Thought about Humanity and Our inner Conection.
मानवता और हमारे आंतरिक संबंध के बारे में विचार..!विचार की कृपणता या दारिद्रय बहुत ही विचित्र स्थिति हैं। आज की भागदौड भरी जिंदगी में हम काफ़ी कुछ पा रहे हैं। भौतिक निर्भरता का ये दौर है, समय की मांग के अनुसार इसका स्वीकार भी हैं। जिंदगी थोड़ी बहुत ज्यादा गतिमान हैं इसलिए...! मगर फिर भी हमें कुछ ओर ही पर्ल आनंदित करते हैं। कभी कभार अकेलेपन का साया ठीक लगता हैं कभी कभार समुदाय में जीने का मन करता हैं। भौतिक आयामों के बीच घुटन सी महसूस होती हैं। हम भीतरी संबंध के प्रति ऐसे ही ढलने लगते हैं। ये हमारी मनुष्य होने की पहेली और आख़री निशानी हैं। मानवता का एक मतलब हमें शांतिपूर्वक साथ में रहना हैं। हमें किसी दूसरे का सहवास चाहिए। यहीं मनुष्य होने की भीतरी चेतना हैं।
Special thanks to SADGURU for quate
सद्गुरु का इस विचार को लेकर एक बहुत ही सुंदर क्वाॅट हैं; "When your Humanity is in full flow, you reach out to life around you. This is not morality this is the nature of the Human Heart. जब आपकी मानवता पूर्ण प्रवाह में होती है, तो आप अपने आस-पास के जीवन तक पहुँचते हैं। यह नैतिकता नहीं है - यह मानव हृदय का स्वभाव है।" मुझे इस बात का जिक्र पढ़ते ही आदिकाल याद आ गया। पुरातन काल में आदिमानव प्राणी सहज जीवन व्यतीत करता था। ऐसी कौन-सी घटना हुई होगी जो उनको सोचने के लिए मजबूर कर गई होगी..!? एक सवाल मन में खडा हुआ। थोड़ा बहुत सोचने पर ख्याल आया जब पहेली बार उसको पता चला होगा "मैं कैसा दिखता हूँ ?"
तब शायद पहलीबार एक अचंभित घटना आकारित हुई होगी। और जब उस मानव ने अपने जैसा कोई चेहरा देखा होगा तब दूसरी एक अचंभित घटना घटित हुई होगी। इस साम्यता को उसने नज़रअंदाज नहीं कीया होगा। उसको उसकी मानव सहज वृत्ति ने झकझोर दिया होगा। इसे मैं 'नेचर ओफ द ह्युमन हार्ट' कहता हूं। इसे मैं मानवता की प्रज्वलन घड़ी कहता हूं। तब शायद झुंड में रहेना का विचार संभव हुआ होगा। यहीं से संघ जीवन का प्रारंभ भी हुआ होगा। मैं प्रामाणिक रुप से स्वीकार करता हूं कि मेरी कल्पना को पंख देनेवाला आदिकाल हैं। आदिकाल के सत्य के साथ हम आज भी हैं। उस वक्त मानव को दूसरे मानव की संगत पसंद थी। आज भी हम संगत-साथ-सहवास के लिए साथी ढूँढ रहे हैं। अकेले रहना ईन्सान की फ़ितरत ही नहीं। सद्गुरु कहते हैं : "मानवता के पूर्ण प्रवाह में हमें बहना हैं, सचमुच हम जीवन को प्राप्त कर सकेंगे। वैसे तो यहीं हमारा भीतरी स्वभाव हैं। हमारे हृदय की असलियत भी..!
Morality उचित-अनुचित विचार के सिद्घांत हैं उसे हम नैतिकता भी कहते आये हैं। शायद ये हमारी मानवीय संबंध और सभ्यता से प्रकट हुई परंपरागत व्यवस्था व्यापार हैं।
Nature यानि प्रकृति, ब्रह्मांड में स्थित समस्त पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि और उसमें होने वाली सब क्रिया, जो मानव-निर्मित या प्रेरित नहीं हैं। एक दूसरे अर्थ में किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषताएँ या उसका स्वभाव जिसे हम 'नेचर' कहते हैं।
अब, सद्गुरुजी की बात समझ में आ जाती हैं। वैसे तो सद्गुरु को समझना कठिन हैं। फिर भी उनको समझने के लिए पूर्वग्रह रहित मस्तिष्क होना आवश्यक हैं। बाद में देखिए जीवन के काफी-कुछ पहलू सहज ही समझ में आएगें। मुझे ऐसा प्रतीत होता हैं।
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA
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