Meera is not poet..she is a devotee.
मीरा कोई कवयित्री नहीं हैं...भक्त हैं, समर्पिता हैं।कृष्ण के पागल प्रेम में कौन नहीं हैं। हजारों सालों के बाद भी लोगों का कृष्ण के प्रति आकर्षण बढता ही जा रहा हैं। एक तरफ कृष्ण जीवन हैं। एक तरफ कृष्ण विचार हैं। एक तरफ कृष्ण उत्सव रूप हैं, एक तरफ जीवन उद्धारक के रुप में !! कृष्ण का जीवन आनंदलीला है, दूसरी ओर जगद्गुरु की परिकल्पना में कृष्ण विश्व के मार्गदर्शक हैं। इस समग्र असर की तहत पाँच हजार वर्षो के बाद भी कृष्ण मीराबाई की अनुभूति में जीवंत रहते हैं। मीरा की बात आए और कोई पद या भजन याद न आए हो ही नहीं सकता।
"ना मैं जानु आरती वंदन,
ना पूजा की रीत..!
मैं अनजानी दर्शन दिवानी,
पागल मेरी प्रित..!
लिये री मैंने, दो नैनो के दिपक लिये संजोए !
ये री मैं तो.. प्रेम दिवानी मेरो दर्द न जाने कोई !"
मीरा कृष्ण की भक्ति में इतनी लीन हो गई हैं, कि उसे आरती-वंदन-पूजा की कोई रीत पता नहीं हैं। एकमात्र दर्शन का दिवानापन लिए नैनों के दिपक को संजोए हुए.. प्रेम की अलौकिक मस्ती में जी रहीं हैं। मीरा कृष्ण समर्पण का प्रतिक बन गई हैं। कृष्ण में मीरा का ब्रह्मलीन होना, कृष्ण में एकाकार हो जाना, मीराबाई अद्वैत हो गए हैं। कृष्ण के सहजीवन में मीरा नहीं हैं लेकिन मीरा के सह जीवन में कृष्ण कृष्ण ही हैं। कृष्ण का सख्य राधा को मिला है। राधा ने कृष्णप्रेम को जिया हैं। मीरा ने कृष्णप्रेम अनुभूत किया हैं। दोनों के दीवानेपन में कृष्णा का अनुराग हैं। कृष्णा के प्रति समर्पण हैं। मीरा का प्रेम भक्त वत्सला बन जाता है, कृष्ण तब प्रस्तुत होते हैं। मीरा के शब्द में, विचार में उनके गीत में और नृत्य में भी..! कृष्ण जब मीरा की अनुभूति में आकार सजते हैं तब कोई पद या भजन प्रकट होता हैं। तब कीर्तन-नर्तन की गति को धारण करता हैं। मात्र एकतारा से अनेक सूरों का प्रकट होना संभवित नहीं, सहज नहीं। ये कृष्ण का अप्रतिम भक्त वात्सल्य हैं।
मीरा कृष्ण आहट में सतत हैं। इसीलिए वो कृष्ण आगमन, उनके स्वागत के लिए उत्सुक रहती हैं। हरपल उनकी याद में कृष्णा बसे हैं। कृष्ण के मूर्त रुप के सामने मीरा का अमूर्त प्रेम हैं। कृष्ण जीवंतता की अनुभूति मीरा को एक कवयित्री से उपर समर्पण की मूर्ति बना देती हैं। मीरा कोई शब्द की आराधक नहीं हैं। मीरा कोई विचार के पागलपन में भी नहीं हैं। मीरा कृष्ण की केवल प्रेममय आराधना में हैं। हमें मीराबाई के भजन-पद के द्वारा नितांत भक्ति का आनंद मिलता है। मीरा के "आराधन-पुष्प" से ईश्वर प्रेम की आध्यात्मिक जीवंतता मिलती हैं। हमारे भीतर के कृष्ण को प्रकट होने का अवसर मिलता हैं। इसीलिए मीरा सबसे न्यारी हैं। मीरा के गीत सबके मीत हैं !! मीरा के गीत आनन्द का मूर्त रूप हैं !! आनन्द अनुभूति की क्षण हैं। मीरा के शब्द हमारें लिए भी अद्भुत आनंद के अवसर खडे करने के लिए सक्षम है, समर्थ हैं !!
हजारों सालों के बाद राजस्थान के एक शहर मेवाड की पुत्री में कृष्णप्रेम की फुहार प्रगट होती है। वे केवल आनंद की प्राप्ति में पागल हो जाती है। और कृष्ण में समाहित हो जाती हैं। मीरा धरती का अद्भुत चमत्कार हैं। मीराबाई के कृष्ण प्रेम की प्रसादी उनके पद हैं। ये शब्द से उपर श्लोक बन जाते हैं ! आज मीराबाई ने ये बात मुझसे रखवाकर मुझ पर कृपा बरसाई...आनन्द !
मीरा कृष्ण आहट में सतत हैं। इसीलिए वो कृष्ण आगमन, उनके स्वागत के लिए उत्सुक रहती हैं। हरपल उनकी याद में कृष्णा बसे हैं। कृष्ण के मूर्त रुप के सामने मीरा का अमूर्त प्रेम हैं। कृष्ण जीवंतता की अनुभूति मीरा को एक कवयित्री से उपर समर्पण की मूर्ति बना देती हैं। मीरा कोई शब्द की आराधक नहीं हैं। मीरा कोई विचार के पागलपन में भी नहीं हैं। मीरा कृष्ण की केवल प्रेममय आराधना में हैं। हमें मीराबाई के भजन-पद के द्वारा नितांत भक्ति का आनंद मिलता है। मीरा के "आराधन-पुष्प" से ईश्वर प्रेम की आध्यात्मिक जीवंतता मिलती हैं। हमारे भीतर के कृष्ण को प्रकट होने का अवसर मिलता हैं। इसीलिए मीरा सबसे न्यारी हैं। मीरा के गीत सबके मीत हैं !! मीरा के गीत आनन्द का मूर्त रूप हैं !! आनन्द अनुभूति की क्षण हैं। मीरा के शब्द हमारें लिए भी अद्भुत आनंद के अवसर खडे करने के लिए सक्षम है, समर्थ हैं !!
हजारों सालों के बाद राजस्थान के एक शहर मेवाड की पुत्री में कृष्णप्रेम की फुहार प्रगट होती है। वे केवल आनंद की प्राप्ति में पागल हो जाती है। और कृष्ण में समाहित हो जाती हैं। मीरा धरती का अद्भुत चमत्कार हैं। मीराबाई के कृष्ण प्रेम की प्रसादी उनके पद हैं। ये शब्द से उपर श्लोक बन जाते हैं ! आज मीराबाई ने ये बात मुझसे रखवाकर मुझ पर कृपा बरसाई...आनन्द !
आपका ThoughtBird. 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar,Gujarat
INDIA
dr.brij59@gmail.com
09428312234
Nice
ReplyDeleteVery nice
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