If all your energies are focused in one direction, enlightenment is not far away. After all, what you are seeking is already within you.
SADGURU.
मुझे ऐसे विषय पर लिखना और सोचना अच्छा लगता है, जिससे मुझे और पढ़नेवाले दोनों को आनंद मिल सके। मैं कोई ज्ञान बांटने का काम नहीं कर रहा। मैं मेरे कार्य को नैमित्तिक कार्य मानता हूं। और इसी भाव के साथ मुझे जो अच्छा लगे वो दूसरों को बताते हुए आनंद करता हूँ। चलो, आप ऐसे ही विषय पर मज़ा करे।
हम सब उर्जा से भरे हैं। जन्म से ही ईश्वरने काफ़ी कुछ शक्तियों से हमें भर दिया हैं। हम शरीर की शक्तियों की बात नहीं कर रहे हैं। मनुष्य के रुप में हमें मिली चैतसिक शक्ति के बारें में बात करता हूं। "चैतसिक" शब्द का अर्थ है मन से संबंधित, चित्त से संबंधित या चेतना संबंधित। यह शब्द बौद्ध धर्म में भी प्रयोग किया जाता है, जहाँ इसका अर्थ है दुष्ट कर्मों से विरक्त रहने की शक्ति। ये कोई उपदेश नहीं हैं, लेकिन शब्द को समझने के लिए थोड़ा शब्द प्रमाण लिखा हैं।
हम सब हमारी चैतसिक ताक़त पर कम भरोसा करते हैं। क्योंकि ये दिखाई नहीं पड़ती। और जो शक्तियाँ दिखाई पडती है उससे काम चलाने पर तुले हैं। इसके कारण दूसरा भी चैतसिक शक्ति से भरा है, ये हम भूल जाते हैं। इससे हमारा नुकशान ये होता है की हमारी शक्ति को हम ही भूल जाते हैं। बाद में ये अदृश्य कुदरत की शक्तियों के बारें में संदेह करते रहते हैं। इस गडबडी में से ही 'मैं' निकला हैं। मैं हूँ..! मैंने ये किया हैं ! मैं ये कर सकता हूं..! सब जगह पर 'मैं ही मैं हूं' का विचित्र रोग लग जाता हैं। इससे कईं शक्तिमान भी पीड़ित नजर आएंगे। पैसा है, पद है, शानो-शौकत है, बड़ी ज्ञाति-जाति में जन्म हुआ हैं। फिर भी कुछ कम दिखाई पडता हैं।
हमारे भीतर के चैतन्य का आदर करना चाहिए। और दूसरों के चैतन्य का भी..! ये हमारी उर्जा केंद्रित करने का सरल मार्ग हैं। इसे मैं excellent focus कहता हूं। दिखाई न देनेवाली शक्तियों को जागृत करने के मार्ग कईं मनीषियों ने बताए हैं। लेकिन उनकी उलझी हुई बातें हमें भ्रम में डालती हैं। सद्गुरु सरलता से रीयल फॉर्म में जीवन के बारें में जो कुछ सत्य हैं वो बताते हैं। उन्होंने 'आत्मज्ञान' शब्द का प्रयोग किया हैं। और ये भी कह दिया कि जो हम खोज रहें हैं, वो पहेले से ही हमारे भीतर हैं।
मूलभूत रुप से विचार व ज्ञान को बांटता हैं उनकी उन्नति होती ही रहती हैं। कोई लाख बूरा चाहे...वही होता हैं...! वाक्य पूरा आपको करना हैं। मैं वैमनस्य फैलाने से बचना चाहता हूं। कोई शब्द या विचार किसी धर्म-पंथ के दायरे में कहना नहीं चाहता। सद्गुरु की बात में सत्यता और सरलता की गुणात्मकता ज़्यादा हैं। इस लिए उनका प्रभाव हैं इसका सहज स्वीकार करता हूं। बाकी कई विचारधाराएं कलुषित होकर लुप्त हो गई हैं, इसका इतिहास साक्षी हैं। कौन-सा विचार सनातन हकीक़त बनेगा उसके बारें में अपने चैतन्य से ही पूछे..!?
किसी को इससे भी आपत्ति आएं तो माफ करना। क्युकी सोच को कैसे बढ़ाना हैं वो हम पर निर्भर करता हैं। कैसी सोच रखकर जीना हैं ये वैयक्तिक बात हैं।
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli
Gujarat
INDIA
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234
It is the best.... wonderful work
ReplyDeleteફોકસ ગુડ ડિરેક્શન સુંદર ટાઇટલ છે.વાંચી ને મજા આવી .ડૉક્ટર સાહેબ.
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