February 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Monday, February 24, 2025

अद्भुत महाकुंभ २०२५
February 24, 2025 6 Comments

शाश्वत परंपरा का संयोग...!

भारत की सनातन हिन्दु धरोहर का साक्ष्य..!

माँ गंगा का अप्रतिम दुलार का उत्सव...महाकुंभ।

पंडित जगन्नाथ की उत्तम संस्कृत काव्य रचना 'गंगालहरी' के कुछ श्लोक पढ़ते हुए महाकुंभ की साक्ष्य अनुभूति करें...!

महाकुंभ 2025

पंडित जगन्नाथ सत्रहवीं सदी के एक प्रमुख भारतीय कवि, आलोचक व साहित्यशास्त्रकार एवं वैयाकरण थे। जगन्नाथ पंडित का जन्म एक तैलंग ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पेरुभट्ट था। जगन्नाथ ने अपनी शिक्षा अपने विद्वान पिता से प्राप्त की और जल्द ही प्रतिभाशाली छात्र के रूप में उभरे। उन्होंने विभिन्न विषयों का अध्ययन किया, जिसमें साहित्य, दर्शन और व्याकरण शामिल थे।

जगन्नाथ पंडितने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें रसगंगाधर, चित्रमीमांसाखंडन प्रमुख हैं। रसगंगाधर उनका सबसे प्रसिद्ध काम है, जो साहित्यशास्त्र का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें उन्होंने रस, भाव, और अलंकार जैसे विभिन्न साहित्यिक तत्वों का वर्णन किया है।

महैश्वर्यं लीला जनित जगतः "जगतउत्पन्ना" माँ गंगा को वंदन करते हुए।
"सुखं शेषे शेतां हरिः अविरतं नृत्यतु हरः।
सवित्री कामानां यदि जगति जागर्ति भवती॥"

भावार्थ: "यदि आप जगत में जागृत हैं और सबकी कामनाएँ पूर्ण कर रही हैं, तो भले ही ब्रह्मा समाधि में लीन रहें, विष्णु शेषनाग पर शयन करें, और शिव निरंतर नृत्य करें।

"सकल-कल्मष-ध्वंसिनी सुकृत-राशि-प्रवर्षिणी।
हिमाद्रि-हृदयागार-प्रकाशिनी शशांक-शेखर॥"

भावार्थ : "समस्त पापों का नाश करने वाली, पुण्यों की वर्षा करने वाली, हिमालय के हृदय में निवास करने वाली, चंद्रमा को धारण करने वाले भगवान शंकर की जटाओं में विहार करने वाली...माँ गंगा जीवों पर कृपा करने वाली और उन्हें भवसागर से पार लगानेवाली हैं। ऐसी ब्रह्मस्वरूपा भगवती भागीरथी गंगा माता पुण्यात्माओं द्वारा सेवित, पूजित, वंदित और अभिनंदित हैं।

माँ गंगा की इससे बेहतर बात मैं कैसे कर सकता हूँ। बस इतना कह सकता हूं। गंगा अनुभूति हैं..गंगा शीतल गोद हैं ! गंगा अलौकिक स्पर्श हैं, गंगा आशिर्वाद हैं। गंगा प्राण में चैतन्य का संचार हैं। गंगा उद्धार है, गंगा संसार की माँ हैं।

माँ गंगा के संगम तट पर सनातन संस्कृति का महा उत्सव होता हैं। उसे हम कुंभ के नाम से जानते हैं। गंगा-यमुना और लुप्त सरस्वती का संगम स्थान प्रयागराज हैं। इस वर्ष 144 बरस के बाद दिव्यकुंभ लगा हैं। ऐसा एक मत इसे विशेष बना रहा हैं। मकरसंक्रांति से लेकर माघ मास की महाशिवरात्रि तक चलने वाला ये महाकुंभ भारत की आध्यात्मिक धरोहर को प्रस्तुत करता हैं।

युगों से गंगा स्नान की परंपरा चली आ रही हैं। आज सोशल मिडिया एवं यातायात के साधन की सुविधा बढ़ी हैं। सहज पर्याप्तता के कारण कुंभ में लोगों की भीड बढ़ी है। व्यवस्था की आवश्यकता, भीड का नियंत्रण एवं मार्ग प्रबंधन जरुरी हो गया हैं। प्रशासन इसके उपर खरा उतरा या कुंभ का मनचाहा व्यवस्थापन हुआ इसके बारें में कुंभ के साक्षी अच्छा बयान दे सकते हैं।

धार्मिक आस्था को बढावा देना एक बात हैं। लेकिन धार्मिक आस्था में जीना दूसरी बात हैं। आध्यात्मिकता वृत्ति हैं, संवेदनात्मक अनुभूति हैं। उसको न फैलाया जाता है न रोका जा सकता हैं। इसके बारें में मूर्खता पूर्ण व्यवहार न करें तो ईश्वर खुश रहेंगे।

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Tuesday, February 4, 2025

Victory of Vasant..!
February 04, 2025 4 Comments

वसंत भारत की प्रसिद्ध छह ऋतुओं में से एक हैं। भारतीय वांग्मय के मनीषियों ने वसंत को ऋतुराज कहकर सम्मान दिया है। लेकिन महाकवि कालिदास की बात ही निराली हैं। महाकवि से प्रसिद्ध कालिदास प्रकृति वर्णन के संवेदनशील कवि थे। प्रकृति की वस्तुतः प्रस्तुति को हम 'छायावाद' से जानते हैं। छाया प्रकृति की आत्मा होती हैं। कालिदासजी 'छायावाद' के महारथी थे।


महाकवि की लगभग सभी कृतिय़ों में वसंत का अद्भुत वर्णन देखने को मिलता हैं। वसंत में प्रकृति की रमणीयता खिल उठती हैं। सृष्टि के सभी जीवों को तरबतर करती वसंत अपने साम्राज्य को स्थापित करती हैं। कवि कालिदास का प्रकृति काव्य 'ऋतुसंहार' का एक सुंदर श्लोक लिखते हुए मैं भी आनंदित हूँ।

प्रफुल्लचूतांकुरतीक्ष्णसायको द्विरेफमाला विलसद्वनुर्गुण:।
मनांसिमेत्तं सुरतप्रसंगिऩां वसन्तयोद्धा समुपागत: प्रिये ।। (६.१ ऋतुसंहार)

"हे प्रिय ! आम्र की मंजरियों के तीखे बाण के साथ तथा अपने पुष्पधनुष पर भ्रमर-पंक्तियों की प्रत्यंचा चढ़ाकर सुरतप्रेमी रसिकों के हृदय बेधने के लिए वसंत योद्धा की तरह आ पहुंचा हैं।"

                             Picture by Wikipedia. Artwork by Raja Ravi Varma 

यहां वसंत को योद्धा कहा गया हैं। लेकिन ये योद्धा कोई युद्ध के लिए नहीं हैं। हृदय को बंधक बनानेवाला युद्ध हैं। पुष्पधनुष के ऊपर हारबंध भ्रमरों की प्रत्यंचा की कल्पना कालिदास ही कर सकते हैं। 'कुमारसंभवम्' में शिव को मोहित करने के लिए स्वयं कामदेव वसंत का माहौल खड़ा करते हैं। 'अभिज्ञानशाकुन्तल' तो पूरा नाटक होते हुए भी 'प्रकृतिकाव्य' बन गया हैं। कविवर कालिदासजी की ये बेहरिन कल्पनाएं हैं। प्रकृति के संमोहन को महसूस करते हुए उत्तम रुपको का प्रयोग करते हैं। संस्कृत काव्यशास्त्र में उपमा प्रयोजना तो कालिदास की ही, इसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। इसी कारण 'उपमा कालिदास्य' का बहुमान कालिदास को मिला था। कालिदास हमारी देवभाषा संस्कृत का गौरव हैं।

वसंत सृष्टि में नवसंचार- नवसंचरण- नवोत्साह के लिए प्रगट होती हैं। प्रकृति के रंगो की बौछार हमारी नज़र में भी छा जाती हैं। वातावरण में अनोखी खुश्बू और तरुवर का नवपल्लवन, फूलों की तो बात ही क्या करें ? धरती में रंगो का उत्सव छाने लगता हैं। यह परिवर्तन सब देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। कोई पागलपन से इस नूतन बदलाव में नाचते हुए अपने जीवन को आनंद से भर देता हैं। कोई इसके स्पर्श से काफ़ी दूर रहता हैं। अपने जीवन को अपने ही घोंसले में बंद करते हुए..! अपने प्रगटन को दबाकर या फिर अपने जीवन की संकुचित गोलाकार दुनिया सजाता हुआ..! उस में वो कायम अकेला ही रहता हैं।

बसंत तो मिलन हैं, बसंत एकाकार होने का अवसर हैं। बसंत की सदाबहार संवृत्ति में जीना होगा। नये पन्नों को प्यार से सहलाना होगा। पुष्पो की रंगभरी दुनिया में कूद पड़ना होगा। वसंत को दिलों-जान से अंगीकृत करना होगा। बसंत ही कुदरत के दृश्यरुप आशिर्वाद हैं। जो कोई इन्सान वसंत की मदहोशी को महसूस कर सकता है, वो ईश्वर की अपार शक्ति का स्वीकार करते हुए मस्त रहेगा। जो कुछ हो रहा हैं, उसका सहज स्वीकार करता रहेगा। अपनी खुशियाँ का आनंद ले पाएगा और पीड़ाओं का समाधान ढूँढ पाएगा।

वसंत के आक्रमण जैसा माहौल खड़ा हो जाता हैं। कालिदास ने इसी कारण वसंत को योद्धा कहा हैं। लेकिन इस आक्रमण में परास्त होना ही आनंद हैं। यहाँ 'प्रकृतिजय' हैं, 'वसंतविजय' हैं। इनमें हारने की हरक़त हमें काफ़ी कुछ दे सकती हैं। हैं ना कालिदासजी !?

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Bharat Ratna KARPURI THAKUR.

भारत के एक इतिहास पुरुष..! सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में...

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