The sun and sunflower 🌻 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Sunday, June 11, 2023

The sun and sunflower 🌻

 सूरज और सूरजमुखी के बिच कोई संवाद होता होगा क्या ?

न जाने क्यों इसतरह के सवाल मेरे मन में पैदा होते हैं ?
महान ईश्वर ही जाने...अपना सोचना,बोलना,लिखना-अभिव्यक्त होना !!

The sun


चलों,ध्यान पूर्वक कुछ इमेजिन को पढ़ें..! अच्छा जरूर लगेगा..विश्वास हैं।

सूरज: ये पौधा..नहीं फूल सुन तो जरा ?
सूरजमुखी: बडे उत्साह से...बोलिए न, कब से ईन्तजार था इस क्षण का !!

सूरज: मैं देखता हूँ, तुम्हारी पूरी कायनात मेरे सामने क्यों देखती रहती हैं ?
सूरजमुखी: "हे मेरे किरदार के मूल..! हे मेरे अस्तित्व के कारण..! मैं तो  आपकी पडछाई हूँ। आपकी विस्तीर्णता,आपकी तेजोमयता के अंश के रूप में मेरे छोटे-से किरदार को निभाए जा रहा हूँ।" इसीलिए हम आपको न देखें तो किसे देखें ?

सूरज: तुमको मेरे सामने देखते ही रहने में थकान महसूस नहीं होती क्या ?
सूरजमुखी: अपने में ही देखने के पागलपन में थकान कैसी ? इस अद्भुत पागलपन को हम सृष्टिवासी प्रेम कहते हैं।

सूरज: कब तक मुझे ऐसे ही देखेंगे ?
सूरजमुखी:"जब तक है जान-आप दिखाई पाओगे तब तक"

आज कुछ हटके लिखने का मन था। थोडे बहुत संवाद को पढ़कर आपके  मन का रंजन हुआ तो...आनंद !! सूरजमुखी का जवाब शायद थोडा-बहुत ठीक तो हैं ही ऐसा आपको लगा होगा। फूलों को महेंक ने के लिए तपना भी पडता हैं। अपनी कोमलता की परवाह किए बिना। रंगभरे अस्तित्व को सजाना हैं। फूलों को अपनी क्षणजिवीता की परवाह हैं क्या ?! सूरजमुखी का तो महेंकते रहने के साथ तपते सूरज को एकटक देखते रहना, उसकी गति के साथ, हरपल ताल मिलाना कोई नाहक कर्म तो नहीं होगा ! ये पारस्परिक स्वीकार-अस्वीकार की बातें, एक-दूजे के संसर्ग में बहते रहने की बातें, विशालता को धारण किए बिना अपने अंशत्व के साथ पूरे ममत्व से जीना कोई सामान्य घटना नहीं हैं।

यकीनन यही प्रेम की अवधारणा हैं, हम इसे प्राकृतिक अनुसंधान भी कह सकते हैं। कुदरत की विशुद्ध प्रेम संपदा को सूरजमुखी की भाँति महसूस करना होगा। सूरजमुखी के एक छोटे से फूल को सूरज बनने का ख्वाब हैं। अपने में तेजोमय तत्व का आनंद समाहित हैं...ऐसा कुछ सूरजमुखी की  हरकतों से दिखाई पडता हैं..!

प्रेम की हरकत संभावनाए पैदा करती हैं। अपने छोटे से किरदार को मोहकता से संवृत करने की कोशिश ही प्रेम हैं। सूरजमुखी जीवंतता से सूरज की ओर देखकर दिन की दौड पूरी करता हैं। न थके, न हारे, न निराश हुए। अपने किरदार को निभाए...!! अपने जीवन का भरपूर आनंद पाए। महान ईश्वर के  सामजंस्य के प्रेम सम्बंध को समझते चलें...!

ईश्वर की अवर्णनीय सृजनशीलता पर मैं तो कल्पना के कुछ शब्दश्वास से आनंदित हूँ। एक कोमल घटना को मैं शब्द के साज-श्रृंगार से सजाता हूँ। विचार मनमोहक बनता जाता हैं। थोड़ी-बहुत कल्पना की सहेलगाह से आनंद महसूस करता हूँ। मेरी आनंद क्षण को ब्लोग के जरिए आपके लिए सजाकर मन बडा प्रसन्न होता हैं।

आपका ThoughtBird.
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234.








2 comments:

Thanks 👏 to read blog.I'm very grateful to YOU.

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