Dr.Brieshkumar Chandrarav

Friday, April 26, 2024

The Golden star. 🌟
April 26, 2024 2 Comments

 Star is always Star.. why ?

पृथ्वी पर सोना आने की लाज़वाब घटना..!!

आज ब्लोग में पृथ्वी पर हुए सुखद अकस्मात की बात करता हूँ। मैं तो ईसे ईश्वरीय योजना का एक भाग ही कहता हूँ। प्रकृति में हुई कमाल की घटना पढें और आनंद करें।


क्या आपको पता हैं ? सोना पृथ्वी का है की नहीं। पृथ्वी पर सोना कहीं ओर से आया हैं। क्योंकि पृथ्वी की जियोलॉजि या पृथ्वी का नेचर गोल्ड के अनुरुप है ही नहीं। तो अब सवाल है, पृथ्वी पर सोना आया कहां से ? आज हम पृथ्वी पर जितना भी सोना देखते हैं, वो हमेशा से पृथ्वी उपर नहीं था। सोना दरअसल "सुपरनोवा न्यूक्लियर सिन्थेसिस" से बनता हैं। मतलब, मानो की जो पूरा सोना होता हैं, वो किसी मरे हुए तारे का मलबा होता हैं। पृथ्वी पर जो गोल्ड पाया जाता है, वो हमें अरबों साल पहेले हुई यानि की पृथ्वी की शुरुआत में ही हुई "उल्का वर्षा" meteorite rain के कारण मिला हैं। माना जाता है पृथ्वी पर जीतना भी गोल्ड है वो "डेमेज ओफ डेड स्टार" से आया हैं। बस, भौगोलिक घटना की बात बंध करता हूं। इससे अतिरिक्त जानकारी आप कहीं से भी ले सकते हैं। लेकिन मुझे जो कुछ अचंभित लगा वो बताता हूँ।

The gold is damage part of the dead star. मैं इसी बात को लेकर हैरान हुआ- अचंभित हुआ। तारें आखिर तारें होते हैं। "स्टार इज ऑलवेज स्टार" आसमान की बेशुमार खूबसूरती तारों से हैं। हजारों-लाखों किलोमीटर की दूरी पर होने के बावजूद हमें तेज दे रहे हैं। अपना है वो बाँट दिया अच्छी बात हैं। लेकिन जब सूरज का बेशुमार तेज होता हैं तब खूद शांत हो जाते हैं। घनघोर अंधेरो में प्रकाश बांटना, अंधेरी रात में अपनी जगमगाहट से पूरें ब्रह्मांड को ख़ूबसूरत बना देना। मुझे ये बहुत बडी बात लगती हैं। प्रकाश के बिंदुओं की तरह बिखरे हुए तारों की स्वयंप्रभा से कौन अनजान होगा भला !? पृथ्वी के सभी बच्चों का बचपन तारों की बारात में गुजरा हैं। चांद-तारों को देखने का पागलपन किसने नहीं किया होगा ? शायद पूरे संसार में येसा कोई नहीं होगा।

इससे भी आगे जो बडी बात लगी। वो हैं, मरने के बाद भी अपनी किमत को बरकरार रखना। है ना कमाल की बात ? इसी कारण शायद हम कोई प्रतिभासंपन्न व्यक्ति को "स्टार" कहते हैं। तारें जब कोई खगोलीय घटना के कारण टकराते हैं, आसमान में तेज लकीर दिखाई पडती हैं। कोई तारा गिरते हुए पृथ्वी पर आता हैं। उसे हम "उल्का" meteorite कहते हैं। उस उल्का का जमीन में समा जाना या बिखर जाना एक घटना हैं। बादमें वो टुकडा सोने के रुप में पाया जाता हैं। एक मृत तारा जलने के बाद भी एक अनमोल धातु में बदल जाता हैं। दुनिया की महंगी और पवित्र धातु सोना हैं। सोने की चमक तारों की तरह पृथ्वी पर अपना तेज बिखेरती हैं। कैसी अद्भुत घटना हैं ये !!

छोटे-से दिखने वालें तारों की ये बेहतरीन यात्रा हैं। तारें छोटे दिखते है मगर हैं नहीं। वो कितने बडे हैं इसका अंदाजा लगाना मुश्किल हैं। मगर उसकी चकाचौंध कभी खत्म नहीं होती इतना मुझे समझ में आया हैं। आज मुझे इसका कारण भी बखूबी समझ में आया हैं।

स्वयंप्रकाशित भी तभी रहेंगे...जब तेज को बांटना सीखेंगे। किसी के तेज से खिलवाड करने का अंजाम, उनसे पूछो जो धूल की मुट्ठीओं भरे पूरा जीवन एसे ही व्यतीत करते हैं। जैसे कोई कुत्ता बैलगाड़ी के नीचे चलकर खूद एहसास में जीता हैं, मैं ये बैलगाड़ी चला रहा हूं। "शर्कट का भार श्वान कैसे तान-खींच सकता हैं भाई ?
STARS तारें-सितारें-स्टार...आसमान में भी तेजोमय और धरती पर भी तेजोमय !!

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Friday, April 19, 2024

Three language.
April 19, 2024 8 Comments

 Excellent language of the universe.

Music, Love and Silence.


सर्वोत्तम भाषा जो पूरे ब्रह्मांड के लिए एक ही हैं।

वैविध्यता से भरा विश्व। भाषा-भूषा से अतिरिक्त अनेक जीवन पद्धतियों से भरा हमारा विश्व। खानपान, रहन-सहन और भाषा की उत्तम लिखावट भी एक वैविध्य हैं। ईश्वर की अदृश्य परंपरा में भिन्नता के साथ कहीं न कहीं एकत्व प्रकट हो ही जाता हैं। क्योंकि पूरें ब्रह्मांड को चलानेवाली शक्ति एक ही हैं। जिसे आप जो नाम देना चाहें !!

Love

आज में युनिवर्स की तीन ऐसी बातों के बारें में लिख रहा हूँ। वो आपको पता होने के बावजूद भी अच्छी लगेगी। विश्व की उच्चतम तीन भाषाएँ..! संगीत, प्रेम एवं मौन..! सबकी अपनी भाषा। और सबको समज में आ जाए ऐसी सरल भी। कुछ बोले बिना केवल महसूस करके भी समझ में आ जाए। ये ईश्वर का गहन स्पर्श वाली परिभाषा हैं। इसमें बनावट तुरंत ही पकड में आ जाएगी। चलों, शुरु करें एक-एक शब्द पर अलग-अलग  थोड़ी बातें..!

सृष्टि में संगीत एक अलौकिक वरदान से कम नहीं। संगीत एक कला हैं, साधना हैं। संगीत में धडकनों का मिलना सहज हो जाता हैं। स्वयं ईश्वर की मर्ज़ी संगीत के प्रगटन में हैं। तभी तो संसार की जीवंतता पर उसकी असर हैं। प्रकृति और वनस्पति पर भी संगीत की असर होती हैं। संगीत वो भाषा हैं, जो सुने वो समझे। शायद कोई शब्द के बीना भी कुछ महसूसी की असर प्रकट होती हैं। प्रकृति में तो संगीत संभृत हैं। प्रकृति संगीत से संवृत हैं। ये प्रभु का हल्का स्पर्श हैं ! जो कान के जरिए हमारें दिलों में उतरता हैं। एक पंछी के गीत की कोई भाषा नहीं होती। एक भँवरें की गूंज में कौन-सा संगीत हैं? पर्वतों के शिखर से गिरता झरना या कोई कलकल बहती नदी मैया..! उनकी हल्की आवाज या साज कौन-सी भाषा में हैं ? ये संगीत हैं, हम सब ये जानते हैं, फिर भी आज अचंभित होना हुआ ना ? इस भाषा के चमत्कार समझ में आ गये ना ?

विश्व की एक ओर दूसरी भाषा प्रेम है। प्रेम हैं वहां सहज ही आर्द्रता स्थापित हो जाएगी। अपने अस्तित्व से ज्यादा दूसरें की फिकर ये प्रेम हैं। स्व स्वाहा: तब बनता है जब प्रेम आकार धारण करता हैं। ये संपन्नता- साम्यता से उपर एकात्म का उत्कृष्ट भाव हैं। इसमें भी ईश्वर की ही मर्ज़ी कारणरुप हैं। इसी कारण दो दिलों की भाषा एक दूसरें में समाहित हो जाती हैं। और एक नई समझ पैदा होती हैं। संसार में उत्क्रमित जीवन शैली इसी कारण दृश्यमान होती हैं। साथ ही प्रेमतत्व की भाषा सुलझने लगती हैं। प्रेम समझने से ज्यादा जीने की चाह हैं। जब जीने का कोई मकसद स्फूर्त होता है तो मानो, प्रेम का प्रकटन अवश्य हुआ हैं।

विश्व की एक तीसरी भाषा मौन हैं। ये बोलने में सहज शब्द हैं। परंतु इसका अनुसरण सबसे कठिन हैं। मौन हो जाना कोई सामान्य घटना नहीं। जीवन करुणामय अवस्था पर पहुंचता हैं, तब सहज ही भीतर में कुछ परिवर्तन के अंश अंकुरित होते हैं। फिर व्यक्ति मन ही मन एक उम्मीद को पालता हैं। आध्यात्म की अद्भुत असर के तले एक व्यक्तित्व प्रगट होता हैं। मौन का एक साधक अपने भीतर की आवाज से बातें करता हैं। इससे कारण सम्यक दृष्टि निर्माण होती हैं। तब वो मानुष मौन से ही संवृत हो जाता हैं। व्यक्ति सहज बनता जाता हैं। मनुष्य जीवन का ये एक उत्तम मार्ग कहलाता हैं। ईश्वर की आवाज सुनने का एक सुंदर मार्ग मौन हैं।

इन महान शब्दों का थोड़ा-बहुत अर्थ मेलजोल करने का प्रयास करता हूं। "आनंदविश्व सहेलगाह" अपनी इस वैचारिक यात्रा में कुछ विशेष प्राप्ति करते हुए संगीतमय हैं, प्रेममय हैं अब मौन भी..!

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Tuesday, April 16, 2024

Legendary personality.
April 16, 2024 3 Comments

विचार के प्रति समर्पण की अद्भुत मिसाल।

भारत का एक ऐसा चरित्र जो अंग्रेजो की भूमि में रहकर क्रांति की आवाज बनें..!
Most salutary person...! 
SARADARSINH RANA.

सरदारसिंह राणा का जन्म दशमी अप्रैल 1870 को  सौराष्ट्र के कंथारीया मे  हुआ था। हिन्दु पंचांग के मुताबिक चैत्र मास की नोम थी।उसे हम रामनवमी के रुप में मनाते हैं। परिवर्तन का उद्घोषक चैत्र..ये भी एक अनमोल संयोग हैं।  लींमडी का राज परिवार पिता रावाजी द्वितीय और माता फुलाजीबा की परवरिश के साथ राजवी परिवार की समदृष्टी और समर्पण के संस्कार को लेकर एक दमदार व्यक्तित्व खड़ा हुआ।


थोडी-बहुत राणाजी की शिक्षाप्राप्ति की बातें...उन्होंनें धूली यानी गांव की स्कूल में अध्ययन किया था। बाद में राजकोट के अल्फ्रेड हाईस्कूल में शामिल हो गए। वहां मोहनदास गांधी भी उनके सहपाठी थे। 1891 में अपनी मैट्रिकुलेशन पूरा करने के बाद, उन्होंने 1898 में बॉम्बे विश्वविद्यालय स्नातक के बाद एल्फिंस्टन कॉलेज में बाद में पुणे की फर्ग्यूसन कॉलेज में भी अध्ययन किया था। जहां लोकमान्य तिलक और सुरेंद्रनाथ बनर्जी के संपर्क में आना हुआ। यहां की पढाई पूरी करने के बाद राणाजी बैरिस्टर डिग्री का अध्ययन करने के लिए लंदन गए। वहां वे श्यामजी कृष्ण वर्मा और भीखाजी काम के साथ संपर्क मे आये। लंदन में "इंडिया हाउस" की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उनके जीवन का एक ओर पडाव 1899 में आया। राणाजी बैरिस्टर की परीक्षा के बाद पेरिस चले गए। उन्होंने विश्व व्यापार शो के लिए पेरिस में कैंबे के एक जौहरी जिवांचंद उत्तराचंद के अनुवादक के रूप में कार्य किया। वहां रहकर वो नये व्यवसाय के विशेषज्ञ बन गये। , मोती और आभूषण का व्यापार शुरू किया। सरदारसिंह पेरिस में 56, रुए ला फेयेट स्ट्रीट पर रहते थे। ईस व्यापार से आर्थिक संपन्नता बढती गई। इस दौरान वे भारतीय राष्ट्रवादी राजनेताओं को मिलते रहते। जिनमें लाला लाजपत राय भी शामिल थे ओर वे काफी समय साथ भी रहे थे। 1905 में "इंडियन होमरूल सोसाइटी" की स्थापना हुई। उनमें संस्थापक सदस्यों में से राणाजी एक थे और सोसाइटी के उपाध्यक्ष भी थे। मुन्चेशाह बुर्जोजी गोदरेज और भिखाजी कामा के साथ उन्होंने "पेरिस इंडियन सोसाइटी" की भी स्थापना उसी वर्ष यूरोपीय महाद्वीप पर इंडियन होमरूल सोसाइटी के विस्तार के रूप में की गई थी। 

श्यामजी कृष्ण वर्मा के रूप के साथ मिलकर राणा ने भारतीय समाजशास्त्रीओं के लिए महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी के नाम पर भारतीय छात्रों के लिए तीन छात्रवृत्तियां घोषित की थी। प्रत्येक छात्र को 2,000 की कीमत थी। उन्होंने कई अन्य छात्रवृत्ति और यात्रा फैलोशिप भी दी थी। उन्होंने ऐेसे कई तरीकों से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मदद की। उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को अपनी प्रतिबंधित पुस्तक "द इंडियन वॉर ऑफ आजादी" का प्रकाशन करने में  भी बडी मदद की थी। उन्होंने 1910 में द हेग के स्थायी न्यायालय में अपने मार्सिले शरण मामले में भी उनकी मदद की थी। उन्होंने सुभाषचंद्र बोस को जर्मन रेडियो पर दर्शकों को संबोधित करने में मदद की थी। साथ ही बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना में भी काफी मदद की थी।

18 अगस्त 1907 को स्टुटगार्ट शहर में दूसरी सोशलिस्ट कांग्रेस में भाग लेने के साथ वहां "भारतीय स्वतंत्रता का ध्वज" भीखाजी कामा द्वारा प्रस्तुत किया गया था। राणाजी ने "बांदे मातरम्" (पेरिस से कामा द्वारा प्रकाशित) और "द तलवार" (बर्लिन से प्रकाशित) में नियमित अपना योगदान देते थे। अपना कारोबार लपेट कर वे 1955 में भारत में वापस आ गए। थोडा स्वास्थ्य भी विफल हो रहा था। बाद में स्ट्रोक के कारण 25 मई 1957 को वेरावल के सर्किट हाउस में उनकी मृत्यु हो गई। 
(माहिती स्रोत विकिपीडिया और वेबसाइट सरदारसिंहराणा)

एक जौहरी थे राणाजी। मोती और झवेरात के साथ के अच्छा नाता था उनका..! साथ ही व्यक्ति की परख के भी जौहरी थे। कौन कहाँ पर काम आ सकता हैं उनकी बखूबी समझ रखते थे। अपने कारोबार से आभूषण के व्यवसाय से वो खूब धन भी अर्जित करते थे। लेकिन वो धन राष्ट्रसेवा और राष्ट्र सपूतों की कर्मठता में समर्पित था। एक व्यक्ति कहां-कहां पहुंचता हैं। अपना तन-मन-धन समर्पण इसे कहते हैं। राष्ट्र की स्वतंत्रता उनके मन सबसे उपर थी। अंग्रेजों की भूमि में रहकर उनके खिलाफ काम करना ये सामान्य घटना नहीं हैं। मा.सरदारसिंह राणा एक वीर हैं। माँ भारती को कब कैसी कुर्बानी चाहिए इसकी पूरी समझ से वे संपन्न थे। वे धन से संपन्न थे साथ मन की उदारता से भी संपन्न थे।
राष्ट्रपुरुष मा.सरदारसिंह राणा को शत शत वंदन !!

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Friday, April 12, 2024

Beginning is strength.
April 12, 2024 5 Comments

Beginning is not a normal event.

प्रारंभ कोई सामान्य घटना नहीं हैं।
Let's we start something new.

पवित्र चैत्र मास नाविन्य से जुड़ा हैं। चैत्र प्रारंभ से जुडा हैं। ब्रह्माजी ने ईसी दिन सृष्टि की रचना की थी। आज भी भौगोलिय घटना के तहत सृष्टि में परिवर्तन की लहरें उठती रही हैं। प्रकृति में सबसे ज्यादा बदलाव दिखता हैं। मैं आज के ब्लॉग में मात्र प्रारंभ की बात करना चाहता हूं। जब मैंने इस विचार पर थोडी मानसिक कसरत की तब काफी कुछ ध्यानमें आया हैं, बस इसे लिख रहा हूं।


जीवन जन्म-मृत्यु के बिच का एक समय का फासला हैं। संसार के सभी प्राणी इस घटना के साक्षी बने हैं, बनते आए हैं और बनते रहेंगे। क्योंकी प्रारंभ हैं, अदृश्य होने के बावजूद प्रारंभ हैं। प्रारंभ यानि शुरुआत start, beginning..! पहेले तो ये भी समझ ले की हम भी कुछ प्रारंभ की घटना के तहत आकारीत हैं। हम जन्म से या इससे पहले भी...कहीं शक्यता के रुप में- संभावना के रुपमें प्रारंभ की पहेली अवस्था में आए होंगे। मतलब आरंभ में संभावना निहित हैं, बाद में हकीक़त भी। जो दृश्यमान आकारीत हुआ है, ये वैसे नहीं हुआ। कभी न कभी कहीं न कहीं इनका आरंभ हुआ होगा। ईश्वर आरंभ हैं, जन्म आरंभ हैं, कर्म आरंभ हैं और ज्ञान भी आरंभ हैं। आज हम कर्म से जहां पर हैं, वहां किसी आरंभ ने पहुचाया हैं। आज हममें जो बुद्धिमत्ता विध्यमान हैं, वो कहीं से प्रारंभ हुई थी।

जीवन को हम यात्रा भी कहते हैं। मतलब इस यात्रा की आरंभिक क्षण भी होगी। every journey has its own beauty. Just go with the flow. यात्रा के प्रवाह में बहना भी सुंदरता हैं। हरेक यात्रा को शुरु करने से पहले उसका प्रारंभ होगा ही। जैसे अणु पदार्थो का सूक्ष्मरुप हैं। स्नायु का न्यूनतम स्वरुप कोष हैं। जैसे एक बूँद से जलधि की विशालता हैं। एक बीज में वृक्ष का आरंभ है। कहीं ना कहीं सूक्ष्मता से ही विराटता आकारीत हुईं हैं। इसीलिए 'प्रारंभ' कोई सामान्य घटना नहीं हैं। एक विचार से विज्ञान की कईं खोज संभवित हुई हैं। वैसे ही प्रारंभ की भी बड़ी अहमियत है।

जरुरी हैं कुछ प्रारंभ हो। हमारे भीतर या हमारे आसपास..! आज विश्व में कईं धर्म-संप्रदाय कोई इकोनॉमिक संस्था, राजकीय संगठन या कोई एज्युकेशन संस्थान आकारीत हैं, वो किसी एक व्यक्ति के प्रारंभ से ही विद्यमान हैं। कहीं एक विचारबीज प्रकट हुआ होगा। और उसकी नींव रखने का प्रयास हुआ होगा। उस घडी को में प्रारंभ या आरंभ कहता हूं। एक शब्द में कितनी ताकत हैं ? आप पढ रहे हैं उस आर्टिकल का भी एक विचारबीज से प्रारंभ हुआ होगा। मुझे लगता है, अब आपके मन में आरंभ की परिकल्पना बैठ गई हैं।

मैंने इस वैचारिक ब्लोग को मेरा निमित्त कर्म समझकर शुरु किया था। एक क्षण थी उसने आरंभ करवा दिया। अब मुझे बस बहाना हैं। "जस्ट गो वीथ फ्लो" इस ब्लॉगका नाम भी "आनंदविश्व सहेलगाह" ऐसे ही घटित हुआ। आप देख रहे हैं, पढ़ रहे हैं। एक कर्म बहता जा रहा हैं। मेरा काम कैसा हैं ? अच्छा है, बूरा हैं इसमें मैं नहीं पडता। बस बहता हूँ एक विचार यात्रा में..! मुझे लगता है ये आरंभ हैं। ये कहाँ तक ले जाएगा पता नहीं। मगर उसका मुकाम बहतरीन होगा इस में श्रद्धेय हूं।

कोलकाता में महात्मा दिलीपकुमार रॉय करके एक संत हो गए। वो अपने भक्त जन को एक बात बताते थे; " मैंने जिस आम के पेड से फल खाया वो बहुत अच्छा हैं, मैं आपको वो आम के पेड का निर्देश करता हूँ। मैं ओर कुछ नहीं करता।" इस बात में बडी विनम्रता हैं, साथ में निमित्तभाव की ऊंची कल्पना भी..!

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Tuesday, April 9, 2024

एक अद्भुत दिन..चैत्र सुद एकम !!
April 09, 20240 Comments

हिन्दु नववर्ष का प्रारंभ..!

ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन।

चैत्र सुद एकम को हिन्दुओं का पुरातन नववर्ष- प्रारंभिक दिन माना गया हैं। इस प्रतिपदा तिथि को जम्मू-कश्मीर में 'नवरेह',पंजाबमें 'वैशाखी', महाराष्ट्र में 'गुडीपडवा' सिंध में 'चैतीचंड' केरल में 'विशु' असम में 'रोंगली बिहू' आंध्र में यह पर्व 'उगादि' नाम से मनाया जाता हैं। उगादि का अर्थ होता है, युग का प्रारंभ।

एक ओर तथ्य विक्रम संवत की चैत्र शुक्ला की पहली तिथि से दुर्गा व्रत पूजन यानि नवरात्रि का प्रारंभ होता हैं। ईस पवित्र दिवस पर राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक हुआ था। साथ ही युधिष्ठिरजी का राज तिलक भी ईसी दिन हुआ था। सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव को जन्म भी इसी दिन हुआ था। ऐसी कई घटना के कारण व भौगोलिक परिवर्तन के कारण भी इस दिन का महत्व बढ जाता है।

चैत्र सुद एकम से झुडे कईं प्रसंग पर अलग-अलग अध्याय लिखा जा सकता हैं। लेकिन आज मैं भारत के पराधीन समय की एक उत्कृष्ट घटना का जिक्र करता हूं। सभी घटनाओं का अपना-अपना मूल्य होता हैं। कोई घटना इतिहास बनकर युगों तक अमर बन जाती हैं। ऐसी एक घटना १ अप्रैल १८८९ के दिन घटित होती हैं। पिता बलिराम और माता रेवतीबाई के निमित्त एक प्रतिभासंपन्न बालक केशव का जन्म हुआ। संयोग से इसी दिन चैत्री शुक्ल एकम थी, हिन्दु वर्ष प्रतिपदा।

Dr.Kesav baliram

महाराष्ट्र के नागपुर में हमारे केशव बडे होने लगे। परतंत्रता की बेडीओं में
देश बंधा हुआ था। देश में क्रान्ति की ज्वालाएँ उठती रहती थी। गुलामी की त्रस्तता सब में राष्ट्रवाद प्रदीप्त कर रही थी। नागपुर की गलीओं में पल रहें केशव के मन में राष्ट्र और राष्ट्र की गूंज गूंज रही थी। बचपन में बच्चें खिलौने से खेलते हैं। ये बालक अंग्रेज़ों के खिलाफ की आवाज बनता हैं। केशव स्कूली जीवन में ही रानी विक्टोरिया के जन्म दिन मनाए जाने पर अपना विरोध प्रकट करते हें। वंदे मातरम् का जयघोष उनके मन मस्तिष्क पर तांडव मचाता रहता था।

केशव के लिए साधारण परिवार एक पीडा थी। लेकिन भावनाएँ हिन्दुओं के लिए कुछ करने की थी। सेवा से राष्ट्रमाता का गौरव करना उनका स्वप्न बन गए थे। हिन्दुओं के संगठन की आवश्यकता भी लगती थी। ईस दौरान वे कलकत्ता पढाई के लिए गये थे। वहां उनका मिलाप बंगाल के कुछ क्रान्तिकारियों से हुआ। केशव डाक्टरी की पढाई के वहां गए थे। लेकिन समाज की दुर्दशा देखकर उनको लगा की आज समाज के इलाज की आवश्यकता हैं। वे कार्य कुशल थे, अच्छे संगठक थे। नेतृत्व की क्षमता ने उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश के उपाध्यक्ष बना दिया।

डॉक्टर केशव की बहुधा प्रवृत्तिओं पर राष्ट्रभाव ने कब्ज़ा कर लिया था। पढाई के बाद वे नागपुर आते हैं। उस समय कॉंग्रेस की प्रवृत्तिओं का भी भाग बने। महात्मा गांधीजी के अहिंसक असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा र्आंदोलनों में भाग लिया। खिलाफ़त आंदोलन की आलोचना के कारण गिरफ्तार हुए बाद १९२२ में जेलसे छूटे। ईसी समय विनायक दामोदर सावरकर के पत्र हिन्दुत्व का संस्करण निकला था। जिसमें इनका भी योगदान रहा।

उस समय के डॉ.साहब के उद्बोधन के कुछ शब्द : " संघ के जन्म काल समय की परिस्थिति बडी विचित्र सी थी, हिन्दुओं का हिन्दुस्थान कहना उस समय पागलपन समझा जाता था और किसी संगठन को हिन्दू संगठन कहना देश द्रोह तक घोषित कर दिया जाता था।"(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तत्व और व्यवहार पृष्ठ ६४)

राष्ट्र के प्रति अप्रतिम श्रद्धा के कारण १९२५ की विजयादशमी के दिन एक संगठन आकारित होता हैं। "आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका। पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिंदू रीति स्मृता।" अत: इसका अर्थ "भारत के वह सभी लोग हिन्दू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं।" बस आज इतना ही...संघ एक बृहद विषय हैं। संघ के संस्थापक डॉक्टरजी तो उससे भी बडा व्यक्तित्व हैं। थोडे शब्दों में उसे बयां नहीं किया जा सकता।

आज के पवित्र अवसर पर परम पूज्य केशव बलिराम हेडगेवारज़ी को प्रणाम !! 
साथ ही माँ  दुर्गा के प्रकटरूप नौ दिनों की बधाई-बधाई !!

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Wednesday, April 3, 2024

संभावना विश्व !!
April 03, 2024 3 Comments

Possibility is Everywhere..!

संभावना से भरा विश्व और संभावना की जनक कुदरत !

नई संभावनाएं लेकर सूरज निकलता हैं, आशा-उम्मीदों का अदृश्य रुप सजने लगता हैं। दिल-दिमाग में हौंसले पलते हैं। एक नीड मैं भी नई चहल उठती हैं। एक पंछी संभावना की उडान भरता हैं। एक छोटा-सा फूल भी सुनहरी मुस्कान भरें संभावना विश्व में अपनी उपस्थिती लेकर आता हैं। ओर हम मनुष्य की तो सबसे उपर बुद्धिमानी भरी दौड..!



What Happen? क्या हुआ से झुडी हैं, हमारी बेहतरीन जिंदगी। जन्म से लेकर मृत्यु की आखिरी सोंस तक हम सब संभव से झुडे हैं। क्या हुआ ? के अचंभित सवाल से लेकर...कुछ हो सकता हैं? की राह तकका सफर संभावना हैं। संभावना में उम्मीद हैं, कल अच्छा हो सकता है, की एक सुनहरी सोच हैं। ईश्वर की अद्भुत दुनिया में संभावनाएं भरी पडी हैं। गीताकार श्रीकृष्ण ने भी उसके प्रकट होने की संभावना की हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । 
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। 
परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् । 
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। 
(ज्ञान-कर्म सन्यास योग:४ श्लोक ७-८)

स्वयं ईश्वर संभावना प्रिय हैं। जब कुछ पीड़ाएं बढ़ जाती हैं, समस्याओं से संसार संवृत हो उठता हैं। तब ईश्वर आएंगे ऐसी कुछ कल्पनाएं सबके मन में बसी होती हैं। ये विचार का हमारे मन में प्रकट होना भी संभावना का एक रुप हैं। काफी-कुछ सुनहरा घटित होता रहा हैं, इस सृष्टि में..! आज हमारें सामने जो दृश्यमान जगत हैं वो किसी न किसी की कल्पना का जन्म हैं। यहाँ सब समान हैं। किसी के साथ क्या कुछ अचंभित आकारित हो किसे पता ? यहाँ रंक से लेकर राजा तक की सफरें भरी हुई हैं। यहाँ सामान्य व्यक्ति पल में असामान्य व्यक्ति बन जाता हैं। फिर..ईश्वर की कमाल कहकर हम अहोभाव प्रकट करते हैं। कोई दुर्घटना में आबाद बच जाता हैं। ईश्वर की अदृश्य मर्ज़ी यानी संभावना..!

मनुष्य के रुप में हमें अपने भीतर भी कुछ संभावनाएँ पालनी चाहिए। ये बहुत बडी बात हैं ? हम कैसे कर सकते हैं ? उत्तर आसान हैं, अपने साथ जीने वालों में संभव देखना। ईश्वर का कोई भी अंश महान हैं। मुझे ईश्वर की कृपा प्राप्त करनी है तो दूसरें को भी हकदार समझना होगा। ईस जगत में मैं हूं साथ कोई और भी हैं। ये मानसिकता बढनी चाहिए, और ये नहीं बढती तो कूपमण्डूक वृत्ति से कौन बचाएगा ? आखिर जीवन हमारा निजी  हैं, सोच भी वैयक्तिक व निजी होगी। अब संभावना में श्रद्धा बनाए रखना या नहीं वो अपने-आप पर निर्भर हैं।

एक छोटे-से बीज में भी वृक्ष की संभावना है। हम तुच्छता पाले बैठे हैं, इसमें बीज की क्या भूमिका ? मनुष्य बौद्धिक होता जा रहा हैं। सृष्टि के कईं रहस्यों को खोलता जा रहा हैं। फिर भी असमानताएं पालकर क्या साबित करेग़ा ? संभावनाओं का रहस्य खोल नहीं पालेगा। मनुष्य जीवन को हम जन्म-जन्मांतर का सफर मानते हैं आए हैं। तो फिर ईश्वर की "संभवामि युगे युगे" की प्रोमिस में श्रद्धेय बनेंगे ?
संभावना में श्रद्धावान होना सकारात्मक सोच का प्रमाण हैं। ये तो मैं अपनी ईश्वर संबंधी मान्यता से मत प्रेषित करता हूं। इससे भी बडी बात कोई और सोच सकता है..ये भी एक संभावना हैं !!

I'm believe this possibility...It's my inner Happiness.
GOD WILL DEFINITELY COME.
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे..!

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Monday, March 25, 2024

Bloom more..!
March 25, 20240 Comments

 Bloom where You are planted.

आपने स्थान पर रहकर अपनी योग्यता दिखाएं।

रंगोत्सवस्य शुभाशया:
रंगो का एक अलग विश्व हैं। इन रंगों ने सारें संसार को खूबसूरती दी हैं। हमारें भीतर भी जो खुबसूरत लम्हों का उमडना रंगों का ही एक प्रकार हैं। जीवन के भी रंग होते हैं। एक बात तय हैं, रंग बडे प्यारे होते हैं। हरेक रंग का अपना निजी सौंदर्य हैं। गुल मिल जाना, बिखर जाना रंगों का स्वभाव हैं। एक रंग दूसरें रंग में मिलकर एक ओर रंग बनाता हैं। संसार की इस रंगभूमि को शत शत वंदन !!


भारत वर्ष में मनायें जाने वाला ये होली का उत्सव कई सत्यापन को प्रेषित करता हैं। जीवन के रंगों की बात को भी स्पर्श करता हैं। होली उत्सव के साथ जीवनदृष्टि भी हैं। समस्त मानव समाज के लिए एक उत्साह का माहौल हैं ये बात ठीक हैं। मगर इसके साथ होली जीवन को बडी प्रबुद्धता से समझने का उत्सव भी हैं। उत्सव से उल्लास उमंग झुडा है, ये सही बात हैं। मैं समझता हूं उत्सव से जीवन झुडा है। उत्सव से मानवीय संवेदना जुडी हैं। इस उत्सवों से हम अपनी योग्यता समझ सकते हैं। समाज जीवन में उत्सव शायद इसी कारण मनाएं जाते है।
हमें किस स्थान पर अंकुरित होना हैं ?
हमें जीवन कौन से रंग से सजाना हैं ?
या रंगो की लाजवाब परख कैसे करनी हैं ?

रंगों का तादृश्य मेल जहाँ उत्कृष्ट दिखाई पडे, ऐसा कोई चरित्र इस संसार में हैं ? हां राधाकृष्ण। कृष्ण राधा का चरित्र रंगों का तादृश्य सौंदर्य प्रकट करने वाला हैं। यहां प्रेम के सुनहरे रंग भी हैं। जैसे पानी सभी रंगों को सहज ही धारण करता हैं। अपने खुद का रंग न होने के बावजूद पानी सबरंग बन जाता हैं। कृष्ण ऐसा सबरंग हैं। कृष्ण प्रेम हैं और प्रेम का रंग ही सबसे उपर हैं। रंगोत्सव की बात हो और कृष्ण और राधा की बात न हो, ये हो ही नहीं सकता।

रंग की बात हैं, तो हमें अपने जीवनरंग को पहचानना हैं। अपने भीतर के उत्कृष्ट रंग को पहचानकर संसार में बिखेरना हैं। ईश्वर इस रंगभरी दुनिया के राजा हैं। उनको चेहरे पर कौन-से रंग से हम मुस्कान ला सकते हैं। ये हमें ही सोचना हैं। where we will want to grow ?

फिर एक बार ओर रंगोत्सव के साथ जीवन की सर्वोतम फिलसूफी को अपने भीतर प्रकट करने हेतु...मंगलमय प्रार्थना !!

आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
9428312234.
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