At first one must accept the way
that self tries to accept the world.
BUDDHA.
"सबसे पहले व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि वह स्वयं दुनिया को किस तरह स्वीकार करने का प्रयास करता हैं।"
पवित्र भगवान बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामना के साथ उनके ही सुंदर विचार पर ब्लोग विस्तार करता हूं। स्वयं की जागृति ही जीवन का मूल आधार हैं। वैसे तो जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक सिखने की प्रक्रिया हैं। हमसब इस संसार में पहेली बार आँख खोलेते हैं तब से सिखना,समझना एवं महसूस करना शुरु कर देते हैं। बाद में तर्क करना उसको सही तरीके से समझना सिख जाते हैं। ये हमारे जीवन की सहज प्रक्रिया हैं। कोई विशेष प्रयास के बिना वस्तु और व्यक्ति के बारें में हम सीखते रहते हैं।
अब दुनिया को समझना हमारे लिए एक जैविक धर्म हैं। उसे में मानवीय धर्म कहूँ तो भी गलत नहीं। हम जी रहे हैं इसलिए सीख रहे हैं। बस इतना समझ में आ गया। अदृश्य ईश्वर की ये कोई सिस्टम होगी ऐसा मान लेकर आगे बढ़ते हैं। अब सवाल आता हैं हम जो सिखते हैं उसका स्वयं स्वीकार करें। जगत जैसा है वैसा...! वस्तु या व्यक्ति जैसा है वैसा..! स्थिति परिस्थिति भी जैसी है वैसी...! सत्य-असत्य में पडे बिना, परिणाम की चिंता से परे रहकर और किसीको कसूरवार ठहराए बिना बस दुनिया को स्वीकारना हैं। अपनी समझ बढ़नी चाहिए लेकिन भाररुप या समस्या को जन्म देने वाली समझ नहीं। स्वयं को निरपेक्ष दृष्टि से सीखने के मार्ग पर चलाएंगे तो परिणाम बहुत अच्छा ही होगा। हमारे वैयक्तिक जीवन के लिए और समष्टि के लिए भी ये बेहतर कदम होगा।
भगवान बुद्ध स्वयं नियंत्रित हैं। वो सबका स्वीकार करनेवाले और समदर्शि हैं। सबको प्रेम करने वाले हैं। हमारा जीवन भी एक प्राकृतिक पहलू ही हैं। जब हम प्रकृति से थोड़ी-भी दूरी बनाकर सोचते रहेंगे तो कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे। भगवान बुद्ध का जीवन एकात्म भाव से भरा था। बुद्ध के जीवन का संदेश यहीं था की संसार को 'एकात्मता और आत्मीयता' से संवृत किया जाए। जीवन की यहीं समृद्धि मूल्यवान हैं। इस तरह से जीवन का सही मकसद सिखाने का प्रयास बुद्ध ने किया हैं। इसीलिए हम बुद्ध को भगवान कहते हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी ऐसी ही साम्यता सीखाना चाहते हैं। यहाँ तो स्वयं बुद्धदेव ने अपना जीवन व्यतीत किया हैं।
उनका गृहस्थ जीवन का त्याग किसी को दुःख पहुँचाने के लिए नहीं था। केवल उनके ही शब्दों का अनुसरण था। उन्होंने दुनिया को स्वीकार करने का उत्तम मार्ग का चयनित किया था। जीवन केवल उपभोग का साधन नहीं हैं। जीवन का दूसरा नाम मकसद भी हैं। ईश्वर ने हमें...हम मानवों को विशिष्ट बनाया है उसमें भी कोई मकसद ही छिपा हुआ हैं। बस, ये मकसद की समझ यानि दुनिया को स्वयं स्वीकार करने की कोशिश...!
जैसे हम पसंदीदा व्यक्ति का स्वीकार करते हैं। अपने बच्चे का स्वीकार करते हैं। हमारे वैयक्तिक संबंध का स्वीकार करते हैं। हमारी सफलताओं का स्वीकार करते हैं। वैसे पूरी दुनिया का स्वीकार करना...! इनमें जीव-जगत की सभी 'वस्तु और आचार' एवं 'विचार और वर्तन' शामिल होंगे। सहजता से इसका स्वीकार करना ही बेहतर जीवन हैं। इसे हम self tries to accept the world कहेंगे।
भगवान बुद्ध Acceptation के शिखर हैं। हम भी कुछ छोटा-सा प्रयास कर सकते हैं। या Unacceptable के माहोल को ही खड़ा करके विचित्र आनंद के अहसास में जियेंगे !? अस्वीकार्यता ईश्वर को पसंद होगी क्या ? इन प्रश्न के साथ..!
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA.
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234.
ReplyDelete"મેં આપનો લેખ વાંચ્યો અને અત્યંત આનંદ અનુભવ્યો. વિચારશીલતા અને લેખનશૈલીના હું ખુબજ કદર કરું છું. આવો અદ્ભુત લેખ આપવા બદલ આપનો દિલથી આભાર!"
આભાર બંધુ, આપનું નામ કૉમેન્ટમાં લખો તો વધારે ગમશે. આપનો વિચાર બ્લોગની સાથે વૈશ્વિક ફલક પર વાંચી શકાશે...Name please.
ReplyDeleteબુદ્ધ ના તત્વજ્ઞાન ઉપર સારી પકડ છે ડૉ.બ્રિજેશકુમાર. અભિનંદન
ReplyDeleteવિચારની ખૂબ સુંદર રજૂઆત છે. ક્યાંક બૌદ્ધ ધર્મી આપના પ્રેમમાં ન પડી જાય. ધ્યાન રાખજો.
ReplyDeleteખૂબ સુંદર આર્ટિકલ.
ReplyDelete