Your opinions are a wall not just for others, but also for yourself. A closed mind means closed possibilities.
SADGURU
"आपकी राय न सिर्फ़ दूसरों के लिए, बल्कि आपके लिए भी एक दीवार है। बंद दिमाग का मतलब है बंद संभावनाएँ।"
राय देना सबको पसंद हैं। लेकिन राय सुनना किसीको पसंद नहीं। कईं लोगों को मुझ पर सद्गुरु के विचारो की असर ज्यादा लगे तो मैं खुद को भाग्यशाली समझूंगा। क्योंकि मुझे अच्छे विचार पसंद आते हैं ये बात तो तय हो गई। इससे अच्छी बात क्या हो सकती हैं !? ज्ञानपूजा करना यानि की अच्छे विचारो का सम्मानपूर्वक स्वीकार करना हमारे भारतवर्ष की सांस्कृतिक धरोहर हैं। अपरे प्राचीन ग्रंथ वेद-ऋचाएं, उपनिषद्...हमारे राष्ट्र का संपूर्ण वांग्मय मनुष्य जीवन की उन्नति का आधार हैं।
फिर भी राय देना या सुनने से बचना हैं। कहाँ बचना नहीं हैं ? ये समझ होनी चाहिए। जहां तर्कसंगतता से प्रस्तुत की हुई और समग्र मानव समूह को प्रभावित करनेवाले विचार को अपनाए। जिनमें व्यक्ति विशेष या समूह विशेष के स्वार्थ की बू आती हो वो विचार सनातन नहीं हो सकता। हाँ उसे प्रस्थापित करने के लिए कितने भी छल-प्रपंच का सहारा लिया जाय..! वो विचार-सलाह कभी भी कारगर नहीं हो सकता। और इससे आगे " मैं ही श्रेष्ठ हूँ !" या फिर "हमारे विचार राष्ट्र कल्याणक हैं !" ऐसी शाहमृगी वृत्ति अपने ही विनाश का कारण बनती हैं। शाहमृग को हम शुतुरमुर्ग से भी जानते हैं। दो बड़ा पंछी होता हैं। उस पर सवारी भी की जाए इतना ताक़तवर भी होता हैं। जब हवा के भयंकर तूफान आता हैं तो उससे बचने के लिए शुतुरमुर्ग अपना शिर घास में या झाड़ियों मे छिपा लेता हैं। और महसूस करता है जोखिम टल गया...! ये उसकी मान्यता हैं, उसका अहसास हैं। मगर तूफान रुका नहीं होता। और वो तूफान सामना नहीं कर पाता। अपना विनाश खुद करता हैं। कहां छिपना चाहिए उस विचार से भी दूर रहता हैं। उस वृत्ति को हमारे मनीषीओं ने 'शाहमृगवृत्ति' कहा हैं।
किसी अच्छे विचार को मानना, दूसरें को बताना या फिर उसका अनुसरण करना बिल्कुल गलत नहीं हो सकता। अच्छे विचार कभी एक व्यक्ति के भी नहीं रहते। हाँ एक व्यक्ति उसका माध्यम बनता हैं। वो समष्टि के हित के लिए होते हैं। वो सलाह और राय नहीं कहलाते ये स्पष्ट हैं। अपने भीतर भी अपनी एक राय या अपनी एक मान्यता पलती हैं। वो भी ठीक होनी चाहिए। अपने वैयक्तिक जीवन को बाधा में डाले ऐसी नहीं होनी चाहिए। ये खुद हमारे लिए एक दिवार बन जाती हैं। उसे लांघना हमारे लिए दुष्कर हो जाएगा।
विचार स्पष्टता से हमारे भीतर जगह बनाए तो वो ठीक हैं। सद्गुरु जैसे लोग हमारी स्पष्टता हैं। उनके विचार में ताज़गी होती हैं। उनमें हृदय को छू लेनेवाली खनक होती हैं। दुविधा युक्त मन शांत हो जाता हैं। जैसे हम कुदरत के नज़ारों को देखते हैं तब मन शांति से भर जाता हैं। हम निःशब्द हो जाते हैं। वैसे अच्छे विचारों का भी होता हैं। अब अपने मानस में कौन- से विचार-राय को जगह देनी है, ये हमें ही तय करना पड़ेगा। कौन-से विचार, राय या सलाह से प्रभावित होना है, ये भी हमें ही समझना होगा। जिसको सुनने मात्र से सहजता महसूस हो, मेरे विचार में शायद वो अच्छी राय हैं। अपने दिमाग को कैसे खोलना है, ये हम बख़ूबी जानते हैं। इसे स्वीकार करने में मेरा बिल्कुल आग्रह नहीं हैं।
आपका Thoughtbird🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli
Gujarat
INDIA.
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234
ખુદ કો ભાગ્યશાળી સમજુ છું...
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