौतियाँ का प्रेरणादायक EXAMPLE आज के छात्रों के लिए हैं
    भीम राव का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था, और उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। ओर कर्ण। को भी क्षत्रिय होते हुए भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा
    बाबा साहेब को स्कूल में अलग बैठना पड़ता था, और उन्हें पीने के पानी के गलास को नहीं छूने दिया जाता था
    उनके परिवार को आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन उनके पिता की नौकरी के कारण उन्हें स्कूल में प्रवेश मिला।
    पढ़ाने वाले शिक्षक लोग भी उनकी उपेक्षा करते थे, लेकिन बाबा साहेब ने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखी।
    विश्वविद्यालय अमेरिका से अर्थशास्त्र में एम.ए. किया और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की।
    वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से "डॉक्टर ऑफ साइंस" की अनोखी डिग्री लेने वाले दुनिया के अकेले इंसान थे
    बाबा साहेब की कहानी और महाभारत के कर्ण की कहानी से हमें सिख मिलती है कि कि कठिनाइयों के बावजूद भी शिक्षा और संघर्ष के बल पर हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
    👍👍👍 जयंती जे एस लिंबोदरिया ✍️✍️✍️

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Thanks 👏 to read blog.I'm very grateful to YOU.

Strength of words.

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