What is krishna ?
Care and Love.
Who is Krishna ?Friend, philosopher and guide.
कृष्ण जन्मोत्सव की ढेर सारी बधाई...!
विश्व का एकमात्र चरित्र जो युगों से मानवमन के साथ अनुस्यूत हैं। सभी विपरितों का समाधान, गतिसत्वं का आधार कृष्ण हैं। आनंद और प्रेम की दुनिया का राजकुमार...अमर युवराज !!
सारें संसार में कृष्ण इतने व्याप्त हैं कि उनके बारें में कौन-सी बात नई होगी ? रिश्ते-नातें, प्रेम-संबंध, नीति-राजनीति, युद्ध-संधि, जीवन मृत्यु और नृत्य-संगीत कृष्ण सभी जगह उपस्थित हैं। विश्व की सभी कलाओं में कृष्ण हैं, फिलसूफी में कृष्ण हैं। आनंद और शोक में कृष्ण हैं। जीवन के आनंद में कृष्ण हैं।
आज कृष्ण के बाल्यकाल की एक ही बात रखकर कृष्ण की विराटता की थोडी-सी बात रखता हूं। "यमुना के किनारें गोकुल के छोटे ग्वाला गेडी-दडें का खेल खेल रहे हैं। बाल अपने खेल में मग्न हैं। इतने में गेंद यानि दडा यमुना के जल में जा गिरा। नदी के गहरें जल में जाना मना था। और पानी की गहराई में एक बडा कालिनाग हैं, इसका डर भी था। फिर भी जिसके कारण गेंद नदी में गिरी हो उसका जाना भी तय था। अब क्या ? कृष्ण को यमुना के जल में से गेंद निकालनी होंगी। इसके बाद क्या हुआ ? नरसिंह का काव्य "जल कमल छोडी जा ने बाला" पढ लेना.. !!
कृष्ण कुमार हैं, समस्या से ज्ञात हैं। लेकिन दायित्व का अनुसरण और विपदा से भिडने का सामर्थ्य कृष्ण में हैं। मैने कहीं पढा था, कृष्ण ने जानबूझ कर गेंद यमुना में फेंकी थी। शायद ये बात सच थी तो...कृष्ण का बाल्यावस्था को निडरता देने का ये प्रयास था। खुद समर्थ तब है, जब वो दूसरों के डर को भगाएं। वैयक्तिक शक्ति तो पहलवान में भी होती हैं। कृष्ण अद्भुत इसी कारण हैं। दूसरों की फिकर भी इसमें हैं। कृष्ण स्वयं पराक्रमित थे, उनको ये पता था। लेकिन दूसरें ग्वालों को अपने-अपने पराक्रम का ज्ञान नहीं था, डर उसका था। उस डर को भगाना था। कृष्ण स्वयं स्थापित होते हैं, दूसरों को स्थापित करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। इसीलिए कृष्ण का अमरत्व अक्षुण्ण हैं। आज भी भारतवर्ष कृष्ण जन्मोत्सव मना रहा हैं। विश्व भी..."हरे राम हरे कृष्णा..!" की गूंज सुनाई पड़ती हैं।
इसी यमुना के किनारे सामर्थ्यवान कृष्ण नृत्य भी करते हैं। पूरा गोकुल उनकी बंसी का दिवाना था। गोप के साथ गोपिका भी उनके"रास" की दिवानी थी। पराक्रम भी प्रेममय बन जाता था कृष्ण के नृत्य संगीत में...राधा के साथ का एकत्व प्रकट हो जाता था..? प्रेममय कृष्ण के द्वारा क्या कुछ प्रकट नहीं होता !! दूसरों की चिंता करने वाला नखशिख, बाह्यरूप और भीतरी प्रेममय ही होता हैं। सारें संसार में कृष्ण ही एकमात्र चमत्कार हैं कि, जिसके पास "पराक्रम और प्रेम" की अद्भुत एकरुपता हैं। और अपने लिए नहीं सबके लिए...सबको समर्थ बनाना, सभी को प्रेममय जीना सिखाना हैं..! यही कृष्ण की सहज भावनात्मकता हैं।
राधा-कृष्ण के प्रेममय एकत्व का संदेश हैं...समर्पण !! समर्पण में अपना कुछ बचता ही नहीं। मेरा गीत, मेरा संगीत, मेरा नृत्य, मेरा आनंद औेर पराक्रम अन्य के लिए हैं। इसी कारण कृष्ण अनन्य बन जाते हैं। समस्त का सामंजस्य स्थापित करने की जीवनचर्या का नाम "राधाकृष्ण" हैं। मनुष्य जीवन का उर्ध्वगामी गतिस्त्वं राधाकृष्ण के प्रेम सम्बंध को महसूस करने में ही हैं।
बस करता हूं...मेरे भीतर का "ममैवंशों जीवलोके" कहने वाला कृष्ण जागृत हो जाए...!!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat.
INDIA.
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Nice dr sir
ReplyDeleteNam lakho to Good
DeleteJay shree Krishna
ReplyDeleteसप्रेम सादर प्रणाम नमस्कार साधुवाद
ReplyDeleteबालकृष्ण,बांके बिहारी (विहारी) योगेश्वर श्रीकृष्ण रणछोड़ द्वारिकापुरी के राजा, सुदामा के परम मित्र-सखा द्रौपदी के सखा-भाई! अर्जुन (भारतवर्ष)के मार्गदर्शक, ज्ञान और विज्ञान मय स्वरूप में स्थित गीता में कहा हैं, मैं और मेरा परमधाम जो ज्ञान और विज्ञान मय स्वरूप में स्थित है! आज भी श्री कृष्ण के स्वरूप दर्शन और लीला, ज्ञान और विज्ञान मय स्वरूप से अज्ञानता वश भारतवर्ष विषमताओं का शिकार हो रहा है यह हमारी सबसे बड़ी चुनौती हैं कि हम एक महापुरुष को अवतारी पुरुष को एक ही क्षेत्र का एक ही संप्रदाय का एक ही धर्म का,एक ही समुदाय का उद्धारक उपदेशक मार्गदर्शक मान रहे हैं जब की महापुरुष,अवतारी पुरुष,युग पुरुष क्षेत्रों की, युगों की मर्यादा ओसे परे हैं,युग की आवश्यकताओका, सभ्यताओं का संस्क्रुतिओका पालन, पोषण संरक्षण करने हेतु अवतरित होने वाली शक्ति को एक युग से,भाषा भेष और धर्म से जुडना सबसे बड़ी मर्यादा है,जो मर्यादाओं का निर्वहन श्री राम से हुआ था यह भी युग की आवश्यकता थी तो मर्यादा ओका हरण भी युग की आवश्यकता थी ऐसे युग पुरुष को वैश्विक स्तर पर लाना हमारी जिम्मेदारी हैं जैसे एक खोज विज्ञान का आविष्कार किसी विशेष विचारधारा से तादात्म्य नही रखते पुरी मानव सभ्यता के लिए सुख का उम्मीदों का दास्तावेज हैं ठीक वैसे ही ऐसे महापुरुषोको, विचार को वैश्विक मंच प्लेटफार्म मिले यहां से सुख व शांति का चलन क़ायम होता है,खुब खुब अभिनंदन प्रणाम आपके प्रयास को धन्यवाद!!
बहुत आनंद हुआ। आपने आपके विचार से बड़ी सुंदर बातें लिखी हैं। ब्लोग पढ़ने और इतनी बड़ी काॅमेन्ट के लिए भार प्रकट करता हूं। Thanks a lot.
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