May 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, May 21, 2025

विश्व शिक्षक जे.कृष्णमूर्ति
May 21, 2025 2 Comments

 जे. कृष्णमूर्ति भारत के महान विचारक..!


एक ऐसा जीवन जो 20 वीं सदी के महान तजज्ञ और मर्मज्ञ के रूप में उभरा था। जे.कृष्णमूर्ति की शिक्षा उस समय अधिकांश भाग में फैली थी। कई लोगों के जीवन में इसका गहरा प्रभाव रहा हैं। मानव चेतना को अचंभित करने वाले व्यक्ति के रूप में हम जे.कृष्णामूर्ति को जानते हैं। विश्व में एक नया आयाम जोड़ने वाले 'विश्वशिक्षक' के रूप में जे. कृष्णामूर्ति प्रशंसित हुए और स्थापित भी हुए हैं।


Photo and Information by J. krishnamurti Foundation India and study center. 

उन्होंने दुनियाभर के लोगों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश डालने का उत्तम काम हैं। बुद्धिजीवियों एवं सामान्य लोगो का विचार करके उन्होंने सभी संगठित धर्मों से परे जीवन के बेहतरीन तरीके की ओर इशारा किया था। और धर्म को नया अर्थ दिया था। उन्होंने समकालीन समाज की समस्याओं का साहसपूर्वक सामना किया था। और वैज्ञानिक सटीकता के साथ मानव मन के कार्य का विश्लेषण किया था। यह घोषणा करते हुए कि उनका एकमात्र सरोकार 'मनुष्य को पूरी तरह से बिना शर्त मुक्त करना' हैं। उन्होंने मनुष्यों को स्वार्थ और दुःख की गहराईयों से मुक्त करने का बहतरीन प्रयास किया था।

जे. कृष्णमूर्ति (11 मई 1895) का जन्म दक्षिण भारत के मदनपल्ले नामक ग्रामीण कस्बे में हुआ था। वो एक धार्मिक और मध्यम वर्गीय परिवार था। बचपन में ही उन्हें 'थियोसोफिकल सोसायटी' के नेता डॉ. एनी बेसेंट और सी. डब्ल्यू. लीडबीटर ने पहचान लिया था। जिन्होंने घोषणा की थी कि वे 'विश्व शिक्षक' हैं। जिनका थियोसोफिस्टों को इंतजार था। मगर जे.कृष्णमूर्ति ने खुद को सभी संगठित धर्मों और विचारधाराओं से अलग कर लिया था। और अपने ही एकांत मिशन पर निकल पड़े थे। उनकी अपनी सोच थी कि "लोगों से गुरु के रूप में नहीं बल्कि एक मित्र के रूप में मिलना और उनसे बात करना चाहिए। और उन्होंने ऐसा ही कार्य शुरु कर दिया।

जे. कृष्णमूर्ति ने अपने जन्म से लेकर 1986 में अपने अंत तक करीबन  इक्यानबे वर्ष की आयु तक दुनियाभर में यात्रा की थी। अपने प्रवास के दरमियान भाषण किए। बहुत लेखन कार्य किया। साथ ही उन पुरुषों- महिलाओं के साथ बैठे जो उनकी मदद और सलाह लेना चाहते थे।

जे.कृष्णमूर्ति की शिक्षाएँ पुस्तकीय ज्ञान और विद्वत्ता पर आधारित नहीं थी। बल्कि उससे ऊपर मानवीय परिस्थितियों के बारे में थी। उनकी अंतर्दृष्टि और पवित्रता के बारे में थी। उनके समदर्शी दृष्टिकोण पर आधारित थी। उन्होंने किसी दर्शन की व्याख्या नहीं की बल्कि उन चीजों के बारे में बात की जो हमें दैनिक जीवन में उपयोगी हैं। आधुनिक समाज में रहने की समस्याएं...जिसमें भ्रष्टाचार और हिंसा, मनुष्य की सुरक्षा और खुशी की तलाश, लालच, हिंसा, भय और दुःख के अपने आंतरिक बोझ से खुद को मुक्त करने की सलाह दी। साथ  ही मनुष्य की आवश्यकताएं और अपने सामान्य जीवन ऊपर उठने की शाश्वत खोज का मार्गदर्शन किया हैं।

इन मानवीय विद्वता के कारण उन्हें पूर्व और पश्चिम के देशों में सम्मान मिला हैं। इस समय के सबसे महान धार्मिक शिक्षकों में से एक के रूप में कृष्णमूर्ति की पहचान उभर आई हैं। जे. कृष्णमूर्ति स्वयं किसी धर्म एवं संप्रदाय या देश से संबंधित नहीं थे। न ही उन्होंने किसी राजनीतिक या वैचारिक संगठन की सदस्यता ली हैं। ऐसे महान मानवीय तत्वज्ञान के विस्तारक को शत शत नमन करते हुए आनंद प्रकट करता हूं ।

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Wednesday, May 14, 2025

Accept the world.
May 14, 2025 5 Comments

 At first one must accept the way

that self tries to accept the world.
BUDDHA.

"सबसे पहले व्यक्ति को यह स्वीकार करना होगा कि वह स्वयं दुनिया को किस तरह स्वीकार करने का प्रयास करता हैं।"

पवित्र भगवान बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामना के साथ उनके ही सुंदर विचार पर ब्लोग विस्तार करता हूं। स्वयं की जागृति ही जीवन का मूल आधार हैं। वैसे तो जीवन जन्म से लेकर मृत्यु तक सिखने की प्रक्रिया हैं। हमसब इस संसार में पहेली बार आँख खोलेते हैं तब से सिखना,समझना एवं महसूस करना शुरु कर देते हैं। बाद में तर्क करना उसको सही तरीके से समझना सिख जाते हैं। ये हमारे जीवन की सहज प्रक्रिया हैं। कोई विशेष प्रयास के बिना वस्तु और व्यक्ति के बारें में हम सीखते रहते हैं।

BUDDHA

Picture by Philip Charles.

अब दुनिया को समझना हमारे लिए एक जैविक धर्म हैं। उसे में मानवीय धर्म कहूँ तो भी गलत नहीं। हम जी रहे हैं इसलिए सीख रहे हैं। बस इतना समझ में आ गया। अदृश्य ईश्वर की ये कोई सिस्टम होगी ऐसा मान लेकर आगे बढ़ते हैं। अब सवाल आता हैं हम जो सिखते हैं उसका स्वयं स्वीकार करें। जगत जैसा है वैसा...! वस्तु या व्यक्ति जैसा है वैसा..! स्थिति परिस्थिति भी जैसी है वैसी...! सत्य-असत्य में पडे बिना, परिणाम की चिंता से परे रहकर और किसीको कसूरवार ठहराए बिना बस दुनिया को स्वीकारना हैं। अपनी समझ बढ़नी चाहिए लेकिन भाररुप या समस्या को जन्म देने वाली समझ नहीं। स्वयं को निरपेक्ष दृष्टि से सीखने के मार्ग पर चलाएंगे तो परिणाम बहुत अच्छा ही होगा। हमारे वैयक्तिक जीवन के लिए और समष्टि के लिए भी ये बेहतर कदम होगा।

भगवान बुद्ध स्वयं नियंत्रित हैं। वो सबका स्वीकार करनेवाले और समदर्शि हैं। सबको प्रेम करने वाले हैं। हमारा जीवन भी एक प्राकृतिक पहलू ही हैं। जब हम प्रकृति से थोड़ी-भी दूरी बनाकर सोचते रहेंगे तो कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे। भगवान बुद्ध का जीवन एकात्म भाव से भरा था। बुद्ध के जीवन का संदेश यहीं था की संसार को 'एकात्मता और आत्मीयता' से संवृत किया जाए। जीवन की यहीं समृद्धि मूल्यवान हैं। इस तरह से जीवन का सही मकसद सिखाने का प्रयास बुद्ध ने किया हैं। इसीलिए हम बुद्ध को भगवान कहते हैं। ईश्वर अदृश्य होकर भी ऐसी ही साम्यता सीखाना चाहते हैं। यहाँ तो स्वयं बुद्धदेव ने अपना जीवन व्यतीत किया हैं।

उनका गृहस्थ जीवन का त्याग किसी को दुःख पहुँचाने के लिए नहीं था। केवल उनके ही शब्दों का अनुसरण था। उन्होंने दुनिया को स्वीकार करने का उत्तम मार्ग का चयनित किया था। जीवन केवल उपभोग का साधन नहीं हैं। जीवन का दूसरा नाम मकसद भी हैं। ईश्वर ने हमें...हम मानवों को विशिष्ट बनाया है उसमें भी कोई मकसद ही छिपा हुआ हैं। बस, ये मकसद की समझ यानि दुनिया को स्वयं स्वीकार करने की कोशिश...!

जैसे हम पसंदीदा व्यक्ति का स्वीकार करते हैं। अपने बच्चे का स्वीकार करते हैं। हमारे वैयक्तिक संबंध का स्वीकार करते हैं। हमारी सफलताओं का स्वीकार करते हैं। वैसे पूरी दुनिया का स्वीकार करना...! इनमें जीव-जगत की सभी 'वस्तु और आचार' एवं 'विचार और वर्तन' शामिल होंगे। सहजता से इसका स्वीकार करना ही बेहतर जीवन हैं। इसे हम self tries to accept the world कहेंगे।

भगवान बुद्ध Acceptation के शिखर हैं। हम भी कुछ छोटा-सा प्रयास कर सकते हैं। या Unacceptable के माहोल को ही खड़ा करके विचित्र आनंद के अहसास में जियेंगे !? अस्वीकार्यता ईश्वर को पसंद होगी क्या ? इन प्रश्न के साथ..!

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Tuesday, May 6, 2025

Good Leadership...!
May 06, 2025 3 Comments

 leadership is People more than projects.

नेतृत्व का मतलब परियोजनाओं से अधिक लोगों से है।


नेतृत्व की बात आती है तो करिश्माई गुण की बात करना आवश्यक हैं। ये ऐसा गुण हैं जो जन्मजात व्यक्ति के भीतर आकारित होता हैं। साधारण परिवार में जन्म, साधारण कर्म, साधारण ज्ञाति-जाति या साधारण व्यक्तित्व होने के बावजूद ये Quality एवं Ability व्यक्ति के अंदर पनपती हैं। ये सहज प्रक्रिया हैं। महान ईश्वर की ये अदृश्य आशीर्वादात्मक भूमिका हैं। leadership नेतृत्व के महत्त्वपूर्ण एवं गुणात्मक पहलू करिश्माई को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझ ने का प्रयास करते हैं। करिश्माई नेता की अवधारणा के बारें में थोड़े तथ्यपूर्ण पहलूओं को देखें।

करिश्माई नेता की अवधारणा जर्मन समाजशास्त्री 'मैक्स वेबर' ने दी थी।उन्होंने 1922 में एक अध्ययन में करिश्माई नेतृत्व को पारिभाषित किया था।उन्होंने करिश्मा को अनुग्रह का एक असाधारण और व्यक्तिगत उपहार बताया था। जो एक नेता को दूसरों पर गहरा प्रभाव डालने और उन्हें प्रेरित करने की शक्ति प्रदान करता है। 'मैक्स वेबर' ने अपने अध्ययन "इकोनॉमी एंड सोसाइटी" में करिश्माई नेतृत्व की अवधारणा प्रस्तुत की थी। उन्होंने करिश्माई नेतृत्व को एक शैली के रूप में परिभाषित किया था। जो आकर्षण, प्रेरक क्षमता और असाधारण गुणों से युक्त होती है। इससे नेता अपने अनुयायियों को एक विशेष उद्देश्य या दृष्टिकोण के प्रति प्रेरित करता हैं। उन्हें एक साथ जोड़ने में कार्यदक्ष होता है। करिश्माई नेता का अधिकार पारंपरिक या कानूनी अधिकार से अलग होता है। नेता के व्यक्तिगत आकर्षण के प्रति एवं अनुयायियों में उनके प्रति विश्वास भी कायम होता है। 
(Information by wikipedia and western governors university. and thanks to sayed for picture)



अमेरिकन राष्ट्र प्रमुख 'रोनाल्ड रॅगन' को अक्सर करिश्माई नेतृत्व के उदाहरण के रूप में देखा जाता है। उनके भाषणों और नीतियों ने लोगों को प्रेरित किया था और उनकी सरकार को समर्थन दिया था। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी करिश्माई नेता ही थे। अपने सामान्य जीवन से सबको प्रेरित किया। लाखों-करोड़ों लोग उन्हें ' हमारे प्यारे बापू' के नाम से पुकारने लगे। हमारे भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती ईंदिरा गांधी भी इस करिश्माई मंत्र के कारण 'आयर्न लेडी' का सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। आज के दौर में ऐसे ही करिश्माई गुणों से भरे हमारे प्रधामंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी राष्ट्र को अनूठी दिशा दे रहे हैं। वे सामान्य परिवार से निकलकर विश्व को अचंभित कर रहे हैं।


करिश्माई नेतृत्व सिद्धांत शैली है, जिसमें नेता अपने व्यक्तिगत आकर्षण और क्षमता के माध्यम से लोगों को प्रेरित व प्रभावित करते रहते हैं। अपने अनुयायियों के साथ भावनात्मक संबंध बनाए रखते हैं। उन्हें प्रेरणा देते हैं और लक्ष्यों के प्रति प्रेरित भी करते हैं। नेतृत्व शैली महान शक्ति भी हैं। महान चक्रवर्ती चंद्रगुप्त मौर्य के चयन में चाणक्य ने इसी करिश्माई गुण को देखा होगा। ये हमारे भारत के इतिहास की गवाही हैं।

अच्छा नेतृत्व लोगों से संवृत रहता हैं। योजना-परियोजनाएं बनती रहती हैं। और कार्य की सफलता के लिए लोगों का झुडाव भी होता रहता हैं। मतलब, लोगों की विश्वसनियता का प्रतिक बनना सरल नहीं हैं। नेता तब ही सफल होगा जब वो करिश्माई से भरा हो। बाकी पद-पैसे या विरासत के दम पर शासन नहीं किया जा सकता। उसे सिर्फ 'मर्कटलीला' ही कह सकते हैं।

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Friday, May 2, 2025

Focus on good Direction.
May 02, 2025 2 Comments

If all your energies are focused in one direction, enlightenment is not far away. After all, what you are seeking is already within you.

SADGURU.

अगर आपकी सारी ऊर्जा एक ही दिशा में केंद्रित है, तो आत्मज्ञान दूर नहीं है। आखिरकार, आप जो खोज रहे हैं, वह पहले से ही आपके भीतर हैं।

मुझे ऐसे विषय पर लिखना और सोचना अच्छा लगता है, जिससे मुझे और पढ़नेवाले दोनों को आनंद मिल सके। मैं कोई ज्ञान बांटने का काम नहीं कर रहा। मैं मेरे कार्य को नैमित्तिक कार्य मानता हूं। और इसी भाव के साथ मुझे जो अच्छा लगे वो दूसरों को बताते हुए आनंद करता हूँ। चलो, आप ऐसे ही विषय पर मज़ा करे।

Special thanks to SADGURU for good picture. 
हम सब उर्जा से भरे हैं। जन्म से ही ईश्वरने काफ़ी कुछ शक्तियों से हमें भर दिया हैं। हम शरीर की शक्तियों की बात नहीं कर रहे हैं। मनुष्य के रुप में हमें मिली चैतसिक शक्ति के बारें में बात करता हूं। "चैतसिक" शब्द का अर्थ है मन से संबंधित, चित्त से संबंधित या चेतना संबंधित। यह शब्द बौद्ध धर्म में भी प्रयोग किया जाता है, जहाँ इसका अर्थ है दुष्ट कर्मों से विरक्त रहने की शक्ति। ये कोई उपदेश नहीं हैं, लेकिन शब्द को समझने के लिए थोड़ा शब्द प्रमाण लिखा हैं।

हम सब हमारी चैतसिक ताक़त पर कम भरोसा करते हैं। क्योंकि ये दिखाई नहीं पड़ती। और जो शक्तियाँ दिखाई पडती है उससे काम चलाने पर तुले हैं। इसके कारण दूसरा भी चैतसिक शक्ति से भरा है,  ये हम भूल जाते हैं। इससे हमारा नुकशान ये होता है की हमारी शक्ति को हम ही भूल जाते हैं। बाद में ये अदृश्य कुदरत की शक्तियों के बारें में संदेह करते रहते हैं। इस गडबडी में से ही 'मैं' निकला हैं। मैं हूँ..! मैंने ये किया हैं ! मैं ये कर सकता हूं..! सब जगह पर 'मैं ही मैं हूं' का विचित्र रोग लग जाता हैं। इससे कईं शक्तिमान भी पीड़ित नजर आएंगे। पैसा है, पद है, शानो-शौकत है, बड़ी ज्ञाति-जाति में जन्म हुआ हैं। फिर भी कुछ कम दिखाई पडता हैं।

हमारे भीतर के चैतन्य का आदर करना चाहिए। और दूसरों के चैतन्य का भी..! ये हमारी उर्जा केंद्रित करने का सरल मार्ग हैं। इसे मैं excellent focus कहता हूं। दिखाई न देनेवाली शक्तियों को जागृत करने के मार्ग कईं मनीषियों ने बताए हैं। लेकिन उनकी उलझी हुई बातें हमें भ्रम में डालती हैं। सद्गुरु सरलता से रीयल फॉर्म में जीवन के बारें में जो कुछ सत्य हैं वो बताते हैं। उन्होंने 'आत्मज्ञान' शब्द का प्रयोग किया हैं। और ये भी कह दिया कि जो हम खोज रहें हैं, वो पहेले से ही हमारे भीतर हैं।

मूलभूत रुप से विचार व ज्ञान को बांटता हैं उनकी उन्नति होती ही रहती हैं। कोई लाख बूरा चाहे...वही होता हैं...! वाक्य पूरा आपको करना हैं। मैं वैमनस्य फैलाने से बचना चाहता हूं। कोई शब्द या विचार किसी धर्म-पंथ के दायरे में कहना नहीं चाहता। सद्गुरु की बात में सत्यता और सरलता की गुणात्मकता ज़्यादा हैं। इस लिए उनका प्रभाव हैं इसका सहज स्वीकार करता हूं। बाकी कई विचारधाराएं कलुषित होकर लुप्त हो गई हैं, इसका इतिहास साक्षी हैं। कौन-सा विचार सनातन हकीक़त बनेगा उसके बारें में अपने चैतन्य से ही पूछे..!?

किसी को इससे भी आपत्ति आएं तो माफ करना। क्युकी सोच को कैसे बढ़ाना हैं वो हम पर निर्भर करता हैं। कैसी सोच रखकर जीना हैं ये वैयक्तिक बात हैं।

आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli
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Bharat Ratna KARPURI THAKUR.

भारत के एक इतिहास पुरुष..! सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में...

@Mox Infotech


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