अनुभव व्यक्तिगत जीवन की एक जिवंत प्रक्रिया है।
यह अपने खुद की होनी चाहिए..!
मनुष्य जीवन की दृश्यमान आकृति शरीर हैं। लेकिन शरीर की विकसित अविकसित मानसिक अवस्था का विचार करे तो कईं बातों पर उलझने पैदा होगी। मनुष्य जीवन संवेगो से भरा हैं, विचार से भरा है। व्यक्तिगत रुप से जो कुछ वो समझता हैं, स्वीकार करता है, उसके उपर जीवन की पहचान निर्भर करती हैं। जीवन विकास के कईं पहलू में से आज इस ब्लोग में अनुभव की बात करता हूं।
अनुभव का अर्थ ही जीना हैं। सुबह होते ही जागने से सोने तक की एक दिन की जीवन प्रक्रिया में कितने कुछ अनुभव से हम गुजरते हैं। कईं अनुभव बारबार होते हैं। तो कईं अनुभव एकबार ही होते हैं। कभी कभार दैनंदिन अनुभव के मुकाबले एक बार हुए अनुभव जीवन को सही दिशा देने के लिए सक्षम होते हैं। अंधेरो से लडना पडता हैं, या अनजान जगह पर पहुंच जाना, जंगल में प्राणीओं का डर, ऐसी कईं परिस्थितियाँ एकदम से आती हैं। शायद अपने खुद की मर्ज़ी से भी..! शारीरिक आवेग भी हमें अलग ही अनुभव करवाते हैं। जैसे, भूख-तृषा, खाना-पीना, गिरना-उठना, चलना-दौड़ना कितने अनुभव की गिनती करुं !? आप भी इनमें कईं अनुभव को जोड़ सकते हैं। इसे हम क्रियात्मक अनुभव कह सकते हैं।
दूसरा होता हैं आत्मिक अनुभव। उसका भी अपना वैविध्य हैं ; दुःख-पीड़ा, हँसी-खुशी, समझना-स्वीकारना, महसूस करना या सोचना। ऐसे अनेक अनुभव से खुद ही पसार होना होता हैं। इसे ज्यादातर वैयक्तिक रुप से एकांत में महसूस किए जाते हैं। इसलिए इनको हम आत्मिक अनुभव भी कह सकते हैं। दूसरों के अनुभव को हम पढ़ सकते हैं, देख सकते हैं उनके बारें में सुनकर प्रेरित भी हो सकते हैं। फिर भी अपना अनुभव अपना होता हैं। उससे जो ज्ञान या शीख मिलेगी वही बेहतरीन होती हैं। हर इन्सान का अपना 'अनुभव जगत' होता हैं। जितना उसमें वैविध्य होगा उतना शानदार घटित होना तय हैं। किसी व्यक्ति के जीवन की समझ और उनके विचारों की ऊंचाई से हम प्रभावित होते हैं। इनमें उस व्यक्ति की अनुभव क्षमता की विशालता कारणभूत हैं। हां, ऐेसे विराट चरित्रों से सीखना चाहिए, उसका अनुसरण भी करना ठीक हैं। फिर भी अपने भीतर के अनुभवों को समझना ज्यादा बेहतर होगा।
अपना अनुभव प्रमाण हैं। दूसरों का अनुभव प्रेरणा हैं। हम इन दो स्थितियों को बारीकी से समझने का प्रयास करें, तो आगे काफ़ी कुछ समस्याएं खत्म हो सकती हैं। जीवन अपने मुकाम के लिए तैयार रहेगा। जीवन प्रमाणभूत अवसरों के लिए सक्षम बनता जायेगा। जीवन अपनी खुद की पहचान के लिए परिश्रमित होता चला जायेगा। अपनी नजर केवल नजर नहीं बनी रहेगी, उससे ऊपर उठकर उच्चतम दृष्टि का रुप धारण करेगी। सृष्टि के सभी मनुष्य जीवन की उत्कृष्टता अपने खुद के 'अनुभव जगत' को बयां करती हैं। सबकी 'शक्ति और संभावना' में समानता हैं। लेकिन घटित हो रही घटनाएं भिन्न भिन्न होती हैं। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक इन्सान अच्छे बुरे अनुभवों से गुजरता रहता हैं। उससे कोई सीखता हैं और कोई ऊंची उड़ान, शानदार उडान भरता हैं। कोई विचित्रताओं का स्वीकार करते हुए खुद को समस्याओं से घिरता चला जाता हैं।
जीवन में एक बात हमेशा याद रहनी चाहिए की अनुभव उधार नहीं मिलते। वो खुद के होने चाहिए। हमें भूख लगी है, और दूसरा खाएगा तो भूख शांत नहीं हो सकती। मैं बैठा रहूं और कोई दूसरा आकर मुझे ज्ञानवान, धनवान या कुछ ओर...बना दे, इस बात में कुछ खास नहीं हैं। अपने खुद पर विश्वास करके अपने खुद के 'अनुभव जगत' को महसूस करते रहना हैं।
आपका Thoughtbird 🐣
Dr.Brijeshkumar Chandrarav
Modasa, Aravalli.
Gujarat.
INDIA.
drbrijeshkumar.org
dr.brij59@gmail.com
+91 9428312234

સારો અનુભવ માનવીને સુખી બનાવે છે..
ReplyDeleteઅનુભવ શ્રેષ્ઠ ગુરૂ છે. સરસ વાત લખી.
ReplyDeleteઆપ જે ચિત્ર પસંદ કરો છે એ પણ તમારી સમજ બતાવે છે. આપ વિચાર ને રજૂ કરવામાં માહિર છો.
ReplyDeleteGood thoughts
ReplyDeleteFine ✌️
ReplyDelete