Those who try to avoid uncertainty miss out on possibilities.
संभाविता शाश्वत हैं। ईश्वर की तरह ही वो सनातन हैं। अजन्मे ईश्वरकी तरह निश्चितरुप से संवृत हैं। हम सुनते आये हैं : ईश्वर को किसीने देखा नहीं पर वो हैं। शायद अनुभूति में, नितांत प्रेम में या अपनी हरदम सोच में..! ईश्वर की तरह संभावना- पॉसिबलिटी दिखती हैं, नहीं भी दिखाई पड़ती फिर भी हैं। जब जो तादृश्य बनती हैं तो सबकुछ बदल जाएगा।
गुरुपूर्णिमा के अवसर पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव का ये क्वोट देखने में आया। गुरु की कृपा या ईश्वर की मर्जी से ये ब्लोग इसी विषय पर आगे बढ गया। मैं सोचता गया लिखता गया। संभावना का मूर्त रुप इस ब्लोग के जरिए पेश करता हूँ। अच्छा लगे तो ईश्वर को मेरी ओर से भी शुक्रिया कहना।
"जो अनिश्चितता से बचने की कोशिश करते है, वो संभावनाओं से चूक जाते है।" सारा ब्रह्माण्ड निश्चितता के साथ अनिश्चितताओं से भी भरा हैं। निश्चित दृश्यमान हैं, अनिश्चित ईश्वर के हाथ में हैं। सारा ब्रह्माण्ड संभावनाओं से भी भरा हैं। जो कोई अनिश्चितता से बचने का प्रयास करता हैं, मैं सबकुछ अपनी मर्ज़ी से करता हूं। या हम इतना हांसिल करलें फिर कोई चिंता नहीं। मेरी भौतिक आबादी कायम रहेगी। इतना वहां रखे, इतना छिपाकर वहां रखे, चलों हम निश्चिंत हो जाए। मगर जो अनिश्चितता है, वो कभी हमें जीतने नहीं देगी। इसीलिए कृष्ण निमित्त भाव समझाते हैं।
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ।।११.३३।।
इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो। ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। हे सव्यसाचिन् ! तुम केवल निमित्त ही बनो।।
अर्जुन आनेवाली अनिश्चित काल की चिंता में बैठा था। जो उसके हाथमें नहीं उसकी चिंता करके निःसहाय बन बैठा हैं। तब सत्य की संभावना या सत्य की प्रतिष्ठा कैसे होगी ? कृष्णा ने अर्जुन को निर्भय बनाया हैं, धीर बनाया, अनिश्चितता स्वीकार करने योग्य बनाया। तब जाकर धर्म संस्थापना संभव हुई हैं। तब जाकर महाभारत के रुप में उत्कृष्ट आदर्श विश्व को मिला हैं। सारे संसार के लिए "श्रीमद्भगवद्गीता" ईश्वर का दमदार निमित्त हैं। गीता हर मनुष्य का एक बेहतरीन तोहफ़ा हैं। क्योंकि गीता स्वयं कृष्ण के मुख से प्रगट हुई हैं।
भगवद्गीता को मैं संभावना ग्रंथ कहता हूँ। निर्माल्यता- दुर्बलता से परे जाकर उठ खडे होने की संजीवनी गीता हैं। ये जीवन ज्ञान का अमूल्य विज्ञान हैं। मनुष्य के रूप में किसी ओर मनुष्य को दुर्बल मानना ये कितना हलकट विचार हैं। उन लोगों को गीता में से कुछ नहीं मिलेगा जो अपने ही स्वार्थ से बंधे हैं। वो मोक्ष की बातें ही करेंगे। उनके हृदयमें कभी प्रेम प्रगट नहीं हो सकता। उनका कोई मित्र न रहेगा। उनके स्वयं में स्वजन भाव कभी न उठ पायेगा। उनकी मक्कार हसी पकडी ही जायेगी। उनको स्वयं अपनी मूर्खता में जीना पडेगा। उसके द्वारा संभावना पैदा हो सकती हैं ? प्रश्न आप को..!
"आनंदविश्व सहेलगाह" ब्लोग मेरा वैचारिक अनुराग हैं। इस लेखनयात्रा में मैं केवल निमित्त भाव से झुडा हूं। ईश्वर की संभावना दृष्टि अमर्यादित हैं, असीमित हैं। मैं तो एक छोटा उपकरण हूं। थोडे विचार को शब्द आकार का रुप देकर खुश होता हूं !!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
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Focus can help to achieve any goal. Great thought presented, Sir
ReplyDeleteName sir
Deleteसही बात है संभावना पर पूरी दुनिया टिकी
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