July 2024 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, July 31, 2024

Simple philosophy of life.
July 31, 2024 8 Comments

 life will get much easier for you.

Please read it.

"जो गया वो मेरा नहीं, और जो मेरा हैं वो कहीं गया नहीं। और जो आनेवाला हैं उसे कोई रोक नहीं सकता "

मैंने टाईटल में लिखा हैं। "सिम्पल फिलॉसफी ओफ लाइफ..!" जीवन का सादगीपूर्ण तत्वज्ञान। जीवन धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष की गति के ईधर- उधर घूमता रहता हैं। अर्थ (धन-धान्य-लक्ष्मी) जीवन के निर्वाह के लिए आवश्यक हैं। काम प्रकृतिगत हैं, नैसर्गिक हैं। सृष्टि के समस्त प्राणिओं के लिए समान हैं। मोक्ष संभवित स्थिति हैं। कईं लोग ईसे कल्पना भी कहते हैं। अब बारी आती हैं, धर्म की..! इससे सब सुखी और दु:खी भी हैं। जिसको जैसा लगा उपदेश दे दिया। रोज एक नई फिलॉसफी प्रगट होती हैं। धर्म क्या हैं ? "धर्म मतलब जो बुद्धि और संवेदना को बडी खूबसूरती से पेश करता हैं, धर्म मनुष्य की आचार पद्धति हैं। हरेक मनुष्य की भीतरी आवाज धर्म हैं। धर्म सबसे बडी चीज हैं। और अर्थ-काम की प्राप्ति में धर्म की सोच रहती है तो मोक्ष सहज संभव हैं।

                                                                                        Thanks for images.
अब इन भारी बातों को कोने में रखते हैं। थोडी बहुत हल्की-फुल्की बातें करते हैं। धर्म आस्था हैं, श्रद्धा हैं और धर्म निरंतर हैं। कोई बात दिल को छू जाए, जिसे सुनकर, पढकर अच्छा महसूस हो। चारों तरफ मनहर-मनभर घंटीओं का घंटारव बजने लगे। भीतर अच्छी गुदगुदी का अनुभव होता है। विचार तो पसंद आता हैं, साथ ही उस विचार के अनुसरण की कल्पना भी आनंदित कर देती हैं, ये धर्मविचार हैं। देखिए ये विचार; "जो गया वो मेरा नहीं, और जो मेरा हैं वो कहीं गया नहीं।" कितना सुंदर विचार है, सरलता से हमें संबल करने वाले शब्द हैं। "ये बात एकदम सही है" के भाव तरंग ह्रदय में उठते हैं। शायद कोई ऐसी स्थिति आ पडी हैं, कुछ लूट गया हैं। तब उस स्थिति में रामबाण की तरह इन शब्दों की असर होगी। जीवन को सकारात्मक दिशा-दृष्टि मिलती हैं। संताप व पश्चाताप की स्थिति गायब हो जाती हैं। मन हल्का हो जाता हैं। हम पुलकित हो जाते है। हमें आनंद की प्राप्ति होती हैं।

एक व्यक्ति के रुप में सब जानते हैं कि संसार में हम खाली हाथ आए हैं। जो कुछ नाम-शौहरत,धन-दौलत प्राप्त करते हैं, वो हर इन्सान के निजी कर्म के कारण हैं। वो सनातन टिकता भी नहीं। क्योंकि इन्सान का जीवन मर्यादित समय पर निर्धारित हैं। जीवन सनातन नहीं हैं। जीवन पर्यंत जो कुछ मिलता है वो कृपा हैं। ईश्वर की अदृश्य प्रेम की कृपा हैं। हमें समानता से मनुष्य रुप मिला हैं। उस में जो जातिभेद- वर्गभेद उभरकर आए हैं, उसके बारें में कुछ कहने की मेरी औक़ात नहीं हैं। क्योंकि ईश्वर के विराट-विशाल साम्राज्य का स्वीकार करने वाला मैं इस बदबूदार दलदल जैसी हलकट बात कैसे कर सकता हूँ। मुझे ईश्वर की कृपा चाहिए, मुझे प्रकृति के आशिर्वाद चाहिए।

जो अपना हैं, उसे कोई छीन नहीं सकता। और जो चला गया वो हमारा था ही नहीं। अपना कुछ बनाने के लिए महेनत करनी पड़ती हैं। जी जान से उसे पाने की तपस्या में मग्न होना पडता हैं। जब लोग मदहोशी में खुशियां मनाते हैं तब कईं लोग अपने सपनों को पूरा करने लिए परिश्रम करते हैं, तब जाकर मुझे ये प्राप्त हुआ हम कह सकते हैं। जानबूझकर ये शब्द का प्रयोग किया हैं, "मुझे ये प्राप्त हुआ" मैंने हांसिल किया ऐसा मैंने नहीं लिखा। क्यों नहीं लिखा पता हैं ? मुझे नियंता की शक्ति से उसकी कृपा का फल चाहिए। जो युगों तक मेरे नाम रहेगा। कोई जन्मदत्त या इजारेदार स्थिति कायम नहीं हैं। जीवन की क्षणभंगुर स्थिति से वाकिफ हैं सब..!

शायद कोई मुझसे सहमत न भी हो सकता हैं। लेकिन उसकी बातों से तो कोई सहमत हरगिज नहीं होगा..जो खुद ईश्वर से उपर उठ चूका होगा। येसे लोगो की प्राप्ति कहां तक-कब तक ?!?

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Wednesday, July 24, 2024

Possibility is Everywhere.
July 24, 2024 3 Comments


Those who try to avoid uncertainty miss out on possibilities.

SADHGURU.

संभाविता शाश्वत हैं। ईश्वर की तरह ही वो सनातन हैं। अजन्मे ईश्वरकी तरह निश्चितरुप से संवृत हैं। हम सुनते आये हैं : ईश्वर को किसीने देखा नहीं पर वो हैं। शायद अनुभूति में, नितांत प्रेम में या अपनी हरदम सोच में..! ईश्वर की तरह संभावना- पॉसिबलिटी दिखती हैं, नहीं भी दिखाई पड़ती फिर भी हैं। जब जो तादृश्य बनती हैं तो सबकुछ बदल जाएगा।

गुरुपूर्णिमा के अवसर पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव का ये क्वोट देखने में आया। गुरु की कृपा या ईश्वर की मर्जी से ये ब्लोग इसी विषय पर आगे बढ गया। मैं सोचता गया लिखता गया। संभावना का मूर्त रुप इस ब्लोग के जरिए पेश करता हूँ। अच्छा लगे तो ईश्वर को मेरी ओर से भी शुक्रिया कहना।


"जो अनिश्चितता से बचने की कोशिश करते है, वो संभावनाओं से चूक जाते है।" सारा ब्रह्माण्ड निश्चितता के साथ अनिश्चितताओं से भी भरा हैं। निश्चित दृश्यमान हैं, अनिश्चित ईश्वर के हाथ में हैं। सारा ब्रह्माण्ड संभावनाओं से भी भरा हैं। जो कोई अनिश्चितता से बचने का प्रयास करता हैं, मैं सबकुछ अपनी मर्ज़ी से करता हूं। या हम इतना हांसिल करलें फिर कोई चिंता नहीं। मेरी भौतिक आबादी कायम रहेगी। इतना वहां रखे, इतना छिपाकर वहां रखे, चलों हम निश्चिंत हो जाए। मगर जो अनिश्चितता है, वो कभी हमें जीतने नहीं देगी। इसीलिए कृष्ण निमित्त भाव समझाते हैं।

तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ।।११.३३।।

इसलिए तुम उठ खड़े हो जाओ और यश को प्राप्त करो; शत्रुओं को जीतकर समृद्ध राज्य को भोगो। ये सब पहले से ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं। हे सव्यसाचिन् ! तुम केवल निमित्त ही बनो।।

अर्जुन आनेवाली अनिश्चित काल की चिंता में बैठा था। जो उसके हाथमें नहीं उसकी चिंता करके निःसहाय बन बैठा हैं। तब सत्य की संभावना या सत्य की प्रतिष्ठा कैसे होगी ? कृष्णा ने अर्जुन को निर्भय बनाया हैं, धीर बनाया, अनिश्चितता स्वीकार करने योग्य बनाया।  तब जाकर धर्म संस्थापना संभव हुई हैं। तब जाकर महाभारत के रुप में उत्कृष्ट आदर्श विश्व को मिला हैं। सारे संसार के लिए "श्रीमद्भगवद्गीता" ईश्वर का दमदार निमित्त हैं। गीता हर मनुष्य का एक बेहतरीन तोहफ़ा हैं। क्योंकि गीता स्वयं कृष्ण के मुख से प्रगट हुई हैं।

भगवद्गीता को मैं संभावना ग्रंथ कहता हूँ। निर्माल्यता- दुर्बलता से परे जाकर उठ खडे होने की संजीवनी गीता हैं। ये जीवन ज्ञान का अमूल्य विज्ञान हैं। मनुष्य के रूप में किसी ओर मनुष्य को दुर्बल मानना ये कितना हलकट विचार हैं। उन लोगों को गीता में से कुछ नहीं मिलेगा जो अपने ही स्वार्थ से बंधे हैं। वो मोक्ष की बातें ही करेंगे। उनके हृदयमें कभी प्रेम प्रगट नहीं हो सकता। उनका कोई मित्र न रहेगा। उनके स्वयं में स्वजन भाव कभी न उठ पायेगा। उनकी मक्कार हसी पकडी ही जायेगी। उनको स्वयं अपनी मूर्खता में जीना पडेगा। उसके द्वारा संभावना पैदा हो सकती हैं ? प्रश्न आप को..!
 
"आनंदविश्व सहेलगाह" ब्लोग मेरा वैचारिक अनुराग हैं। इस लेखनयात्रा में मैं केवल निमित्त भाव से झुडा हूं। ईश्वर की संभावना दृष्टि अमर्यादित हैं, असीमित हैं। मैं तो एक छोटा उपकरण हूं। थोडे विचार को शब्द आकार का रुप देकर खुश होता हूं !!


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Wednesday, July 10, 2024

Creator of the universe...!
July 10, 2024 4 Comments

Creatures are beautiful part of the world.

Rainy season is born time of creatures and incects.

सृष्टि में एक माहौल ऐसा भी बनता हैं जिसमें जीवों का पैदा होना बढ जाता हैं। ईट्स अ "बीग बॉर्न टाईम"। बारिश सबसे बड़ी क्रियेटिव सिजन हैं। सृष्टिमें सबसे बेहतरीन घटना वर्षाकाल हैं। ईश्वर बडे सृजन कर्ता हैं। सबका अनुभव है हम बारिश से तृप्त होते हैं। वर्षा की मोसम भले ही थोड़ी-बहुत खतरनाक हैं फिर भी सबको पसंद हैं। मुझे इस ब्लोग के लिखते समय ख्याल आया हम ईश्वर को शायद आसमान में इसी कारण ढूंढते हैं। हताशा-निराशा में हम उपर देखकर प्रार्थना करते हैं। इसमें कोई धर्म का बाद नहीं हैं। बस ये सबकी सहज हरकत हैं।

ईश्वर को हम परवद्दीगार कहते हैं। इसका मतलब ही सबका पालन करनेवाला ऐसा होता हैं। वर्षाऋतु पालन करने की ईश्वर की जबरदस्त चेष्टा हैं। पानी की बातें बहुत हो सकती हैं, मगर आज बर्षाकाल में जो असंख्य प्रकार के जीवों का जन्म होता हैं, उसके बारें में थोडा-बहुत सोचेंगे। मैं एक विचार रखता हूं..बाद में ईसे किस हद तक ले जाना हैं, वो आप पर निर्भर हैं। मैं ईस धरातल का एक छोटा-सा इन्सेक्ट की तरह हूं। एक 'विचारबीज' रख रहा हूँ।


वर्षाकाल में एकदम से कईं जीवों का प्रकट होना सहज संभव हो जाता हैं।भांति-भांति के रंगो लिए, विचित्र प्रकार के पंख लिए, आवाज की भिन्नता से भरे ओर शरीर की नाजुकता लिए कईं प्रकार के जीव धरती पर छा जाते हैं। कईं इसमें जहरीले भी होते हैं। छोटे मगर दंशीले और कईं तो ख़ूबसूरती से भरें होते हैं। ये संसार की बडी लाजवाब घटना हैं। ज्यादातर किटक जीवन क्षणिक होता हैं। ईश्वर की अकल्प्य योजना के तहत किटकों का क्षणजिवी अवतार होता हैं। थोडे ही समय में वे अपने जलवें बिखेर के मृतप्राय हो जाते हैं। ईस घटना के हम साक्षी हैं। सभी को इनका आकर्षण हुआ होगा। सभी का बचपन तो इस घटना से काफी अचंभित होता रहा हैं। रात के सन्नाटे में ईन जीव-जंतुओं की कर्कश आवाज के हम सब साक्षी रहे हैं।

आज विचार आया सारें किटकों का सामूहिक बर्थ इसी ऋतु में क्यों होता होगा ? बडा ही सोचने लायक मुद्दा हैं। ईश्वर की योजना कैसी होगी ? लेकिन मुझे एक बात ध्यान में आई हैं। शायद धरती पर बारिश के बाद बोनाई का काम शुरु होता हैं। इसी कारण मिट्टी में छीपे कईं जीवों का बाहर आना होता होगा। थोडे दिन की धरती की सैर..! बारिश के कारण अन्य जीवों को खुराक सहज मिल जाए इसी कारण...या फिर अपनी छोटी-सी जिंदगी का छोटा-सा कर्तव्य निभाने..!

अहस्तानि सहस्तानामपदानि चतुष्पदाम्।
फल्गुणी तत्र महतां जीवो जीवस्य जीवनम् ॥ (श्रीमद्भागवत १.१३.४७)
"जिनके हाथ नहीं हैं, वे हाथ वालों के शिकार हैं; जिनके पैर नहीं हैं, वे चार पैरों वाले लोगों के शिकार हैं। कमजोर लोग ही बलवानों का आहार हैं और सामान्य नियम यह है कि एक जीव दूसरे जीव का भोजन है।"

शायद प्रकृति की कोई अनवरत योजना का अंश है, या कुदरत का कोई उद्देश्य..! जो भी हो लेकिन बर्षाकाल में ये हो रहा हैं। उससे लाभ-अलाभ क्या हैं वो भी हम कैसे जान पायेंगे ? बस, हमें अचंभित होते रहना या अपनी छोटी-सी कल्पना को विचारपंख देना। इससे ज्यादा हम क्या कर सकते हैं। बस साक्षीभाव से अधिक !!

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Wednesday, July 3, 2024

The july..!
July 03, 2024 8 Comments

"Everything good, everything magical happens between the months of June and August." JENNY HAN

"जून और अगस्त के महीनों के बीच सब कुछ अच्छा, सब कुछ जादुई होता है।" जेनी हान


"The summer looks out from her brazen tower throught the flashing bars of july." Francis Thompson
"ग्रीष्मकाल अपने बेशर्म टॉवर से जुलाई की चमकती सलाखों के माध्यम से बाहर दिखता है।" फ्रांसिस थॉम्पसन

यहाँ दो क्वोट के जरिए में आपके दिमाग में जुलाई मास की थोडी चुलबुली बातें रखता हूँ। ये जादूई महिना है येसा "जेनी हान" कहते हैं। दूसरी तरफ जुलाई की चमक और ग्रीष्म की बेशर्मी का हटना "फ्रांसिस थॉम्पसन" को अच्छा लगता हैं। अब देखें थोड़ी जुलाई की पूर्वापर बातें..!

जूलियन और ग्रेगोरियन कैलेंडर में जुलाई वर्ष का सातवां महीना ( जून और अगस्त के बीच ) है। और सातवां महीना 31 दिनों की लंबाई वाला होता है। इसका नाम रोमन सीनेट द्वारा रोमन जनरल जूलियस सीज़र के सम्मान में रखा गया था, यह उनके जन्म का महीना था। इससे पहले, इसे क्विंटिलिस कहा जाता था।
यह अधिकांश उत्तरी गोलार्ध में औसतन सबसे गर्म महीना होता हैं। जहाँ यह गर्मियों का दूसरा महीना होता है। और दक्षिणी गोलार्ध में सबसे ठंडा महीना होता है। जहाँ यह सर्दियों का दूसरा महीना होता है। वर्ष की दूसरी छमाही जुलाई में शुरू होती है। दक्षिणी गोलार्ध में, जुलाई उत्तरी गोलार्ध में जनवरी के बराबर मौसमी है। ( संदर्भ विकिपीडिया साभार )

Jeny han


हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह से प्रारंभ होने वाले वर्ष का चौथा महीना 'आषाढ' हैं। जो ईस्वी कलेंडर के जून या जुलाई माह में पड़ता है। इसे वर्षा ऋतु का महीना भी कहा जाता है। इस समय भारत में काफ़ी वर्षा होती है। हमें इस महीने में काफी गर्मी झेलने के बाद कुछ राहत मिलती है। इस मास मै हिन्दू मान्यतायो के अनुसार सभी देवी देवतायें विश्राम के लिये जाते हैं। इस महीने में सभी तरफ हरियाली छा जाती है। एवम जमीन के नीचे दबे जीव जंतु सब बाहर निकल आते है। धरती का संपूर्ण बदलाव इस ऋतु में बेशुमार दिखाई पडता हैं।

आषाढ बेशुमार हैं। आषाढ बेमिसाल हैं। आषाढ बेहिसाब रोमांच का महिना हैं। झङ-चेतन सभी के मन में अलौकिक उत्साह का छा जाना ये बडी दिलचस्प घटना हैं। ये तृप्ति का भी महिना हैं। ये अंकुरित होने का महिना हैं। ये हरियाली का महिना हैं। ये हवा को भी भारी करनेवाला महिना हैं। साथ ही आषाढ ईन्सान के ईमोशन्स को झकझोर ने वाला भी हैं। संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास का 'मेघदूत' एक अद्भुत ऋतुकाव्य हैं। इसमें यक्ष बादलों से बातें करता है। अपनी प्रेमिका तक संदेश पहुंचाने के लिए जो आषाढ के बादलों से बिनती करता हैं। कुदरत की आमूल परिवर्तनी में यक्ष अपनी प्रियतमा से दूर नहीं रह सकता। विरह से उसकी पीडा बढ़ जाती हैं। वो तडप उठता हैं। लेकिन आषाढ के बादलों से बातें करके उसको सुकुन भी मिलता हैं। आषाढ सुकुन का द्योतक हैं। ये उद्भव है, निर्माण भी हैं।

जुलाई के महिने में जन्में सभी को बधाई। इत्तेफ़ाक से मैं भी जुलाई में ही पैदा हुआ हूँ। नव निर्मिति के माहौल में नए संकल्प से झुडे और सत्व के प्रति झुके इसी कामना में सबका मंगल प्रार्थी..!
झुकने से ही झुडाव महसूस होता हैं। अंबर का धरती के लिए झुकाव..ये झुडाव का उत्कृष्ठ उदाहरण हैं।

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Quality of life..!

The quality of your thinking  determines the quality of your life. आपकी सोच की गुणवत्ता आपके जीवन की  गुणवत्ता निर्धारित करती है। जीवन आखिर...

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