Real love is not easy and easy love is not real.
सच्चा प्यार आसान नहीं है और आसान प्यार वास्तविक नहीं है।
ईश्वर की दी हुई इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्ति होती ही रहती हैं। उससे हमारी वैयक्तिक सोच बनती हैं और बढती भी हैं। लेकिन उसके लिए जीवन का एक निर्धारण होना चाहिए। कोई लक्ष्य या ध्येय होना चाहिए। इन दो शब्दों में बहुत अंतर हैं। इसके बारें में एक अलग ब्लोग लिखूंगा।
लक्ष्य एक वांछित परिणाम होता है, व्यक्ति अपने मत अनुसार कुछ पाना चाहता है। वहीं, ध्येय लक्ष्य को पाने के लिए किए जाने वाले विशिष्ट कार्य होते हैं। आज बस इतना ही क्योंकि हम प्रेम की बात करने वाले हैं। कभी अच्छा सुनाई पडता हैं, कभी पढने में आता हैं। कभी-कभार हम अपनी आंखो से देखते हैं। इनमें सबसे बडी बात प्रेम हैं। एक प्रेम शब्द ही सबको आकर्षित करने में सक्षम हैं। फिर उसकी अनुभूति का तो क्या कहना..!?
सबको प्रेम चाहिए। प्रेम से भरा जीवन ही सबसे बेहतर जीवन हैं, ये भी सबको पता हैं। पद, प्रतिष्ठा और पैसों से बढ़कर प्रेम हैं, ये भी सब जानते हैं। मैं लिख रहा हूँ आप पढ रहे हैं..अंतर सिर्फ इतना हैं। चलों शुरु करते हैं, थोडी प्रेमभरी बातें। आपका पढने से और मेरा लिखने से मनभर जाएगा।
प्रेम और वास्तव एक दूसरें से झुडे है। वो ऐसे झुडे हैं कि उसको समझना भी बड़ा मुश्क़िल हैं। प्रेम सरल हैं, साहजिक हैं फिर भी वो वास्तविक नहीं बन पाता। हमें प्रकृति में से कई उदाहरण मिलते हैं। में एक ही बात रखता हूं, आकाश और धरती के अनुराग की। उनके मिलन को हम क्षितिज कहते हैं। आकाश ने धरती को थाम रखा हैं। आसमान से गिरती पानी की बूँदें धरती को तृप्त करती हैं, हरित भी बनाती हैं। धरती अपनी रुह से भाप छोडती हैं; और उससे आकाश को स्पर्श करती हैं। कैसा है, ये पारस्परिक व्यवहार !? ये कैसा अदृश्य रिश्ता हैं ? है ना, बडी कमाल का संबंध ! ये धरती और आकाश का प्रेम संबंध है। सबको आकाश और धरती का मिलन दिखाई पडता हैं, मगर वो आभास हैं। वास्तव में वो प्रेम मिलन अधूरा रहता हैं। प्रकृति के भितर पला हुआ ये सबसे पूराना प्रेम संबंध हैं।
सच्चा प्यार हम किसे कहेंगे। जिसमें शून्य प्रतिशत स्वार्थ न हो। न कुछ लेना न देना देना फिर भी सबकुछ समर्पित है। न कुछ पाना, न कुछ खोना फिर भी आकर्षण में खोट नहीं। कोई अलौकिक शक्ति बांधे रखती हैं। ये बढता भी नहीं और खत्म भी नहीं होता। ये संबंध क्यों है ? उसका उत्तर ही न मिले वो प्रेम हैं।
प्रेम है तो साथ हैं, साथ नहीं हो फिर भी प्रेम हैं। ये बडी असमंजसता वाली घटना हैं। धरती और आकाश के प्रेम की तरह कभी न खत्म होने वाली कहानी। प्रेम वास्तविक नहीं बन पाता हैं। शायद इसीलिए प्रेम सभी बंधनो से ऊपर हैं। उसका न मोल न तोल..!
प्रेम बस प्रेम हैं। प्रेम स्वयं भगवान का अदृश्य रुप हैं। प्रेम पूजनीय इसी कारण हैं और रहेगा। बस प्रेम प्रेम हैं।
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Gandhinagar, Gujarat
INDIA
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