The Maharana Pratap was great warrior of Hindustan.
महाराणा प्रताप महान भारत की भड़वीर आत्मा के रूप में अमर हैं।प्राकृतिक आपदाओं से भरा मरूस्थल राजस्थान। अरवल्ली की पर्वतमाला का आभूषण धरे, वीरता के इतिहास से संवृत और त्याग-बलिदान के रंगों से सजी धरती का अहसास राजस्थान !! मुगलों के आक्रमण का मुहतोड जवाब देने वाले राजपूतों की आन-बाना-शान हैं राजस्थान !! वीरों की भूमि मेवाड और इस धरती को सदा समर्पित सिसोदिया वंश के पराक्रम की अमर कहानीओं का जीवंत प्रदेश राजस्थान !!
मेवाड के सूर्यवंशी राजपूत महाराणा उदयसिंह और जयवंताबाई के निर्मित बल १५४० की ९ मई जेष्ठ सुद त्रीज को कुंभलगढ के दुर्ग में प्रताप का जन्म हुआ। आज करीबन ४८३ साल का समय बीत चुका हैं इस घटना को
आकार लिए। फिर भी भारत के शौर्य में, भारत की आत्मा में आज भी महाराणा प्रताप धडकन बने हुए हैं। वीरता की मिसाल खडी करने वाले प्रताप !! अपनी जन्मभूमि के लिए प्रतिबद्ध प्रताप !! धरती का कर्ज चुकाने प्रतिज्ञित प्रताप !! और मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाकर लडने का जुनून हैं प्रताप..!!
१८ जून १५७६ के दिन हल्दीघाटी में मुगलों की सेना के सामने महाराणा का युद्ध हुआ था। भील सरदार पूंजा सोलंकी ने अपनी भील सेना इस युद्ध में शामिल की थी। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह ने किया था। तीन-चार घंटे चले इस भयानक युद्ध में महाराणा प्रताप घायल हुए। बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान देकर महाराणा की रक्षा की थी। अद्भुत तरीके से प्रताप को युद्ध से हटाया गया था। मेवाड प्रताप के बिना अधूरा था। राजपूत भीलों की सेना के प्राण थे प्रताप... ईसीलिए उनका जीवित रहना जरुरी था। ईस युद्ध में १७००० उपरांत सैनिकों की मौत हुई। मुगल सेना हतप्रभ हो गई। इतिहास कहता हैं की आमने-सामने के इस भयानक युद्ध में महाराणा की ही जीत हुई थी लेकिन मुगल सेना के घेराव के कारण प्रताप को जंगल में छुपाना पडा। भयानक यातनाओं के बीच भी प्रताप का मनोबल तूटा नहीं। भामाशा ने २४००० सैनिकों के बारह साल तक के निभाव की व्यवस्था की थी। एक मात्र मेवाड के प्रति प्रताप की ममता और जननी जन्मभूमि को आजाद कराने की महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा संघर्ष में भी सहायता खोज लेती थी। मनोबल से प्रताप का मुकाबला हो ही नहीं सकता। मेवाड की मुक्ति के लिए घास खा कर भी और खून के अंतिम बूंद तक की न्योछावरी प्रताप का संकल्प बन गई थी।
राजस्थान के इतिहास में १५८२ का दिवेर का युद्ध महत्वपूर्ण माना जाता हैं। क्योकि इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को खोये हुए राज्यों की प्राप्ति हुई। ईस लंबे युद्ध को कर्नाल जेम्स टॉर्ड ने "मैराथन ओफ मेवार" कहा था। दिवेर की विजय महाराणा के जीवन का उज्जवल कीर्तिमान हैं। जहां हल्दीघाटी का युद्ध नैतिक विजय और परिक्षण का युद्ध था लेकिन दिवेर का युद्ध छापली का निर्णायक साबित हुआ। इसके फलस्वरूप संपूर्ण मेवाड पर महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। हल्दीघाटी के रक्त का बदला प्रताप ने दिवेर के युद्ध में चुकाया।
महाराणा प्रताप के शौर्य-संकल्प-मातृभूमि गौरव और स्वाभिमान का कोई मोल नहीं हो सकता। दिवेर विजय की दास्तान सर्वदा हमारे देश की प्रेरणास्रोत हैं। आज भारत के अमर सपूत महाराणा प्रताप के जन्मोत्सव की बधाई। साथ हरपल कुछ नयेपन के विषय के साथ...!!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234
मेवाड के सूर्यवंशी राजपूत महाराणा उदयसिंह और जयवंताबाई के निर्मित बल १५४० की ९ मई जेष्ठ सुद त्रीज को कुंभलगढ के दुर्ग में प्रताप का जन्म हुआ। आज करीबन ४८३ साल का समय बीत चुका हैं इस घटना को
आकार लिए। फिर भी भारत के शौर्य में, भारत की आत्मा में आज भी महाराणा प्रताप धडकन बने हुए हैं। वीरता की मिसाल खडी करने वाले प्रताप !! अपनी जन्मभूमि के लिए प्रतिबद्ध प्रताप !! धरती का कर्ज चुकाने प्रतिज्ञित प्रताप !! और मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाकर लडने का जुनून हैं प्रताप..!!
१८ जून १५७६ के दिन हल्दीघाटी में मुगलों की सेना के सामने महाराणा का युद्ध हुआ था। भील सरदार पूंजा सोलंकी ने अपनी भील सेना इस युद्ध में शामिल की थी। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह ने किया था। तीन-चार घंटे चले इस भयानक युद्ध में महाराणा प्रताप घायल हुए। बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान देकर महाराणा की रक्षा की थी। अद्भुत तरीके से प्रताप को युद्ध से हटाया गया था। मेवाड प्रताप के बिना अधूरा था। राजपूत भीलों की सेना के प्राण थे प्रताप... ईसीलिए उनका जीवित रहना जरुरी था। ईस युद्ध में १७००० उपरांत सैनिकों की मौत हुई। मुगल सेना हतप्रभ हो गई। इतिहास कहता हैं की आमने-सामने के इस भयानक युद्ध में महाराणा की ही जीत हुई थी लेकिन मुगल सेना के घेराव के कारण प्रताप को जंगल में छुपाना पडा। भयानक यातनाओं के बीच भी प्रताप का मनोबल तूटा नहीं। भामाशा ने २४००० सैनिकों के बारह साल तक के निभाव की व्यवस्था की थी। एक मात्र मेवाड के प्रति प्रताप की ममता और जननी जन्मभूमि को आजाद कराने की महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा संघर्ष में भी सहायता खोज लेती थी। मनोबल से प्रताप का मुकाबला हो ही नहीं सकता। मेवाड की मुक्ति के लिए घास खा कर भी और खून के अंतिम बूंद तक की न्योछावरी प्रताप का संकल्प बन गई थी।
राजस्थान के इतिहास में १५८२ का दिवेर का युद्ध महत्वपूर्ण माना जाता हैं। क्योकि इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को खोये हुए राज्यों की प्राप्ति हुई। ईस लंबे युद्ध को कर्नाल जेम्स टॉर्ड ने "मैराथन ओफ मेवार" कहा था। दिवेर की विजय महाराणा के जीवन का उज्जवल कीर्तिमान हैं। जहां हल्दीघाटी का युद्ध नैतिक विजय और परिक्षण का युद्ध था लेकिन दिवेर का युद्ध छापली का निर्णायक साबित हुआ। इसके फलस्वरूप संपूर्ण मेवाड पर महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। हल्दीघाटी के रक्त का बदला प्रताप ने दिवेर के युद्ध में चुकाया।
महाराणा प्रताप के शौर्य-संकल्प-मातृभूमि गौरव और स्वाभिमान का कोई मोल नहीं हो सकता। दिवेर विजय की दास्तान सर्वदा हमारे देश की प्रेरणास्रोत हैं। आज भारत के अमर सपूत महाराणा प्रताप के जन्मोत्सव की बधाई। साथ हरपल कुछ नयेपन के विषय के साथ...!!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
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09428312234
Very nice...
ReplyDeleteJay ho Rana no