June 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Sunday, June 29, 2025

Speaking truth to power.
June 29, 20250 Comments

एक अद्भुत घटना..!

मानवीय मूल्यता का सुंदर विचार..!

सत्ता के सामने बेझिझक सच बोलने की हिम्मत..!



योगेन्द्र यादव का एक विडिओ देखा। वो कहते हैं : "मैंने जब ये विडिओ देखा तो मेरे रोंगटे खडे हो गए, आंख भर आई। मैं चाहता हूँ की हम सब इस दो मिनट का विडिओ देखे। विडिओ अमेरिका का हैं, लेकिन संदेश शाश्वत हैं। वॉशिंग्टन में प्रोटेस्टेंट संप्रदाय की एक चर्च हैं। जहाँ परंपरा है की राष्ट्रपति शपथ लेने के अगले दिन एक प्रार्थना सभा के लिए जाते हैं। उस प्रार्थना सभा में वहाँ की महिला बिशप मॅरीअन एडगर वो राष्ट्रपति को सामने बैठा के क्या बात कहती हैं, आप जरा सुनिए। अंग्रेजी में एक मुहावरा हैं। "स्पीकिंग ट्रुथ टु पाॅवर" सत्ता की आँख में आँख डालकर सच बोलने की हिम्मत..!" शब्दों में सरलता हैं, ये समाचार हैं, इसमें सत्यता की खनक हैं और सभ्यता की सुगंध भी हैं। ऐसे निडर पत्रकार को सलाम करते हुए में आगे चलता हूँ। थैंक्स, योगेन्द्रजी फोर गुड थोट। इस ब्लॉग मैं उनके विडिओ का आधार लिया गया हैं।


अब बिशप मॅरीअन एडगर ने क्या कहा उसका थोड़ा सा अंश पेश करता हूं। "भगवान के नाम पे मैं आपको हमारे देश में उन लोगो पर दया करने कहती हूँ जो अब डरे हुए हैं। डेमोक्रेटिक, रिपब्लिकन और असंबद्ध परिवारों में गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर बच्चे हैं। जिन्हें अपनी जान का डर हैं। जो लोग हमारी फसलों की कटाई करते हैं और हमारे ऑफिस की बिल्डिंग साफ करते हैं, जो पोल्ट्री फार्म और मीट पैकिंग प्लांट में मजदूरी करते हैं, जो हमारे रेस्तरां में खाने के बाद बर्तन धोते हैं और अस्पतालों में रात की शिफ्ट में काम करते हैं वे नागरिक न भी हो या उनके डॉक्यूमेंट पूरे ना भी हो लेकिन इन आप्रवासियों का विशाल बहुमत अपराधी नहीं हैं। वे टैक्स देते हैं और अच्छे पड़ोसी हैं। वे हमारे चर्चों और मस्जिदों, सिनगाँग, गुरुद्वारों और मंदिरों के भक्तजन हैं। राष्ट्रपति जी, मैं आपको हमारे समाज के उन लोगों पर दया करने के लिए कहती हूँ। जिनके बच्चे भयभीत है कि उनके माँ बाप को उठा लिया जाएगा। आप उन लोगों की मदद करें। जो युद्ध क्षेत्र और अपनी भूमि में उत्पीड़न से भाग कर करुणा और स्वागत की आस में यहां आ रहे हैं। हमारा ईश्वर हमें अजनबी के प्रति दया सिखाता हैं। कभी हम सभी इस भूमि में अजनबी थे। ईश्वर हमें ताक़त और साहस दे कि हम हर इन्सान की गरिमा का सम्मान करें, एक दूसरे से सत्य बोलें स्नेह से और सर झुकाकर चलें। एक दूसरे के साथ हमारे भगवान के साथ, सर्वलोक के कल्याण के लिए, देश और दुनिया में सभी लोगों की भलाई के लिए..! आमीन..!" सुंदर शब्दों के लिए बिशप मॅरीअन एडगर का भी ऋण स्वीकार करता हूं।

इस घटना का ज़िक्र करते हुए हमारे भारत वर्ष के वेदो के कुछ श्लोक भी याद आए। भारतवर्ष की भीतरी सोच का जीवंत दस्तावेज हमारे वेद हैं। उसमे समष्टि के कल्याण की बात भरी हुई हैं। स्वामी विवेकानंद जैसे संत ने इसी लिए पश्चिम में अपनी आध्यात्मिक धरोहर की बात रखी थी। उनके स्वीकार का एक कारण यह भी था कि उन्होंने 'भारतवर्ष के आत्मा' का बखूबी वर्णन 'विश्व धर्मसभा' में किया था। बिशप की बातों का मेल मुझे इस श्लोक में मिलता हैं।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत् ॥

'सब सुखी हो, सब निरोगी रहे। सब अच्छी घटनाओं के साक्षी बने रहें और कभी किसी को दुःख का भागी न बनना पड़े।'

बिशप की सद्भावना इसी श्लोक में प्रगट हो जाती हैं। हमारे उपनिषदों के ज्ञान को 'अपौरुषेय' कहा गया हैं। अपौरुषेय का अर्थ हैं 'मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं' या 'निर्वैयक्तिक' होता हैं। यह श्लोक 'वृहदारण्यक उपनिषद्' में से लिया गया है। उपनिषद् का अर्थ है पास में बैठना। ये हमारी हमारे भारतवर्ष की शाश्वत मान्यता हैं। ये हमारी मानवीय परंपरा का सूत्र भी हैं।

विश्व में जो कुछ अच्छा हो रहा हैं, उसकी प्रशंसा करना भी हमारा मानवीय धर्म हैं। हमें हमारा गौरव गान करना हैं, हमारी परम्पराएँ का प्रचार-प्रसार भी करना हैं। लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है की दूसरों के द्वारा बोली गई संवेदना से भरी सम्यक दृष्टि का स्वीकार ही न करना। और भारतवर्ष के गौरव की बात करते हुए दूसरों की अवहेलना करते हैं तो समझो वो विचार हमारा नहीं हैं। वो किसी स्थापित हितो के लिए संघर्ष कर रहे संगठन का हैं। उनमें मानव सभ्यता के प्रति खोखलापन हैं, दोगलापन हैं। ऐसे व्यक्ति और संगठन राष्ट्र को बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। उनकी फिलसूफी में वैयक्तिक या एक स्थापित समूह के लिए स्वार्थपूर्ति की बात होती हैं। इससे भारतवर्ष को ख़तरा हैं।

आज विश्व हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का आदर करते हुए हमसे आगे निकल रहा हैं। हमारा देश संकुचित मानसिकता का शिकार बनता जा रहा हैं। 'भारतवैभव' की बातें एक शब्द बनकर रह जा रही हैं। मात्र अनुकरण के साथ हमारी सोच केवल चिल्लाहट बन रही हैं। हमारी परंपरा अंतर्मुखी कतई नहीं हैं। फिर भी ये हो रहा हैं..! क्यूं हो रहा हैं..!? वैयक्तिक और सामूहिक आंतरखोज करने का समय आना चाहिए। वर्ना हम भारतवर्ष के गौरव का गान करते हुए गायक ही न बने रहें !?!

एक अच्छी घटना का जिक्र करके मैं आनंदित हुआ। मैं मेरा छोटा-सा कर्म करके बहुत ही खुश हूं। विश्व के कल्याण के लिए चिंतित सभी को शत शत नमन करते हुए...!

आपका Thoughtbird 🐣
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Saturday, June 28, 2025

Bharat Ratna KARPURI THAKUR.
June 28, 2025 4 Comments

भारत के एक इतिहास पुरुष..!

सामाजिक अवहेलन से उपर उठकर अपने अस्तित्व को कायम करनेवाले, स्वतंत्रता के पश्चात उभरे राजनैतिक चरित्र के बारें में थोड़ी सी हकीक़त..!



२३ जनवरी २०२४ में जिसे भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारतरत्न' दिया गया। ये उनकी जन्म शताब्दि का वर्ष था। एक व्यक्ति के नाम से गाँव का नाम जुड़ता हैं। वो बिहार की राजनीति के सीमास्तंभ हैं। उस भद्र जननायक का नाम हैं...कर्पूरी गोकुल ठाकुर। रामदुलारी देवी के पुत्र। वे नाई समुदाय से थे। इस जातिसूचक वाक्य को लिखना ठीक नहीं लगता फिर भी लिख रहा हूं। क्योंकि सब को पता चले प्रतिभा किसी दायरे की मोहताज नहीं होती। किसीके इरादें जब लोगों की संवेदना से झुडते हैं तब क्रांति होती हैं। कोई इसे हकीक़त बनते रोक नहीं सकता। आज से सो साल पहले ऐसा ही कुछ हुआ था, भारत के बिहार क्षेत्र में..! अमरत्व के आशिष लेकर मान्यवर कर्पूरी ठाकुर अपने व्यक्तित्व से उठ खड़े हुए थे...भारत की राजनीति में दमदार अध्याय लिखने के लिए...!


1988 में कर्पूरी ठाकुर के मृत्यु के बाद उनके जन्मस्थली समस्तीपुर जिला के पितौंझिया गाँव का नाम बदलकर कर्पूरी ग्राम "कर्पूरी गाँव" कर दिया गया था। समाज की वर्गवाद-जातिवाद की मानसिकता के खिलाफ ये एक अद्भुत घटना थी। आज भी इतिहास के पन्नों में वो महान पुरुष की कहानी गौरवपूर्ण तरीके से दर्ज भी हैं।

भारत के परतंत्रता काल में २४ जनवरी १९२४ को उनका जन्म हुआ था। बहतरीन निमित्त उनको अच्छे कामो में जोड रहे थे। कर्पूरी ठाकुर महात्मा गांधी और सत्यनारायण सिन्हा के संपर्क में आए और काफी प्रभावित भी हुए। जीवन की दिशा तय हो गई और काम भी शुरु हो गया। वो 'ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन' में शामिल हो गए। छात्र कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने 'क्विट इंडिया मूवमेंट' 'भारत छोड़ो' आंदोलन में भाग लिया था। उन्होंने अपनी स्नातक की पढाई छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना योगदान दिया था। और छब्बीस महीनो का जेलवास भी किया था।

अपने युवाकाल में ही भारत को स्वतंत्रता मिली थी। स्वतंत्र भारत में ठाकुर ने अपने गाँव के स्कूल में शिक्षक के रूप में समाज उत्कर्ष का काम शुरु किया था। समाज को अच्छी शिक्षा मिले उस दिशा में वो चल पडे थे। "शिक्षा से ही सबका उद्धार हैं" ऐसे स्पष्ट खयालात रखने वाले ठाकुर बिहार की जनता के लिए भारत में १९५२ में हुए पहेले चुनाव में भाग लेते हैं। ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से वो 'सोशलिस्ट पार्टी' के उम्मीदवार बने। और बिहार विधानसभा के सदस्य भी चूने गए। वो १९५२ की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे थे।

राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा हैं, "कर्पूरीजी बिहार में एक सामाजिक आंदोलन के प्रतीक रहे हैं। इसलिए हर तरह के लोग या विभिन्न राजनीतिक दल उनके जन्मदिन पर सामाजिक न्याय के सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते रहे हैं।" ठाकुर की छबि को ओर स्पष्टरुप से पेश करुं तो वे 'संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी' के अध्यक्ष भी रह चुके थे। उन्हें लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, देवेंद्र प्रसाद यादव और नीतीशकुमार जैसे कईं दिग्गज बिहारी नेताओं के गुरु के रूप में जाना जाता है। इतना कदावर व्यक्तित्व बनाने में कर्पूरी ठाकुर ने अपना जीवन समाज के चरणों में रख दिया था। वो पिछड़े, दलित और मध्यम वर्ग के प्रति काफ़ी संवेदनशील रहे हैं। उसका परिणाम ये आया कि १९७० में वो बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री बने। उससे पहले वो बिहार के उपमुख्यमंत्री भी रहे थे। उन्होंने बिहार में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया था। उनके शासनकाल के दौरान बिहार के पिछड़े इलाकों में कईं स्कूल और कॉलेजो की स्थापना हुई थी।

कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री कार्यकाल में जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर पड़ी है, वैसा दूसरा उदाहरण आज तक नहीं मिलता। ख़ास बात ये भी है कि गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री होने के बावजूद इतना अच्छा काम हुआ था। उनके नाम कईं समाज उद्धार काम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। आज की पीढ़ी उनके नाम और काम से बेख़बर हैं। बिहार राज्य को छोड़कर कोई ठाकुर जी को गहराई से नहीं जानता। लेकिन हमारे क्रांतदृष्टा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई मोदी के ठाकुरजी को मरणोत्तर 'भारतरत्न' सम्मान देने के फैसले से काफी-कुछ लोगों ने उनको जानने समजने का प्रयास किया हैं।

माननीय मोदीजी का व्यक्ति को देखने का नजरिया ही अलग हैं। उनके हरेक फैसले में 'सामान्यजन' का विचार रहता हैं। आज भारत के महत्वपूर्ण सम्मान के लिए कईं ऐसे लोगों का चयन हो रहा है जिनका काम वाकई में काबिले तारीफ हो। मोदीजी खुद को एक सामान्यजन की तरह मानते हैं। एकबार उन्होंने ही कहा था की "मैं भी ओबीसी वर्ग से आता हूँ। मैंने काफी संघर्ष देखा हैं।" मतलब जो महसूस करेगा वो संघर्ष को समज सकता हैं। कर्पूरी ठाकुर के संघर्ष को वंदन करते हुए..!

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Tuesday, June 17, 2025

ART IS HEART...!
June 17, 20251 Comments

"In art, man reveals himself and not his Objects."

कला में मनुष्य स्वयं को प्रकट करता है न कि अपनी वस्तुओं को..!
☆ रवीन्द्रनाथ टैगोर

जीवन अद्भुत घटनाओं का मेला हैं। सभी घटनाओं में कला से झुडी बातें अक्सर ज्यादा मनभावन होती हैं। कला से जीवन में आनंद छा जाता हैं। एक घटना आकारित हुई। थोड़े दिन पहले मैं उदयपुर राजस्थान में था। 'फतेहसागर' की सैर के दरम्यान कुछ सुरीले शब्द सुनाई पड़े।

"जब दीप जले आना..!
जब शाम ढ़ले आना...!
संकेत मिलन का भुल न जाना,
मेरा प्यार न बिसराना...!
जब दीप जले आना, जब शाम ढ़ले आना...!
मैं पलकन डगर बुहारुंगा, तेरी राह निहारुंगा...!
मेरी प्रीत का काजल तुम अपने नैनों मले आना...!
जब दीप जले आना...जब शाम ढ़ले आना...! "

मेरा ध्यान सहज ही वहाँ जा पहुंचा। पार्किंग के कोने पर एक व्यक्ति गा रहा था। मैं वहां पहुँचकर खडा रह गया। गीत समाप्त होने पर थोड़ा बहुत परिचय हुआ। उस सिंगर का नाम 'राज अग्रवाल' था। सुरीली आवाज की तरह ही राज का व्यक्तित्व भी मोहक लगा। पलभर में हम दोस्त बन गए। 


1976 में प्रदर्शित हुई राजश्री प्रोडक्शन की बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म 'चितचोर' का ये गाना गायक येसुदास के सर्वोत्तम गीतों में से एक है। "जब शाम ढले आना....!" गीत के गीतकार एवं संगीतकार रवींद्रजी जैन थे। जिन्होंने राजश्री बैनर की फिल्मों के लिए अपना सर्वोत्तम संगीत दिया हैं। गीत में धुंधलाती हुई सुरमई शाम में प्रियतमा के आगमन की प्रतीक्षा हैं।एक नायक के लिए इससे बेहतर गीत और शब्दों की कल्पना करना संभव नहीं हैं। गायक येसुदास की मखमली आवाज में शालीनता से भरा प्रणय  निवेदन इस गीत को चार चाँद लगाता हैं। ये गीत आज भी हमारे कानों में मिसरी घोल देता है। और मीठे स्वर से मन आज भी भर जाता हैं।

रवीन्द्रनाथ जी के शब्दों की तरह यहाँ गायक-गीतकार एवं संगीतकार प्रकट हुए हैं। तब ऐसी कृति का भावना हमें मिलता हैं। मनुष्य के रुप में हुआ ये शानदार प्रगटन हैं। इससे ही दिल को छू लेनेवाला मंजर पैदा होता हैं। करीबन उनचास बरस पहले ये फिल्म फिल्माया गया था। आज भी उसका संगीत असरदार हैं। इसका कारण व्यक्ति का स्वयं प्रगट होना हैं। और कला तब ही श्रेष्ठ कहलाती है जब व्यक्ति स्वयं को उसमें घोल देता हैं। यहाँ येसुदास ने शब्दों को पकड़कर भाव को अपनी आवाज में घोल दिया हैं। इससे गीतों में जीवंतता सुनाई पड़ती हैं। उच्चतम भावों का प्रगट होना भी एक सुंदर घटना हैं। मैं उसे ईश्वरीय दुआ का फल कहता हूँ। उसे ही रवीन्द्रनाथजीने  "Reveals himself, स्वयं को प्रकट करना" कहा हैं।

कला को हम 'art कोई skill' भी कहते हैं। मगर इन दोंनो में काफी-कुछ अंतर हैं। कला शब्द की व्यापकता विशेष है, जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार की रचनात्मक गतिविधियों, उत्पादों, या कौशल के लिए भी किया जाता हैं। चौसठ कलाओं में चित्रकारी, मूर्तिकला, संगीत-नृत्य, साहित्य और रंगमंच भी शामिल हैं। इससे आगे कल्पना और विचारों को व्यक्त करने की रचनात्मकता क्षमता को भी कला ही समझेंगे। कला एक जीवंत प्रकल्प हैं। इसीलिए सुंदरता और आनंद की भावना भी कला के माध्यम से ही व्यक्त की जाती हैं। सर्वसामान्य रुप से कहे तो अपने विचार-भाव या अनुभूति को अभिव्यक्त करने का बहतरीन तरीका कला हैं। इससे अच्छा लिखने में मेरी काबिलियत नहीं हैं, इस स्वीकार के साथ...!

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Friday, June 13, 2025

Mayday Mayday...!!
June 13, 20251 Comments

 इस शब्द ने सबको थोड़े उत्सुक थोड़े बेचैन किये हैं..!

An international radio distress signal used by ships and aircraft.

जहाजों और विमानों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय रेडियो संकट संकेत।

1920 का दशक: फ्रेंच m'aider या m'aidez का उच्चारण दर्शाता है, जो venez m'aider "Come and help me" "आओ और मेरी मदद करो" से लिया गया है। हम ये ज्ञान क्यों बांट रहें हैं, आप समझ रहे हैं।

'मॅडे..मॅडे' ये नया शब्द हमारे कानों में गूंज रहा हैं। १२मी जून दोपहर १:३९ को हुए दर्दनाक मंजर ने गुजरात को झकझोर दिया। सरदार पटेल इन्टरनेशनल एयरपोर्ट अहमदाबाद से एक फ्लाईट उडान भरने के चंद मिनटो में धराशायी हो गई। इस दुर्घटना में २५० से उपर लोगों की मृत्यु हो गई। जहाँ हवाई जहाज गिरा वहां बी.जे मेडिकल कॉलेज का कैंटीन था। मतलब जानहानि की पराकाष्ठा जैसे मंजर से देश व्यथित हैं। इसमें गुजरात के होनहार-सरलहृदयी पूर्व मुख्यप्रधान विजयभाई रुपाणीजी का भी निधन हो गया हैं।


सृष्टि में हररोज नईं-नईं घटनाएँ होती रहती हैं। जिसे हम अकस्मात के रुप में, एक हादसे के रुप में देखते हैं। कुदरत के प्रकोप या कुदरती हादसे की बात नहीं कर रहा। यहां मानव संबंधित घटना की बात करुंगा। कोई मशीन की तकनीकि खामी के कारण या मानवीय बेदारकारी से जो घटना बनती हैं उसकी थोड़ी बात रखता हूँ। मैं भी ये विचित्र घटना हुई उसका रटन ही कर रहा हूं ओर कुछ नहीं कर रहा। सब यही कर रहे हैं मैं भी..! मिडिया, प्रसाशन सरकार सब यही काम में जुटे हैं। अभी तो मरने वालों की पहचान डी.एन.ए रिपोर्ट के आधार पर हो रही हैं। बाद में जहाज में हुई टेक्नीकल खराबी की चर्चाएं शुरु होंगी। न्यूज वाला फंडा या न्यूज वाली भाषा बंद करता हूं। ओवरडोज हो सकता हैं।

मुझे घटना से संबंधित मानवीय बेदरकारी के बारें में कुछ कहना हैं। सभी लोग टेक्नीकल कामों के जानकार नहीं होते। और सभी लोग टेक्नीकल कामों से झुडे भी नहीं होते। एक समूह इन सब की व्यवस्था में झुडा हैं। अच्छी बात हैं, किसीना किसीको ये व्यवस्था तंत्रों को संभालना पड़ेगा। विश्व की दूरी को घंटो में नापनेवाला हवाई जहाज तो अजायबी से कम भी नहीं हैं। इसी लिए उसमें सतर्कता भी ज़्यादा रखी जाती हैं। कोई भी दुर्घटना की अंतिम से अंतिम हकीक़त को 'ब्लेकबोक्ष' वैसे तो वो ओरेंज रंग का होता है, उनमें संग्रहित किया जाता हैं। पायलट और एयरपोर्ट आपरेटिंग ओथोरिटी के साथ की हुई कम्युनिकेशन गतिविधि को उसमें संग्रहित किया जाता हैं। अब उसके खुलने के इन्तजार में सब हैं।

आज विषय को पकडे रहना मुश्किल हो रहा हैं। सामने दर्दनाक चित्रों के अट्टहास सुनाई पडते हैं। सेकेन्डों का खेल और कई जिंदगियों का खत्म हो जाना। हम तो घटना के बाद के मंजर से दुःखी हैं लेकिन उस घटना को भुगतने वाले कैसी हालत में आ गए होंगे !? उस वारदात में साक्ष्य रूप लोगों की क्षणों की बौखलाहट कैसी होगी !? आग के शोलों में लिपटे हुए शरीर को कितनी भयंकर पीडा हुई होगी !? दर्दभरी चिल्लाहट आग में ही दब गई होंगी ! कोई इस दर्दनाक बात बताने जिंदा नहीं रहा हैं। कईं सपनें आसमान में ही बिखर गए। कईं मिलन की आस लेकर उडनेवालों की उडान थम गई। कईं परिवारों में से एक या दो संबंध गायब हो गए हैं। ईश्वर की महिमा और उनकी लीला की बातों में व्यक्तिगत मर्यादायें भूलाई जाएगी। एक-दो तीन दिनों में हम सब भूलकर अपने-अपने कामों में लग जाएंगे।

बचेगी बस मौन चिल्लाहटे...एक दूसरें पर किये हुए आक्षेप...बचेगी कुछ गलतफ़हमीयां और हमसब भूल जाएंगे ईस दर्दनाक मंजर को..! लेकिन एक ही बात कहता हूँ। इनमें वैयक्तिक स्वार्थ की बात होगी या निजी फायदे की बात होगी तो वहां जरुर कहर तूट पडेगा..! याद रखना ईश्वर के प्रकोप से बचना नामुमकिन हैं। हमारी Mayday की पुकार कोई सुननेवाला ही न हो ऐसी बद्दुआ से बचना चाहिए..!

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Friday, June 6, 2025

What a great step..!
June 06, 2025 2 Comments

 Emotional intelligence is emotional power.

भावनात्मक बुद्धि ही भावनात्मक शक्ति है।

एकबार फिर इमोशन पर बात करने का मन हुआ हैं। वैसे जीवन का अद्भुत रहस्य इन्हीं में छीपा हुआ हैं। भावनाएँ क्या कुछ नहीं करती..!? लेकिन भावना में बहते ही रहना ठीक नहीं हैं। इसलिए भावनात्मकता शक्ति नहीं बन पाती। भावनात्मकता या इमोशन को हम थोड़ा कमजोर समझते हैं। उसकी शक्ति को नज़र अंदाज़ करते हैं।

Special thanks to DJ Maura for good picture 

भावनात्मक बुद्धिमत्ता का मतलब केवल अच्छाई से झुडा नहीं है। बल्कि भावनाओं को अपने दिमाग पर हावी होने से रोकना भी है। एक बार गुस्सा महसूस किया गया, फिर उसे फेंकना होगा। एकबार दु:ख को गले लगाया फिर उसे दफनाया नहीं तो गलत होगा। एकबार सच बोला गया फिर उस सच के साथ चिल्लाकर झुडे रहना होगा। उदाहरणार्थ को पकडे.. इसे हम भावनात्मक शक्ति कहते है। यही जीवन के लिए बहतरीन मार्ग हैं। इससे जीवन को उत्तम गति मिलती हैं। जीवन ठहराव से बचता हैं।

ईश्वर ने हमें जन्म से ही ये सब शक्तियां दे रखी हैं। लेकिन हम अपनी शक्तिओ को नजर-अंदाज करते रहे हैं। जीवन में भीतर का प्रकाश फैले वो जरुरी हैं। भावना जीवन का आधार हैं, बुद्धि जीवन का विकास हैं। भावना और बुद्धि एकरूप हो जाए तो शक्ति बन जाएंगी। इस सत्य को समझना पड़ेगा। मनुष्य जीवन की एक स्थिति बचपन को भाव और बुद्धि के मेल से समझने का प्रयास करते हैं।

एक बच्चे की परवरिश में इन दोनों स्थितिओं का बड़ा महत्व है, इसे विस्तारित रूप से देखते हैं। हमारा बच्चा हमें बहुत ही पसंद होता हैं। स्वाभाविक तौर पर सबकी ये स्थिति होती हैं। उसका बचपन तो हमारे लिए सुवर्ण समय से कम नहीं होगा। उसे मैं मस्ती भरा आनंद कहूंगा। बच्चे की हरेक जिद्द हमें प्यारी लगती हैं। क्योंकी हमारी समग्र भावनाएँ उससे झुड गई हैं। आमतौर पर ये सही भी हैं। सबके साथ और सभी परिवारों में ये होता हैं। अब दूसरी स्थिति का विचार करते हैं। भावनात्मकता के साथ बुद्धि को जोड़कर विचार करते हैं तो कुछ सवाल खड़े होते हैं...!

हमारा बच्चा केवल भावना से खुश रह पाएगा क्या ?
उनके आनेवाले जीवन के लिए ये ठीक है क्या ?
उनके भविष्य के लिए केवल भावना ही पर्याप्त हैं क्या ?
उनके जीवन में बौद्धिकता के महत्व का विचार कौन करेगा ?

एक अच्छे माता-पिता के रुप में बच्चों के साथ उनके भविष्य को संवारने की स्थिति को नजर समक्ष रखना हैं। बच्चे को प्यार करना हैं, अनहद प्यार से सभी बर्ताव करना हैं। लेकिन उस प्यार से उनमें उत्साह और उम्मीद पैदा होनी चाहिए। वो परतंत्र बने वो कतई ठीक नहीं हैं। हमारे बच्चे की बुद्धिभाव से परवरिश करनी होगी। हो सकता है, कभी-कभार हमें अच्छा न लगे फिर भी बच्चों के भविष्य के लिए बुद्धि प्रेरित कार्य करना ही होगा। वच्चों को दिया गया ये सच्चा प्यार हैं।

अब हमारे वैयक्तिक जीवन के बारें में, हमारे विकास के पथ पर भाव और बुद्धि का कैसे मोल करना हैं !? वो समझमें आ जाएगा। हमें बहते रहना है लेकिन कहीं फँसना नहीं हैं। जहां बुद्धि को लगाना है वहां लगानी पड़ेगी। समय थोड़ा कठीन हैं, लोग भावनाओं की कद्र कम मज़ाक ज़्यादा बनाते हैं। इसलिए हर कोई को ये सिखाना पडेगा। लोग भावनाशीलता में स्वार्थ देखकर अपमानित भी करते हैं। कईं ऐसे वर्तन हैं जो आज विश्वसनीयता से परे हो गए हैं। कोई अच्छा वार्ताव करता हैं तो उसके वर्तन पर शंका करने वालों की संख्या बढ़ जाएगी। ऐसा भला होता हैं क्या ? कहकर अच्छी भावना को ठुकराई जाती हैं। भावनात्मकता को जीवन की शक्ति बनाना हैं, बुद्धि के बल पर  उसे जीवन का दमदार कदम बनाना हैं।

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Ethics is power of life.

नैतिकता जीवन की शक्ति है..! नैतिकता के बारें में बात करने की मेरी वैयक्तिक क्षमता है कि नहीं ये जानते हुए भी लिख रहा हूं। क्योंकि मुझे इतन...

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