"When you are content to be simply yourself and don't compare or compete, everyone will respect you.
Lao Tzu.
जब आप केवल अपने आप से संतुष्ट हैं और तुलना या प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं, तो हर कोई आपका सम्मान करेगा...लाओ त्सू !!
त्योहार के दिन आने में हैं। कोई बडा बेसब्र होकर इंतजार में हैं। किसी को उससे कोई कर्क नहीं पडता। सभी दिनों के जैसे ही वो भी हैं। ऐसा भी मुझे सुनने में आया हैं। लेकिन मैं बडा बेसब्र हूँ...त्योहार मुझे पसंद हैं। त्योहार खुशी हैं, भीतर का सूकून हैं। सभी दिनों में कुछ नया सा हैं, थोडे रंगभरे लम्हों को संजोए रखने का अवसर हैं।
संसार में जैसे बुद्धि बढी वैसे तर्क भी बढे हैं। सब लोग अपनी जगह सही है, ये कहकर मेरी बात रखता हूँ। हमें क्या पसंद नापसंद हैं, ये अपनी खुद की संतुष्टी पर आधारित हैं। जब व्यक्ति दूसरें की स्पर्धा नहीं करता साथ में तुलना भी नहीं करता तब भीतर की संतुष्टी आरकारित होती हैं। ये सामान्य अनुभव नहीं हैं। इससे जीवन में सम्यक दृष्टि का आकारीत होना संभव होता हैं। तब एक छोटा-सा पुष्य भी हमें खुश कर जाता हैं। सृष्टि में एक छोटी-सी चींटी के प्रयास से आश्चर्य भरा आनंद मिलता हैं। तो फिर त्योहार की खुशीओं की तो बात ही क्या !?
संतुष्टी के लिए प्रयत्न नहीं करना पडता, ये अपने आप भीतर की आवाज बनाकर उठ खडी होती हैं। उसके लिए सहज बनना पडता हैं। अपने आसपास को मात्र देखना नहीं, महसूस करना पड़ता हैं। तुलना या प्रतिस्पर्धा से दुःख पैदा होता हैं। उससे बचना भी एक आशीर्वाद के रुप हैं। उससे व्यक्ति के जीवन में सम्मान की अवस्था पैदा होती हैं। संतुष्ट को कुछ नहीं चाहिए। दूसरे लोगों को उसका सम्मान करने में आनंद मिलता हैं। ये भूमिका बडी लाजवाब हैं।
लाओ त्सु चीनी संस्कृति में एक प्रसिध्द दार्शनिक व्यक्ति थे। उन्हें 7वीं -10वीं शताब्दी के तांग राजवंश के पूर्वज के रूप में माना जाता था। चीन में उनका नाम बड़ी अदब से लिया जाता हैं। आधुनिक चीन में लोकप्रिय उपनाम ली के पूर्वज के रूप में भी उनका सम्मान किया जाता है। लाओ स्तु एक सम्मान जतलाने वाली उपाधि है, जिसमें 'लाओ' का अर्थ 'आदरणीय वृद्ध' और 'सू' का अर्थ 'गुरु' है। चीनी परम्परा के अनुसार लाओ स्तु झोऊ राजवंश के काल में जीते थे। कुछ कहते हैं कि वे एक काल्पनिक व्यक्ति हैं, कुछ कहते हैं कि इन्हें बहुत से महान व्यक्तियों को मिलाकर एक व्यक्तित्व में दर्शाया गया है।
कईं इतिहासकारों का मानना है कि करीबन ढाई हजार वर्ष पूर्व भारत में भगवान महावीर और गौतम बुद्ध हुए थे। लाओ त्सु उनके समकालीन हुए चीन संत हैं। जिन्हें ताओ धर्म का संस्थापक कहा जाता है। इनकी प्रसिद्ध किताब का नाम “ताओ तेह किंग” हैं। जब भारत से बौद्ध धर्म चीन पहुंचा तब ताओ के साथ मिलजुल कर एक नया रूप नया विचार उभरा, जो जापान एवं सुदूर पूर्व के देशों में झेन के नाम से विख्यात हुआ।
इतना बडा महान आत्मा जो कहेगा वो बडी अनुभवशीलता से कहेगा। आज भी उनकी विचारधारा जिवित हैं। क्योंकि उसमें सत्वशीलता हैं। संसार के सभी मानव को ये स्पर्श करती हैं। उसमें किसीको खोट दिखें तो वो उनकी व्यक्तिगत सोच होगी। या उसको सत्वशील दर्शन का विरोध करने की मनसा ही माना जायेगा।
आज लाओ त्सु ने वैयक्तिक रुप में मुझे संतुष्टी का आधार सिखाया हैं। जीवन तुलना या प्रतिस्पर्धा नहीं हैं। जीवन आनंद हैं, जीवन सम्यक् दृष्टिकोण की यात्रा हैं।
आभार लाओ त्सु !!
आपका ThoughtBird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav.
Gandhinagar, Gujarat
INDIA
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234.
Nice 👍 article
ReplyDeleteआपका जीवन आपके सोच के साथ बनता है।"अपने सपनों को पूरा करने के लिए कभी हार मत मानिए संघर्ष ही सफलता की कुंजी है।
ReplyDelete"खुशियों को बाँटने से बढ़ती हैं।
अपनी मेहनत से सपनों को रंगीनी कीजिए। यही नए साल पर विशेष विचार हे।। जेजेएसएल
Thanks J.priyadarshi.
ReplyDeleteLao Tzu is the writer of the and say to everyone do care and see the future..
ReplyDeleteit's my opinion. when lread your article. and am So happy.
Vinubhai parmar
Thanks My friend
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