March 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Monday, March 31, 2025

FOCUS ON YOUR FUTURE..!
March 31, 2025 5 Comments

Rivers Never Go Reverse...So try to live like a river.

Forget your past and

FOCUS ON YOUR FUTURE..!
A.P.J. Abdul Kalam. 

नदियाँ कभी उल्टी दिशा में नहीं बहती इसलिए नदी की तरह जीने की कोशिश करें। अपने अतीत को भूल जाएँ और अपने भविष्य पर ध्यान दें।


कभी कभार शब्द भी विचलित करते हैं, विचारभी..! महान वैज्ञानिक और दार्शनिक डाॅ.अब्दुल कलाम जी की दमदार बात सुनकर अच्छा लगा। साथ ही थोडा अचंभित हूं कि कहीं पढा था; इतिहास हमारी धरोहर हैं। जो व्यक्ति अपना इतिहास नहीं जानता वो अपनी प्रगति से दूर रहता हैं। अब यहाँ तो पास्ट को भी भूल जाने की बात हैं..! फर्गेट यॉर पास्ट..!

विचार कभी गलत नहीं होता। वो अनुचित हो या उचित। विचार की अपनी ताक़त होती हैं। उसे किस तरीके से समझना है वो हमारी सोच पर निर्भर करता है। मैंनें पहले कहीं लिखा था। महाभारत के सभापर्व में दुर्योधन द्वारा एक उक्ति कही गई हैं, 'असंतोषा: श्रीयंमूलं' असंतोष ही लक्ष्मी का मूल हैं। एक तरफ ये एकदम सही हैं। हमें धन प्राप्ति श्रीलक्ष्मी की प्रावि करनी है तो असंतोष पूर्वक महेनत करनी होगी। कुछ भी प्राप्त करना हैं तो असंतोष को पालना होगा। लेकिन ये बात तब गलत होती है जब प्राप्ति के मार्ग बडे विचित्र और अमानुषिक होते हैं। कदापि विचार गलत नहीं हो सकता वर्तन गलत हो सकता हैं।


अब समझ में क्लियारीटी हो गई होगी। हमें विचार की गहराई को पकडना होगा। उसकी ताक़त को महसूस करना होगा। दूसरें विचार से तुलना नहीं करनी हैं। अब्दुल कलामजी सोच प्रतिशत सही हैं। उनका निरीक्षक सटीक हैं। नदी हमें हरदम सिखाती रहती हैं। वैसे तो प्रकृति में देखने की हमारी नज़र से ज्ञान प्राप्ति की क्रिया को निस्बत हैं। हम कैसा सोचते हैं वो हम पर ही निर्भर करता हैं।

'रिवर्स फाईंड अ वे' नदी अपना रास्ता खुद ही ढूंढ लेती हैं। ये वाक्य मैं जोड़कर आगे बढता हूँ। कलाम जी कहते हैं: नदी कभी उल्टी नहीं बहती और वापिस भी नहीं आती। चल पडी फिर चल ही पडती हैं। हमें अपने रास्तें खुद चुनना हैं। फिर उस पर चल पड़ना, दौड पडना हैं। आने वाले समय की ओर..! भूतकाल के अच्छे बुरे वक्त को भूलकर क्या हांसिल करना हैं, कहां तक पहुंचना हैं ? उसका ही विचार करना होगा। मंजिले को पा लेना ऐसे ही संभव नहीं होता। एक नज़र वहीं लगी रहनी चाहिए। कदम वहीं दिशा में चलते रहने चाहिए।

नदी को रोकने के प्रयास हुए हैं। बंध बांधकर बहते पानी को रोकने के प्रयास कारगत हुए लेकिन नदी बहती ही रही हैं। उसका मुकाम सागर हैं। वहां तक की सफर जारी रहती हैं। हम तो नदी को बांधने से खुशहाल हैं। लेकिन उसे रोक नहीं सकते..! नदी बहती हैं वापस नहीं लौटती..! मंज़िल को पा ने की इससे बड़ी हैरत भरी घटना कहां देखने मिलेगी ? ये प्रकृति का संदेश हैं। ये अदृश्य ईश्वर की लीला हैं।

नदी या प्रकृति के कईं पहलुओं से हमें यहीं सीखना होगा...रुकना नहीं हैं। ये भी सीखना होगा किसी को रोकना भी नहीं हैं। इस हरकत से प्रकृति का प्रकोप झेलना पड़ेगा वो निश्चित हैं। सबको अपने-अपने मुकाम तक पहुंचने का अधिकार हैं। वो याद रखें तो प्रकृति की बेशुमार कृपा हम पर बनी रहेगी। और हमारी वैयक्तिक प्राप्ति भी सरलतम होगी।

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Dr.Brijeshkumar Chandrarav
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Tuesday, March 25, 2025

The great फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की...!
March 25, 2025 7 Comments

"I have never betrayed you even in my thoughts." Dostoevsky.


 "मैंने कभी अपने विचारों में भी तुम्हें धोखा नहीं दिया।" 

The Idiot (1868-69) उपन्यास की बात ही कुछ ओर हैं। 'द रशियन मेसेंजर' जर्नल में 'द इडियट' की कहानी श्रेणीबद्ध प्रकाशित हुई थी। बड़ी ही लाजवाब कृति हैं। एक युवान राजकुमार अपनी सरलता- सहजता से मानो की खुले दिल से जीवन जीता हैं। उसकी निर्दोषता दुर्व्यवहार का सामना करती हैं। फिर भी दोस्तोयेव्स्की ने अपने पात्र को सकारात्मकता से भर दिया हैं। यहाँ एक अच्छे इन्सान का चरित्र उभर के आता हैं। सर्जक की यहीं खूबी होती हैं।

Dostoevsky

जीवन गजब की कहानी हैं। कोई लिखता हैं, कोई अनुभूत करता हैं। खुशी-गम, हर्षोउल्लास, क्रोध, असूया, सत्य-असत्य एवं आनंद की लहर में जीवन बहता रहता हैं। कोई जीवन को समझने में समय बर्बाद करता हैं। कोई अलौकिक रुप से जीवन को जीता है। "मैं ईश्वर की कुछ मर्ज़ी का साधन हूँ " ऐसा समझते हुए कोई आनंद करता हैं।

रात-दिन, खान-पान और स्त्री-पुरुष इसमें शायद सबकुछ आ जाता हैं। प्रकृति-जीवन और मानव व्यवहार तीनों से जीवन बनता हैं। जीवन के मर्म को अकारण ही समझ लेना भाग्य हैं। और जीवन में अच्छे लोगों की संगत प्राप्ति होना उससे भी बडा भाग्य हैं। 'स्वजन' मूलतः अपने होने चाहिए। अपने अपने ही रहें तो बेहतर हैं। और उसकी अनुभूति के लिए प्रेम करना पडता हैं। प्रेम को अपने भीतर ही पलने देना होगा। पूजा करके उसे संवर्धित करना चाहिए।

आईए, महान रूसी लेखक और दार्शनिक फ़्योदर दोस्तोयेव्स्की के जीवन की एक बात हैं। एक बार उन्होने अपनी प्रिया मारिया को लिखा था: "उस गली में जहाँ तुम रहती हो, उसमें तुमसे अधिक सुंदर नौ महिलाएँ हैं। तुमसे लंबी सात महिलाएँ हैं और तुमसे छोटी नौ महिलाएँ हैं। एक महिला है, जो दावा करती है कि वह मुझसे तुमसे अधिक प्रेम करती है। काम की जगह पर भी एक महिला मुझे हर दिन मुस्कुराकर देखती रहती है। एक अन्य स्त्री भी मुझसे बातचीत करने की कोशिश करती है। और रेस्तरां की वेट्रेस तो मेरी चाय में चीनी की जगह शहद डालती है...लेकिन फिर भी..!मैं सिर्फ़ तुमसे ही प्रेम करता हूँ।"
और विवाह के बाद....
मारिया ने एक समर्पित पत्नी होने का प्रमाण दिया था। उन्होंने उनके रोग, गरीबी, लंबी यात्राओं और अनुपस्थिति को सहन किया था। हर कठिनाई में मिस.मारिया दोस्तोयेव्स्की के साथ ही खड़ी रही थी।

जब वे मृत्युशय्या पर पड़ी थी, तब दोस्तोयेव्स्की ने धीरे से उनके कान में फुसफुसाया मतलब धीरे से कहा था : "मैंने कभी अपने विचारों में भी तुम्हें धोखा नहीं दिया।" (साभार सोशल मीडिया)

प्रसंग खत्म हुआ। बात बडे दार्शनिक के जीवन की हैं। इसलिए इतनी दिलचस्प नहीं हैं। बात उन पति-पत्नि के बीच के अनुराग की हैं। जीवन चलता तो रहेगा, लेकिन ऐसी संवेदन शील भावनाओं में बहता जाय तो ठीक हैं। उसका सौंदर्य बडा ही सुहावना होता हैं।

चलों, ऐसे सुहावनेपन की खोज में निकल पडे...!

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Monday, March 17, 2025

Joy of Victory.
March 17, 2025 10 Comments

"In a war of ego, the loser always wins" BUDDHA

"अहंकार के युद्ध में हारने वाला हमेशा जीतता है।" - भगवान बुद्ध

जीवन की कला बड़ी ही पेचीदी हैं। जन्म से लेकर के मृत्यु तक जीवन जीना और समझना ही चलता रहता हैं। रात-दिन के समय चक्र में जीना हैं। संसार सागर के खारेपन को पीना हैं। कहीं माँ गंगा की शीतलता धारा को महसूस करना हैं। कभी खुशी कभी गम की तरह जीवन बहता ही रहता हैं। सृष्टि के प्राकृतिक व सामाजिक पहलूओं के साथ जीवन का तालमेल करते जाना हैं।

जन्म मिला है, जीवन मिला है तो गुजरेगा भी सही...! लेकिन जिसको जीवन का अर्थ समझ में आता हैं। कुछ करने की उम्मीद उनके मन में पलती हैं। या नियंता के निमित्त उनको वैसे ही मार्ग पर ले जाते हैं। या ईश्वर की विशेष मर्ज़ी के तहत कुछ अनूठा व्यक्तित्व आकारित होता हैं। कुछ विशिष्ट कार्य संभावित होते हैं। एक ऐसा व्यक्तित्व जो संसार को मार्गदर्शित करता हैं। जिसे युगपुरुष का नाम देकर हम उनका बहुमान करते हैं।

Buddha

अब, जिसको जीवन के बारें में ज्यादा कुछ समझना हैं। अपने नियत कर्मो को पहचान कर समाज में कुछ अच्छा देना हैं उसे आगे पढना चाहिए। बाकी टाइम पास के लिए कईं ओर भी काम हैं। शेखचल्ली या उनका भी बाप बनना हैं, वो इस मार्ग पर चल सकते हैं।

भगवान बुद्ध के जीवन की गति कुछ इस प्रकार की थी। उनको जीवन के मर्म को पकडना था। गहराई से जीवन को समझना था। सत्य और असत्य क्या है उसका भेद जानना था। जीवन और मृत्यु के रहस्यो को समझना था। ऐसे अनूठे मार्ग पर जिसे भी चलना है, उसे सब से मिलना होगा। उनको सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करना होगा। सद्गुण आवश्यकता की महत्ता को स्वीकार करना होगा। और भगवान बुद्ध ऐसे ही जीये है। हमें उपदेश करते हैं, मतलब जीवन का अनुभव बताते हैं। उन्होंने नियंत्रित जीवन जीया हैं। त्याग और समर्पण को महसूस किया हैं। जीवन की भरपूर उर्जा के लिए तप एवं साधना हैं।

वो परम प्राप्ति के वाहक भगवान बुद्ध अपनी जीवन प्रज्ञा से कहते हैं; हमें अहंकार के युद्ध में बख़ूबी भाग लेना हैं। लेकिन अहंकार के सामने तो हार ही जाना हैं। किसी प्रकार अहंकारी जीत जाता हैं। उसके सामने वाला हारता हैं। इस दोनों स्थिति में बहुत फर्क हैं। वैसे तो अहंकारी का विनाश ही होता हैं। एक व्यक्ति के रुप में हमें ego पालने से बचना होगा। क्योंकि उससे हमारें भीतर का मनुष्य कुंठित हो जाएगा। ईश्वर की दी हुई शक्तियाँ समाप्त हो जायेगी। हम मनुष्य के रुप में "कुछ करना चाहते हैं" ऐसे कईं संकल्पो से दूर ही रहेंगे।

अहंकार दूसरें को परास्त करने की विचित्र कला हैं। उससे व्यक्ति खुद ही खत्म हो जाएगा। इतिहास के पन्नों में काफी कुछ भरा पड़ा हैं। अहंकार में किसका सर्वनाश हुआ और अहंकारीयों से हारकर कितनों ने अपने मुकाम को बहतरीन अंजाम दिया हैं। इतिहास गवाह हैं, चांद और सूरज भी कुदरत की ओर से सब देख रहे हैं। मिटाने वालो की हस्ती खूद ही मिट गई हैं। अहंकारीयों के अपमान को झेलते हुए कईं नस्ल आज भी जिंदा हैं। तुच्छता के मार से आज भी कईं संवर गए हैं। और एक तरफ सबकुछ अपने हाथ में होने के बावजूद लोग परेशान हैं। कईं लोग अपने भीतर की झीलमिलाहट से दूर जा रहे हैं।

क्योंकि हारना भी जरुरी है...!?
और जीतना ही है तो...सबको अपनी ज्ञाति-जाति-धर्म का अहंकार मुबारक !!

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Wednesday, March 5, 2025

STARTING THE CHANGES.
March 05, 2025 2 Comments

Falgun is glorious month of the nature.

फाल्गुन प्रकृति का गौरवशाली महीना है।

भारत प्राकृतिक वैविध्य के साथ मौसम के वैविध्य में भी अनूठा हैं। वैदिक परंपरा का वाहक भारत मनुष्य जीवन के नैसर्गिक जीवन को सहज ही विकसित करता हैं। ऋतुओं का बदलाव मनुष्य के मन-मस्तिष्क को सँवार ने का काम करता हैं। वैसे एक सत्वशील मौसम की बात करता हूं।

फाल्गुन मास हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का अंतिम महीना है। वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है फाल्गुनमास..! इसे रंगों और खुशियों का महीना भी कहा जाता है। फाल्गुन मास से जुड़ी कुछ सुनी-अनसुनी बातें इस ब्लॉग में करते हैं।

Spring

फाल्गुन मास का नाम 'फाल्गुनी' नक्षत्र पर आधारित है। इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा फाल्गुनी नक्षत्र में होता है, इसलिए इसे फाल्गुन कहा जाता है। ये प्रकृतिक बदलाव का महीना हैं। फाल्गुन मास में सर्दि का अंत और गर्मि का प्रारंभ होता है। इस समय प्रकृति में नए पत्ते और विविध प्रकार के फूल खिलने लगते हैं।  जिससे वातावरण मनमोहक बन जाता हैं।
फाल्गुन का धार्मिक महत्व भी बडा हैं। वसंत के आगमन में शारदा पूजन का विशेष महत्व हैं। शिवरात्रि पर्व के कारण पूजा-पाठ भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। होली के साथ ब्रजवासी कृष्ण को झोडकर रंगोत्सव मनाया जाता हैं। ब्रज में मनाई जानेवाली होली की तो बात ही निराली थी। राधा और कृष्ण के साथ गोप-गोपियों का नृत्य बडा ही सुहावना था। इसके चित्र से भी आज सब मोहित हो जाते हैं। भक्त प्रह्लाद की उपासना के साथ भगवान विष्णु झुडे हैं। इसतरह यह महीना भगवान कृष्ण और भगवान शिव को समर्पित है। एक मान्यता यह भी है कि फाल्गुन माह में चंद्रमा का जन्म हुआ था। इसलिए इस माह में चंद्रमा की उपासना का विशेष महत्व है। वैसे भी गर्मी के मौसम में शीतलता चंद्रमा से ही मिलती हैं।

एक महत्वपूर्ण बात होली की हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्योहार मनाया जाता है। हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती रही हैं। कुदरत का मूलभूत सिद्धांत प्रकृति बयां करती हैं। इसके साथ मनुष्य जीवन की गतिविधि झुडती हैं। इसे हम त्योहार कहते हैं। इसतरह ये त्योहार इसके प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। रंगों और खुशियों का अद्भुत साथवाला उत्सव होली हैं। इसलिए ये आनंद और उल्लास का भी महीना कहा जाता हैं।

हिंदु संस्कृति के गौरवशाली फाल्गुन मास का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत अधिक है। साथ प्रकृति के साथ जुड़ने और जीवन में खुशियाँ लाने का अवसर प्रदान करता है। जीवन का मकसद आनंद हैं। ईश्वर की सारीं योजनाएं मनुष्य जीवन एवं प्रकृति के समग्र जीवजंतुओं के हित के लिए ही हैं। ऋतुओं का बदलाव प्रकृति में बदलाव लाता हैं। और प्रकृति का फ़रमान हम सबके लिए होता हैं। हमारे मन पर उनकी गहरी छाप पड़ती हैं। हमारी सोच भी बदलती हैं। खानपान में भी काफी-कुछ बदलाव आते हैं। एक प्रकार की गति से दूसरे प्रकार की गति में जाना होता हैं। नई उर्जा से फिर एकबार हम भर जाते हैं।

हिंदु संस्कृति जीवन के आनंद और उल्लास की संस्कृति हैं। इसमें सबका समान अधिकार हैं। आनंद प्राप्ति की गति में कोई क्षति पैदा करना प्रकृति का ही अपमान कहलाता हैं। सबके आनंद को वंदन करता हूं।

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Bharat Ratna KARPURI THAKUR.

भारत के एक इतिहास पुरुष..! सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में...

@Mox Infotech


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