Dr.Brieshkumar Chandrarav

Saturday, June 28, 2025

Bharat Ratna KARPURI THAKUR.
June 28, 20250 Comments

भारत के एक इतिहास पुरुष..!

सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में थोड़ी सी हकीक़त..!



२३ जनवरी २०२४ में जिसे भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारतरत्न' दिया गया। ये उनकी जन्म शताब्दि का वर्ष था। एक व्यक्ति के नाम से गाँव का नाम जुड़ता हैं। वो बिहार की राजनीति के सीमास्तंभ हैं। उस भद्र जननायक का नाम हैं...कर्पूरी गोकुल ठाकुर। रामदुलारी देवी के पुत्र। वे नाई समुदाय से थे। इस जातिसूचक वाक्य को लिखना ठीक नहीं लगता फिर भी लिख रहा हूं। क्योंकि सब को पता चले प्रतिभा किसी दायरे की मोहताज नहीं होती। किसीके इरादें जब लोगों की संवेदना से झुडते हैं तब क्रांति होती हैं। कोई इसे हकीक़त बनते रोक नहीं सकता। आज से सो साल पहले ऐसा ही कुछ हुआ था, भारत के बिहार क्षेत्र में..! अमरत्व के आशिष लेकर मान्यवर कर्पूरी ठाकुर अपने व्यक्तित्व से उठ खड़े हुए थे...भारत की राजनीति में दमदार अध्याय लिखने के लिए...!


1988 में कर्पूरी ठाकुर के मृत्यु के बाद उनके जन्मस्थली समस्तीपुर जिला के पितौंझिया गाँव का नाम बदलकर कर्पूरी ग्राम "कर्पूरी गाँव" कर दिया गया था। समाज की वर्गवाद-जातिवाद की मानसिकता के खिलाफ ये एक अद्भुत घटना थी। आज भी इतिहास के पन्नों में वो महान पुरुष की कहानी गौरवपूर्ण तरीके से दर्ज भी हैं।

भारत के परतंत्रता काल में २४ जनवरी १९२४ को उनका जन्म हुआ था। बहतरीन निमित्त उनको अच्छे कामो में जोड रहे थे। कर्पूरी ठाकुर महात्मा गांधी और सत्यनारायण सिन्हा के संपर्क में आए और काफी प्रभावित भी हुए। जीवन की दिशा तय हो गई और काम भी शुरु हो गया। वो 'ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन' में शामिल हो गए। छात्र कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने 'क्विट इंडिया मूवमेंट' 'भारत छोड़ो' आंदोलन में भाग लिया था। उन्होंने अपनी स्नातक की पढाई छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया था। और छब्बीस महीनो का जेलवास भी किया था।

अपने युवाकाल में ही भारत को स्वतंत्रता मिली थी। स्वतंत्र भारत में ठाकुर ने अपने गाँव के स्कूल में शिक्षक के रूप में समाज उत्कर्ष का काम शुरु किया था। समाज को अच्छी शिक्षा मिले उस दिशा में वो चल पडे थे। "शिक्षा से ही सबका उद्धार हैं" ऐसे स्पष्ट खयालात रखने वाले ठाकुर बिहार की जनता के लिए भारत में १९५२ में हुए पहेले चुनाव में भाग लेते हैं। ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से वो 'सोशलिस्ट पार्टी' के उम्मीदवार बने। और बिहार विधानसभा के सदस्य भी चूने गए। वो १९५२ की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे थे।

पूर्व राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा हैं, "कर्पूरीजी बिहार में एक सामाजिक आंदोलन के प्रतीक रहे हैं। इसलिए हर तरह के लोग या विभिन्न राजनीतिक दल उनके जन्मदिन पर सामाजिक न्याय के सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते रहे हैं।" ठाकुर की छबि को ओर स्पष्टरुप से पेश करुं तो वे 'संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी' के अध्यक्ष भी रह चुके थे। उन्हें लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, देवेंद्र प्रसाद यादव और नीतीशकुमार जैसे कईं दिग्गज बिहारी नेताओं के गुरु के रूप में जाना जाता है। इतना कदावर व्यक्तित्व बनाने में कर्पूरी ठाकुर ने अपना जीवन समाज के चरणों में रख दिया था। वो पिछड़े, दलित और मध्यम वर्ग के प्रति काफ़ी संवेदनशील रहे हैं। उसका परिणाम ये आया कि १९७० में वो बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री बने। उससे पहले वो बिहार के उपमुख्यमंत्री भी रहे थे। उन्होंने बिहार में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था। उनके शासनकाल के दौरान बिहार के पिछड़े इलाकों में कईं स्कूल और कॉलेजो की स्थापना हुई थी।

कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री कार्यकाल में जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर पड़ी है, वैसा दूसरा उदाहरण आज तक नहीं मिलता। ख़ास बात ये भी है कि गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री होने के बावजूद इतना अच्छा काम हुआ था। उनके नाम कईं समाज उद्धार काम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। आज की पीढ़ी उनके नाम और काम से बेख़बर हैं। बिहार राज्य को छोड़कर कोई ठाकुर जी को गहराई से नहीं जानता। लेकिन हमारे क्रांतदृष्टा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के ठाकुरजी को मरणोत्तर 'भारतरत्न' सम्मान देने के फैसले से काफी-कुछ लोगों ने उनको जानने समजने का प्रयास किया हैं।

माननीय मोदीजी का व्यक्ति को देखने का नजरिया ही अलग हैं। उनके हरेक फैसले में 'सामान्यजन' का विचार रहता हैं। आज भारत के महत्वपूर्ण सम्मान के लिए कईं ऐसे लोगों का चयन हो रहा है जिनका काम वाकई में काबिले तारीफ हो। मोदीजी खुद को एक सामान्यजन की तरह मानते हैं। एकबार उन्होंने ही कहा था की "मैं भी ओबीसी वर्ग से आता हूँ। मैंने काफी संघर्ष देखा हैं।" मतलब जो महसूस करेगा वो संघर्ष को समज सकता हैं। कर्पूरी ठाकुर के संघर्ष को वंदन करते हुए..!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA.
drbrijeshkumar.org
Dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234 
Reading Time:

Tuesday, June 17, 2025

ART IS HEART...!
June 17, 20251 Comments

"In art, man reveals himself and not his Objects."

कला में मनुष्य स्वयं को प्रकट करता है न कि अपनी वस्तुओं को..!
☆ रवीन्द्रनाथ टैगोर

जीवन अद्भुत घटनाओं का मेला हैं। सभी घटनाओं में कला से झुडी बातें अक्सर ज्यादा मनभावन होती हैं। कला से जीवन में आनंद छा जाता हैं। एक घटना आकारित हुई। थोड़े दिन पहले मैं उदयपुर राजस्थान में था। 'फतेहसागर' की सैर के दरम्यान कुछ सुरीले शब्द सुनाई पड़े।

"जब दीप जले आना..!
जब शाम ढ़ले आना...!
संकेत मिलन का भुल न जाना,
मेरा प्यार न बिसराना...!
जब दीप जले आना, जब शाम ढ़ले आना...!
मैं पलकन डगर बुहारुंगा, तेरी राह निहारुंगा...!
मेरी प्रीत का काजल तुम अपने नैनों मले आना...!
जब दीप जले आना...जब शाम ढ़ले आना...! "

मेरा ध्यान सहज ही वहाँ जा पहुंचा। पार्किंग के कोने पर एक व्यक्ति गा रहा था। मैं वहां पहुँचकर खडा रह गया। गीत समाप्त होने पर थोड़ा बहुत परिचय हुआ। उस सिंगर का नाम 'राज अग्रवाल' था। सुरीली आवाज की तरह ही राज का व्यक्तित्व भी मोहक लगा। पलभर में हम दोस्त बन गए। 


1976 में प्रदर्शित हुई राजश्री प्रोडक्शन की बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म 'चितचोर' का ये गाना गायक येसुदास के सर्वोत्तम गीतों में से एक है। "जब शाम ढले आना....!" गीत के गीतकार एवं संगीतकार रवींद्रजी जैन थे। जिन्होंने राजश्री बैनर की फिल्मों के लिए अपना सर्वोत्तम संगीत दिया हैं। गीत में धुंधलाती हुई सुरमई शाम में प्रियतमा के आगमन की प्रतीक्षा हैं।एक नायक के लिए इससे बेहतर गीत और शब्दों की कल्पना करना संभव नहीं हैं। गायक येसुदास की मखमली आवाज में शालीनता से भरा प्रणय  निवेदन इस गीत को चार चाँद लगाता हैं। ये गीत आज भी हमारे कानों में मिसरी घोल देता है। और मीठे स्वर से मन आज भी भर जाता हैं।

रवीन्द्रनाथ जी के शब्दों की तरह यहाँ गायक-गीतकार एवं संगीतकार प्रकट हुए हैं। तब ऐसी कृति का भावना हमें मिलता हैं। मनुष्य के रुप में हुआ ये शानदार प्रगटन हैं। इससे ही दिल को छू लेनेवाला मंजर पैदा होता हैं। करीबन उनचास बरस पहले ये फिल्म फिल्माया गया था। आज भी उसका संगीत असरदार हैं। इसका कारण व्यक्ति का स्वयं प्रगट होना हैं। और कला तब ही श्रेष्ठ कहलाती है जब व्यक्ति स्वयं को उसमें घोल देता हैं। यहाँ येसुदास ने शब्दों को पकड़कर भाव को अपनी आवाज में घोल दिया हैं। इससे गीतों में जीवंतता सुनाई पड़ती हैं। उच्चतम भावों का प्रगट होना भी एक सुंदर घटना हैं। मैं उसे ईश्वरीय दुआ का फल कहता हूँ। उसे ही रवीन्द्रनाथजीने  "Reveals himself, स्वयं को प्रकट करना" कहा हैं।

कला को हम 'art कोई skill' भी कहते हैं। मगर इन दोंनो में काफी-कुछ अंतर हैं। कला शब्द की व्यापकता विशेष है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की रचनात्मक गतिविधियों, उत्पादों, या कौशल के लिए भी किया जाता हैं। चौसठ कलाओं में चित्रकारी, मूर्तिकला, संगीत-नृत्य, साहित्य और रंगमंच भी शामिल हैं। इससे आगे कल्पना और विचारों को व्यक्त करने की रचनात्मकता क्षमता को भी कला ही समझेंगे। कला एक जीवंत प्रकल्प हैं। इसीलिए सुंदरता और आनंद की भावना भी कला के माध्यम से ही व्यक्त की जाती हैं। सर्वसामान्य रुप से कहे तो अपने विचार-भाव या अनुभूति को अभिव्यक्त करने का बहतरीन तरीका कला हैं। इससे अच्छा लिखने में मेरी काबिलियत नहीं हैं, इस स्वीकार के साथ...!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli, Gujarat,
INDIA
drbrijeshkumar.org
Dr.brij59@gmail.com
+ 91 9428312234

Reading Time:

Friday, June 13, 2025

Mayday Mayday...!!
June 13, 20251 Comments

 इस शब्द ने सबको थोड़े उत्सुक थोड़े बेचैन किये हैं..!

An international radio distress signal used by ships and aircraft.

जहाजों और विमानों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय रेडियो संकट संकेत।

1920 का दशक: फ्रेंच m'aider या m'aidez का उच्चारण दर्शाता है, जो venez m'aider "Come and help me" "आओ और मेरी मदद करो" से लिया गया है। हम ये ज्ञान क्यों बांट रहें हैं, आप समझ रहे हैं।

'मॅडे..मॅडे' ये नया शब्द हमारे कानों में गूंज रहा हैं। १२मी जून दोपहर १:३९ को हुए दर्दनाक मंजर ने गुजरात को झकझोर दिया। सरदार पटेल इन्टरनेशनल एयरपोर्ट अहमदाबाद से एक फ्लाईट उडान भरने के चंद मिनटो में धराशायी हो गई। इस दुर्घटना में २५० से उपर लोगों की मृत्यु हो गई। जहाँ हवाई जहाज गिरा वहां बी.जे मेडिकल कॉलेज का कैंटीन था। मतलब जानहानि की पराकाष्ठा जैसे मंजर से देश व्यथित हैं। इसमें गुजरात के होनहार-सरलहृदयी पूर्व मुख्यप्रधान विजयभाई रुपाणीजी का भी निधन हो गया हैं।


सृष्टि में हररोज नईं-नईं घटनाएँ होती रहती हैं। जिसे हम अकस्मात के रुप में, एक हादसे के रुप में देखते हैं। कुदरत के प्रकोप या कुदरती हादसे की बात नहीं कर रहा। यहां मानव संबंधित घटना की बात करुंगा। कोई मशीन की तकनीकि खामी के कारण या मानवीय बेदारकारी से जो घटना बनती हैं उसकी थोड़ी बात रखता हूँ। मैं भी ये विचित्र घटना हुई उसका रटन ही कर रहा हूं ओर कुछ नहीं कर रहा। सब यही कर रहे हैं मैं भी..! मिडिया, प्रसाशन सरकार सब यही काम में जुटे हैं। अभी तो मरने वालों की पहचान डी.एन.ए रिपोर्ट के आधार पर हो रही हैं। बाद में जहाज में हुई टेक्नीकल खराबी की चर्चाएं शुरु होंगी। न्यूज वाला फंडा या न्यूज वाली भाषा बंद करता हूं। ओवरडोज हो सकता हैं।

मुझे घटना से संबंधित मानवीय बेदरकारी के बारें में कुछ कहना हैं। सभी लोग टेक्नीकल कामों के जानकार नहीं होते। और सभी लोग टेक्नीकल कामों से झुडे भी नहीं होते। एक समूह इन सब की व्यवस्था में झुडा हैं। अच्छी बात हैं, किसीना किसीको ये व्यवस्था तंत्रों को संभालना पड़ेगा। विश्व की दूरी को घंटो में नापनेवाला हवाई जहाज तो अजायबी से कम भी नहीं हैं। इसी लिए उसमें सतर्कता भी ज़्यादा रखी जाती हैं। कोई भी दुर्घटना की अंतिम से अंतिम हकीक़त को 'ब्लेकबोक्ष' वैसे तो वो ओरेंज रंग का होता है, उनमें संग्रहित किया जाता हैं। पायलट और एयरपोर्ट आपरेटिंग ओथोरिटी के साथ की हुई कम्युनिकेशन गतिविधि को उसमें संग्रहित किया जाता हैं। अब उसके खुलने के इन्तजार में सब हैं।

आज विषय को पकडे रहना मुश्किल हो रहा हैं। सामने दर्दनाक चित्रों के अट्टहास सुनाई पडते हैं। सेकेन्डों का खेल और कई जिंदगियों का खत्म हो जाना। हम तो घटना के बाद के मंजर से दुःखी हैं लेकिन उस घटना को भुगतने वाले कैसी हालत में आ गए होंगे !? उस वारदात में साक्ष्य रूप लोगों की क्षणों की बौखलाहट कैसी होगी !? आग के शोलों में लिपटे हुए शरीर को कितनी भयंकर पीडा हुई होगी !? दर्दभरी चिल्लाहट आग में ही दब गई होंगी ! कोई इस दर्दनाक बात बताने जिंदा नहीं रहा हैं। कईं सपनें आसमान में ही बिखर गए। कईं मिलन की आस लेकर उडनेवालों की उडान थम गई। कईं परिवारों में से एक या दो संबंध गायब हो गए हैं। ईश्वर की महिमा और उनकी लीला की बातों में व्यक्तिगत मर्यादायें भूलाई जाएगी। एक-दो तीन दिनों में हम सब भूलकर अपने-अपने कामों में लग जाएंगे।

बचेगी बस मौन चिल्लाहटे...एक दूसरें पर किये हुए आक्षेप...बचेगी कुछ गलतफ़हमीयां और हमसब भूल जाएंगे ईस दर्दनाक मंजर को..! लेकिन एक ही बात कहता हूँ। इनमें वैयक्तिक स्वार्थ की बात होगी या निजी फायदे की बात होगी तो वहां जरुर कहर तूट पडेगा..! याद रखना ईश्वर के प्रकोप से बचना नामुमकिन हैं। हमारी Mayday की पुकार कोई सुननेवाला ही न हो ऐसी बद्दुआ से बचना चाहिए..!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat.
INDIA
drbrijeshkumar.org
Dr.brij59@gmail.com
+ 91 9428312234
Reading Time:

Friday, June 6, 2025

What a great step..!
June 06, 2025 2 Comments

 Emotional intelligence is emotional power.

भावनात्मक बुद्धि ही भावनात्मक शक्ति है।

एकबार फिर इमोशन पर बात करने का मन हुआ हैं। वैसे जीवन का अद्भुत रहस्य इन्हीं में छीपा हुआ हैं। भावनाएँ क्या कुछ नहीं करती..!? लेकिन भावना में बहते ही रहना ठीक नहीं हैं। इसलिए भावनात्मकता शक्ति नहीं बन पाती। भावनात्मकता या इमोशन को हम थोड़ा कमजोर समझते हैं। उसकी शक्ति को नज़र अंदाज़ करते हैं।

Special thanks to DJ Maura for good picture 

भावनात्मक बुद्धिमत्ता का मतलब केवल अच्छाई से झुडा नहीं है। बल्कि भावनाओं को अपने दिमाग पर हावी होने से रोकना भी है। एक बार गुस्सा महसूस किया गया, फिर उसे फेंकना होगा। एकबार दु:ख को गले लगाया फिर उसे दफनाया नहीं तो गलत होगा। एकबार सच बोला गया फिर उस सच के साथ चिल्लाकर झुडे रहना होगा। उदाहरणार्थ को पकडे.. इसे हम भावनात्मक शक्ति कहते है। यही जीवन के लिए बहतरीन मार्ग हैं। इससे जीवन को उत्तम गति मिलती हैं। जीवन ठहराव से बचता हैं।

ईश्वर ने हमें जन्म से ही ये सब शक्तियां दे रखी हैं। लेकिन हम अपनी शक्तिओ को नजर-अंदाज करते रहे हैं। जीवन में भीतर का प्रकाश फैले वो जरुरी हैं। भावना जीवन का आधार हैं, बुद्धि जीवन का विकास हैं। भावना और बुद्धि एकरूप हो जाए तो शक्ति बन जाएंगी। इस सत्य को समझना पड़ेगा। मनुष्य जीवन की एक स्थिति बचपन को भाव और बुद्धि के मेल से समझने का प्रयास करते हैं।

एक बच्चे की परवरिश में इन दोनों स्थितिओं का बड़ा महत्व है, इसे विस्तारित रूप से देखते हैं। हमारा बच्चा हमें बहुत ही पसंद होता हैं। स्वाभाविक तौर पर सबकी ये स्थिति होती हैं। उसका बचपन तो हमारे लिए सुवर्ण समय से कम नहीं होगा। उसे मैं मस्ती भरा आनंद कहूंगा। बच्चे की हरेक जिद्द हमें प्यारी लगती हैं। क्योंकी हमारी समग्र भावनाएँ उससे झुड गई हैं। आमतौर पर ये सही भी हैं। सबके साथ और सभी परिवारों में ये होता हैं। अब दूसरी स्थिति का विचार करते हैं। भावनात्मकता के साथ बुद्धि को जोड़कर विचार करते हैं तो कुछ सवाल खड़े होते हैं...!

हमारा बच्चा केवल भावना से खुश रह पाएगा क्या ?
उनके आनेवाले जीवन के लिए ये ठीक है क्या ?
उनके भविष्य के लिए केवल भावना ही पर्याप्त हैं क्या ?
उनके जीवन में बौद्धिकता के महत्व का विचार कौन करेगा ?

एक अच्छे माता-पिता के रुप में बच्चों के साथ उनके भविष्य को संवारने की स्थिति को नजर समक्ष रखना हैं। बच्चे को प्यार करना हैं, अनहद प्यार से सभी बर्ताव करना हैं। लेकिन उस प्यार से उनमें उत्साह और उम्मीद पैदा होनी चाहिए। वो परतंत्र बने वो कतई ठीक नहीं हैं। हमारे बच्चे की बुद्धिभाव से परवरिश करनी होगी। हो सकता है, कभी-कभार हमें अच्छा न लगे फिर भी बच्चों के भविष्य के लिए बुद्धि प्रेरित कार्य करना ही होगा। वच्चों को दिया गया ये सच्चा प्यार हैं।

अब हमारे वैयक्तिक जीवन के बारें में, हमारे विकास के पथ पर भाव और बुद्धि का कैसे मोल करना हैं !? वो समझमें आ जाएगा। हमें बहते रहना है लेकिन कहीं फँसना नहीं हैं। जहां बुद्धि को लगाना है वहां लगानी पड़ेगी। समय थोड़ा कठीन हैं, लोग भावनाओं की कद्र कम मज़ाक ज़्यादा बनाते हैं। इसलिए हर कोई को ये सिखाना पडेगा। लोग भावनाशीलता में स्वार्थ देखकर अपमानित भी करते हैं। कईं ऐसे वर्तन हैं जो आज विश्वसनीयता से परे हो गए हैं। कोई अच्छा वार्ताव करता हैं तो उसके वर्तन पर शंका करने वालों की संख्या बढ़ जाएगी। ऐसा भला होता हैं क्या ? कहकर अच्छी भावना को ठुकराई जाती हैं। भावनात्मकता को जीवन की शक्ति बनाना हैं, बुद्धि के बल पर  उसे जीवन का दमदार कदम बनाना हैं।

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli
Gujarat. INDIA
drbrijeshkumar.org
Dr.brij59@gmail.com
+ 91 9428312234 
Reading Time:

Wednesday, May 21, 2025

विश्व शिक्षक जे.कृष्णमूर्ति
May 21, 2025 2 Comments

 जे. कृष्णमूर्ति भारत के महान विचारक..!


एक ऐसा जीवन जो 20 वीं सदी के महान तजज्ञ और मर्मज्ञ के रूप में उभरा था। जे.कृष्णमूर्ति की शिक्षा उस समय अधिकांश भाग में फैली थी। कई लोगों के जीवन में इसका गहरा प्रभाव रहा हैं। मानव चेतना को अचंभित करने वाले व्यक्ति के रूप में हम जे.कृष्णामूर्ति को जानते हैं। विश्व में एक नया आयाम जोड़ने वाले 'विश्वशिक्षक' के रूप में जे. कृष्णामूर्ति प्रशंसित हुए और स्थापित भी हुए हैं।


Photo and Information by J. krishnamurti Foundation India and study center. 

उन्होंने दुनियाभर के लोगों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश डालने का उत्तम काम हैं। बुद्धिजीवियों एवं सामान्य लोगो का विचार करके उन्होंने सभी संगठित धर्मों से परे जीवन के बेहतरीन तरीके की ओर इशारा किया था। और धर्म को नया अर्थ दिया था। उन्होंने समकालीन समाज की समस्याओं का साहसपूर्वक सामना किया था। और वैज्ञानिक सटीकता के साथ मानव मन के कार्य का विश्लेषण किया था। यह घोषणा करते हुए कि उनका एकमात्र सरोकार 'मनुष्य को पूरी तरह से बिना शर्त मुक्त करना' हैं। उन्होंने मनुष्यों को स्वार्थ और दुःख की गहराईयों से मुक्त करने का बहतरीन प्रयास किया था।

जे. कृष्णमूर्ति (11 मई 1895) का जन्म दक्षिण भारत के मदनपल्ले नामक ग्रामीण कस्बे में हुआ था। वो एक धार्मिक और मध्यम वर्गीय परिवार था। बचपन में ही उन्हें 'थियोसोफिकल सोसायटी' के नेता डॉ. एनी बेसेंट और सी. डब्ल्यू. लीडबीटर ने पहचान लिया था। जिन्होंने घोषणा की थी कि वे 'विश्व शिक्षक' हैं। जिनका थियोसोफिस्टों को इंतजार था। मगर जे.कृष्णमूर्ति ने खुद को सभी संगठित धर्मों और विचारधाराओं से अलग कर लिया था। और अपने ही एकांत मिशन पर निकल पड़े थे। उनकी अपनी सोच थी कि "लोगों से गुरु के रूप में नहीं बल्कि एक मित्र के रूप में मिलना और उनसे बात करना चाहिए। और उन्होंने ऐसा ही कार्य शुरु कर दिया।

जे. कृष्णमूर्ति ने अपने जन्म से लेकर 1986 में अपने अंत तक करीबन  इक्यानबे वर्ष की आयु तक दुनियाभर में यात्रा की थी। अपने प्रवास के दरमियान भाषण किए। बहुत लेखन कार्य किया। साथ ही उन पुरुषों- महिलाओं के साथ बैठे जो उनकी मदद और सलाह लेना चाहते थे।

जे.कृष्णमूर्ति की शिक्षाएँ पुस्तकीय ज्ञान और विद्वत्ता पर आधारित नहीं थी। बल्कि उससे ऊपर मानवीय परिस्थितियों के बारे में थी। उनकी अंतर्दृष्टि और पवित्रता के बारे में थी। उनके समदर्शी दृष्टिकोण पर आधारित थी। उन्होंने किसी दर्शन की व्याख्या नहीं की बल्कि उन चीजों के बारे में बात की जो हमें दैनिक जीवन में उपयोगी हैं। आधुनिक समाज में रहने की समस्याएं...जिसमें भ्रष्टाचार और हिंसा, मनुष्य की सुरक्षा और खुशी की तलाश, लालच, हिंसा, भय और दुःख के अपने आंतरिक बोझ से खुद को मुक्त करने की सलाह दी। साथ  ही मनुष्य की आवश्यकताएं और अपने सामान्य जीवन ऊपर उठने की शाश्वत खोज का मार्गदर्शन किया हैं।

इन मानवीय विद्वता के कारण उन्हें पूर्व और पश्चिम के देशों में सम्मान मिला हैं। इस समय के सबसे महान धार्मिक शिक्षकों में से एक के रूप में कृष्णमूर्ति की पहचान उभर आई हैं। जे. कृष्णमूर्ति स्वयं किसी धर्म एवं संप्रदाय या देश से संबंधित नहीं थे। न ही उन्होंने किसी राजनीतिक या वैचारिक संगठन की सदस्यता ली हैं। ऐसे महान मानवीय तत्वज्ञान के विस्तारक को शत शत नमन करते हुए आनंद प्रकट करता हूं ।

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli
Gujarat
INDIA.
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234
Reading Time:

Wednesday, May 14, 2025

Accept the world.
May 14, 2025 5 Comments

 At first one must accept the way

that self tries to accept the world.
BUDDHA.

"सबसे पहले व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि वह स्वयं दुनिया को किस तरह स्वीकार करने का प्रयास करता हैं।"

पवित्र भगवान बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामना के साथ उनके ही सुंदर विचार पर ब्लोग विस्तार करता हूं। स्वयं की जागृति ही जीवन का मूल आधार हैं। वैसे तो जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक सिखने की प्रक्रिया हैं। हमसब इस संसार में पहेली बार आँख खोलेते हैं तब से सिखना,समझना एवं महसूस करना शुरु कर देते हैं। बाद में तर्क करना उसको सही तरीके से समझना सिख जाते हैं। ये हमारे जीवन की सहज प्रक्रिया हैं। कोई विशेष प्रयास के बिना वस्तु और व्यक्ति के बारें में हम सीखते रहते हैं।

BUDDHA

Picture by Philip Charles.

अब दुनिया को समझना हमारे लिए एक जैविक धर्म हैं। उसे में मानवीय धर्म कहूँ तो भी गलत नहीं। हम जी रहे हैं इसलिए सीख रहे हैं। बस इतना समझ में आ गया। अदृश्य ईश्वर की ये कोई सिस्टम होगी ऐसा मान लेकर आगे बढ़ते हैं। अब सवाल आता हैं हम जो सिखते हैं उसका स्वयं स्वीकार करें। जगत जैसा है वैसा...! वस्तु या व्यक्ति जैसा है वैसा..! स्थिति परिस्थिति भी जैसी है वैसी...! सत्य-असत्य में पडे बिना, परिणाम की चिंता से परे रहकर और किसीको कसूरवार ठहराए बिना बस दुनिया को स्वीकारना हैं। अपनी समझ बढ़नी चाहिए लेकिन भाररुप या समस्या को जन्म देने वाली समझ नहीं। स्वयं को निरपेक्ष दृष्टि से सीखने के मार्ग पर चलाएंगे तो परिणाम बहुत अच्छा ही होगा। हमारे वैयक्तिक जीवन के लिए और समष्टि के लिए भी ये बेहतर कदम होगा।

भगवान बुद्ध स्वयं नियंत्रित हैं। वो सबका स्वीकार करनेवाले और समदर्शि हैं। सबको प्रेम करने वाले हैं। हमारा जीवन भी एक प्राकृतिक पहलू ही हैं। जब हम प्रकृति से थोड़ी-भी दूरी बनाकर सोचते रहेंगे तो कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे। भगवान बुद्ध का जीवन एकात्म भाव से भरा था। बुद्ध के जीवन का संदेश यहीं था की संसार को 'एकात्मता और आत्मीयता' से संवृत किया जाए। जीवन की यहीं समृद्धि मूल्यवान हैं। इस तरह से जीवन का सही मकसद सिखाने का प्रयास बुद्ध ने किया हैं। इसीलिए हम बुद्ध को भगवान कहते हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी ऐसी ही साम्यता सीखाना चाहते हैं। यहाँ तो स्वयं बुद्धदेव ने अपना जीवन व्यतीत किया हैं।

उनका गृहस्थ जीवन का त्याग किसी को दुःख पहुँचाने के लिए नहीं था। केवल उनके ही शब्दों का अनुसरण था। उन्होंने दुनिया को स्वीकार करने का उत्तम मार्ग का चयनित किया था। जीवन केवल उपभोग का साधन नहीं हैं। जीवन का दूसरा नाम मकसद भी हैं। ईश्वर ने हमें...हम मानवों को विशिष्ट बनाया है उसमें भी कोई मकसद ही छिपा हुआ हैं। बस, ये मकसद की समझ यानि दुनिया को स्वयं स्वीकार करने की कोशिश...!

जैसे हम पसंदीदा व्यक्ति का स्वीकार करते हैं। अपने बच्चे का स्वीकार करते हैं। हमारे वैयक्तिक संबंध का स्वीकार करते हैं। हमारी सफलताओं का स्वीकार करते हैं। वैसे पूरी दुनिया का स्वीकार करना...! इनमें जीव-जगत की सभी 'वस्तु और आचार' एवं 'विचार और वर्तन' शामिल होंगे। सहजता से इसका स्वीकार करना ही बेहतर जीवन हैं। इसे हम self tries to accept the world कहेंगे।

भगवान बुद्ध Acceptation के शिखर हैं। हम भी कुछ छोटा-सा प्रयास कर सकते हैं। या Unacceptable के माहोल को ही खड़ा करके विचित्र आनंद के अहसास में जियेंगे !? अस्वीकार्यता ईश्वर को पसंद होगी क्या ? इन प्रश्न के साथ..!

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA.
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234.
Reading Time:

Tuesday, May 6, 2025

Good Leadership...!
May 06, 2025 3 Comments

 leadership is People more than projects.

नेतृत्व का मतलब परियोजनाओं से अधिक लोगों से है।


नेतृत्व की बात आती है तो करिश्माई गुण की बात करना आवश्यक हैं। ये ऐसा गुण हैं जो जन्मजात व्यक्ति के भीतर आकारित होता हैं। साधारण परिवार में जन्म, साधारण कर्म, साधारण ज्ञाति-जाति या साधारण व्यक्तित्व होने के बावजूद ये Quality एवं Ability व्यक्ति के अंदर पनपती हैं। ये सहज प्रक्रिया हैं। महान ईश्वर की ये अदृश्य आशीर्वादात्मक भूमिका हैं। leadership नेतृत्व के महत्त्वपूर्ण एवं गुणात्मक पहलू करिश्माई को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझ ने का प्रयास करते हैं। करिश्माई नेता की अवधारणा के बारें में थोड़े तथ्यपूर्ण पहलूओं को देखें।

करिश्माई नेता की अवधारणा जर्मन समाजशास्त्री 'मैक्स वेबर' ने दी थी।उन्होंने 1922 में एक अध्ययन में करिश्माई नेतृत्व को पारिभाषित किया था।उन्होंने करिश्मा को अनुग्रह का एक असाधारण और व्यक्तिगत उपहार बताया था। जो एक नेता को दूसरों पर गहरा प्रभाव डालने और उन्हें प्रेरित करने की शक्ति प्रदान करता है। 'मैक्स वेबर' ने अपने अध्ययन "इकोनॉमी एंड सोसाइटी" में करिश्माई नेतृत्व की अवधारणा प्रस्तुत की थी। उन्होंने करिश्माई नेतृत्व को एक शैली के रूप में परिभाषित किया था। जो आकर्षण, प्रेरक क्षमता और असाधारण गुणों से युक्त होती है। इससे नेता अपने अनुयायियों को एक विशेष उद्देश्य या दृष्टिकोण के प्रति प्रेरित करता हैं। उन्हें एक साथ जोड़ने में कार्यदक्ष होता है। करिश्माई नेता का अधिकार पारंपरिक या कानूनी अधिकार से अलग होता है। नेता के व्यक्तिगत आकर्षण के प्रति एवं अनुयायियों में उनके प्रति विश्वास भी कायम होता है। 
(Information by wikipedia and western governors university. and thanks to sayed for picture)



अमेरिकन राष्ट्र प्रमुख 'रोनाल्ड रॅगन' को अक्सर करिश्माई नेतृत्व के उदाहरण के रूप में देखा जाता है। उनके भाषणों और नीतियों ने लोगों को प्रेरित किया था और उनकी सरकार को समर्थन दिया था। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी करिश्माई नेता ही थे। अपने सामान्य जीवन से सबको प्रेरित किया। लाखों-करोड़ों लोग उन्हें ' हमारे प्यारे बापू' के नाम से पुकारने लगे। हमारे भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती ईंदिरा गांधी भी इस करिश्माई मंत्र के कारण 'आयर्न लेडी' का सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। आज के दौर में ऐसे ही करिश्माई गुणों से भरे हमारे प्रधामंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी राष्ट्र को अनूठी दिशा दे रहे हैं। वे सामान्य परिवार से निकलकर विश्व को अचंभित कर रहे हैं।


करिश्माई नेतृत्व सिद्धांत शैली है, जिसमें नेता अपने व्यक्तिगत आकर्षण और क्षमता के माध्यम से लोगों को प्रेरित व प्रभावित करते रहते हैं। अपने अनुयायियों के साथ भावनात्मक संबंध बनाए रखते हैं। उन्हें प्रेरणा देते हैं और लक्ष्यों के प्रति प्रेरित भी करते हैं। नेतृत्व शैली महान शक्ति भी हैं। महान चक्रवर्ती चंद्रगुप्त मौर्य के चयन में चाणक्य ने इसी करिश्माई गुण को देखा होगा। ये हमारे भारत के इतिहास की गवाही हैं।

अच्छा नेतृत्व लोगों से संवृत रहता हैं। योजना-परियोजनाएं बनती रहती हैं। और कार्य की सफलता के लिए लोगों का झुडाव भी होता रहता हैं। मतलब, लोगों की विश्वसनियता का प्रतिक बनना सरल नहीं हैं। नेता तब ही सफल होगा जब वो करिश्माई से भरा हो। बाकी पद-पैसे या विरासत के दम पर शासन नहीं किया जा सकता। उसे सिर्फ 'मर्कटलीला' ही कह सकते हैं।

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Modasa, Aravalli.
Gujarat. INDIA.
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234
Reading Time:

Bharat Ratna KARPURI THAKUR.

भारत के एक इतिहास पुरुष..! सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में...

@Mox Infotech


Copyright © | Dr.Brieshkumar Chandrarav
Disclaimer | Privacy Policy | Terms and conditions | About us | Contact us