जीवन संभावनाओं से भरी यात्रा हैं !!
हररोज नयें...छोटे छोटे चमत्कारों से भरी अद्भुत सहेलगाह!
विशाल धरती, विशाल समुद्र और विशालता का दृश्यमान अस्तित्व आकाश- आसमान...! असीमित संभावनाएँ उनके पास होती हैं, जो विशाल हैं। असीमित-अनंत होता हैं, वो ही तो ईश्वर हैं। ईश्वर अदृश्य हैं येसा हम समझते हैं लेकिन ईश्वर दृश्यमान भी हैं।
जो दृश्य हमें आनंद देता हैं, उसे देखकर ही सूकून मिलता हैं, कुछ अद्भुत महसूसी का मंजर आकारित होता हैं। दिल की धड़कने संगीत बन जाती हैं, ऐसा माहोल जहाँ भी हो वहीं ईश्वर हैं। विराट हैं वो ईश्वर ही हैं। जहां संकुचितता हैं वहां पीड़ा-दुख हैं। इसीलिए जब शब्द विचार वर्तन में,अपनी सोच में थोडी बहुत विशालता प्रकट होती हैं, तो समझो हम ईश्वर की योजना के मांझे हुए किरदारों में से हैं।
आसमान में क्या हैं ?
बस खुलेपन के सिवाय क्या हैं ?
शून्यता के अलावा वहाँ क्या हैं ?
सोचने की बात हैं। हमें बुद्धि की गहराई में जा कर सोचना पड़ेगा। आसमान की शून्यता हमें काफी कुछ समझाती हैं। शून्यता के सामने शून्य बनकर बैठने से शायद वो अपनी विशालता का परिचय हमें दें..! "आसमान हवा से परिपूर्ण हैं, आसमान प्रकाश से संवृत हैं। आसमान परीवृत्त हैं पूरी ब्रह्माण्डीय शक्ति को धारण किए। आसमान जीव-जगत के वैविध्य का साक्ष्य हैं, युगों से ईश्वरीय साक्षत्व को धरें..!" आकाश की औचित्यपूर्ण बातों से मन भर गया न ? दोस्तो, खुलेपन में, इस शून्यता में सब समाहित हैं। जिंदगी के मुसाफ़िर के रूप में उन विशालता के साथ हमें नाता कायम करना हैं। जुडना है तो शक्ति से जुड़ना हैं क्योंकि वो ही समष्टि का हित कर सकती हैं। मुझे वो मार्ग चयनित करना होगा जो मुझसे बेहतर दूसरों के हित का विचार दें...ये मार्ग चमत्कारीक हैं। यहाँ संभावनाएं निहित हैं साथ दृश्यमान घटनाएं भी विद्यमान हैं।
मनुष्य के रुप में हमारी जिंदगी विशाल आसमान के तले बीतती जा रही हैं। एक फिल्म गीत याद आ गया.."हे..नीले गगन के तले धरती का प्यार पले..येसे ही जग मेंं आती हैं सुबहे, येसे ही शाम ढले !!" कुदरत का अविश्रान्त,अविरत घटनाक्रम और हम उन के साक्ष्य पैमाने हैं। हमें कुदरत की जादुई कृपा प्राप्त करके संसार के उत्तम निमित्त बनना होगा। संभावनाए सामने हैं, बस चलते जाना हैं। वैसे तो हमारा व्यक्तिगत जीवन भी कईं चमत्कारों से भरा हैं। लेकिन "मैं कर रहा हूँ " और "मुझसे ये सब हो रहा हैं।" मेरा पुरुषार्थ,मेरा कर्म इसमें तथ्यात्मक ईश्वर की मरजी अदृश्य हो जाती हैं। हमें कोई भी अचंभित नहीं दिखाई देता।
मैं इतना समझ पाया हूं कि विराटता में विश्वरूप हैं। गीताकार योगेश्वर कृष्ण ने अपना विश्वरूप दर्शन कराकर अर्जुन की सारीं दुविधा खत्म कर दी। यहां विशाल-विराट हैं। जल-अग्नि-पवन विराट हैं, ईसीलिए शक्तिमान भी हैं।
चलें, कुछ शब्दों से आसमान से प्रार्थनीय संवाद करें !!
हे..अनंत आकाश !
तेरी असीमितता को नमन करता हूं।
तेरी विशालता के सामने सब कुछ छोटा-सा हैं।
पृथ्वी के कई गोलें तेरे ही भीतर घूम रहे हैं।
हे...अनंत आकाश !
अद्भुत संभावनाओं से भरा तेरा साम्राज्य,
युगों का तुं ही आवरण!
हमारी तो एक ही धरती हैं।
तुं तो असंख्य का आवरण बनें अडिग हैं।
तेरे आकर्षण से मुझे कुछ सिखना हैं,
थोड़े-बहुत दूर तक विस्तरीत होना हैं,
और
छोटा-सा आवरण बनना हैं।
मैं तेरा ही टुकड़ा हूँ...!
आकाशीयुं..!
चलें...खुलेपन की अद्भुत मोज के लिए..अपने छोटे-से आसमान की ओर...! जहां संभावनाए हमारी राह देख रही हैं।
Your thoughtBird.
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar.
Gujarat, INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Very nice 👍
ReplyDeleteVery nice
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