The nation is only nation. - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Monday, August 14, 2023

The nation is only nation.

 

चिति का चैतन्य एवं विराट की शक्ति...!

विश्व में सबसे सुंदर राष्ट्र की परिकल्पना भारतवर्ष के पास ही हैं।

मानवसमाज की एक विराट स्वरूप में कल्पना एवं चिति यानि राष्ट्रमय चित्त की कल्पना...हमारे प्राचीन वेद ऋग्वेद में हैं। पंडित दीनदयालजी ने "एकात्म मानवदर्शन" की मानवीय परिकल्पना राष्ट्र के सामने रखी। राष्ट्र के प्रति एक नया अध्याय जुड गया। राष्ट के लिए भावनात्मकता एवं संवेदन से झुडाव महसूस होने लगा। राष्ट्र के प्रति चैतन्य का भाव पैदा हुआ। पंडित दीनदयाल के इस क्रांत विचार के बीज वेदों में हैं। 

"सहस्रशीर्षा पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वा, त्यतिष्ठद्शांगुलम्।।" (ऋग्वेद १०/९०/१,१२)

विराट पुरुष के हजार सिर हैं, हजार आँखें हैं, हजार पैर हैं। संपूर्ण पृथ्वी को चारों और से व्याप्त कर वह पुरुष दशांगुल भाग पर स्थित हो गया। विराट पुरुष कैसा हैं ? ज्ञानवान पुरुष, शूरवीर पुरुष, उद्यमी पुरुष एवं सेवापरायण पुरुष...ये हमारे राष्ट्र के प्रमुख अंग हैं। इन्हीं चार अंगो से राष्ट्र में चैतन्य का पादुर्भाव हुआ हैं। मानव समाजरूपी विराट पुरुष समाज में ज्ञान-विज्ञान का विस्तार करने वाला हैं। दुर्जनों से राष्ट्र की रक्षा करने वाला शूरवीर हैं। समाज का उत्पादों से भरण-पोषण करने वाला उद्यमीपुरुष हैं। समाज में सेवा एवं सहयोग करने वाला सेवापरायण पुरुष हैं।
(संदर्भ एकात्म मानवदर्शन पं. दीनदयाल उपाध्याय)

व्यक्ति या राष्ट्र जब अपने चित्त में विराटता की अनुभूति करता है, तब उसे अपनी अपरिमित शक्ति का साक्षात्कार होता हैं। चिति की अद्भुत परिकल्पना इस विचार में हैं। चिति को न तोडा जाता  हैं, न विराट को बांटा जा सकता हैं। समाज की चिति राष्ट्र की चिति उसकी संस्कृति में व्यक्त हैं, तथा एकात्मता विराट में...! भारत विराट हैं एवं भारत सांस्कृतिक हैं। भारत सत्य हैं, भारत सत्व हैं। हमारे भारत का चैतन्य अमरजीवि हैं। हमारी चिरकालिन वेद परंपरा सम्यक दृष्टी से हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। भारतभूमि में जन्म मनुष्य के लिए इसी कारण गौरव रुप हैं।



आज भारत का स्वातंत्र्य पर्व हैं। स्वीकार और सहयोग की हमारी संस्कृति का दुरुपयोग होता गया। परतंत्रता का ये मूलभूत कारण हैं। हम समावेशी हैं। हमारी स्वीकृति की संस्कृति हैं। इससे दूर हटे तो व्यक्ति और राष्ट्र के लिए बडी विपदा खडी हो सकती हैं। शतकों की परतंत्रता को झेल कर बार-बार आजाद हुए। इतिहास के दृष्टांत नहीं देता क्योंकि हमसब इन तवारीखों से भलीभांति वाकिफ हैं। किन सालों में किसके द्वारा स्वतंत्रता के आंदोलन चलाए गए। बलिदानों की परंपरा से हम अवगत हैं। तरुणाई की शहादतें हमारें रोंगटे खडे करने पर्याप्त हैं। मेरा राष्ट्र ओर मेरा सबकुछ राष्ट्र के लिए हैं...इस चैतन्य का इस धरा पर प्रकट होना सहज हैं। इस राष्ट्र के मनुष्य के रूप में ये संस्कार हरकोई की रगो में व्याप्त हैं। इसे जगाने वालों को शत शत नमन हैं।

"आनंदविश्व सहेलगाह" में आज हमारे महान भारत, प्राचीन भारत की बात रखकर कर्तृत्व के आनंद से मस्त...! शब्द विचार थोड़े भारी हो गये हैं, 
क्यों भारी हुए पता हैं ? भारत की सोच बहुत भारी हैं, भारत की सोच कतई हल्की नहीं हैं। हल्केपन की तुच्छता वैयक्तिक होगी। राष्ट्र में भेद-भाव या स्वीकार-अस्वीकार की विचित्रता इसी हल्केपन की सोच से पैदा हुई हैं। भारत कल्याण का उद्भव हैं, भारत सन्मार्ग का आधार हैं। मानवमन का श्रद्धेय प्रकटीकरण भारत हैं। हमसब ईस महान भारत का चैतन्य पूर्ण हिस्सा हैं। हमें ईस देवभूमि को किस नजरिए से देखना है...हमें ही तय करना होगा !!

नमोस्तु भारतदेवभ्यो !!
स्वातंत्र्य पर्व की शुभकामना के साथ 🫡

आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav ✍️
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA
dr.dr.brij59@gmail.com
09428312234

1 comment:

Thanks 👏 to read blog.I'm very grateful to YOU.

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  People who notice your silence, Care about you. जो लोग आपके मौन पर ध्यान देते हैं, वे आपकी परवाह करते हैं। एक गीत की कुछ पंक्तियां रखता ...

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