May 2024 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Friday, May 24, 2024

Pinnacle of dedication.
May 24, 2024 6 Comments

"दो चरित्रों की समर्पण पराकाष्ठा"


"देवी आप कौन हैं ?"

भगवन् मैं आपकी पत्नी हूँ।

आप कब से यहाँ हैं ?

करीबन बारह साल से..!
आप इतने साल यहाँ क्या कर रहे थे ?
बस,आप की देखभाल।
आपने अपना पत्नी का हक जताया नहीं ?
मुझे विश्वास था एक न एक दिन तो आप का कार्य समाप्त होगा ना !
आपका नाम क्या है ?
भामती !
में कई दिनों से इस ग्रंथ के नाम के बारें में सोचता था। आज मिल ही गया..!
कौन-सा नाम मिला ?
"भामती"

ये संवाद प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री वाचस्पति मिश्र और उनकी पत्नी के बीच के हैं। लग्न जीवन के बारह साल तक वाचस्पति मिश्र अपनी लेखन तंद्रा में मनमग्न थे। उनको बाहरी दुनिया में क्या हो रहा है, कुछ पता नहीं था। बारह साल पहले विवाह के बंधन में बँधी स्त्री अपने पति के कार्य के प्रति आशावंत रही। एक दिन आया जब वाचस्पति का कार्य संपन्न हुआ। उस ग्रंथ का नामकरण ही उन्होंने "भामती" कर दिया। हैं न बडी दिलचस्प बात..!

Special thanks to Rekha Misra for beautiful picture 
वाचस्पति मिश्र मिथिला के ब्राह्मण थे। जो भारत और नेपाल सीमा के निकट मधुबनी के पास अन्धराठाढी गाँव के निवासी थे। इन्होने "वैशेषिक दर्शन" के अतिरिक्त अन्य सभी पाँचो आस्तिक दर्शनों पर टीका लिखी है। उनके जीवन का वृत्तान्त बहुत कुछ नष्ट हो चुका है। ऐसा माना जाता है कि उनकी एक कृति का नाम उनकी पत्नी "भामती" के नाम पर रखा था। ये प्रसिद्ध कृति व्याकरण ग्रंथ पर आधारित थी।

घटना खत्म हुई। थोडा इतिहास का वर्णन भी..! शायद इतनी छोटी-सी घटना से आपके मन में आनंद की लहर उठी होगी। ऐसा भला होता है क्या ? किसीके मन में ऐसे प्रश्न भी उठे होंगे, किसी के मन में उत्तम भाव भी उठे होंगे। किसी के मन को शायद ये घटना स्पर्श भी न करे। मैं जो है, उसे शब्द चरित करता हूँ। किसीको क्या मिलता है, ये मैं कैसे समझ सकता हूँ ? "आनंदविश्व सहेलगाह" की वैचारिक सफर में मेरा तो ये छोटा-सा निमित्त कर्म हैं।

मुझे लगता हैं ऐसा समर्पण भाव आज भी संभव हैं। जब दो विजातीय व्यक्तिओं के बीच कोई ईश्वरीय आकर्षण कारणभूत बनता हैं। इसके साथ बस जीना हैं..! वो जैसा भी हैं, मुझे उसके साथ रहना हैं। कोई ऐसा बंधन सालों के फासले को उम्मीद में बदल देता हैं। मुझे ये भी समज में आता हैं, कोई समर्पिता स्त्री के कारण ही ये संभव होता हैं। वाकई एक स्त्री पुरुष को बहुत कुछ करने को सक्षम बना सकती हैं। तब पुरुष भी ऐसी स्त्री के लिए अपनी समग्र क्षमता को उसके सामने रखकर स्त्री की समर्पिता दृष्टि को पुरस्कृत करता हैं।

एक विश्वास, एक संबंध साथ समर्पण की अद्भुत मिसाल जब आकार सजती है तो येसी कोई घटना संभव होती हैं। पूरा जीवन समर्पित करने वाली स्त्री को पुरुष अपना सत्वशील कर्म उसके नाम करें ऐसी घटना जहां घटती हैं...वहाँ राधा-कृष्ण की बंसी के सूर प्रकट होते हैं। जीवन में ऐेसा थोडा-बहुत अहसास पालते रहें...जीना कोई अलौकिक वरदान जैसा लगेगा...निश्चितरुप से..!!

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Friday, May 17, 2024

Finding a man.
May 17, 2024 11 Comments

 The true man is revealed in

difficult times.
EPICTETUS
सच्चे इंसान का पता चलता है, मुश्किल की घड़ी में।

एपिक्टेटस हेलेनी काल के एक युनानी दार्शनिक थे। वह हिरापोलिस फ्रिगिया में सन् 50 ईस्वी में पैदा हुए थे। अपने निर्वासन तक रोम में रहे बादमें उत्तर पश्चिमी युनान के निकोपोलिस में रहने चले गए। इनके बारें में पहेले भी मेरा ब्लॉग हो चुका हैं। लेकिन वह अलग विचार पर था। एपिक्टेटस संवेदनशीलता की मर्यादा हैं, गुलामी को सहकर अपनी भावनाएं बरकरार रखना ये कोई सामान्य घटना नहीं हैं। उनके एक वाक्य में जीवन का वास्तविक दर्शन मिलता हैं।



मुश्किल की घड़ी से सबको गुजरना पडता हैं। विश्व का एक भी व्यक्ति इससे अछूता नहीं होगा। सबको छोडी-बडी तकलीफ़े झेलनी पडती हैं। पीड़ा के बिना प्रगटन व संवर्धन भी फिका होगा। संसार में सभी लोग किसी एक के सहारे या किसी की मदद या सांत्वना के बल पर उठ खडा होता हैं। साथ एक तथ्य-सत्य ये भी ध्यान में आता हैं, कि मुश्किल समय पर सब छूटते जाते हैं। सबको एक साथ भरोसा उठाता हैं। व्यक्ति अकेला पड जाता हैं। वो तूटता हैं, बिखरता हैं। खुद को खुद ही संभालने की वो घडी आती हैं। कोई अपने आप संभल जाता हैं। कोई किसी के सांत्वना भरे शब्द और साथ से संभल जाता हैं। शायद ईश्वर की ये लाज़वाब योजना होगी। इसमें कौन टीक गया कौन छूट गया..!

जो टिकता है वो सबसे करीब होगा। उसको आप से लगाव होगा। एक बेनाम रिश्ता भी उनसे होगा। संबंध की गरिमा वहाँ बरसों से  स्थापित होगी। तभी तो कोई रुकेगा। उनके पास न होंगे बहाने या न होगा कोई कारण..बस होगा साथ !! संसार में ऐसे लोग बहुत कम होते जा रहें हैं। क्यों ऐसा हो रहा है, मुझे पता नहीं। जितना आप जानते हैं ईतना ही हम जानते हैं। ईश्वर सबकुछ जानते हैं लेकिन कुछ कहते नहीं। वो देखते रहते हैं। वो हमें इस मुश्किल घड़ी से निकालेंगे भी ! हमारी आंखे खोलते हुए सिखायेंगे भी..कौन तेरे साथ खडा हैं ?

हमें जो याद रहता हैं, उनमें मुश्किल वक्त सबसे उपर याद रहता है। किसी को अपना मुश्किल वक्त याद ही नहीं वो इस ब्लोग को कृपया न पढें। ये उन लोगो के लिए बिल्कुल नहीं हैं। पीड़ा और संवेदना के बिच बहुत गहरा संबंध हैं। किसी दिन ईस विषय पर अलग ब्लोग लिखेंगे। आज तो कौन खड़ा हैं साथ मेरे..!

मुश्किल की घड़ी में जो सच को लेकर चलता हैं वो खडा रहता हैं। या अपने पर हुए उपकार याद हैं वो खड़ा रहता हैं। या फिर अपने दिल में निःस्वार्थता भरें जी रहा हैं, वो ईन्सान दूसरें की मुश्किल समझकर हरदम खड़ा रहेगा। उसको ये भी पता हैं, कभी मैं भी इस घड़ी में पड सकता हूं। मुझे भी कहीं ना कहीं, किसी न किसी के साथ की आवश्यकता होगी। मतलब पारस्परिक संबंध की गहराई निभाने की बात हैं। मुझे समझ में आता है की मुश्किलों में हौसला बनाए रखने के लिए भी एक मनचाहा साथ चाहिए। लेकिन ईसकी अपेक्षा पूरी करने के लिए कहां जाए ? ऐसा कोई रिश्ता होगा भला ?
सबके अपने-अपने रिश्ते होते हैं। और अपने-अपने खयालात..!!

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
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Tuesday, May 14, 2024

Who is soulmate ?
May 14, 2024 8 Comments

 'आत्मसाथी' एक शब्द से उपर हैं ! जीवन सफर का उत्कृष्ठ जुड़ाव व महसूसी का पड़ाव !!


शब्द की बात अनुभूति में बदलकर पढेंगे तो सहज ही आनंद मिलेगा। अंग्रेजी भाषा का एक शब्द ' सोलमेट' का हिन्दी अर्थ आत्मसाथी, जीवनसाथी, घनिष्टमित्र साथ होता हैं। "आप मेरे सोलमेट हो" ये एक बेहतरीन वाक्य हैं। इसका प्रयोग कहाँ और कैसे करना हैं आप पर छोडकर में आगे बढता हूं।



'सोलमेट' शब्द की थोडीबहुत अर्थ बातों के साथ में सबके अनुभूति विश्व को स्पर्श कर सकता हूँ तो आज का काम तमाम..! ये बडी गहराई वाला शब्द हैं।  ह्रदय में हल्की सी झनकार पैदा करनेवाला शब्द हैं। खूबसूरत ख़यालों में कुछ अनदेखे रंग भरनेवाला शब्द हैं।एक येसा गहराई वाला संबंध जो पारस्परिक समज से भी उपर अलौकिक स्वीकृति पर ज्यादा टीका हुआ हैं। अपने भीतर अनन्य भावों को प्रकट करने वाला एक संबंध..! मुझे लगता है सबको एक सोलमेट की जरूरत हैं। जीवन की अनेकानेक गतिओं में एक निरांत की अद्भुत क्षण ये संबंध से ही निर्मित होगी। 

"a close friend or romantic partner with whom one has a unique deep connection based on mutual understanding and acceptance."

सबसे बडी स्वीकृति आत्मा से जुडना ही हैं। जीवन की हर पीडा की सांत्वना, हर समस्या का समाधान और आनंद की लहरें जहाँ कभी शांत न हो ऐसा कोई संबंध सबके जीवन में हैं तो सबकुछ ठीक हैं। जीवन की प्राप्ति से गहरा संबंध हैं। और प्राप्ति की दौड बडी कठीन होती हैं। सपनें दाँव पर लगते हैं, मन मनाकर जीना पडता हैं। कुछ अनचाही स्वीकृति के बिच जीना पडता हैं। भीतर के आनंद को छिपाकर एक ओर सूरज के हवाले होना पडता हैं। कहीं सफलता से कहीं विकलता से जूझना पडता हैं। एक बिना शस्त्रों वाला युद्ध सबको पसंद न होने के बावजूद लडना पडता हैं। सुबह से श्याम तक एवं जन्म से मृत्यु तक की भागदौड..! इन सब परिस्थिति को एक 'आत्मसंबंध' हमारा सोलमेट बडी कोमलता से संभाल देता हैं। तब जीवन एक अच्छा मुकाम हांसिल करता हैं।

ईश्वर की उद्देश्यपूर्ण हरकतों में से ये सबसे हसीन हरक़त हैं। शायद ईश्वर की अपनी पसंदीदा हरकत भी यहीं होगी। मैंने शायद लिखा हैं, आपको 'शायद' हटाकर पढना अच्छा लगा..क्योंकि आपकी यादों में मैने एक हल्का सा स्पर्श कर दिया हैं। आप अपनी 'सोलमेट' ढूंढने लगे हैं। ईस ब्लोग को पढने वाली आँखों में नमी छा गई तो मेरा काम तमाम..! बाकी शब्दों से खिलवाड करने की ही मेरी औक़ात हैं। किसी की शब्द से उपर जीने की कोशिश होगी। कोई तो 'सोलमेट' से समृद्ध भी होगा !!

किसीका 'सोलमेट' बन जाना भी एक अनमोल संयोग हैं। महान ईश्वर अदृश्य होकर भी सृष्टि के सभी पारस्परिक सोलमेट पर कृपा बरसातें रहेंगे..!
हमारा प्रयास ईस दिशा में हैं क्या ?! हैं तो बधाई !! नहीं है तो शुरुआत आज से ही..!

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Friday, May 10, 2024

DIGNIFIED LOVE
May 10, 2024 8 Comments

 Excellence is created when love is dignified.

प्रेम की प्रतिष्ठा कैसे होती है ?


संसार को कृष्ण की प्राप्ति हुई ये कमाल की घटना हैं। ये ऐेसे ही नहीं हुई। कुछ तो ऐसा हुआ है कि आजतक ये कृष्ण प्रेमपुरुष बने लाखों-करोंडो दिलों में अपनी जगह बनाए हुए हैं। कृष्ण ने अपने भीतर प्रेम  प्रतिष्ठापित किया हैं। प्रेम को संवर्धित किया हैं। हम भारतवर्ष के लोग पुरातन काल से पत्थर की मूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा करते आए हैं। विश्व में ऐसी कोई कोई सभ्यता या संस्कृति नहीं हैं। हम लोग श्रद्धेय हैं। इसीलिए ये हमारा संस्कार बना हुआ हैं। जब कोई मंदिर में प्राणप्रतिष्ठित ईश्वर का स्थापन होता हैं तब वो हमारे श्रद्धा केन्द्र बन जाते हैं। मंदिर हमारा आस्था केन्द्र यूंही नहीं बना।


प्रतिष्ठा का मतलब गौरव भी हैं, स्थापन भी हैं। जो स्थापित हुआ फिर हमारे लिए गौरवान्वित हुआ। ये हमारी मान्यता हैं। तभी तो एक मंदिर में बैठे भगवान के आगे हम समर्पण करते हुए आये हैं। हमारी आस्था जहां हैं वो हमारे लिए प्रेमकेन्द्र बन जाता हैं। कोई अलौकिक शांति हमें प्राप्त होती हैं। जीवन की ऊर्जा प्राप्त होती हैं। जीवन में कुछ प्राप्ति होती है! तो हम ईश्वर की कृपा-करुणा की अनुभूति करते हैं। ये है प्रेम प्रतिष्ठान..!

अब बारी आती है हमारी..जीवंत मनुष्य के रुप में हम किसी दूसरे में ये प्रेम प्रतिष्ठान करते हैं क्या ? नहीं करते, क्यो नही कर सकते ? ये भी हमें ही सोचना होगा। प्रेम की प्रतिष्ठा मतलब चिरकालिन सभ्यता का अनुसरण हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी हमारे बीच रहना चाहते हैं। तो दृश्यरुप जीवंत मनुष्य का क्या ? शायद ये प्रतिष्ठा की परंपरा हमें यही सिखाती हैं। प्रेम की अप्रतिम प्रतिष्ठा..! व्यक्ति-व्यक्ति के बीच की प्रेमप्रतिष्ठा..! स्त्री और पुरुष के बीच की प्रतिष्ठा..! ईश्वर तो समग्र सृष्टि में प्रकृति में भी प्रेम प्रतिष्ठित दृष्टी का संचार करना चाहते हैं। सृष्टि में कुछ दमदार घटनाएं प्रेम की अद्भुत अनुभूति में ही हुई हैं। इसीलिए प्रेम अक्षय निर्माता हैं। कृष्ण कर्ता बनें इसका कारण भी प्रेम ही हैं।

कृष्ण ने अपनी जीवन लीला से हमारें सामने एक येसा जबर्दस्त उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। बांस की बांसुरी से लेकर पंछी के मोरपंख को धारण करके उन्होंने सबका गौरव किया हैं। कृष्ण की बात आती है तो समझ में आता है, उन्होंने सबके साथ समता का ही व्यवहार किया हैं। कोई मर्यादा का उल्लंघन हो तब तक वो शांत रहे,धीर रहे। अपनी प्रेमवृति का आचरण करते हुए..! 

प्रेम के बारें में लिखना भी एक आनंदरुप अनुभूति से कम नहीं हैं। पूज्य मोरारिबापु के मुँह एकबार सुना था.." प्रेम का कोई अर्थ नहीं कर सकता। प्रेम अवाच्य हैं, अव्याख्य हैं, अनिर्वचनीय हैं। प्रेम की कोई भाषा या लिपि हैं तो वो आंसु हैं। रुह से महसूस करो। प्रेम को प्रेम ही रहने दो, उसे कोई नाम न दो। हमारें मानस में लिखा हैं "राम ही केवल प्रेमप्यारा..!" प्रेम परमात्मा हैं, परमात्मा ही प्रेम हैं।" इससे अच्छी प्रेम की बात करने की मेरी क्षमता नहीं हैं।

आज प्रेम स्थापना की बात रखते हुए मैं भी प्रेममय हूँ। शायद कुछ शब्दों के जरिए ही सही मैं प्रेम जी रहा हूं। मैं प्रेम महसूस कर रहा हूँ। मेरे और आपके भीतर जो उत्कृष्ट चेतनाएं प्रकट होती है वो प्रेमवश ही संभव हुई हैं। कुछ अच्छे लम्हों ने हमारे मन में बसेरा किया है, वो सहज नहीं हैं। प्रेम में बीते हर क्षण की मूल्यता अपरंपार हैं। अपने-अपने लम्हों की याद करवाकर रुकता हूँ।

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Sunday, May 5, 2024

Today's NAVGUJARAT SAMAY
May 05, 20240 Comments

 નવગુજરાત સમય દૈનિક પત્રમાં 

"અમે વિચારપંખી" નામની મારી કૉલમ.

૫ એપ્રિલ ૨૦૨૪ રવિવાર. 



😊 Happy Sunday 😊 

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Saturday, May 4, 2024

Increase your life with inclusion.
May 04, 2024 2 Comments

 प्रेम और समावेश से ही जीवन का उत्कर्ष हैं।

When you become free from the meanness
of the mind, an indiscriminate sense of
love and inclusion arises..!
SADHGURU.

"जब तुम मन की निरर्थकता से मुक्त हो जाओगे तब अंधाधुंध
प्रेम और समावेश की भावना उत्पन्न होती है।"

जीवन कोई बेहतरीन गति प्राप्त करता हैं तो सबकी नजरों में छा जायेगा। जीवन के बारें में ईश्वर की कोई योजना होगी। ऐसे कोई मनुष्य पैदा नहीं हुआ। अरे! धरती का एक मात्र जीव भी अकारण पैदा नहीं हुआ। ईश्वर की इस योजना में विश्वास है तो जीवन में कुछ करना ही पड़ेगा।
लेकिन जीवन की ये गति कहां से प्राप्त होगी ?
उन्नत जीवन की प्राप्ति कैसे हो सकती हैं ?

Love and inclusion

कोईम्बतुर तमिलनाडु में वेलिंगिरि पर्वतों के बीच १५० एकड में फैला हुआ ईशा योग केंद्र हैं। जग्गी वासुदेव जिनको सब सद्गुरु के नाम से जानते हैं। वे ईशा योग केंद्र के स्थापक हैं। ये केंद्र स्वैच्छिक मानव सेवा संस्थान के रुप में कार्यरत हैं। सद्गुरु संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक व सामाजिक काउन्सिल के खास सलाहकार पद पर नियुक्त हैं। उन्होंने आठ से दस भाषाओं में सो से ज्यादा पुस्तक लिखे हैं। में ये बात इसीलिए बता रहा हूं की ब्लोग के टाइटल के शब्द उनके हैं।

आध्यात्मिक चेतना एवं आत्मिक आवाज से उठे हुए शब्द हमारे मन-मस्तिष्क को झकझोरते हैं। मन की निरर्थक दौड से बचना हैं, मुक्त होना हैं। तब जाके हमारे भीतर प्रेम व समावेश की भावना उत्पन्न होती हैं। प्रेममय ह्रदय की असर के बारें में और उनके परिणाम के बारें में काफी कुछ लिखा गया हैं। ये अनुभूति का भी विषय हैं।

समावेशी आयाम जीवन का एक बहतरीन मोड हैं। अपने जीवन में, अपनी पसंद-नापसंद में, अपनी दिनचर्या में, अपनी सोच में साथ ही अपने गुण-अवगुण के साथ दूसरें व्यक्ति का स्वीकार करना हैं। ये समावेशी जीवन हैं। खुद को बदलने की कोशिश ही समावेशी वर्ताव हैं। अपना जीवन एकाकी न रहकर समूह में शामिल हो उसे समावेशी जीवन कहते हैं। एक बूंद का सागर में घुलमिल जाना समावेशी का उत्तम उदाहरण हैं। हजारों-लाखों किरनें एकत्रित होकर प्रकाश व तेज का संपूर्णरुप धारण करती हैं, ये भी समावेशी घटना का उदाहरण हैं। "मैं से हम" तक की सफर को हम समावेशी जीवन गति कह सकते हैं।

समावेशी जीवन की आवाज हमारे भीतर से कायम उठती हैं। लेकिन स्वार्थवश हम उस आवाज को उठने नहीं देते। या फिर वो आवाज हमें बहार के शोर में सुनाई नहीं देती। कुछ गलती हमारी व्यक्तिगत हैं, कुछ गलती हमारें समाज में फैली संकुचितता की हैं। कुंठा में समावेश का प्रगटन होना मुमकिन नहीं। सबको उन्नति पसंद हैं। हम सब को इन्क्रिज होना हैं। उन्नत जीवन की वाहवाही सबको पसंद हैं। लेकिन जीवन उत्कर्ष की मूलभूत बातें "प्रेम व समावेशी" से हम क्यों दूर जाते हैं ?! मेरा काम बस सवाल खडा करना हैं। सब के भीतर अपने-अपने उत्तर समाहित हैं। धीरें से उस आवाज को सुनने का प्रयास करें। मजा जरूर आएगा..!

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Thursday, May 2, 2024

YAJNA is equal to Devotion.
May 02, 2024 6 Comments

 पुरातन वेदों की परिभाषा शास्त्रीय हैं।

मनुष्य जीवन की उन्नति का एकमात्र आधार हैं..वेद !!
आज वेद में की गई यज्ञ की बात करता हूँ।

वेद भारतवर्ष के अद्भुत ग्रंथ हैं। पुरातन हैं, शाश्वत है आज भी प्रस्तुत हैं। वेद के श्लोक को हम ऋचाएं कहते हैं। इसमें कही गई हरेक बात का भौगोलिक व ब्रह्मांडीय प्रमाण हैं। समग्र मानव सृष्टि के लिए सम्यक ज्ञान वेदों में ही हैं।

स्वामी दयानंद सरस्वतीजी ने " वेदों की ओर वापस" आने की बडी अह्लेक जगाई। पूरे भारत वर्ष को वेद की प्रमाणभूतता पर फिर एक बार सोचने के लिए मजबूर कर दिया। "आर्यसमाज" की स्थापना करके राष्ट्र में वेद संधान का माहौल खडा किया था। वेद प्रचारक स्वामी शान्तानन्द सरस्वती दर्शनाचार्यजी ने यज्ञ की महिमा प्रस्तुत की हैं। इसकी आज थोड़ी-बहुत झांकी करें।

यज्ञ किसे करते हैं ?
त्याग पूर्वक किया गया प्रत्येक कर्म जिसमें ईश्वर की आज्ञा का पालन होता है तथा जिस कर्म से समस्त संसार का कल्याण होता है, उसे यज्ञ कहते हैं।
यज्ञ के कितने प्रकार हैं, उसके क्या नाम हैं ?
यज्ञ दो प्रकार के हैं। १.आत्मयज्ञ २.द्रव्ययज्ञ

इन दोनों प्रकार के यज्ञ के नाम से ही हम काफी कुछ समझ सकते हैं। एक में ईश्वर के प्रति समर्पित होकर ध्यान-जप-चिंतन करने की बात हैं। दूसरें में अग्नि में घृत हवन सामग्री की आहूति दी जाती हैं।

यज्ञ और समर्पण का बडा ही गहरा संबंध हैं। शायद ईश्वर की ये सबसे पसन्दीदा बातें होंगी। एक में आत्मशुद्धि होती है, दूसरें से समष्टि की शुद्धि होती हैं। दोनों में कोमन बातें स्वाहा की हैं। खुद से ज्यादा दूसरें का विचार करना ये यज्ञ की परिभाषा हैं। प्रसन्नचित्त होकर कुछ येसा करना जिसमे "मैं" हटकर "सब" बन जाता हैं। "मैं" को स्वाहा करना और सबका कल्याण सोचना कोई सामान्य कार्य नहीं हैं। ये बडी बहादुरी भरा कार्य हैं। बात छोटी लगती हैं। मगर है बडी ताक़तवर !! मनुष्य जीवन का सबसे शानदार पहलू यज्ञ हैं। जीवन की अलौकिक सुगंध जैसा पहलू। सृष्टि के कल्याण भाव को लेकर हम "द्रव्ययज्ञ" करते हैं। इसका बार-बार का अनुसरण अपनी आंतरिक शक्ति को प्रज्वलित करता हैं। इससे एक मनुष्य के भीतर आत्मशुद्धि की कल्पना जाग्रत होती हैं। एक जीवन ही यज्ञ रुप बनता चला जाता हैं।

भारतवर्ष येसे कई यज्ञपुरुषों के चरित्रों से भरा हुआ हैं। विश्व में ये लोग नई क्रांति को जन्म देते हैं। लंबे समय तक उनकी सुवास का प्रसरण हो उठता हैं। उनका जीवन एक "यज्ञवेदी" से कम नहीं होता। एक दूसरी बात भी यज्ञ से झुडी हैं, विज्ञान के प्रमाण के साथ। संसार में कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता केवल रूपांतरित होता हैं। सूक्ष्मरुप बनकर पदार्थ वायु मंडल में समाहित हो जाता हैं।
आत्मयज्ञ में भी व्यक्ति का समष्टि के कल्याण हेतु सूक्षमातिरुप प्रकट होता हैं। एक दृश्यरूप तथ्य हैं, दूसरें में अदृश्यरुप तथ्य हैं। दोंनो यज्ञ की प्राकृतिक प्रक्रियाएं लगभग एक ही हैं।

आपको क्या लगता हैं ? मुझे तो यही लगता हैं।
आपको "आनंदविश्व सहेलगाह" का "विचारयज्ञ" समर्पित करते हुए आनंद प्रकट करता हूं।

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Bharat Ratna KARPURI THAKUR.

भारत के एक इतिहास पुरुष..! सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में...

@Mox Infotech


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