बुद्धिमानी हम किसे कहते हैं ?
पहले अपने हित का विचार करना बुद्धिमानी हैं।
"Always do the best you can for whoeveris around you because tomorow, either they may be gone, or you may be gone."
SADGURU
"हमेशा अपने आस-पास जो भी हो, उसके लिए सबसे अच्छा करो, क्योंकि कल या तो वे चले जाएँगे, या तुम चले जाओगे।" सद्गुरु के इस विचार पर ब्लोग विस्तार करता हूं।
एक चिराग को जानबूझकर या असूया से बुझाने में मूर्खता हैं। कैसे मुर्खता से बचा जाए ये बुद्धिमानी कहलाएगी। एक सुंदर क्वाॅट विचार में आया। काफ़ी देर तक उस विचारने मुझे झकझोर रखा था। मैं विचारतंतु को जोड़ता रहा। सोचता रहा और उस अवस्था को मैं बयां कर रहा हूं। पहले एक सुंदर वाक्य को पढ़े, दोबारा पढें। समज में बैठ जाने के बाद अच्छे अनुभव से अपने हित का विचार करना होगा। "किसी चिराग को बुझाने का प्रयास मत कीजिए, अंधेरा खुद को ही भुगतना पड़ेगा।"
बड़ा ही सुहावना विचार हैं। हम खुद एक जीते-जागते चिराग ही तो हैं। जब तक ईश्वर की मर्ज़ी होगी, उनके दिए गए श्वास होंगे तब तक हम जलते रहेंगे। हम सब चलते दिये ही तो हैं। जीवन के रुप में हमें भी प्रकट होना हैं। सांस चलती है यह एक बात हैं। हम विचार से चलते हैं ये दूसरी बात हैं। संसार से कुछ न कुछ सीखते हैं। शिक्षा से ज्ञान प्राप्त करते हैं। कुछ नयेपन से उभरते हैं। समाज को कुछ नईं सोच मिलती है या फिर कोई आविष्कार मिलता हैं। कहीं न कहीं जीवन को बड़ी खूबसूरती से समझने वाले सृष्टि को कुछ न कुछ देते हैं। ईश्वर के निमित्त मनुष्य-प्राणी-पशु या प्रकृति के जरिए पूरे होते हैं। किसी एक का सपना साकार होता हैं। किसी की महेनत रंग लाती हैं। इसे मैं दिये का उजियालापन कहेता हूं। कईं दिये टिमटिमाते हुए अँधेरे को हराने का काम करते हैं। वहाँ तेज की किरनें स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं।
यहाँ तक सब ठीक हैं। लेकिन कईं लोगों को चिराग बुझाने का बड़ा शौक होता हैं। उनको दिये के अँधेरा हरने की हरक़त से डर लगता हैं। 'अँधेरा कायम रहे' ऐसी घटिया किस्म की सोच रखनेवाली कईं प्रजातियाँ संसार में अपना डेरा लगाये बैठी हैं। अपने वैयक्तिक स्वार्थ को पूरा करने हेतु वो दूसरे चिराग से जलते हैं। इसलिए उसको बुझाना अपना कर्तव्य मानते हैं। अपने अस्तित्व को बचाने का ये प्रयास है ऐसा भी मानकर चलते हैं। उनको अपनी बुझानेवाली हरक़त से कोई गिला-शिकवा नहीं होती। बस, पिशाची आनंद ही उनका जीवन होता हैं। इसके लिए बड़े बड़े षड्यंत्रों का सहारा लेना पड़ता हैं। इन परिस्थिति में कभी कभार अपने कार्य की विचित्रता का ख्याल भी नहीं रहता। मानो झूठ भी सच का आंचल ओढ़कर अट्टहास करने लगता हैं। अपने ही चिरागो को बुझाकर खूद अंधकार की गर्ता में जा गिरते हैं। वैसे लोग सूरज की किरनों को भी आभास समझते हैं। और जब अंधेरा छाने लगता है तब सूरज के बूझने का आनंद मनाते हैं।
हमें खुद तय करना होगा कि मुझे वैयक्तिक रुप से अंधेरे से प्यार है या उजास से..! जिसे उजास पसंद है वो कभी दिये बुझाने के काम में नहीं जुड़ेगा। उसे सारा संसार प्रकाशमान चाहिए। दैदीप्यमान सृष्टि को वो चाहते हैं। किसी एक छोटे-से चिराग को जलते रहने का प्रयास करते हैं। और इसी प्रयास में जगमगाते- टिमटिमाते अनगिनत दिये इस संसार को प्रकाशित करने लगते हैं। सारे संसार का संचालन करने वाले अदृश्य ईश्वर को ऐसा मंज़र पसंद आता होगा। इस बात में मैं हरदम श्रद्धेय हूं। ऐसे अद्भुत नज़ारों की खोज में निकलना हैं। बेशुमार खुशीओं की बारिश में भिगने जैसा मंज़र सबको पसंद आएगा। विश्व को उजियारे से भरना हैं तो किसी चिराग को जानबूझकर बुझाने की हरक़त मत करना। ईश्वर बहुत खुश होंगे...!
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat, INDIA
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234
Always do best... Good 👍🙏
ReplyDeleteविचार उर्जा प्रकाश ज्ञान तारतम परा शक्तिका ज्ञान भीतर से ही प्रज्वलित प्रगट होते हैं, इसलिए कि भीतर ही वो अनन्त अनादि काल से जैसे, आकाश में सुरज प्रकाशमान हैं वैसे ही यह सुक्ष्म रुप में क़ायम ज्ञान और दर्शनका प्रकाश ज्ञानका मुल स्रोत है, संसार में जब भी आवश्यकता हुई यही से कोई ना कोई ज्ञान और दर्शन का एक तेज पुंज प्रगटा है, अज्ञानता वश हमने ईसकी भाषा भेष लीपी में पेंटट कर ली है, परिणामस्वरूप यह क्षेत्रवाद में प्रांतवाद में संप्रदाय वाद में स्थापित किया हैं,अगर ईसे एक ज्ञान गंगाकी धारा में प्रवाहित किया होता और हम उसमें डुबने का प्रयास भी करते भव सागर तर जाते! शब्द ब्रह्म है क्रांति हैं उत्क्रांति है आभा हैं सौंदर्य हैं शीतलता है सुकुन हैं, बैचेन जीव आधि व्याधि और उपाधियों से मुक्त हो जाता है, भारतवर्ष में ऐसा ही एक स्वरूप हैं,नाम है जो विश्वगुरुकी शोभाको प्राप्त कर भारत (अर्जुन)का मार्ग प्रशस्त कर रहा है, ज्ञान युगोंकी मर्यादा से उपर हैं, यह नाम है श्याम! यह संसारकी भाषा से ऊपर है श्यामका अर्थ ही ज्ञान और विज्ञान है!यह कोई विश्व पुरुषकी युग पुरुषकी मर्यादा को नही मानता है, सौंदर्य से ज्ञान से शक्ति से सत्ता से सत्य से पुर्ण हैं और अगर ईसका कोई तेज पुंज अवतरित होता है तब भी यह जहां हैं पुर्ण ही है,एक दिए से हजारो लाखो दिप जलाए जाते हैं,एक दिएका कोई भी अणु परमाणु कम नहीं होता है,मानव सभ्यता को आज ऐसे ही दर्शन ज्ञान और विज्ञानकी आवश्यकता हैं,पुरा संसार आज ऐसे मोडपर आकर टीका है जहां से एक बटनके दबाने मात्र से पुरी मानव सभ्यताको हानी पहुंच सकती है, तब जाके संभवामी युगे युगेकी जगह 'संभवामी क्षणे क्षणे"जो अपार संभावनाओं का नाम ही जीवन है, "संभवामी हृदये ह्रदये" होता है तो यह सारी अव्यवस्था जो मानव मन की अज्ञानता वश पैदा हुई है सुव्यवस्था में तब्दील हो जाएगी! मानव अपने निज स्वरूपकी पहचान कर लेता है तो सारे दुःख अज्ञान अहंकार अंधकार जो मृत्युका ही रुप है अमृत में परिवर्तित हो जाएंगे! चेतना मुल स्वरूप में सुरज से भी अधिक तेजोमय है,सुरज तो ब्लेक होल में समा जाएगा लेकिन यह जो चेतना हैं,गीता में कहा है ईसे पवन पानी और आग भी कुछ नहीं कर सकते हैं! आत्म जागृति, आत्म कल्याणकी उदात्त भावनासे मानवीय मूल्योंकी रक्षा हो सकती है मानव सभ्यताकी रक्षा होती है और जो भारतवर्षकी संसार को सबसे बड़ी देन हैं, "सा विद्या या विमुक्तए"। मनुष्य शरीर के रहेते हुए ही यह जो सनातनकी मुल विभावना हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्त कर सकता हैं,आईए एक बार फिर एक यात्राका प्रारंभ करते हैं,भारत एक खोजकी तरह,भारतको भीतर खोजनेका प्रयास करे, इसलिए कि भारत वर्ष कोई जमीनका टुकड़ा नही है यह एक पंच भौतिक शरीरकी तरह एक विराट पुरुष है जीसमे एक ही मुल चेतनाका स्वरूप है जो खंड खंड में,तीनो लोकों में अनन्त दिखाई देने वाले पुरे ब्रह्मांडको धारण कर बेठा है,ईसे अपने निज स्वरूप की पहचान कराए!यही अद्वैत दर्शन है।
ReplyDeleteसुख शीतल करु संसार।
आपकी विचार यात्रा में प्रेम और ज्ञानका ईंधन भरते हुए,,,,
आत्म जागृतिके साथ जन कल्याणकी,मानव मात्रकी कल्याणकी भावना का दिप जलाए।
चंद्रकान्त खेमचंद राठोड़ नडीयाद (गुजरात)
चंद्रकांतभाई,
ReplyDeleteबहुत आनंद हो रहा हैं। मैं लिखने का कर्म बजाता जा रहा हूं। समदर्शी सोचवाले आप जैसे दोस्त मिलते जाते हैं। आभार...! 😊🌹🙏
Good 👍🙏 work....
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