"In a war of ego, the loser always wins" BUDDHA
"अहंकार के युद्ध में हारने वाला हमेशा जीतता है।" - भगवान बुद्धजीवन की कला बड़ी ही पेचीदी हैं। जन्म से लेकर के मृत्यु तक जीवन जीना और समझना ही चलता रहता हैं। रात-दिन के समय चक्र में जीना हैं। संसार सागर के खारेपन को पीना हैं। कहीं माँ गंगा की शीतलता धारा को महसूस करना हैं। कभी खुशी कभी गम की तरह जीवन बहता ही रहता हैं। सृष्टि के प्राकृतिक व सामाजिक पहलूओं के साथ जीवन का तालमेल करते जाना हैं।
जन्म मिला है, जीवन मिला है तो गुजरेगा भी सही...! लेकिन जिसको जीवन का अर्थ समझ में आता हैं। कुछ करने की उम्मीद उनके मन में पलती हैं। या नियंता के निमित्त उनको वैसे ही मार्ग पर ले जाते हैं। या ईश्वर की विशेष मर्ज़ी के तहत कुछ अनूठा व्यक्तित्व आकारित होता हैं। कुछ विशिष्ट कार्य संभावित होते हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जो संसार को मार्गदर्शित करता हैं। जिसे युगपुरुष का नाम देकर हम उनका बहुमान करते हैं।
अब, जिसको जीवन के बारें में ज्यादा कुछ समझना हैं। अपने नियत कर्मो को पहचान कर समाज में कुछ अच्छा देना हैं उसे आगे पढना चाहिए। बाकी टाइम पास के लिए कईं ओर भी काम हैं। शेखचल्ली या उनका भी बाप बनना हैं, वो इस मार्ग पर चल सकते हैं।
भगवान बुद्ध के जीवन की गति कुछ इस प्रकार की थी। उनको जीवन के मर्म को पकडना था। गहराई से जीवन को समझना था। सत्य और असत्य क्या है उसका भेद जानना था। जीवन और मृत्यु के रहस्यो को समझना था। ऐसे अनूठे मार्ग पर जिसे भी चलना है, उसे सब से मिलना होगा। उनको सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करना होगा। सद्गुण आवश्यकता की महत्ता को स्वीकार करना होगा। और भगवान बुद्ध ऐसे ही जीये है। हमें उपदेश करते हैं, मतलब जीवन का अनुभव बताते हैं। उन्होंने नियंत्रित जीवन जीया हैं। त्याग और समर्पण को महसूस किया हैं। जीवन की भरपूर उर्जा के लिए तप एवं साधना हैं।
वो परम प्राप्ति के वाहक भगवान बुद्ध अपनी जीवन प्रज्ञा से कहते हैं; हमें अहंकार के युद्ध में बख़ूबी भाग लेना हैं। लेकिन अहंकार के सामने तो हार ही जाना हैं। किसी प्रकार अहंकारी जीत जाता हैं। उसके सामने वाला हारता हैं। इस दोनों स्थिति में बहुत फर्क हैं। वैसे तो अहंकारी का विनाश ही होता हैं। एक व्यक्ति के रुप में हमें ego पालने से बचना होगा। क्योंकि उससे हमारें भीतर का मनुष्य कुंठित हो जाएगा। ईश्वर की दी हुई शक्तियाँ समाप्त हो जायेगी। हम मनुष्य के रुप में "कुछ करना चाहते हैं" ऐसे कईं संकल्पो से दूर ही रहेंगे।
अहंकार दूसरें को परास्त करने की विचित्र कला हैं। उससे व्यक्ति खुद ही खत्म हो जाएगा। इतिहास के पन्नों में काफी कुछ भरा पड़ा हैं। अहंकार में किसका सर्वनाश हुआ और अहंकारीयों से हारकर कितनों ने अपने मुकाम को बहतरीन अंजाम दिया हैं। इतिहास गवाह हैं, चांद और सूरज भी कुदरत की ओर से सब देख रहे हैं। मिटाने वालो की हस्ती खूद ही मिट गई हैं। अहंकारीयों के अपमान को झेलते हुए कईं नस्ल आज भी जिंदा हैं। तुच्छता के मार से आज भी कईं संवर गए हैं। और एक तरफ सबकुछ अपने हाथ में होने के बावजूद लोग परेशान हैं। कईं लोग अपने भीतर की झीलमिलाहट से दूर जा रहे हैं।
क्योंकि हारना भी जरुरी है...!?
और जीतना ही है तो...सबको अपनी ज्ञाति-जाति-धर्म का अहंकार मुबारक !!
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Aravalli, Gujarat state
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234.
ઉત્કૃષ્ટ વિચાર
ReplyDeleteવિજયનો આનંદ ટાઇટલ હેઠળ ખૂબ ગહન વિચારની રજુઆત કરી છે
ReplyDeleteઆભાર જી
ReplyDeleteડૉક્ટર અભિનંદન.
ReplyDeleteબુદ્ધને ભૌતિક જ્ઞાન પ્રાપ્ત થયું તે ક્ષણે તે ચેતનાના ઉર્ધ્વ સ્તરોમાં છે. અતિ મનસ અને અધિ મનસ સ્થિતિમાં હશે અને તે વખતે જ્ઞાન અને બોધ ની સ્કૂરણા સ્વયં થાય છે અને તે ચિદાનંદરૂપ બની જાય છે.
ReplyDeleteડૉ. હરિભાઈ પટેલ, પ્રસિદ્ધ ડેન્ટિસ્ટ મોડાસા. અને વિચારક.
અહંકાર શબ્દને બહુ સરળ રીતે સમજાવ્યો છે, સાથે બૌદ્ધ અને આનંદનાં દ્રષ્ટાંત સાથે સાથે તમે તમારી અલગ જ લખાણ શૈલીમાં સમજૂતી આપી છે.
ReplyDeletegreat thought
ReplyDeleteGood thought sirji
ReplyDeleteDr.Haribhai sir and my Young writer Nikhilbhai Chaudhary...Thank you very much.
ReplyDeleteThe Art of Winning
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