July 2025 - Dr.Brieshkumar Chandrarav

Wednesday, July 30, 2025

Life is all about balance.
July 30, 2025 4 Comments

Life is all about balance. build your strength, balance your emotions and keep smiling through it all.


ज़िंदगी का मतलब है संतुलन। अपनी ताकत बढ़ाएँ, अपनी भावनाओं को संतुलित करें और हर हाल में मुस्कुराते रहें।

अच्छे विचार सबके होते हैं। आज सोशल मिडिया के कारण कईं अच्छे विचारों का मिलना सहज हो गया हैं। ऐसा ही कुछ मंत्र सा वाक्य मुझे मिला। ये जिसका भी विचार हैं उसको वंदन करते हुए ऋणात्मक भाव से आगे बढ़ता हूँ। जीवन के इस संतुलन को जगद्गुरु कृष्ण भगवद्गीता में 'स्थितप्रज्ञता' कहते हैं। ये जीवन को अद्भुत मुकाम पर ले जाएगी। इस के बारें में कृष्ण से ज्यादा मैं क्या बता सकता हूं ? फिर भी शब्द-विचार के साथ थोड़ी-सी मस्तियाँ..!

Thanks to Quanagpraha for pic.

हिन्दी फिल्म 'आनंद' का एक गीत हैं। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के सुंदर अभिनय से ये फिल्म आज भी सदाबहार रही हैं। और इस फिल्म के गीत-संगीत की तो बात ही कुछ ओर हैं।

ज़िंदगी...!
कैसी है पहेली, हाए
कभी तो हंसाये कभी ये रुलाये...ज़िंदगी...!
कभी देखो मन नहीं जागे,
पीछे पीछे सपनों के भागे,
एक दिन सपनों का राही चला जाए...सपनों के आगे कहाँ...ज़िंदगी....!
जिन्होने सजाए यहाँ मेले,
सुख-दुख संग-संग झेले,
वही चुनकर ख़ामोशी यूँ चली जाए...अकेले कहाँ...ज़िंदगी...!

गीतकार योगेश ओर सलिल चौधरी के संगीत में मशहूर गायक मन्ना डे की मखमली आवाज को सुनना बहुत आनंद मिलेगा। और जिंदगी के प्रति देखने का थोड़ा-सा तजुर्बा भी बदल जाएगा। थोड़ी देर ही भले, अच्छे कंपनो से शरीर और मन ताजगी का अनुभव करेंगे। संगीत में ऋचि रखनेवाले कईं लोगों ने इस गीत का लुफ्त भी उठाया होगा। मैं कुछ नया भी नहीं कह रहा।

मुझे लगता हैं, जिंदगी में संतुलन बढ़ता है तब समझदारी सहज ही बढ़ने लगती हैं। व्यक्ति शांत होता जाता हैं। आंतरदृष्टि का बढ़ना और धीरता का अनुभव सहज होता चला जाता हैं। स्पष्टताएं स्फूरित होती हैं। इसे हम शक्ति कहेंगे, अपनी भावनाओं का संतुलन जीवन को स्थितप्रज्ञता देता हैं। इससे भीतर की मुस्कराहट बढ़ती हैं। मानो, आनंद के सागर में बहते जाना...! जीवन को समझना, जीवन देनेवाले के बारे में सोचना। ईश्वर के प्रति कृतज्ञ बने रहेना। और ईश्वर की सजाई हुई सृष्टि के बारे में भी अहोभाव पूर्ण जीवन जीना...!

ईश्वरने हमें जीवन दिया हैं। पृथ्वी पर सांस से लेकर शांति तक सबका जीवन प्राकृतिक तत्त्वोंसे संवृत हैं। हमारे आसपास भौतिक जीवन के अलावा संवेगात्मक जीवन का भी आवरण हैं। भौतिक और संवेगिक दोनों क्षेत्र अपनी-अपनी जगह पर स्थापित हैं। उन दोनों से हमें सीखना हैं और गुजरना भी हैं। एक का भुगतना हैं, दूसरा समझ और समर्पण पर टिका हैं। एक प्रकृति की कृपा के रुप में हैं। एक तरफ कृपा से संवेदन को जगाना हैं। ये मनुष्य के रुप में संतुलन करने की बात हैं। भौतिक संगत में हमारी सामाजिक संगत को जोड़कर अपने जीवन को आकार देना हैं। दोनों स्थिति प्रेम और संवेदन का पुरस्कार करने वाली हैं। इसीलिए कहते हैं ज़िंदगी-ज़िंदगी होती हैं। एक पहेली की तरह उलझन सी और सुख दुःख के मेले सी और हसने-रुलाने की हसरत सी...! कभी कभार भावनाओं में बहना ही पडता हैं। कहीं मक्कम निर्धार से गुज़रना पडता हैं। इन सभी स्थितिओं को मरते-नज़र रखते जीवन को बेहतर करना होगा...पूर्णरुप से सम्मिलित होते हुए। इससे जो शक्ति प्राप्त होगी वो हमारा मार्ग प्रशस्त करेगी। इसलिए बस, आनंद किजिए और मस्त रहिए..!

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Wednesday, July 23, 2025

Extreme level of dedication.
July 23, 2025 4 Comments

 समर्पण की अंतिम सीमारेखा लांघने वाली,

अद्भुत प्रेम दिवानी...मीराबाई।

प्रेमानंद स्वामी का एक विडिओ देखने में आया। थोडे ही शब्दों में मीराबाई फिर एक बार मन को जंकृत करने लगे। वैसे तो समर्पण के कईं चरित्रों में मुझे मीरा सबसे ज्यादा पसंद हैं। उनकी 'प्रेमप्रज्ञा' से प्रकट हुए पद और भजन भारतीय भक्ति साहित्य के शिरमोर हैं। लेकिन मुझे मीरा का कृष्ण के प्रति दीवानापन सबसे ज़्यादा पसंद हैं। देखते हैं, प्रेमानंदजी के शब्द में मीराबाई..!

मीराजी को जहर पीलाया गया। दासी ने आकर बताया की ये जहर है जहर..! पर जो लाया था उसने बोला की ये गिरधर का चरना अमृत हैं। मीराजी को दासी ने कहा चरना अमृत नहीं ये ज़हर हैं। तो उन्होंने कहा नहीं, जब ये कह रहे हैं की गिरधर का चरना अमृत हैं तो मैं पियूंगी। मीरा गिरधर का चरना अमृत समझकर पूरा पी गई। और करताल उठाई पूरी रात नाचती रही, कुछ फ़र्क नहीं पड़ा। अब राणा विक्रम जो उनका देवर था, उसको लगा की वैद्य ने हमारे साथ कुछ धोखा किया हैं। जहर के नाम पर उसने कुछ ऐसे ही घोल कर दे दिया है इसलिए मीरा को कुछ नहीं हुआ हैं। तुरंत उस वैद्य को बुलाया गया और उसको कटोरे में जो बचा था, वो चटाया गया। वैद्य तुरंत मर गया। विष इतना जहरीला था की एक बूंद चाटने से भी वैद्य मर गया। मीराजी को जब पता चला तो उन्होंने उस वैद्य की रक्षा के लिए गिरधर को बिनती करते हुए कहने लगी : "हे गिरधर यदि मन वचन कर्म से हम आपको अपना प्रीतम मानते हैं तो वैद्य अभी जीवित हो जाए..!" कहते हैं उसी क्षण वैद्य जीवित हो गया। भगवान में अपार सामर्थ्य हैं।


इस कहानी में किसी को चमत्कार दिखे तो हल्ला मत बोलना। मुझे कहानी की समर्पितता पसंद आई हैं। मुझे मीरा पसंद है इसलिए मिरेकल्स भी अच्छे लगते हैं। everything is fair in love and war. प्रेम में सब जायज हैं। मीरा के लिए कृष्ण सबकुछ हैं, वो उनके लिए कुछ भी कर सकती हैं। कृष्ण दैहिक रुप से सृष्टि में नहीं है फिर भी..! और कृष्ण भी मीरा के समर्पण से द्रवित हैं। वो मीरा के लिए कुछ भी करेंगे। ये पारस्परिक प्रेम चमत्कार भी खडा कर सकता हैं। मीराबाई कृष्ण की मूरत के सामने अपने हृदय के भावों को खुले मन से प्रकट करती थी। कृष्ण में समाई हुई और सर्वत्र कृष्णा को अनुभूत करती मीरा इस संसार की सबसे बड़ी समर्पिता हैं। मीरां की प्रेमशबद बानी के बिना मैं विशेष क्या लिख पाऊंगा !? पढ़िए कुछ पंक्तियाँ..!

"हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय।
जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय।
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय।"

एक ओर सुप्रसिद्ध भजन की दो पंक्तियाँ..! प्रभुजी के प्रेम को पा कर और कुछ नहीं चाहिए। वो संसार का सबसे बड़ा धन हैं। इन्हीं विचार के साथ...!

"पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुर, किरपा कर अपनायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो।
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो..!"

मैंने मीराबाई के पद-भजन को जब भी पढ़ा है, तब वो मेरे मन का आनंद बनी हैं। मीरा मेरे लिए एक चरित्र से बढ़कर हो गई हैं। वो एक शब्द विचार से अनुभूति बनी जा रही हैं। आज भी उनके शब्दों के संगीत मढ़े स्वरोंकन अद्भुत लगते हैं। मीरा कृष्ण में लीन थी, वो कृष्ण में ही जी रही थी। इसी तरह मीराजी कईं हृदयों में बसे हुए हैं।

मीरा अमर हैं, मीरा सनातन हैं..! जब तक कृष्णा है तब तक इस संसार में मीराजी रहेगी। क्योंकि मीराजी कृष्ण में समाहित हैं।

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Tuesday, July 15, 2025

The best definition of education.
July 15, 2025 4 Comments

परंपराएं शानदार ही होती हैं।

नया सिखने का मतलब ये कतई नहीं हैं,

की पुरखों की सभी मान्यताएं गलत थी।


"मैंने तुम्हें स्कूल में नईं चीज़े सिखने के लिए भेजा था। पूरानी चीज़े भूलने के लिए नहीं। पुराना भूला दे वो सभ्यता कल्याणकारी नहीं होती। जो सभ्यता पुरानी सभ्यता को भूला दे वो कितनी भी अच्छी क्यों न हो, वो ठीक नहीं।"

शब्दों में संवेदनशीलता हैं, आर्द्रता हैं। आगे सुने, बहुत अच्छा महसूस होगा। हम सब शिक्षित हैं, नये जमाने में रहते हैं। फिर भी शिक्षा के बारे में प्रयोग ही करते रहते हैं। कैसा सही रहेगा कैसा गलत !? इस स्थिति में काफी-कुछ भूलने लगे हैं। परंपरा की नींव मजबूत नहीं रही इसीलिए नयेपन के बंधी हो गए हैं। चलो फिर आगे...!


"शिक्षा दूर खडे व्यक्ति को पास लाने का काम करती हैं। जो पास खडे व्यक्ति को दूर ले जाने का काम नहीं करती। शिक्षा अमित्र को मित्र बनाने के लिए होती हैं। मित्र को अमित्र बनाने के लिए नहीं होती। आज मुझे स्कूल और विद्यालय में अंतर समझ में आ गया। स्कूलो में व्यक्ति को साक्षर बनाया जाता हैं। और विद्यालयो में व्यक्ति को शिक्षित किया जाता है। बेटा, में ग्रामीण परिवेश का व्यक्ति हूं। मुझे नहीं पता की साक्षरता कितनी कल्याणकारी है कितनी नही हैं। मैं चाहता हूँ , मुझे ये पता है की शिक्षा निश्चित रुप से कल्याणकारी हैं। मैं नहीं चाहता की तुम एक असंवेदनशील साक्षर व्यक्ति के रुप में जाने जाओ। मेरे लिए एक संवेदनशील निरक्षर व्यक्ति अधिक महत्वपूर्ण होगा।"


बहुत ही दिलचस्प शिक्षा विचार के शब्द हैं। दिल को छू लेनेवाले शब्दो के किरदार का परिचय करवाता हूँ। हिन्दी फिल्म जगत में 'आशुतोष राणा' एक बेहतरीन अदाकार हैं। और व्यक्ति के रुप में भी उनकी काफ़ी तारीफ़े होती रहती हैं। मैंने कुछ पहले एक पॉडकास्ट देखा था। उसमें ये बात कही गई थी। वो पॉडकास्ट में आसुतोष थे, रीचा होस्ट कर रही थी। 'रीचा अनिरुद्ध' एक जानी-पहचानी पॉडकास्टर हैं। Zindagi with Rich. टाइटिल के माध्यम से वो प्रोग्राम चलाती हैं। उस पॉडकास्ट टॉक में आसुतोष राणा ने अपने स्कूली अनुभव को सांझा करते हुए बताई थी। हाँलाकि ये शिक्षा संबंधित विचार उनके पिताजी के थे। आसुतोष और उनके भाईयो को एक क्राइस्ट चर्च बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था। ये क्राइस्टचर्च जबलपुर की ख्यातनाम स्कूल थी। वहां एक हफ्ते के बाद आसुतोष के पिताजी उनको मिलने के लिए आते हैं। बच्चों को सूट-बूट में देखते हैं। लेकिन एक बात उनको अच्छी नहीं लगती। स्कूल की सिविलइज्ड डिसिप्लिन के मरते नज़र रखते हुए बच्चोंने दूर से "गुड इवनिंग बाबूजी" कहा। आशुतोष कहते हैं : "बाबूजी को ये बात ठीक न लगी और स्कूल ही छुडवा दी।" इस घटना के उत्तर में आशुतोष के पिताजी ने जो कहा मैंने वो लिखा हैं। एक गाँव के आदमी के मन में शिक्षा की इतनी बडी स्पष्टता हैं। ये सुनकर वाकई में खुश हुआ। सोचा एक अच्छी बात ब्लोग के जरिए आप सबको बताऊँ।

मैं समझता हूं शिक्षा कभी भी अकल्याण को प्रेरित करने वाली नहीं होती। शिक्षा के संबंध में कईं मत हैं। लेकिन सबकी एक ही आवाज रही हैं,  शिक्षा से समाज उन्नत बनता हैं, शिक्षा से शांति व सौहार्द स्थापित होते हैं। शिक्षा स्वयं से ज़्यादा दूसरों का विचार करती हैं। शिक्षा मनुष्य का मूलभूत स्वभाव बने तो ही अच्छा हैं। जो शिक्षा पर-पीडन सिखाती हैं, दूसरों की अवहेलना सिखाती हैं या दूसरों को प्रयास पूर्वक पीछे धकेलने के षड्यंत्र करवाती है वो शिक्षा कतई नहीं हैं। ये मात्र वैयक्तिक या सामूहिक रुप से अपनी ही बरबादी हैं। एक ही उदाहरण और एक ही वाक्य में कहे तो मोहनदास करमचंद गांधी की महात्मा तक की सफर शिक्षा से ही संभव हुई हैं। ऐसे कईं चरित्रों से अपनी अपनी शिक्षा संकल्पना दृढ़ करे।

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Tuesday, July 8, 2025

Blessing is every where..!
July 08, 2025 10 Comments


Every experience no matter how bad it seems holds within it a blessing of some kind. the goal is to find it..!

●Buddha


हर अनुभव चाहे कितना भी बुरा क्यों न लगे, अपने अंदर किसी न किसी तरह का आशीर्वाद जरूर रखता है। लक्ष्य उसे पाना है। ● भगवान बुद्ध

भगवान बुद्ध द्वारा कही गई उपर्युक्त बात की गहराई को समझ ने एक अनुभव सेर करता हूँ। ये सबका अनुभव हैं। इस में आपको चमत्कृति भी नहीं लगेगी। लेकिन धैर्य बनाए रखना और आगे बढ़ते जाना, जरूर आनंद मिलेगा।

आम के पेड़ को हम सबने देखा हैं। और आमफल को सभी फलों में राजा भी कहा जाता हैं। फाल्गुन माह में आम के पेड़ के ऊपर फूल आते हैं। उसकी बेहतरीन खुशबू से सारा आलम महक उठता हैं। फिर छोटे फलो से ही हम उस पर प्यार बरसाने लगते हैं। छोटे से फलो की खट्टी यादे आज भी हमारे मुह में बसी हैं। वैसे तो यादे मुख में नहीं बस्ती मगर वो खट्टेपन का स्वाद मुँह में पानी ला देता हैं। इसलिए उसे यादों से संजोये ऐसा लिखा हैं। फिर पक्के फल, रसीले आम की लज्जत...! यहां तक आने के लिए धन्यवाद..!

Blessing

मूल बात अब करता हूँ। जब आम के पेड़ को पहलीबार फूल आते हैं तो उसे तोड दिया जाता हैं। जरुरत पड़ने पर दूसरी बार भी तोड़ दिया जाता हैं। फल लगने से पहले फूलों भरी कोमल डालियों को तोड़ने का कुछ तो मतलब होगा। कई लोग जानते होंगे। आम के पेड को बडा बनाने के लिए, फल के भार को सहने के लिए और पेड के मज़बूत बनाने का ये तरीका हैं। उसकी डालियां तोड़ने का मन न हो फिर भी ये काम करना पड़ेगा। क्योंकि कमज़ोर वृक्ष फलों के भार से तूट जायेगा। उसकी डालिया एक-दो बार तोड़ देंगे तो डालियां मजबूत उग आएगी।  साथ में वृक्ष का विकास भी अच्छी तरीके से हो पाएगा। ये एक आम नाम के वृक्ष की हकीकत हैं।

अब देखते हैं हमारी हकीक़त..! हमारे जीवन में कईं घटनाएं ऐसी घटित होती है जिससे हम परेशान हो उठते हैं। लेकिन उसके भीतरी उद्देश्य के प्रति श्रद्धावान बने रहना हैं। इसमें कोई संदेह नहीं देखना हैं। किसी चीज का तूटना अकारण नहीं होता। बीज का तूटना उगने के लिए हैं। इनमें संभावनाएं भरी हुई हैं। इनमें प्रकृति के ब्लेसिंग्ज छीपे हुए हैं। शायद इनमें दर्दनाक पीड़ाओं का सामना करना पडे फिर भी इनमें श्रद्धेय बने रहना हैं। हमें आशिर्वाद की आशा छोडनी नहीं हैं। ये बेहतरीन लक्ष्य के प्रति होनेवाली गति हैं। मनुष्य जीवन की ये सबसे सुंदर गति कहलाएगी। ईश्वर की कल्पनाएं शायद इसी तूटनेवाली घटनाओं के इर्द गिर्द घूमती रहती होगी। इस सत्य को जान लेना भी जीवन प्रतिबद्धता ही कहलाएगा।

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