Being different is your SUPER POWER.
अलग होना ही आपकी महाशक्ति है।
ज्ञान की कोई सीमा नहीं और सिखने के लिए शौकीन बनने की जरुरत नहीं। सिखने- समझने की प्रक्रिया सहज- सरल हैं। शर्त सिर्फ इतनी हैं हमें इसकी आदत बनानी होगी। मन को थोडा-सा ट्रेइन करना पडता हैं। आज सोशल नेटवर्किंग के कारण काफी कुछ ज्ञान के माहोल में रहना सहज हो गया हैं। मैंने एक फोटोग्राफ देखा, थोडी देर उस फोटो को देखता रहा। मैं आपको ये दिखाता भी हूँ। ईस कल्पना को मूर्त रुप देनेवाले व्यक्ति को वंदन..!
बात एकदम छोटी लगती हैं। मगर है बहुत ही सुंदर और लाजवाब..! एक तरफ हम सब ईश्वर की संतान हैं, सब समान हैं। सृष्टि में जन्म के बाद शुरु होती है, कॉम्पिटिशन..! थोडा अलग दिखने की, दूसरों से कुछ विशेष होने का अहसास मन में पलता हैं। थोडे सुपरलेटिव बनने की ख्वाहिशें सबके मन में पलती हैं। और वो ख्वाहिश ही शक्ति हैं, महाशक्ति हैं।
वैसे तो ईश्वर ने सबको एक बनाया हैं फिर भी अलग बनाया हैं। ईश्वर की वो जन्मदत्त शक्ति को पहचानना हमारे वैयक्तिक प्रयास कहेलाते हैं। मनुष्य की सबसे बडी ताकत विचार हैं। उससे भी आगे उस विचार के प्रति हमारी बेहतरीन एक्शन..! एक सोच पालनी हैं, कुछ अच्छे निमित्त के लिए काम करना हैं। मन में औचित्य को पालना है। और उस दिशा में चलते रहना हैं। तब कुछ नया आकारित होगा।
कितने उदारण हैं संसार में..! कोई मूलशंकर दयानंद सरस्वती बनता हैं। कोई रामकृष्ण परमहंस बनके समाज को स्वामी विवेकानंद देता हैं। कोई स्वामी रामदास शिवाजी को संकल्पित करता हैं। कहीं से भामाशा आकर महाराणा प्रताप की ताकत में नये श्वास भर देता हैं।कोई श्रीमद् शंकराचार्य केवल उनतीस साल की आयु में भारत में सनातन हिन्दु धर्म के चार मठों की स्थापना करता हैं। कोई बलिदान देकर तो कोई सादगी के पाठ सिखाकर राष्ट्रको संजोए रखते हैं। कोई पूरा जीवन शिक्षा साधना में व्यतित करके भारतीय बंधारण को जन्म देता हैं। कोई विज्ञान-अंतरिक्ष के भेद को उकेरता हैं, कोई मिसाइल मेन बनता हैं। कोई देश के जरुरीयात मंदों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करता हैं।
९ जून २०२४ के आज के दिन नरेन्द्रभाई मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्रित्व धारण कर रहे हैं। ये घटना भी कुछ अलगता का परिणाम स्वरुप हैं। राष्ट्र को नईं ऊँचाई पर ले जाने की संकल्पबद्धता के कारण निरंतरता कायम हुई हैं। ये सृष्टि के क्रम का ही एक भाग हैं। कुछ अलग शक्ति का संचरण..!
कीतना लिखें ? कहां से शुरु करें ? कहां खत्म करें ? किसके बारें में लिखें ? युगों से चली आ रही मानवीय परंपरा और उसके साथ कुछ नया स्थापित होने वाली असंख्य घटनाएँ..!
सब पर घोर करना हैं, फिर खुद पे यकीन करना हैं। अपनी भी छोटी-सी पहचान के लिए खुद ही निकल पडना हैं। किसी के रोकने से भला कोई रुका हैं ? बस, भीतर की आवाज को सुनना हैं। और चल देना हैं। कारवां के बीच एक उम्मीद बनकर अंकुरित होना हैं। नये रंग की खोज में..! किसीके चेहरें की मुस्कान बनने के ख्वाब सजाते हुए। महाशक्ति की ओर कदम उठाए जाना हैं।
परवाह परवद्दीगार की करना हैं क्योंकी हमसे सबसे बडी उम्मीद वो ही बनाए बैठे हैं।
बस इतना ही..!
आपका ThoughtBird.🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
+919428312234.
Good thought bro
ReplyDeleteGo ahead
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