Practice and detachment..! - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Thursday, September 26, 2024

Practice and detachment..!

।। अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोध: ।।

Practice and detachment are key to controlling the mind.
अभ्यास और वैराग्य मन को नियंत्रित करने की कुंजी हैं।


'अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोधः' यह एक योगसूत्र है। इसका अर्थ है; अभ्यास और वैराग्य से चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है। थोडा विस्तार से अर्थ को समझने का प्रयास है;

१ 'अभ्यास' का अर्थ है किसी काम को बारबार करना..प्रेक्टिस।
२ 'वैराग्यभ्याम्' का अर्थ है इच्छाशून्यता से, अनासक्ति से..!
३ 'तद्' का अर्थ है उनका।
४ 'निरोधः' का अर्थ है संयम एवं नियंत्रण।
इससे समझ में आता है; 'चित्त की वृत्तियों को रोकने के लिए अभ्यास और वैराग्य का पालन करना चाहिए। चित्त की वृत्ति पूर्ण रूप से रुकती हैं, तब साधक समाधि प्राप्त करता है।

                  Special thanks for this beautiful picture. 
बडी फिलासफी हो गई।  शब्द की बडी व्याख्या हो गई। लेकिन जब भी कोई बडा टास्क आए तो उससे भागना थोडी हैं ? उसे समझने का प्रयत्न करना हैं। मैंने योग का एक अर्थ जुड़ाव भी सुना हैं। अपने काम प्रति एकरूप हो जाना या हमें जो करना हैं उस कार्य में डूब जाना मग्न हो जाना भी योग हैं।

अब बात करते हैं अभ्यास और वैराग्य की। अभ्यास की निरंतरता के लिए वैराग्य जरुरी हैं। वैराग्य मतलब सबकुछ छोड़कर कहीं एकांत में मग्न हो जाना या संसार को त्याग देना ही नहीं हैं। वैराग्य का मतलब हम संसारीयों के लिए निग्रह भी हैं। चित्त में उठती सामान्य इच्छाओं को नियंत्रित करना फिर बडी इच्छाएं भी नियंत्रण में रहेगी। अभ्यास के लिए ये अत्यावश्यक हैं। संसार में जिन-जिन लोगों ने नियंत्रित होकर अपनी उपलब्धि के प्रति एकरूपता की है, वे  दुनिया की नजर में सफल कहलाएं हैं।

आप नियंत्रित हैं, तो अभ्यास के लिए सहज ही क़ाबिलियत बढेगी। जब अभ्यास के प्रति रुचि बढ़ती हैं, तो सहज ही हम नियंत्रित हो जाते हैं। हमारी लब्धि केन्द्र में रहती हैं, वो हमारा लक्ष्य बन जाती हैं। अभ्यास और वैराग्य पारस्परिक हैं, एक है तो दूसरा जरुर आएगा।   दोनों की सप्रमाण अहमियत हैं, इससे ये भी सिखने को मिलता हैं। दोनों का एक होना एकत्व हैं, अद्वैत हैं। अद्वैत की स्थिति से जो उत्पन्न होगा वो सबसे बेहतरीन होगा।

अद्वैत की बात समझनी है तो एकमात्र कृष्ण को याद करें। कृष्ण का संपूर्ण जीवन एकत्व हैं। राधा और कृष्ण का प्रेम अद्वैत की दृश्यमान स्थिति हैं। राधाकृष्ण का प्रेम इसीलिए सबसे उपर हैं। यहाँ अभ्यास कृष्ण है तो वैराग्य राधा हैं। उससे जो प्राप्ति होगी वो राधाकृष्ण के प्रेम की तरह होगी...सबसे निराली..!

सांसारिक मनुष्य के रुप में हमारे साथ जो कुछ जुडता है, वो इसी सिद्धांत का अनुसरण हैं। इन दोनों का आचरण हमें अद्वैत मार्ग पर  ले जायेगा.. जिसे हम क़ाबिलियत कहते हैं !!

आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
+919428312234.

2 comments:

Thanks 👏 to read blog.I'm very grateful to YOU.

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